प्रवासी मजदूरों के पेट की भूख को एक बार फिर नहीं महसूस कर पायी न्याय की सर्वोच्च पीठ

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एक और अनुसंधान और अध्ययनों में कहा जा रहा है कि 96 फीसद प्रवासी कामगारों को सरकार से राशन नहीं मिला है और 11,000 से अधिक श्रमिकों को एक महीने पहले लॉकडाउन लागू होने के बाद से न्यूनतम मज़दूरी का भुगतान नहीं किया गया है। वहीं उच्चतम न्यायालय प्रवासी कामगारों के लिए केंद्र सरकार द्वारा उठाये जा रहे क़दमों से संतुष्ट है और इस पर अलग से कोई आदेश पारित नहीं करना चाहता। उच्चतम न्यायालय ने कहा कि देश असामान्य स्थिति का सामना कर रहा है और इसमें शामिल सभी हित धारक अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने की कोशिश कर रहे हैं।

मंगलवार को कोविड-19 महामारी के कारण लगाए गए लॉकडाउन के कारण सख्त परेशानी झेल रहे प्रवासी कामगारों की मजदूरी के भुगतान पर एक्टिविस्ट हर्ष मंदर और अंजलि भारद्वाज द्वारा दायर याचिका जस्टिस एनवी रमना, जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस बीआर गवई की पीठ ने सुनवाई की। याचिका में उन प्रवासी श्रमिकों को भोजन, बुनियादी जरूरतों और आश्रय तक पहुंच प्रदान करने की आवश्यकता पर जोर दिया गया था जो देशव्यापी लगाए गए लॉकडाउन के प्रकाश में सख्त तनाव में हैं।

याचिका में कहा गया था कि आपदा प्रबंधन अधिनियम के तहत केंद्र सरकार द्वारा लगाया गया लॉकडाउन का आदेश इस समान आपदा से प्रभावित नागरिकों के बीच मनमाने ढंग से भेदभाव कर रहा है। वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण, याचिकाकर्ताओं के लिए पेश हुए और कहा कि अभी भी हजारों प्रवासी कामगार हैं जिनके पास भोजन और आश्रय नहीं है। उनका कहना था कि उन्होंने व्यवस्था का मजाक बनाया है। भूषण ने कहा कि रिसर्च और अध्ययनों के अनुसार जो रिकॉर्ड पर रखा गया था, 96 फीसद लोगों को सरकार से राशन नहीं मिला।

सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने भूषण की दलीलों के स्रोत पर सवाल उठाते हुए कहा कि पूरे देश में सतर्क हेल्पलाइन हैं जो भोजन को उन लोगों तक पहुंचाने के लिए लगाए गए हैं जिन्हें इसकी जरूरत है। सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि हेल्पलाइन नंबर, कोई भी इस हेल्पलाइन तक पहुंच सकता है और एक घंटे के भीतर, भोजन जरूरतमंद व्यक्तियों तक पहुंच जाएगा। उनकी पीआईएल समाचार रिपोर्टों पर आधारित है। उच्चतम न्यायालय ने मामले का निपटारा कर दिया ।

सुनवाई के दौरान सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता और याचिकाकर्ताओं के वकील प्रशांत भूषण के बीच गरमागरम बहस हुई। प्रशांत भूषण की दलीलों के बाद तुषार मेहता ने कहा कि कुछ लोगों का सामाजिक कार्य केवल जनहित याचिका दाखिल करने तक ही सीमित है। तुषार मेहता ने टिप्पणी की कि जब हजारों संगठन कंधे से कंधा मिलाकर चल रहे हैं और इन कोशिशों में सरकार के सहयोग से काम कर रहे हैं, कुछ लोगों का सामाजिक काम अपने घरों से आराम से जनहित याचिका  दाखिल करने तक ही सीमित रह गया। प्रशांत भूषण ने कहा कि रिकॉर्ड पर अध्ययन है कि 11,000 से अधिक श्रमिकों को एक महीने पहले लॉकडाउन लागू होने के बाद से न्यूनतम मज़दूरी का भुगतान नहीं किया गया है।

सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि किसने कहा कि किसी को भुगतान नहीं किया गया है? क्या आपका संगठन जनहित याचिका दाखिल करने के बजाय किसी अन्य तरीके से श्रमिकों की मदद नहीं कर सकता है? इस पर प्रशांत भूषण ने पलटवार करते हुए कहा कि याचिकाकर्ताओं ने पहले ही अपना काम कर दिया है और भोजन वितरित कर रहे हैं, लेकिन क्या आप चाहते हैं कि हम 15 लाख लोगों को खिलाएं?

इस आदान-प्रदान के दौरान, पीठ ने पाया कि ये वास्तव में असामान्य परिस्थितियां हैं और इसमें शामिल सभी हितधारक बड़े पैमाने पर जनता के कल्याण को सुनिश्चित करने के लिए अपनी पूरी कोशिश कर रहे हैं।

इसके पहले 3 अप्रैल को जब इस याचिका को उच्चतम न्यायालय ने सुना था, सॉलिसीटर जनरल ने कहा था कि जब तक देश इस संकट से बाहर नहीं निकलता है, तब तक जनहित याचिकाओं की दुकानें बंद होनी चाहिए। जस्टिस एल नागेश्वर राव और जस्टिस दीपक गुप्ता की पीठ के सामने सॉलिसीटर जनरल ने कहा था कि वातानुकूलित कार्यालय में बैठकर बिना किसी जमीनी स्तर की जानकारी या ज्ञान के जनहित याचिका तैयार करना ‘सार्वजनिक सेवा नहीं है।

इससे पहले पिछले हफ्ते, स्वामी अग्निवेश ने याचिका दायर की थी, जिसमें कोरोनो वायरस संकट के दौरान गरीबों को तत्काल राहत प्रदान करने की मांग की गई थी। सुनवाई के दौरान वरिष्ठ वकील कॉलिन गोंजाल्विस , जो स्वामी अग्निवेश के लिए पेश हुए थे, ने कहा था कि लॉकडाउन ने एक बहुत बड़ा संकट पैदा कर दिया है और यह कि वहां जमीन पर कोई वास्तविक कार्य नहीं किया जा रहा है जैसा कि सॉलिसीटर जनरल दावा कर रहे हैं। तुषार मेहता ने टिप्पणी की कि इस विशेष याचिका के संबंध में मेरी गम्भीर आपत्तियां  हैं। ये स्वरोजगार पैदा करने वाली याचिकाएं हैं। इस तरह की याचिकाओं पर कोर्ट को सुनवाई नहीं करनी चाहिए। मुझे इस तरह की याचिकाओं पर गंभीर ऐतराज है। उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को इस याचिका का भी निपटारा कर दिया।

इस बीच अधिवक्ता अलख आलोक श्रीवास्तव ने उच्चतम न्यायालय के समक्ष एक याचिका दायर करके मांग की है कि प्रवासी श्रमिकों के अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए तत्काल अंतरिम दिशा-निर्देश दिए जाएं। वहीं देशव्यापी लाॅकडाउन दौरान उन्हें भोजन, पानी, आश्रय और चिकित्सा सहायता जैसी बुनियादी सुविधाएं भी प्रदान की जाएं। इस याचिका में 31 मार्च, 2020 को सुप्रीम कोर्ट द्वारा उसकी मूल याचिका पर सुनवाई करते हुए दिए गए आदेश का भी उल्लेख किया गया है। उस आदेश में राज्य भर के अधिकारियों और पुलिस को निर्देश दिया गया था कि वह प्रवासी श्रमिकों के लिए कल्याणकारी गतिविधियों को सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक कदम उठाएं।

याची ने कुछ मीडिया रिपोर्टों पर अपनी चिंता व्यक्त की है, जिनमें बताया गया है कि कुछ राज्य सरकारों ने उस आदेश को सही अर्थ और भाव से लागू नहीं किया है। इस तथ्य पर बल देते हुए याची ने मांग की है कि देश भर के सभी जिला मजिस्ट्रेटों (डीएम) को निर्देश दिया जाएं कि वे अपने-अपने जिलों में सभी आश्रय घरों, शिविरों और ऐसी सुविधाओं का दैनिक निरीक्षण करें ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि आवश्यक आपूर्ति पर्याप्त रूप से की जा रही है।

इसके अलावा याची ने अदालत को उन रिपोर्टों से भी अवगत कराया, जिनमें बताया गया है कि प्रवासी श्रमिकों ने फिर से घर जाने का प्रयास करना शुरू कर दिया है। ऐसा लॉकडाउन को बढ़ाए जाने के कारण हुआ है, जिसके संबंध में आदेश 15 अप्रैल को जारी किया गया है। इसके अलावा यह भी प्रार्थना की गई है कि सभी डीएम तुरंत अपने जिले में उन लोगों की पहचान करें जो फंसे हुए हैं या फिर से पैदल चलकर अपने घर जाने का प्रयास कर रहे हैं। ऐसे प्रवासियों को तुरंत उनके निकटतम आश्रय गृहों में स्थानांतरित कर दिया जाए और उन्हें पर्याप्त भोजन, पानी और चिकित्सा सहायता प्रदान की जाए।

(जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार हैं और क़ानूनी मामलों के भी जानकार हैं।)

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