क्या भारत सरकार के गृह मंत्रालय, दिल्ली पुलिस, भाजपा आईटी सेल और उसके मुखिया अमित मालवीय तथा अर्णब गोस्वामी के चैनल रिपब्लिक और मुकेश अम्बानी ग्रुप के चैनल न्यूज़ 18 के बीच दुरभिसंधि है, कि एक्टिविस्टों को किस तरह यूएपीए के जाल में फंसाना है। पहले भाजपा आईटी सेल के मुखिया अमित मालवीय ट्वीट करते हैं, फिर उस ट्वीट के आधार पर गोदी मीडिया खबर चला देती है, दिल्ली पुलिस आनन फानन में यूएपीए के तहत केस दर्ज़ कर लेती है। आरोपी जेल भेज दिया जाता है और यूएपीए में जमानत नहीं होती। मामला जब सक्षम न्यायालय में पहुंचता है तो पता चलता है कि पुलिस के पास सबूत के तौर पर केवल गोदी चैनलों के फुटेज हैं और जब चैनलों से फुटेज माँगा जाता है तो वे अपनी गर्दन बचाने के लिए सच एक दूसरे को ताकने लगते हैं और कहते हैं कि उन्होंने इसे भाजपा आईटी सेल के मुखिया अमित मालवीय ट्वीट के आधार पर चलाया था।
यह खुलासा उमर खालिद की जमानत याचिका पर सुनवाई के दौरान विशेष अदालत में हुआ। इस खुलासे से पत्रकारिता की आचार संहिता की धज्जियाँ उड़ गयीं और देश के लौहपुरुष कहलाने की इच्छा रखने वाले महाबली गृहमंत्री अमित शाह को शर्म भी नहीं आई होगी कि उनकी दिल्ली पुलिस कितने फूहड़ और गैर पेशेवाराना ढंग से फर्जी एफआईआर दर्ज़ करके कानून के शासन की धज्जियां उड़ा रही है।
उमर खालिद की जमानत की मांग करते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता त्रिदीप पाइस ने आज दिल्ली की एक अदालत को बताया कि वीडियो फुटेज का मूल रूप से खालिद को महाराष्ट्र के अमरावती में भाषण देते हुए दिखाया गया था, जो भाजपा सदस्य अमित मालवीय के एक ट्वीट से लिया गया था और फिर रिपब्लिक टीवी एवं अन्य समाचार चैनलों द्वारा प्रसारित किया गया था।
त्रिदीप पाइस ने अदालत में कहा कि आपकी (अभियोजन) सामग्री एक यू ट्यूब वीडियो है, ट्वीट की एक प्रतियां हैं। पत्रकार की वहां जाने और उपस्थित होने की जिम्मेदारी नहीं थी ? वे इसे एक राजनेता के ट्वीट से कॉपी कर रहे हैं। यह पत्रकारिता की मौत है। उमर खालिद ने फरवरी 2020 के दिल्ली दंगों के संबंध में उसके खिलाफ दर्ज गैर-कानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (UAPA) के एक मामले में जमानत की अर्जी दाखिल कर जमानत की मांग की है।
त्रिदीप पाइस ने अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश अमिताभ रावत के समक्ष तर्क दिया कि एफआईआर 59/2020, जिसमें भारतीय दंड संहिता और (यूएपीए) की धाराएं शामिल हैं, खालिद के 17 जनवरी, 2020 को भाषण देने के एक कथित वीडियो फुटेज पर निर्भर करती है। वीडियो यू ट्यूब पर जारी किया गया था और न्यूज चैनल रिपब्लिक टीवी द्वारा प्रसारित किया गया था।
वरिष्ठ वकील ने कहा कि दिल्ली पुलिस द्वारा मीडिया घरानों को पत्र लिखकर कथित वीडियो के कच्चे फुटेज की मांग की गई थी। हालांकि, चैनलों ने अपने जवाब में कहा था कि उनकी कहानी का आधार भाजपा आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय का कथित ट्वीट था।
पाइस ने यह भी दावा किया कि पुलिस ने मूल रूप से वीडियो नहीं देखा था, लेकिन प्राथमिकी दर्ज करने के लिए 6 मार्च, 2020 तक प्रतीक्षा करते हुए समाचार चैनल के प्रसारण पर भरोसा किया। वरिष्ठ वकील ने यह तर्क देने के बाद कि पुलिस के पास एक “छोटा” संस्करण था “ट्वीट से कॉपी किया गया था के बाद पूरा वीडियो चलाया।
पाइस ने यह भी दावा किया कि 6 मार्च को जब उन्होंने प्राथमिकी दर्ज की, तो उनके पास कोई अन्य जानकारी नहीं थी। आम तौर पर जब कोई अपराध होता है, तो अपराध होने के आधार पर प्राथमिकी दर्ज की जाती है। स्पष्ट रूप से दिल्ली पुलिस के पास रिपब्लिक टीवी और न्यूज 18 के अलावा कुछ नहीं था।
वीडियो चलने के बाद, पाइस ने कहा कि यह शुरुआती बिंदु है और यह कहता है कि; “यदि आप हमारे खिलाफ हिंसक कार्य करते हैं… हम झंडा फहराएंगे… हम खुशी-खुशी जेल के अंदर चलेंगे। वह (खालिद) हिंसा, हिंसक तरीकों का आह्वान नहीं करता है। वह जामिया में लोगों के डर के बारे में बोलता है …”
वकील पाइस ने कहा कि बचाव पक्ष ने जमानत अर्जी के साथ वीडियो फुटेज को रिकॉर्ड में डाल दिया। उन्होंने कहा कि यह उनके पास सबसे अच्छा सबूत है और मैंने इसे अपनी जमानत अर्जी में पेश किया। उन्होंने इसे पेश नहीं किया। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि यूएपीए के पूर्ण फॉर्म में निरोधक (रोकथाम) शब्द है। आपने इसे कहाँ रोका ? और फिर तथाकथित गैरकानूनी गतिविधि के बाद आपका अधिनियम शुरू हो जाता है। ऐसा क्यों होता है ? क्योंकि उसे न्यायपालिका पर भरोसा नहीं है।
वकील ने तर्क दिया कि न्यायपालिका का अविश्वास यूएपीए, पोटा, पीएमएलए है। ये इसलिए बनाए गए ताकि अदालत के हाथ बंधे रहें। पाइस के अनुसार, निष्पक्ष दुनिया में एफआईआर 59/2020 को पहले स्थान पर दर्ज नहीं किया जाना चाहिए था। उन्होंने कहा कि दिल्ली दंगों के संबंध में लगभग 750 प्राथमिकी में, खालिद को उनमें से किसी में भी आरोपित नहीं किया गया था, लेकिन 6 मार्च, 2020 को, किसी को भी शामिल करने के लिए एक खाका उभरा। यह एक व्यापक तरीके से एक प्राथमिकी तैयार की गई थी ताकि आपको लोगों को फंसाने के लिए बयान मिले। सभी कथन इस तरह के विचार के बाद हैं। कुछ गवाह कुछ कहते हैं… सब कुछ पक गया है… चार्जशीट पूरी तरह से मनगढ़ंत है।
पाइस ने एक गवाह के बयान के पहलू पर भी तर्क दिया, जहां बाद वाले ने दावा किया था कि उसने खालिद और सह-आरोपी व्यक्तियों ताहिर हुसैन और खालिद सैफी को एक बैठक करते देखा था। वकील ने दावा किया कि उसी गवाह ने पुलिस को बाद में दिए गए बयानों में खुद का खंडन किया था। पाइस ने तर्क दिया कि यह वही दर्जी है जो अलग-अलग लोगों के लिए कपड़े बनाता है। बयान में साक्षी खुद का खंडन कर रहा है।
गौरतलब है कि भारत में पत्रकारिता के पतन का स्तर इतना है कि अब इसको लेकर कोई भी विशेषण छोटा पड़ जाता है। फिर भी, आज विशेष अदालत में सुनवाई के दौरान उमर के वकील त्रिदीप पाइस ने कहा कि उन्हें टीवी चैनल (की साज़िश) ने फंसाया है। दो वीडियो क्लिप का हवाला देकर पुलिस ने उमर को गिरफ़्तार किया था। रिपब्लिक टीवी ने महाराष्ट्र में उनके दिए गए भाषण को ‘देशविरोधी’ कहते हुए आरोप लगाया था कि उमर दंगा भड़का रहे हैं। रिपब्लिक टीवी से कहा गया कि आप पूरा फ़ुटेज दीजिए। रिपब्लिक ने जवाब दिया कि उसके पास रॉ फ़ुटेज है ही नहीं। उसका कोई रिपोर्टर घटनास्थल पर गया ही नहीं था। रिपब्लिक को फ़ुटेज कहां से मिला ? बीजेपी आईटी सेल के मुखिया अमित मालवीय के ट्वीट से। अर्थात बीजेपी के झूठ वाले कारखाने के मुखिया ने एक छोटा-सा वीडियो रिलीज़ किया। उसे बीजेपी के इशारे पर चलने वाले एक गोदी चैनल ने ब्रॉडकास्ट किया। फिर, बीजेपी की केंद्र सरकार के तहत काम करने वाली दिल्ली पुलिस ने ‘मीडिया फ़ुटेज’ का हवाला देकर उमर पर यूएपीए लगा दिया।
मोडस आपरेंडी यह है कि सरकार एक सुर्रा छोड़ती है। गोदी मीडिया उसे हवा देता है। लोग उसे सच मान लेते हैं। फिर, पुलिस को सबूत नहीं मिलता, फिर सरकारी वकील कमज़ोर पड़ जाते हैं। फिर, अदालत फ़टकार लगाती है और फिर चार-पांच साल में गिरफ़्तार किए गए लोग छूट जाते हैं। लेकिन, तब तक 4-5 साल गुज़र जाते हैं। इन वर्षों का कोई हिसाब-किताब नहीं होता।
भाजपा के आईटी सेल से मिले वीडियो को टीवी चैनल चलाते रहे। उसी के आधार पर दिल्ली पुलिस ने उत्तर पूर्वी दिल्ली दंगे की साजिश की झूठी कहानी लिख ली। उमर खालिद की जमानत अर्जी पर बहस के दौरान मीडिया और पुलिस का यह घटिया चेहरा उजागर हो गया। दिल्ली पुलिस के पास न्यूज़ 18 और रिपब्लिक चैनल के फुटेज के सिवा कुछ नहीं है।
(वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट।)