पटना। भाकपा-माले ने नीतीश कुमार की वर्चुअल रैली को फ्लॉप शो बताया है। पार्टी ने कहा कि बिहार की जनता ने उन्हें रिजेक्ट कर दिया है। भाजपा और जदयू के खिलाफ जनता के हर हिस्से का आक्रोश चरम पर है और नीतीश उससे पूरी तरह घबराए हुए हैं। वे जनता का सामना करने से बच रहे हैं और जनता की गाढ़ी कमाई को वर्चुअल प्रचार में उड़ा रहे हैं।
भाकपा माले के राज्य सचिव कुणाल और अखिल भारतीय खेत और ग्रामीण मजदूर सभा के महासचिव धीरेंद्र झा ने कहा कि नीतीश कुमार ने बिहार के ज्वलंत सवालों को छुआ तक नहीं और गोल-गोल बोलते रह गए। उन्हें यह जवाब देना था कि विगत 15 वर्षों से बिहार में ‘डबल इंजन’ की सरकार होने के बावजूद भी आज अपना प्रदेश बेरोजगारी में नंबर एक पर क्यों है? रोजी-रोजगार के लिए बिहार के करोड़ों युवा तरस रहे हैं, लेकिन सरकार ने उनके लिए कुछ नहीं किया और न ही उन्हें बेरोजगारी भत्ता दिया। शिक्षकों को भी उन्होंने धोखा देने का ही काम किया है।
शिक्षा की हालत बद से बदतर होती गई। आज तक देश की सातवीं सबसे पुरानी पटना यूनिवर्सिटी को केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा तक नहीं मिल सका। प्राथमिक शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा तक की पूरी व्यवस्था चरमरा गई है। लाखों शिक्षकों और कर्मचारियों के पद खाली पड़े हैं, लेकिन सरकार कोई बहाली नहीं कर रही है। उलटे सरकार प्राथमिक विद्यालयों को विलोपित करने में लगी हुई है।
राज्य में सामंती-अपराधियों का तांडव लगातार जारी है। पूर्णिया, भोजपुर से लेकर राजधानी पटना तक अपराधियों का मनोबल आसमान छू रहा है। राजधानी पटना में दिनदहाड़े शराब माफिया पुलिस पर ही जानलेवा हमले कर रहे हैं, लेकिन सरकार बेशर्मी से ‘सुशासन’ का राग अलाप रही है। नीतीश जी दलितों की हत्या पर कहते हैं कि घर में एक नौकरी दी जाएगी। हम उनसे पूछना चाहते हैं कि दलितों की हत्या होगी ही क्यों? और नौकरी देने का प्रावधान बहुत पहले से बना हुआ है। नीतीश जी यह बताएं कि विगत 15 वर्षों में उन्होंने कितनी नौकरियां दीं हैं? यह भी बताएं कि उनके राज में दलित-गरीबों के जनसंहारों के सभी अभियुक्त बरी क्यों हुए?
दोनों नेताओं ने कहा कि नीतीश कुमार ने प्रवासी मजदूरों के प्रति जो अंसवेदनशीलता दिखलाई है, उसके लिए उन्हें पूरे बिहार की जनता से माफी मांगनी चाहिए। लाखों प्रवासी मजदूरों के सामने आज जीवन मरण का प्रश्न है, लेकिन सरकार के लिए यह कोई मसला ही नहीं है। उलटे वह पूरी तरह से दमनात्क रवैया अपनाए हुए हैं।
बिहार में कोरोना का कहर लगातार बढ़ता गया और सरकार सोती रही। अब झूठे आंकड़े देकर कह रही है कि बिहार में स्थिति में गुणात्मक सुधार है। वास्तविकता यह है कि सरकार व्यापक पैमाने पर कोरोना की जांच ही नहीं करवा रही है और राज्य की जनता को उनके अपने रहमोकरम पर छोड़ दिया है। कोरोना से जंग में सबसे ज्यादा डॉक्टर, मेडिकल स्टाफ और आशाओं की मौतें हुईं, लेकिन उन्हें श्रद्धांजलि देने की जरूरत भी नीतीश कुमार ने महसूस नहीं की।
कोरोना लॉकडाउन से तबाह स्वयं सहायता समूह-जीविका समूह से जुड़ी महिलाओं के लोन और किस्त माफ करने के सवाल को उन्होंने छूने तक की जरूरत महसूस नहीं की। बदहाल किसानी में केसीसी माफ करने के सवाल पर भी मुख्यमंत्री ने चुप्पी साधे रखी।
दोनों ने नेताओं ने कहा कि सृजन घोटाला की मुख्य अभियुक्त और बालिका गृह ब्लात्कार काण्ड के मुख्य अभियुक्तों को संरक्षण पर नीतीश सरकार को माफी मांगनी चाहिए। हकीकत यह है कि यह सब कुछ उनके ही नेतृत्व में चल रहा है। जनादेश 2015 से विश्वासघात करने वाले नीतीश कुमार आज पूरी तरह से भाजपा की गोद में बैठ गए हैं और विगत सालों में यूपी की ही तरह बिहार में जहानाबाद से लेकर सहरसा तक सांप्रदायिक उन्माद की एक से बढ़कर एक घटनाएं घटीं, लेकिन नीतीश जी के मुंह से बोली तक न फूटी।
बाढ़ पीड़ितों के साथ देता-लेता के अंदाज़ में बात करना बिल्कुल अशोभनीय था। आपके समय बाढ़ की तबाही लगातार बढ़ती गयी, इसका कोई उल्लेख नही है! इस सरकार को आगामी चुनाव में बिहार की जनता सबक सिखाएगी।