Saturday, April 20, 2024

दिल्ली विश्वविद्यालय में ऑनलाइन एग्जाम की घोषणा मनुवादी फरमान

कोरोना की आड़ में दुनियाभर का सत्ता वर्ग कमज़ोर तबकों के बचे-खुचे अधिकार भी छीनने में जुटा हुआ है। भारत में भी साधारण ग़रीब तबकों को हाशिए पर धकेलने के इंतज़ाम साफ़ दिखाई दे रहे हैं। पहले ही अमीरों के लिए बहुत हद तक आरक्षित की जा चुकी शिक्षा व्यवस्था अब ऑनलाइन के नाम पर ग़रीबों के लिए ऑफलाइन होने जा रही है। दिल्ली यूनिवर्सिटी में ऑनलाइन ओपन बुक एग्जाम की घोषणा का विरोध इसी वजह से किया जा रहा है। इस विरोध की पहल आम तबकों के विद्यार्थियों के हितों को लेकर चिंतित शिक्षक ही कर रहे हैं।

दिल्ली यूनिवर्सिटी के ज़ाकिर हुसैन कॉलेज के शिक्षक और सोशल एक्टिविस्ट विजेंदर मसिजीवी ने ऑनलाइन ओपन बुक एग्जाम के विरोध में ट्विटर-फेसबुक पर #DUAgainstOnlineExamination और #DUwithSolution हैशटैग के साथ अभियान की पहल की है। उन्होंने लिखा है, “गरीब, दलित, वंचित, स्त्रियों, विकलांगों, ग्रामीण अंचल ने जो अब तक यात्रा की, शहरों के बड़े कॉलेजों विश्वविद्यालयों की दहलीज पर आहटें दी, उसमें से बहुत कुछ को महामारी के नाम पर छीन लेने की तैयारी है। परीक्षा और शिक्षा में ऑनलाइन के नाम पर बहिष्करण के इस तरीके का मैं विरोध करता हूँ। आपसे इस प्रतिरोध में शामिल होने का आह्वान करता हूँ।“

ज़ाकिर हुसैन दिल्ली कॉलेज के शिक्षक और सामाजिक न्याय के प्रश्नों पर निरंतर संघर्षरत एक्टिविस्ट लक्ष्मण यादव ने अचानक ऑनलाइन एग्जाम लेने की डीयू की घोषणा पर कड़ी प्रतिक्रिया जताई है। उनका कहना है कि ऑनलाइन सिस्टम उच्च शिक्षा की दहलीज़ तक किसी तरह पहुँची साधारण परिवारों खासकर दलित, पिछड़े, आदिवासी, अल्पसंख्यक परिवारों की पहली पीढ़ियों को एक झटके में खदेड़ देगा। यह एक मनुवादी फरमान है जो यह तय करेगा कि अब किसे उच्च शिक्षा मिलेगी और किसे नहीं। किसी तरह शिक्षा हासिल कर पा रही महिलाएं भी इससे बुरी तरह प्रभावित होंगी। 

सामाजिक मसलों पर मुखर रहने वाले दिल्ली यूनिवर्सिटी के डॉ. भीमराव अंबेडकर कॉलेज के शिक्षक ताराशंकर ने ऑनलाइन ओपन बुक एग्जाम के विरोध की वजहों पर बिंदुवार रोशनी डाली है। उनका कहना है कि डीयू ने स्टूडेंट्स बॉडी या टीचर्स यूनियन से बात किए बिना ऑनलाइन एग्जाम (वह भी ओपन बुक एग्जाम) का नोटिस निकाल दिया है। इस तरह से एग्जाम में आम विद्यार्थियों के सामने क्या परेशानियाँ पेश आएंगी, उन पर ध्यान देना ज़रूरी है –

1). दिल्ली यूनिवर्सिटी के बहुत सारे स्टूडेंट्स के पास कम्प्यूटर, लैपटॉप या स्मार्ट फ़ोन नहीं हैं।

2). कोरोना महामारी के चलते आधे से अधिक स्टूडेंट्स अपने घर चले गए हैं। वे देश के कई राज्यों के पिछड़े इलाक़ों से भी आते हैं जहाँ इंटरनेट की सुविधा शायद न हो। अगर हो भी तो कौन जाने कितनी तेज़ हो,  लगातार हो कि न हो!

3). दिल्ली छोड़कर घर जाने वाले अधिकतर स्टूडेंट्स अपनी क़िताबें लेकर नहीं गए हैं! इस महामारी में ख़ुद किसी तरह घर चले गए, यही क्या कम है! उनके लिए ओपन बुक एग्जाम के क्या मायने बचते हैं?

4). बहुत सारे स्टूडेंट्स हिंदी मीडियम से हैं। उनके लिए स्टडी मटीरियल ही ढंग से उपलब्ध नहीं हो पाता। वे एग्जाम किस तैयारी के आधार पर देंगे?

5). ऑनलाइन क्लासेज़, वेबिनार की हकीक़त हम टीचर्स जानते हैं। कुछ क्लासेज़ में 100 से 150 स्टूडेंट होते हैं। उन सब को ऑनलाइन क्लास के जरिये पढ़ाने की मुश्किल हम जानते हैं।

6). इस लॉकडाउन में बहुत सारे स्टूडेंट्स ऊपर लिखी सुविधाओं के अभाव के कारण ऑनलाइन कक्षाएं भी अटेंड नहीं कर सके।

7). वैसे भी ऑनलाइन क्लासेज़ और फेस टू फेस क्लासेज़ में ज़मीन-आसमान का फ़र्क़ होता है! कोरोना के चलते अच्छों-अच्छों की मानसिक अवस्था पर बुरा प्रभाव पड़ा है तो स्टूडेंट्स से एग्जाम की अच्छी तैयारी करके ऑनलाइन एग्जाम देने की अपेक्षा करना कहाँ तक संवेदनशील समझ है?

8). बहुत सारे स्टूडेंट्स ट्रॉमा और पैनिक में होंगे अथवा ऐसी मानसिक स्थिति में होंगे जिसमें एग्जाम देना संभव नहीं होगा।

9). यह ऑनलाइन व्यवस्था ग़रीब और सुविधा सम्पन्न घरों के बच्चों में भेद करती है। यह टेक्नो-सेवी स्टूडेंट्स और जो स्टूडेंट्स इसमें उतने अच्छे नहीं हैं, उनमें भेद करती है। यह शहर और ग्रामीण स्टूडेंट्स में भेद करती है।

10. जिनके पास क़िताबें होंगी, इंटरनेट होगा, उच्च शिक्षित दोस्त या परिवारजन होंगे, ज़ाहिर है कि वे तुलनात्मक रूप से बेहतर कर लेंगे। एक उत्तर बड़े भैया ने लिख दिया, एक दीदी ने लिख दिया, एक पापा ने लिख दिया, हो गया बेस्ट एंसर। लेकिन झोपड़ियों में रहने वाले, गांवों में रहने वाले, इंटरनेट कनेक्शन से दूर रहने वाले स्टूडेंट्स के बारे में भी सोचिए।

11. तमाम स्टूडेंट्स तो यह भी नहीं जानते कि स्कैन कैसे करते हैं, स्कैन करने के बाद कैसे उत्तर पुस्तिका की एक कॉपी बनाकर अपलोड की जाती है।

12. बीच में इंटरनेट चला गया तो? डीयू की वेबसाइट ही हैंग हो गयी तो? विजुअली चैलेंज्ड, स्कूल ऑफ़ ओपन लर्निंग, एनसीडब्लूईबी के हज़ारों स्टूडेंट्स का क्या होगा?

13. प्रैक्टिकल, प्रोजेक्ट, फील्ड वर्क, वाइवा वाले विषयों का एग्जाम कैसे होगा?

14. किसी तरह एग्जाम ले भी लिया तो मूल्यांकन कितना सही होगा? कौन तय करेगा कि ओपन बुक एग्जाम में किसने कितनी ईमानदारी बरती है?

इन बिन्दुओं को रखते हुए ताराशंकर कहते हैं कि हम ऐसे एक्सक्लूशनरी (बहिष्करण) एग्जाम के तरीक़े का पुरज़ोर विरोध करते हैं।

(जनचौक के रोविंग एडिटर धीरेश सैनी की रिपोर्ट।)

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