अब नशे का ‘गुजरात मॉडल’

अहमदाबाद। अहमदाबाद शहर से 60 किलो मीटर की दूरी पर बावला तहसील का बलदान गांव है। यह गांव अहमदाबाद जिले में ही आता है। शुक्रवार को अहमदाबाद ग्रामीण पुलिस ने आयुर्वेद डॉक्टर हरेश दला भाई माणिया को मेडिको नशा कारक पदार्थ को नशे के लिए बेचने के जुर्म में पकड़ा है। डॉक्टर के पास से 380 बॉटल नशाकारक सीरप, 409 बॉटल कफ सीरप, 29 बॉटल कोकीन युक्त सीरप बरामद किए हैं। पुलिस ने एनडीपीएस की धारा 8(c), 29 के तहत मुकदमा दर्ज किया है। ग्रामीण पुलिस को मुखबिरों से जानकारी मिली थी कि डॉक्टर हरेश क्लीनिक की आड़ में मेडिको एडिक्शन का बड़ा कारोबार चला रहे हैं। जिससे युवाओं में नशे की तेज़ी से बढ़ोत्तरी हो रही है। शुक्रवार को ही अहमदाबाद के कागड़ा पीठ पुलिस स्टेशन ने हद की ऊंट वाली चाली में जहरीली शराब पीने से 5-6 लोगों को अस्पताल में भर्ती किया है।

ड्रग से मरने और पागल होने वाले युवाओं की कहानी

2011 में उत्तर प्रदेश के भदोही से एक परिवार रोज़ी रोटी की तलाश में अहमदाबाद आता है। परिवार में माता पिता और उनके छह बच्चे होते हैं। बच्चों में सबसे बड़ा 22 साल का गुड्डू और उससे छोटा शकील और दो अन्य भाई के अलावा दो बहनें होती हैं। शकील परिवार और रिश्तेदारों की सहायता से एक पुराना टेंपो खरीद कर टेंपो चलाने लगता है। शकील एक मेहनती नौजवान था। टेंपो में खुद माल लोड अनलोड करता था। धीरे-धीरे एक सफल टेंपो चालक बन जाता है। कुछ समय पैसे एकत्र कर अपने बड़े को भी एक टेंपो खरीद कर दे देता है। दोनों भाई कुछ समय बाद पैसे एकत्र कर एक तीसरा टेंपो खरीद कर तीसरे भाई को दे देते हैं। तीनों भाई मिलकर काम करते हैं। कुछ समय बाद एक मकान भी खरीद लेते हैं। परिवार 10 वर्षों में अपने आप को आर्थिक तौर पर मजबूत कर लेता है। 

इसी दरम्यान शकील को मेडिकल नशे की लत लग जाती है। शकील सीरप और टैबलेट का नशा करने लगा। मेडिकल नशे के बाद चरस और गांजा भी लेने लगा। कुछ समय बाद एमडी जैसे खतरनाक नशे की लत लग गई। ड्रग के नशे की लत ने 60 किलो के शकील को 35 किलो का बना दिया। घर वालों ने 2020 में शकील की शादी करवाई थी। सोचा था शायद विवाह के बाद नशे की लत छूट जाए। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। पत्नी नशेड़ी पति को छोड़ अपने मायके लौट गई। घर वालों ने नशे की लत छुड़ाने के लिए डॉक्टर की मदद ली और इलाज शुरू करवाया। घर वालों ने जब सख्ती की तो अहमदाबाद से 100 किलो मीटर की दूरी पर उंझा तहसील में स्थित मीरा दातार दरगाह भाग गया।

घर वाले एक दो बार वहां से पकड़ कर ले आए। लेकिन वह बार-बार दरगाह चला जाता था। दरगाह जाने का कारण एक ही था। दरगाह के बाहर बहुत से नशेड़ी बैठते हैं। चरस गांजे की चिलम आसानी से उपलब्ध होती है। वहां के चरसी चिलम एक दूसरे से साझा भी करते हैं। पिछले महीने एक सुबह घर वालों को किसी ने फोन कर बताया। शकील को कामदार एस्टेट से एम्बुलेंस से सिविल अस्पताल ले गए हैं। जब घर के लोग अस्पताल पहुंचे तो पता चला शकील का रास्ते में ही देहांत हो चुका है। शकील नशे की हालत में अपने कपड़े उतार कर फेंक दिया था। जिसके चलते उसकी ठंड लगने से मौत हो गई।

22 वर्षीय अशफाक की कहानी भी शकील जैसी है। ड्रग नशे के चलते अब वह पागल हो चुका है। परिवार ने नशा मुक्ति केंद्र की सहायता ली। लेकिन पीड़ित की इच्छा शक्ति न होने के कारण नशे की लत छुड़ाने में परिवार असफल रहा। अशफाक एक ड्राइवर था।

एक अन्य व्यक्ति जिसका नाम टक्कल है। उसकी आयु 23 वर्ष है। एमडी के नशे के चलते टक्कल भी पागल हो गया। टक्कल प्लास्टर ऑफ पेरिस से सीलिंग डिजाइन बनाने का काम करता था। यह तीनों लड़के बापू नगर की एक ही बस्ती के हैं। अहमदाबाद शहर में ड्रग एडिक्ट के ऐसे दर्जनों उदाहरण मिल जाएंगे। नशे से धुत युवा सड़क ब्रिज इत्यादि के किनारे पड़े रहते हैं। राहगीरों को इन्हें ऐसी अवस्था में देखने की आदत पड़ गई है। इससे अब किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता।

 मेडिकल पदार्थों और एमडी ड्रग की चाहत बहुत तेज़ी से बढ़ रही है

2016 से 2021 के बीच गुजरात यूनिवर्सिटी के पीएचडी छात्र एजाज़ शेख ने अहमदाबाद में ड्रग तथा अन्य नशीले पदार्थों के सेवन पर थेसिस लिखी है। एजाज़ शेख ने 15 से 35 वर्ष की आयु के नौजवानों पर एक सर्वे किया था। सर्वे का सैंपल साइज 500 युवाओं का है। अहमदाबाद नगर निगम के 48 वार्डों में से 25 वार्ड से 20-20 युवाओं पर सर्वे किया गया। अहमदाबाद के 45.5 प्रतिशत युवा किसी न किसी प्रकार का नशा करते हैं। जबकि राष्ट्रीय औसत 35.5% है। 500 में से 144 युवा मल्टीपल ड्रग का सेवन करते हैं। अहमदाबाद शहर में 15 से 35 वर्ष की आयु वाले युवाओं की जन संख्या लगभग 14 लाख है। इनमें से लगभग 1 लाख 40 हजार लोग किसी न किसी प्रकार का नशा करते हैं। एक दिन में 1 ड्रग पेडलर से 25 व्यक्ति द्वारा ड्रग खरीदने का औसत है। एमडी का सेवन करने वाले 10 लोगों में 9 व्यक्ति की आयु 15 से 35 है। युवाओं में सॉलवेंट सूंघ कर नशा करने के ट्रेंड में भी तेजी से बढ़ोत्तरी हुई है।

पुलिस स्टेशन में बना नशा मुक्ति केंद्र

नशे की लत लगने के बाद उसे छोड़ने वालों की संख्या बहुत कम है। अहमदाबाद में सामाजिक संगठनों द्वारा कई नशा मुक्ति केंद्र भी चलाए जा रहे हैं। अहमदाबाद शहर के ज़ोन 5 के डीसीपी अचल त्यागी ने बापू नगर पुलिस स्टेशन में दिशा नाम से नशा मुक्ति केंद्र खोला है। ताकि युवाओं से नशे की लत छोड़ाई जा सके। 

पुलिस स्टेशन में नशा मुक्ति केंद्र।

नशे का नाश आंदोलन

2017 के चुनाव से पहले अल्पेश ठाकोर ने नशे को मुद्दा बनाकर बड़ा आंदोलन भी किया था। नशे के विरोध में 2018 में बापूनगर के गरीब नगर की जनता ने ज्वाइंट पुलिस कमिश्नर के दफ्तर का घेराव भी किया था। उस समय से अहमदाबाद शहर में जावेद सैय्यद ” नशे का नाश” नाम से ड्रग के खिलाफ आंदोलन चला रहे हैं। जावेद पत्रकार हैं जो प्रिंट और इलेक्ट्रोनिक मीडिया के कई प्लेटफार्मों में काम कर चुके हैं। जावेद सैय्यद ने एक महीने पहले उस समय सनसनी मचा दी जब उन्होंने अहमदाबाद के हर वार्ड में चल रहे अड्डों और डीलरों का नाम सार्वजनिक कर दिया था। एजाज़ शेख की शोध के अनुसार शहर के जमालपुर में सबसे अधिक नशे का सेवन जमालपुर और अमराईवाड़ी में होता है। सबसे कम सेवन पालडी वार्ड में होता है। नशे के कारोबार में महिलाओं की संख्या अधिक है। 

मजदूरों में हेरोइन और कोकीन के नशे की आदत में बढ़ोत्तरी

सबसे अधिक नशे का सेवन मजदूर वर्ग में है। अब मजदूरों में नशे का सेवन शराब तक सीमित नहीं है। मजदूरों को डीलरों ने हेरोइन, कोकीन, मेडिको एडिक्ट भी बना दिया है।

अहमदाबाद में सभी प्रकार के नशीले पदार्थ आसानी से उपलब्ध हैं। मेडिकल स्टोर पर कफ सीरप और टेन जैसी दवाएं आसानी से उपलब्ध हैं। मेडिको नशा से युवाओं को बचाने की सरकार के पास कोई ठोस नीति नहीं है। चरस और गांजा दरगाहों, रेलवे स्टेशन, झुग्गी झोपड़ी वाली बस्ती और मजदूरों की चालियों के आसपास आसानी से उपलब्ध होता है। एमडी और कोकीन की बिक्री भी वही लोग अधिकतर कर रहे हैं। जो चरस गांजे बेचते हैं। यूनिवर्सिटी कैंपस और NID जैसे संस्थानों के आसपास ड्रग के पेडलर बहुत ज्यादा सक्रिय हैं।

(अहमदाबाद से जनचौक संवाददाता कलीम सिद्दीकी की रिपोर्ट।)

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