28 मई के दिन नए संसद भवन के उद्घाटन को लेकर विपक्षी दलों ने बहिष्कार का आह्वान किया है। मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस सहित राष्ट्रीय और क्षेत्रीय दलों ने भी इस मुद्दे पर एकजुट होकर एक साझा पत्र जारी किया है। जिसमें मनमानेपूर्ण तरीके से नए संसद भवन के निर्माण और इसके औपचारिक उद्घाटन को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से न कराकर स्वयं पीएम मोदी के द्वारा किया का विरोध किया गया है।
नए संसद भवन के साथ इसमें नए पीएम आवास, संविधान हॉल, लाइब्रेरी, सांसदों के लिए लाउन्ज, डाइनिंग एरिया, विभिन्न कमेटी रूम और पार्किंग की व्यवस्था की गई है। दिसंबर 2020 को नए संसद भवन के निर्माण की आधारशिला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उस समय रखी थी, जब देश कोरोना वायरस महामारी से जूझ रहा था।
करीब 20,000 करोड़ रूपये खर्च कर सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट को अंतिम स्वरूप दिया जाना है। नए संसद भवन के उद्घाटन को संवैधानिक परिपाटी के अनुसार राष्ट्राध्यक्ष के रूप में राष्ट्रपति मुर्मू को करना चाहिए, लेकिन पीएम मोदी को इसके लिए क्यों चुना गया है, इस बारे में लोकसभा अध्यक्ष खामोश हैं। उससे भी बड़ी बात देश के बड़े हिस्से को यह खाए जा रही है कि 28 मई को ही इसके उद्घाटन के लिए क्यों चुना गया? क्या सावरकर के जन्मदिन के मौके पर संसद भवन के उद्घाटन के जरिये महात्मा गांधी, नेहरु, बोस, आंबेडकर, पटेल सहित लाखों स्वतंत्रता सेनानियों का अपमान का इरादा तो नहीं है? भारत में 27 नवंबर, 2023 को संसदीय लोकतंत्र को प्रदान करने वाले भारत के संविधान की 75वीं वर्षगांठ संभवतः सबसे उपयुक्त अवसर होता।
देश की अर्थव्यस्था रसातल में चली गई थी। उद्योग-धंधे जाम हो चुके थे। एक तरफ दुनिया के इतिहास में सबसे बेरहम तालाबंदी (लॉकडाउन) को भारत के सबसे वंचित तबकों पर थोपा जा रहा था, ठीक उसी बीच देश के कानून निर्माताओं के लिए पहले से मौजूद विशाल संसद भवन और सचिवालय की जगह पर सेंट्रल विस्टा के तहत एक नए संसद भवन और पीएम आवास पर बेहिसाब पैसा खर्च करने की योजना को अमली जामा पहनाया जा रहा था।
इंडिया टुडे को दिए अपने एक वक्तव्य में लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला ने बताया था कि नए संसद भवन में लोकसभा के सदन में 888 सदस्यों के लिए सीटों का प्रावधान है, जिसे संयुक्त सदन के दौरान बढ़ाकर 1,224 तक किया जा सकता है। इसी प्रकार राज्यसभा के सदन में 384 सदस्यों के बैठने की व्यवस्था की गई है। मौजूदा सदन में यदि सभी 543 सदस्य बैठते हैं तो सदन के अध्यक्ष के लिए सभी सदस्यों को देख पाना संभव नहीं हो पाता है, कई सांसदों को सदन में मौजूद खंभों के पीछे बैठना पड़ता है।
इसके साथ ही यह भी कयास लगाये जा रहे थे कि लोकसभा के सांसदों की मौजूदा संख्या 543 को बढ़कर 1,000 तक ले जाने की भी तैयारी कहीं न कहीं चल रही है। इसके पीछे तर्क यह है कि कई लोकसभा क्षेत्रों में मतदाताओं की संख्या 18 लाख तक पहुंच गई है। दक्षिणी राज्यों के जनप्रतिनिधि इससे असहमत हैं।
आजादी के बाद से जनसंख्या के मामले में दक्षिण भारत में सबसे धीमी रफ्तार में जनसंख्या वृद्धि हुई है, जबकि उत्तर भारत में जनसंख्या वृद्धि की रफ्तार आज भी शेष भारत से काफी अधिक है। देश में जीडीपी में योगदान और उद्योग-धंधों में प्रगति के लिहाज से दक्षिणी राज्य अव्वल हैं। यदि आबादी के आधार पर लोकसभा क्षेत्रों का पुनर्निर्धारण किया गया तो पहले से ही ज्यादा संख्या में सांसद भेजने वाले उत्तर भारत का अनुपात दक्षिण की तुलना में काफी अधिक बढ़ जायेगा, जो पहले से ही देश के नीति-निर्धारण में दक्षिण की भूमिका को कमजोर करेगा। यह एक प्रकार से भारत के बेहतर भविष्य में योगदान करने वाले क्षेत्रों को सजा देने के समान होगा।
प्रमुख विपक्षी दलों की ओर से जारी संयुक्त वक्तव्य, जिसपर कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, डीएमके, जनता दल (यू), आप, एनसीपी, शिव सेना (उद्धव गुट), सीपीएम, सीपीआई, राष्ट्रीय लोकदल, झारखंड मुक्ति मोर्चा, आईयूएमएल, नेशनल कॉन्फ्रेंस, केरल कांग्रेस (मणि), आरएसपी सहित अन्य दलों ने हस्तक्षार किया है।
(रविंद्र पटवाल जनचौक की संपादकीय टीम के सदस्य हैं।)
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