कुछ लोग लाईलाज़ बीमारियों से ग्रस्त हैं, लेकिन उनको पता भी नहीं है कि उनको रोग है, वे अपनी बीमारी को अपनी विशिष्टता निरूपित करते हैं। ये ऐसे लोग हैं जो खुद सदियों से मिले हुये जन्मना जातिगत आरक्षण से मिली पुरोहिताई से पेट भराई करते हैं, मतलब कि पीढ़ी दर पीढ़ी जाति आधारित सामाजिक आरक्षण का लाभ उठा रहे हैं।
इन पुश्तैनी सामाजिक आरक्षण का लभा उठा रहे लोगों ने एक गैर पंजीकृत अर्ध सैनिक संगठन के गैर निर्वाचित मुखिया से दक्षिणा में एक बचकानी मांग की है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक राजस्थान के अजमेर जिले के नजदीक स्थित पुष्कर सरोवर के पण्डों ने आरएसएस चीफ़ मोहन भागवत से आरक्षण हटाने की मांग की है।
जितने मूढ़ मांग करने वाले हैं, उतने ही संभवतः मीडियाकर भी हैं, जिन्होंने इस गैरजरूरी असंवैधानिक बिलावजह मांग की बकवास को मीडिया की बड़ी खबर बनाया है।
पहली बात तो यह है कि जन्मना जाति जन्य सामाजिक रिजर्वेशन का फायदा उठा रहे इन पण्डों को संविधान प्रदत्त आरक्षण व्यवस्था पर सवाल उठाने का क्या नैतिक अधिकार है, अगर इस तरह की मांग उठानी ही है तो सबसे पहले तो पीढ़ी दर पीढ़ी पुरोहिताई का आरक्षण तुरन्त त्याग दें, फिर बोलें!
दूसरी बात जो शायद इन मतिमंदों के भेजे में नहीं आई, वह यह है कि भागवत क्या हैं, कौन से पद पर हैं, देश के राष्ट्रपति हैं, प्रधानमंत्री हैं, लोकसभा अध्यक्ष हैं, सांसद हैं, विधायक हैं, आईएएस हैं, आईपीएस हैं, क्या हैं भागवत? किसी संविधान समीक्षा आयोग के चेयरपर्सन हैं या हाई पॉवर आरक्षण हटाओ कमेटी के अध्यक्ष हैं ? क्या बला हैं वे, जो आरक्षण हटा देंगे ?
हे पुस्करिये पण्डों, आरक्षण क्या मोहन भागवत के नागपुर स्थित केशव कुंज के कमरे की आलमारी में रखा हुआ है, जिसको वो जब चाहेंगे, हटा देंगे? या वो भारत के भाग्य विधाता हैं, राष्ट्र निर्माता हैं, उनका क्या योगदान है, उनको क्या कॉन्स्टीट्यूशनल पॉवर है, किस हक़ अधिकार से वे हटा देंगे आरक्षण?
क्या आरक्षण केशव बलिराम हेडगेवार ने आरएसएस की शाखा के ज़रिए लागू किया था? या संघियों ने आंदोलन करके इसे लागू करवाया था, या गुरुजी गोलवलकर की अनुशंसा पर इसे संविधान में जगह दी गयी थी जो ये हटा देंगे? आरक्षण इनकी या तुम्हारी बपौती है, तुम्हारी जागीर है जो तुम जब चाहोगे हटा दोगे?
कह सकते हो कि दिल्ली की वर्तमान सल्तनत भागवत एंड कम्पनी के चेले चपाटों की है, वे अनुच्छेद 370 की तरह एक झटके में आरक्षण को जब चाहेंगे, हटा सकते हैं!
तो सुनो, शेखचिल्लियों, दिन में सपने देखना बन्द करो, आरक्षण न ख़ैरात है, न भीख और न ही रोजगार गारंटी योजना। यह जाति नामक विश्व की सबसे घृणित बीमारी का सामाजिक उपचार है, अगर हिम्मत है इन नागपुरियों और इनके चेलों में तो जाति और जातिगत भेदभाव व विषमता को हटा कर दिखाओ, तब करना आरक्षण खत्म।
और हां इसके बाद आरक्षण खत्म करने का चरणबद्ध महाअभियान चलाएंगे, सबसे पहले सदियों से व्याप्त जन्मना जातिजन्य सामाजिक आरक्षण खत्म करेंगे, मंदिरों से, पुष्कर के घाटों से, हरिद्वार से, संगम से, गया जी से और भी तमाम धर्मस्थलों से। फिर भूमि, भवन, वाहन और अन्य संसाधन परस्पर मिलकर बराबर-बराबर बांटेंगे और इसके बाद हटा देंगे यह आरक्षण।
सुनो हे पुष्कर के पुरोहितों, अभी तो हर क्षेत्र में दलितों, आदिवासियों और पिछड़ों को उनकी आबादी के अनुपात में भागीदारी मिलेगी। हर क्षेत्र में, हर जगह पर, फिर कुछ सदियों बाद बराबरी आएगी, तब इस व्यवस्था को समाप्त किया जायेगा।
अज़ीब बन्द दिमाग लोग हो, जिस जाति नामक बीमारी का इलाज है आरक्षण, उस बीमारी को तो रखना चाहते हो और उपचार हेतु दी जा रही दवाई बंद करना चाहते हो। रोग रखोगे और दवा खत्म कर दोगे ।
हिम्मत है तो आरक्षण का आधार बनी हुई जाति को खत्म करो, जातिगत आरक्षण तो खुद ही खत्म हो जायेगा, पर धूर्त, शातिर व चालाक लोग बीमारी को बचाना चाहते हैं और उसके उपचार को हटाना चाहते हैं, कितने दुमुंहे, तिगले, चोगले लोग हो।
बार-बार मोहन भागवत और उसके लोग आरक्षण खत्म करने का विलाप करते रहते हैं, पर उसके संगठन में शामिल दलित व आदिवासी तथा पिछड़े मानसिक गुलामों की भांति फिर भी उनके साथ बने रहते हैं, जय जयकार करते रहते हैं, खुद को आरएसएस का स्वयंसेवक बताकर गर्व करते रहते हैं, इन लोगों से भी मेरा अनुरोध है कि अगर थोड़ी भी, मतलब रत्ती भर भी गैरत बची है, आत्म सम्मान, स्वाभिमान बचा है तो छोड़ो इनकी टोपी, डंडा, पेंट, शर्ट, जूते, मोजे। छोड़ो इनकी मानसिक दासता, छोड़ कर मुक्त हो जाओ और बचाओ खुद के संवैधानिक हको हकूक को, इन नामुरादों को जवाब दो।
और एक अंतिम बात, यह जो पुष्कर है, जिसे पवित्र कहा जाता है, इसकी नींव में महा जोगचन्द नामक एक दलित का खून है, उसको ज़िंदा गाड़ा गया था, इसकी नींव में, पानी रोकने के अंधविश्वास की पूर्ति के लिये, तो हमारे पुरखों के खून पर खड़े पुष्कर के घाटों पर मंत्र पढ़ कर परिवार चलाने वालों, हमीं से अधिकार छीनने निकल पड़े हो?
मेरा तो मानना है कि जब तक पुष्कर के पंडे आरक्षण का विरोध करें, तब तक आरक्षित समुदायों को पुष्कर जाना बंद कर देना चाहिये, हमारे ही संसाधनों से हमारा ही गला पकड़ा जा रहा है।
काश, आरक्षित कौमों को अकल आए और वो पुष्कर न जाएं, पर आएगी नहीं, वे पुष्कर भी जायेंगे, इन्हीं पण्डों को दक्षिणा भी देंगे और शाखा में भी जायेंगे ताकि पुष्कर के और नागपुर के पंडे मिलकर आरक्षण को खत्म कर दें।
हे बहुजनों, जब तक ये लोग तुम्हारा आरक्षण खत्म करवाने में कामयाब न हो जाएं, तब तक इनकी गुलामी मत छोड़ना दलित पिछड़ों, वरना तुम्हारी मुक्ति हो जायेगी, बिना बेड़ियों के तुम जियोगे कैसे? गुलामों, जारी रखना गुलामी, ताकि तुम्हारी आने वाली पुश्तें भी गुलाम पैदा हों और गुलामी ही तुम्हारा जीवन बन जाए।
(लेखक भंवर मेघवंशी पत्रकार और एक्टिविस्ट हैं और आजकल जयपुर में रहते हैं।)
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