पेगासस जासूसी विवाद: जाँच समिति की अंतरिम रिपोर्ट पर सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई 23 को

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चीफ जस्टिस एनवी रमना, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस हेमा कोहली की पीठ 23 फरवरी के दिन राजनेताओं, कार्यकर्ताओं और पत्रकारों की जासूसी करने के लिए इजरायली सॉफ्टवेयर पेगासस का कथित तौर पर इस्तेमाल के आरोपों की जांच कर रही सुप्रीम कोर्ट की समिति की अंतरिम रिपोर्ट पर विचार करेगी। समिति ने सोमवार को अंतरिम रिपोर्ट उच्चतम न्यायालय में जमा कर दी है और पेगासस स्पाइवेयर मामले की जांच पूरी करने के लिए और समय मांगा है। उच्चतम न्यायालय ने सरकार पर जासूसी कराने के आरोपों की जांच के लिए टेक्निकल समिति का गठन किया था। पेगासस जासूसी की जाँच पर पूरे देश की निगाहें टिकी हुई हैं, क्योंकि यह  मामला मीडिया, सिविल सोसाइटी, न्यायपालिका, विपक्ष और चुनाव आयोग जैसे लोकतांत्रिक संस्थानों की स्वायत्तता और उनकी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर सीधा हमला है।

अब अंतरिम रिपोर्ट में क्या है यह तो सामने नहीं आया है, लेकिन आगे जाँच के लिए समिति ने और समय माँगा है, इससे यह अनुमान लगाया जा रहा है कि अबतक जो मोबाईल फोन जमा किये गये हैं उनमें कुछ तो ऐसा जरुर मिला है जिसकी विस्तृत जाँच की जरुरत है। मामले की संवेदनशीलता और गंभीरता को देखते हुए उच्चतम न्यायालय ने जस्टिस रवींद्रन समिति  को सच सामने लाने के लिए भारत और विदेश से विशेषज्ञों को बुलाने का पर्याप्त अधिकार दिया है। उन्हें जांच करने का अधिकार दिया गया है और पेगासस जासूसी की जांच करने में मदद के लिए वे सरकार के मोहताज नहीं हैं।

यही नहीं उच्चतम न्यायालय  समिति से 2019 की उस घटना की भी जांच करने के लिए भी कहा गया है, जब कई पत्रकारों और सामाजिक कार्यकर्ताओं के वॉट्सऐप खाते में पेगासस का इस्तेमाल करके सेंधमारी की गई थी। सरकारी अधिकारी ने आधिकारिक तौर पर इसे स्वीकार किया था और वॉट्सऐप को इसके बारे में सूचित किया था, जिसने इस दिशा में अपनी तरफ से कार्रवाई की थी।

चीफ जस्टिस की पीठ 23 फरवरी को सुनवाई के लिए लंबित याचिकाओं पर सुनवाई करेगी और अंतरिम रिपोर्ट पर विचार करेगी। पिछले साल उच्चतम न्यायालय  ने पेगासस द्वारा जासूसी के आरोपों की जांच के लिए उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश की अध्यक्षता में एक विशेषज्ञ तकनीकी समिति नियुक्त की थी।उच्चतम न्यायालय ने कहा था कि कानून के शासन द्वारा शासित लोकतांत्रिक देश में व्यक्तियों पर अंधाधुंध जासूसी की अनुमति नहीं दी जा सकती है। न्यायालय  ने पूर्व जज जस्टिस  आरवी रवींद्रन की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय समिति के गठन का आदेश दिया था।

यह विवाद उस वक्त और बढ़ गया जब हाल ही में अमेरिकी समाचार पत्र न्यूयार्क टाइम्स ने अपनी एक खबर में दावा किया था कि 2017 में भारत और इजराइल के बीच हुए लगभग दो अरब डॉलर के अत्याधुनिक हथियारों एवं खुफिया उपकरणों के सौदे में पेगासस स्पाईवेयर तथा एक मिसाइल प्रणाली की खरीद मुख्य रूप से शामिल थी।

समिति बनाते समय उच्चतम न्यायालय ने यह भी कहा था कि केंद्र द्वारा इस मुद्दे पर अपना रुख स्पष्ट नहीं करने की वजह से, अदालत के पास एक विशेषज्ञ पैनल गठित करने के अलावा कोई विकल्प नहीं था। उच्चतम न्यायालय ने इजरायली स्पाईवेयर पेगासस के जरिए भारतीय नागरिकों की कथित जासूसी के मामले की जांच के लिए पिछले साल अक्टूबर में यह कहते हुए विशेषज्ञों की एक समिति का गठन किया था, कि राज्य को हर बार राष्ट्रीय सुरक्षा बढ़ाने पर “मुफ्त पास नहीं मिलेगा” और अदालत “मूक दर्शक” नहीं रहेगी। दरअसल, कुछ अंतरराष्ट्रीय मीडिया समूहों के एक संगठन ने दावा किया था कि कई भारतीय नेताओं, मंत्रियों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, कारोबारियों और पत्रकारों के खिलाफ पेगासस का कथित तौर पर इस्तेमाल किया गया।

उच्चतम न्यायालय ने अपने आदेश में कहा था कि हम सूचना क्रांति के युग में रहते हैं, जहां व्यक्तियों का पूरा जीवन क्लाउड या डिजिटल डोजियर में संग्रहित होता है। हमें यह स्वीकार करना चाहिए कि जहां प्रौद्योगिकी लोगों के जीवन को बेहतर बनाने के लिए एक उपयोगी उपकरण है, वहीं इसका उपयोग किसी व्यक्ति के उस पवित्र निजी स्थान को भंग करने के लिए भी किया जा सकता है। चीफ जस्टिस  रमना ने कहा था कि सभ्य लोकतांत्रिक समाज के सदस्यों को निजता की उचित उम्मीद रखने का हक है।

पीठ ने अपने आदेश में कहा कि गोपनीयता पत्रकारों या सामाजिक कार्यकर्ताओं की एकमात्र चिंता नहीं है। भारत के प्रत्येक नागरिक को निजता के उल्लंघन से बचाना चाहिए। यह अपेक्षा ही है जो हमें अपनी पसंद, स्वतंत्रता और स्वतंत्रता का प्रयोग करने में सक्षम बनाती है। अन्य सभी मौलिक अधिकारों की तरह, इस न्यायालय को भी यह मानना होगा कि जब निजता के अधिकार की बात आती है तो कुछ सीमाएँ भी मौजूद होती हैं। लगाए गए किसी भी प्रतिबंध को अनिवार्य रूप से संवैधानिक जांच से गुजरना होगा।

पीठ ने कहा था कि यह सुनिश्चित करना राज्य के हित का संज्ञान है कि जीवन और स्वतंत्रता की रक्षा की जाती है और इसमें संतुलन होना चाहिए। इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि निगरानी और यह ज्ञान कि किसी पर जासूसी का खतरा है, यह प्रभावित कर सकता है कि कोई व्यक्ति अपने अधिकारों का प्रयोग करने का फैसला करता है और इस तरह के परिदृश्य के परिणामस्वरूप सेल्फ-सेंसरशिप हो सकती है।

दरअसल केंद्र सरकार ने उच्चतम न्यायालय  में राष्ट्रीय सुरक्षा का हवाला देते हुए इस मुद्दे पर विस्तृत हलफनामा दाखिल करने से इंकार कर दिया था। हालांकि, केंद्र ने पहले उच्चतम न्यायालय  को बताया था कि वह कथित पेगासस जासूसी विवाद के सभी पहलुओं की जांच के लिए स्वतंत्र विशेषज्ञों की एक समिति गठित करने को तैयार है। इसने कहा था कि राष्ट्रीय सुरक्षा के हित में इंटरसेप्शन के लिए किस सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल किया गया था, यह सार्वजनिक बहस के लिए खुला नहीं हो सकता।

द हिन्दू के वरिष्ठ पत्रकार एन राम और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के राज्यसभा सांसद जॉन ब्रिटास और अधिवक्ता एमएल शर्मा, पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा, आरएसएस विचारक केएन गोविंदाचार्य के द्वारा पेगासस जासूसी केस में सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं दायर की गई थीं। इसके अलावा पेगासस जासूसी कराए जाने की लिस्ट में शामिल पत्रकार परंजॉय गुहा ठाकुरता, एसएनएम आब्दी, प्रेम शंकर झा, रूपेश कुमार सिंह और इप्सा शताक्षी ने भी एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया (ईजीआई) के साथ शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया था।

याचिका में कथित जासूसी की जांच के लिए शीर्ष अदालत के मौजूदा या सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अध्यक्षता में जांच की मांग की गई है। दलीलों में कहा गया है कि सैन्य-ग्रेड स्पाइवेयर का उपयोग करके लक्षित निगरानी निजता के अधिकार का अस्वीकार्य उल्लंघन है जिसे केएस पुट्टास्वामी मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा अनुच्छेद 14, 19 और 21 के तहत मौलिक अधिकार माना गया है।

वैश्विक स्वतंत्र पत्रकारों के एक संगठन ने पेगासस जासूसी कांड पर रिपोर्ट्स की एक सीरीज छापी थी। इसमें बताया गया था कि पेगासस सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल कर दुनिया के तमाम देशों में विभिन्न पेशेवरों, समाजिक कार्यकर्ताओं, राजनेताओं की निगरानी की गई थी। भारत में भी दर्जनों दिग्गजों के फोन नंबर्स से निगरानी की बात सामने आई थी। हालांकि, इस जासूसी कांड का खुलासा होने के बाद पेगासस साफ्टवेयर बनाने वाली इजरायली कंपनी ने यह साफ कर दिया था कि वह साफ्टवेयर केवल सरकारों को बेचती है। यह खुलासा होने के बाद दुनिया के देशों में हंगामा मच गया। भारत में भी विपक्ष ने केंद्र सरकार पर सवाल उठाए हैं।

(जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार हैं और आजकल इलाहाबाद में रहते हैं।

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