पाकिस्तान सुप्रीम कोर्ट ने दिया प्रधानमंत्री को बड़ा झटका, क्या ऐसा भारत में सम्भव है

एक ओर पाकिस्तान का सुप्रीमकोर्ट है जो प्रधानमंत्री को भी झटका दे सकता है पर ऐसी स्थिति में भारत का सुप्रीमकोर्ट क्या करेगा, यह लाख टके का सवाल है। पाकिस्तान के सुप्रीमकोर्ट ने स्वत: संज्ञान लेकर तीन दिन के भीतर अविश्‍वास प्रस्‍ताव को खारिज करने और नेशनल असेंबली को भंग करने के मामले में फैसला सुनाकर अपने देश के संविधान की रक्षा की है और एक ओर हमारे भारत का सुप्रीमकोर्ट है जो चाहे कश्मीर का मामला हो या ईवीएम और वीवीपेट का या फिर इलेक्टोरल बांड का मामला हो या तीन विवादास्पद कृषि कानूनों का हो या विवादस्पद नागरिकता कानून हों, संवैधानिक मामलों को दबाकर बैठा है। पाकिस्तान सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय पीठ ने सर्वसम्मति से फैसला सुनाया कि 03 अप्रैल को डिप्टी स्पीकर कासिम सूरी की सलाह पर राष्ट्रपति के ज़रिए पाकिस्तान नेशनल असेंबली को भंग करना और अविश्वास प्रस्ताव को खारिज करने की प्रधानमंत्री की सलाह गैर कानूनी थी।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि इमरान के खिलाफ अविश्‍वास प्रस्‍ताव को खारिज करना असंवैधानिक है।सुप्रीमकोर्ट ने फैसला सुनाया कि राष्ट्रपति डॉ. आरिफ अल्वी का नेशनल असेंबली को भंग करने का निर्णय भी “संविधान और कानून के विपरीत और कोई कानूनी प्रभाव नहीं” था, क्योंकि संविधान के अनुच्छेद 58 के खंड (1) के तहत लगाए गए प्रतिबंध के तहत रहने के लिए प्रधान मंत्री राष्ट्रपति को विधानसभा को भंग करने की सलाह नहीं दे सकते थे। सुप्रीम कोर्ट ने शनिवार को सुबह 10:30 बजे से पहले नेशनल असेंबली के सत्र को फिर से बुलाने का आदेश दिया। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री इमरान खान के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव की समाप्ति के बिना सत्र का सत्रावसान नहीं किया जा सकता है।

गौरतलब है कि इमरान की पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ पार्टी से जुड़े सूरी ने 03 अप्रैल को खान के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव को खारिज कर दिया था। सूरी ने दावा किया था कि यह सरकार को गिराने के लिए ‘‘विदेशी साजिश” से जुड़ा है और इसलिए यह विचार योग्य नहीं है। अविश्वास प्रस्ताव खारिज किये जाने के कुछ देर बाद, राष्ट्रपति आरिफ अल्वी ने प्रधानमंत्री खान की सलाह पर नेशनल असेंबली को भंग कर दिया था। चीफ जस्टिस उमर अता बंदियाल पांच सदस्यीय पीठ का नेतृत्व कर रहे थे, जिसमें जस्टिस  इजाजुल अहसन, जस्टिस मोहम्मद अली मजहर मियांखेल, जस्टिस मुनीब अख्तर और जस्टिस जमाल खान मंडोखेल शामिल थे। चीफ जस्टिस बंदियाल ने संसद में अविश्वास प्रस्ताव को खारिज करने के संबंध में डिप्टी स्पीकर के विवादास्पद फैसले को असंवैधानिक घोषित कर दिया। पांच सदस्यीय पीठ ने स्पीकर को 09 अप्रैल को सुबह 10 बजे नेशनल असेंबली का सत्र बुलाने का आदेश दिया ताकि अविश्वास प्रस्ताव पर मत विभाजन किया जा सके।

दरअसल इस फैसले पाकिस्तानी सुप्रीम कोर्ट ने इमरान खान सरकार और डिप्टी स्पीकर कासिम सूरी की मुश्किलों में इजाफा कर दिया है। चीफ जस्टिस ऑफ पाकिस्तान उमर अता बंदियाल ने सुनवाई के दौरान साफ तौर पर कहा कि जिस अविश्वास प्रस्ताव को संवैधानिक समर्थन था और जो सफल माना जा रहा था, उसे आखिरी समय में विफल कर दिया गया था।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मौजूदा आदेश से संविधान के अनुच्छेद 63 के तहत कार्यवाही प्रभावित नहीं होगी। हालांकि, यह स्पष्ट किया जाता है कि इस संक्षिप्त आदेश में कुछ भी संविधान के अनुच्छेद 63 ए के संचालन और विधानसभा के किसी भी सदस्य के संबंध में उसके परिणामों को प्रभावित नहीं करेगा यदि वह संकल्प पर वोट देता है या (यदि ऐसा है) चुनाव एक प्रधान मंत्री के बाद इस तरह से उस राजनीतिक दल से उसके दलबदल के समान है जिससे वह उक्त अनुच्छेद के अर्थ में संबंधित है।

पांच सदस्यीय पीठ के सामने सिंध हाईकोर्ट बार एसोशिएसन की ओर से जिरह करते हुए वकील अहमद ने जर्मन असेंबली में हुई 1993 की घटना का जिक्र करते हुए कहा कि कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्यों को देशद्रोही साबित करने के लिए स्पीकर ने एक संविधान संशोधन को मंजूर कर लिया था, जिससे हिटलर और उसकी कैबिनेट को बिना जर्मन संसद की मंजूरी के कोई भी कानून लाने की ताकत मिल गई थी। जिसने जर्मनी में फासीवाद को जन्म दिया। इमरान खान के प्रस्ताव को मानते हुए राष्ट्रपति अल्वी ने नेशनल असेंबली को भंग कर दिया था।

चीफ जस्टिस ऑफ पाकिस्तान बंदियाल ने इमरान खान की ओर से पेश हुए वकील की आपत्ति पर कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि अगर सिस्टम काम नहीं कर रहा था, तो संवैधानिक पदाधिकारियों को नेशनल असेंबली हॉल की जगह बाग-ए-जिन्ना में भी सत्र आयोजित करने का अधिकार था।

पाकिस्तानी सुप्रीम कोर्ट में विपक्षी दलों के पीएम कैंडिडेट शहबाज शरीफ को भी मौका दिया गया। शहबाज शरीफ ने कोर्ट से नेशनल असेंबली को फिर से बहाल करने की अपील की।

जस्टिस जमाल खान मंडोखेल ने इमरान खान सरकार को नसीहत देते हुए कहा कि जब राजनीतिक दलों का मानना था कि अविश्वास प्रस्ताव द्वेषपूर्ण था। और, सभी राजनीतिक दलों को अतीत में ऐसा नुकसान हुआ था तो, उन्हें उन कमजोरियों की खोजना चाहिए था, जो सदस्यों को वफादारी बदलने के लिए बढ़ावा देती हैं और संस्था बनाते हुए इसका कोई हल खोजना चाहिए था।

पाकिस्तानी राष्ट्रपति की ओर से पेश हुए वकील ने जिरह करते हुए तर्क दिया कि संसद को भंग करने का फैसला राष्ट्रपति द्वारा स्वतंत्र तरीके से आर्टिकल 48(5) के तहत लिया गया था, जिसे आर्टिकल 58 के साथ पढ़ा जाए। उस दौरान प्रधानमंत्री के खिलाफ कोई अविश्वास प्रस्ताव लंबित नहीं था, जिसके चलते संसद भंग करने के फैसले को आर्टिकल 48(4) के तहत चुनौती नहीं दी जा सकती है।

जस्टिस जमाल खान ने कहा कि इस मामले में अदालत देशहित में फैसला करेगी, जो सभी के लिए बाध्यकारी होगा। उन्होंने चौंकते हुए कहा कि सरकार को हटाने के लिए एक विदेशी राज्य के साथ साठगांठ करने वालों के बारे में जांच करने के बजाय पूरी संसद को क्यों बाहर कर दिया गया।

सुनवाई के दौरान पाकिस्तानी सुप्रीम कोर्ट ने सवाल उठाया कि डिप्टी स्पीकर कासिम सूरी ने इमरान खान सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव को रद्द करने का फैसला किया, लेकिन इस पर हस्ताक्षर स्पीकर असद कैसर के हैं। इस पर बचाव पक्ष के वकील ने कहा कि हो सकता है कि सुप्रीम कोर्ट के सामने ‘असली’ कागज न पेश किए गए हों।

पाकिस्तान के पीएम इमरान खान की ओर से पेश हुए वकील ने तर्क दिया कि नेशनल असेंबली की कार्यवाही न्यायालय के न्यायाधिकार में नहीं आती है। उन्होंने अपनी बात को मजबूती देने के लिए कहा कि विपक्ष ने डिप्टी स्पीकर के सेशन पर आपत्ति नहीं जताई थी।

चीफ जस्टिस बंदियाल ने श्रीलंका के हालातों का जिक्र करते हुए कहा कि देश में इलेक्ट्रिसिटी और अन्य मूलभूत सुविधाएं नहीं हैं। आज हमारे रुपये (पाकिस्तानी करेंसी) की वैल्यू डॉलर के मुकाबले 190 पहुंच गई है। हमें एक मजबूत सरकार चाहिए। यह विपक्ष के नेता के लिए बहुत मुश्किल काम होगा।

इमरान खान सरकार में कानून मंत्री रहे फवाद चौधरी, जिन्होंने अविश्वास मत को खारिज करने का प्रस्ताव किया था, अब सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी सुनकर आगबबूला हो गए हैं। उन्होंने ट्वीट करके कहा कि जजों के पास वे तथ्य होने चाहिए, जिनके आधार पर डिप्टी स्पीकर ने रूलिंग दी थी।. दस्तावेजों और सबूतों की पड़ताल किए बिना जज रूलिंग को सही या गलत कहने का फैसला कैसे ले सकते हैं? सबूतों को इन-कैमरा देखा जाना चाहिए, वरना हमें आजादी के आंदोलन का सफर 1940 से शुरू करना पड़ेगा।

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान के खिलाफ नेशनल असेंबली में पेश हुए अविश्वास प्रस्ताव पर वोटिंग से खारिज कर दिया गया था। नेशनल असेंबली के डिप्टी स्पीकर कासिम सूरी ने पाकिस्तानी संविधान के आर्टिकल 5 का हवाला देते हुए इसे असंवैधानिक बताकर खारिज कर दिया था।इसके बाद पीएम इमरान खान ने पाकिस्तान के राष्ट्रपति डॉ. आरिफ अल्वी को संसद भंग करने के सिफारिश की थी. इमरान खान के इस प्रस्ताव को मानते हुए राष्ट्रपति अल्वी ने नेशनल असेंबली को भंग कर दिया था।

राष्ट्रपति की ओर से बताया गया था कि ‘पाकिस्तानी संसद को भंग करने का फैसला पाकिस्तान के संविधान के आर्टिकल 58 (1) और 48 (1) के तहत लिया गया है।चीफ जस्टिस ऑफ पाकिस्तान उमर अता बंदियाल ने सुनवाई के दौरान साफ तौर पर कहा कि जिस अविश्वास प्रस्ताव को संवैधानिक समर्थन था और जो सफल माना जा रहा था, उसे आखिरी समय में विफल कर दिया गया था।सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश बंदियाल ने कहा कि डिप्टी स्पीकर का फैसला प्रथम दृष्टया अनुच्छेद 95 का उल्लंघन है।

पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ पार्टी की ओर से बाबर अवान, पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के लिए रज़ा रब्बानी और पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज़ के लिए मखदूम अली खान पेश हुए।विभिन्न पक्षों की ओर से पेश प्रमुख वकीलों के अलावा, अदालत ने पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज के अध्यक्ष और मुख्य विपक्षी नेता शहबाज शरीफ को भी बुलाया था।

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान कहा सुप्रीम कोर्ट में हार गए हैं और अब उन्हें 9 अप्रैल को अविश्वास प्रस्ताव का सामना करना पड़ेगा। इसके साथ ही कोर्ट ने नैशनल असेंबली को भंग किये जाने को असंवैधानिक करार दिया है। अपने फैसले में कोर्ट ने नैशनल असेंबली को बहाल भी कर दिया है। इसके साथ ही कोर्ट ने कहा है कि यदि अविश्वास प्रस्ताव सफल होता है तो नए प्रधानमंत्री का चुनाव किया जाना चाहिए।


(जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार हैं और आजकल इलाहाबाद में रहते हैं।)

जेपी सिंह
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