Friday, March 29, 2024

84 की सिख विरोधी हिंसा के प्रमुख आरोपी जगदीश टाइटलर को लेकर कांग्रेस फिर गहरे विवाद में

पंजाब में एक के बाद एक विवादों से जूझ रही कांग्रेस ने अपने एक और फैसले से राज्य इकाई को दिक्कत में डाल दिया है तथा विपक्ष को नए सिरे से हमलावर होने का मौका मुहैया करवा दिया है। 1984 की जघन्य सिख विरोधी हिंसा के मुख्य आरोपियों में से एक वरिष्ठ कांग्रेसी नेता जगदीश टाइटलर को दिल्ली प्रदेश कांग्रेस कमेटी में स्थाई सदस्य बनाया गया है। उन्हें खुद सोनिया गांधी ने कमेटी में शामिल किया है। इस पर पंजाब में कांग्रेस घिर गई है। शिरोमणि अकाली दल, भाजपा और आम आदमी पार्टी ने इस मुद्दे पर आक्रामक रुख अख्तियार कर लिया है।

गौरतलब है कि पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की उनके ही सिख सुरक्षाकर्मियों द्वारा हत्या के बाद दिल्ली सहित देश के विभिन्न हिस्सों में व्यापक सिख विरोधी हिंसा हुई थी। इसमें हजारों सिख मारे गए तथा घायल हुए। पीड़ित परिवारों को इतने दशक बीत जाने के बावजूद इंसाफ नहीं मिला। अलबत्ता स्वतंत्र जांच एजेंसियों और राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय विश्वसनीय मीडिया में, इस हिंसा के जो (सज्जन कुमार के बाद) मुख्य ‘खलनायक’ थे–उनमें जगदीश टाइटलर का नाम अहम था।

विभिन्न न्यायिक आयोगों और अदालत ने भी उन्हें बकायदा गुनाहगार ठहराया। बेशक व्यवस्था की विसंगतियों के चलते वह कानूनी शिकंजे से बचते भी रहे।1984 से ही सिखों के मन में उनके लिए गहरा आक्रोश है। हिंसा के प्रत्यक्षदर्शी कई गवाह उनका नाम ले चुके हैं। लेकिन अजीब है कि इतने सालों में कांग्रेस ने उन्हें कभी गले लगाया तो कभी हाशिए पर धकेला। यानी वह बाकायदा कांग्रेस में बने रहे। कांग्रेस से बावस्ता कई सिख नेता खुलेआम उनका विरोध कर चुके हैं और यह मांग भी कि उन्हें पार्टी से सदा के लिए निकाल दिया जाए। लेकिन कांग्रेस ने ऐसा नहीं किया।

अब नए विवाद के बीच दिल्ली में कांग्रेस का दो पंक्तियों का स्पष्टीकरण जरूर आया है कि टाइटलर को कोई नया पद नहीं दिया गया, बल्कि पार्टी संविधान के मुताबिक पूर्व सांसद संगठन में स्थाई सदस्य रहते हैं। पंजाब में इस तर्क को ‘बचकाना’ माना जा रहा है। कहा जा रहा है कि हाईकमान कभी भी किसी भी तरह का संशोधन कर सकता है और करता रहा है, आज भी करता है। राज्य कांग्रेस के कतिपय वरिष्ठ नेता भी पार्टी आलाकमान के टाइटलर की बाबत लिए गए ताजा फैसले पर एतराज उठा रहे हैं। अलबत्ता सत्तापक्ष से जुड़े लोग खामोश हैं और निरुत्तर भी।

शिरोमणि अकाली दल के अध्यक्ष, पूर्व उपमुख्यमंत्री व सांसद सुखबीर सिंह बादल ने जगदीश टाइटलर प्रकरण पर कहा कि यह सोनिया गांधी व उनकी सरपरस्ती वाली कांग्रेस की सिखों के घावों के प्रति घोर असंवेदनशीलता है। यह कौम के दशकों पुराने जख्मों पर नमक छिड़कने जैसा है। कांग्रेस ने टाइटलर को त्रासदी की 38वीं वर्षगांठ से ऐन पहले फिर से स्थाई सदस्य बनाया है। यह कांग्रेस के चरित्र का पतन व सिखों का अपमान है।

पंजाब के वरिष्ठ कांग्रेसी नेता और प्रदेश इकाई के पूर्व अध्यक्ष सुनील जाखड़ कहते हैं, “1984 की हिंसा पंजाब के लिए हमेशा से एक संवेदनशील मुद्दा रही है। इस पर समय-समय पर सूबे के लोगों द्वारा अपनी नाराजगी भरी भावनाएं प्रकट की जाती रही हैं और यहां के लोग टाइटलर को खलनायक मानते हैं। यह तो अंबिका सोनी और चरणजीत सिंह चन्नी ही बेहतर बता सकते हैं कि इस समय यह नियुक्ति क्यों की गई जबकि पंजाब में कुछ महीनों बाद विधानसभा चुनाव होने हैं।” इशारों–इशारों में जाखड़ ने कहा कि अगर आलाकमान ने इस पर पुनर्विचार नहीं किया तो राज्य में कांग्रेस को इसका नुकसान उठाना पड़ सकता है।

भाजपा के आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय ने ट्विटर पर तीखी टिप्पणी करते हुए कहा कि सोनिया गांधी ने 1984 की हिंसा के दोषी जगदीश टाइटलर को दिल्ली प्रदेश कांग्रेस कमेटी का सदस्य नियुक्त किया है। उन्होंने सवाल किया कि क्या कांग्रेस पार्टी के लिए सिखों की जिंदगी मायने नहीं रखती। साथ ही यह भी पूछा कि क्या पंजाब सुन रहा है? भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता गौरव भाटिया ने कहा कि टाइटलर की नियुक्ति से आक्रोश उत्पन्न हो गया है। भाजपा के ही एक अन्य वरिष्ठ नेता हरजीत सिंह ग्रेवाल ने कहा कि यह पंजाबियों से बड़ा धोखा है। आम आदमी पार्टी (आप) ने भी कांग्रेस को घेरा है।

दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के निवर्तमान अध्यक्ष मनजिंदर सिंह सिरसा ने कहा कि गांधी परिवार की क्या मजबूरी थी कि एक घोषित दागी को पार्टी में सम्मानजनक ओहदा दिया गया।

गौरतलब है कि पंजाब में कांग्रेस पहले ही दिक्कतों में है। प्रधान पद से इस्तीफा दे चुके लेकिन फिलहाल तक बने हुए नवजोत सिंह सिद्धू और पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह राज्य की कांग्रेस सरकार के लिए बहुत बड़ी सिरदर्दी बने हुए हैं। पूर्व प्रदेशाध्यक्ष सुनील जाखड़ की अगुवाई में भी एक ‘कॉकस’ उभर रहा है जो अंततः मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी के खिलाफ जाएगा। चन्नी और उनके वरिष्ठ मंत्रियों को पंजाब का कामकाज छोड़कर लगातार दिल्ली दरबार की हाजिरी भरनी पड़ रही है। दो दिन में मुख्यमंत्री दो बार दिल्ली गए और लौटे।

पहले दिन राहुल गांधी से मिलने और दूसरी बार अंबिका सोनी से मुलाकात के लिए। मुख्यमंत्री ही नहीं बल्कि उनके मंत्री तथा राज्य प्रभारी व मोहम्मद मुस्तफा (पूर्व डीजीपी) सरीखे सलाहकार भी दिल्ली जाने के लिए सरकारी हेलीकॉप्टर का इस्तेमाल करते हैं। इसे लेकर विपक्ष लगातार उन्हें निशाने पर ले रहा है। बादलों की सरपरस्ती वाले शिरोमणि अकाली दल का कहना है कि मुख्यमंत्री और उनके लोग सरकारी खजाने पर बोझ डालते हुए आए दिन दिल्ली जाते हैं।

बहरहाल, कांग्रेस के खाते में टाइटलर प्रकरण से एक नया विवाद तो जुड़ ही गया है। विधानसभा चुनावों की दहलीज पर खड़े पंजाब में राज्य इकाई के लिए बड़ी मुश्किल पैदा हो गई है। इस मुश्किल से यह कहकर किनारा नहीं किया जा सकता कि यह पार्टी का अंदरूनी मामला है। तय लगता है कि विपक्ष राष्ट्रीय स्तर पर भी इस मुद्दे को उठाएगा। कांग्रेस बैकफुट पर आती है तब भी और अगर फ्रंटफुट पर रहती है तब भी!
(पंजाब से वरिष्ठ पत्रकार अमरीक सिंह की रिपोर्ट।)

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