बीफ और गाय को लेकर इस मुल्क़ में पिछले 6 साल में दर्जनों लोगों की मॉब लिंचिंग की जा चुकी है। और इस कदर दहशत पैदा किया गया है कि लोग-बाग अब गौ-वंश को खुला छोड़ दिये हैं। उत्तर प्रदेश में तो आलम ये है कि इन गौ-वंश से खेत-खलिहान कुछ नहीं बच पा रहा है आजिज आकर लोग खेत परती छोड़ दे रहे हैं।
लेकिन ‘जर्नल ऑफ आर्कियोलॉजिकल साइंस’ में प्रकाशित कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी की शोधार्थी अक्षयेता सूर्यनारायण के ताजा अध्ययन में ये बात निकलकर सामने आई हैं कि सिंधु घाटी सभ्यता के लोग गौ-वंश का मांस यानि बीफ ख़ूब दबाकर खाते थे। और सिर्फ़ गौ-वंश ही नहीं सुअर और भैंस भी खाते थे। सिंधु घाटी सभ्यता के लोगों को मांस बेहद प्रिय था और उनके खान-पान में मांस प्रमुख आहार था।
अक्षयेता का ये शोध “Lipid residues in pottery from the Indus Civilisation in northwest India” शीर्षक से ‘जर्नल ऑफ आर्कियोलॉजी’ में छपा है। इसकी जानकारी खुद अक्षयेता ने अपने ट्विटर हैंडल पर साझा की है।
अक्षयेता के रिसर्च में पुणे के डेक्कन कॉलेज के पूर्व वाइस-चांसलर और नामी आर्कियोलॉजिस्ट प्रोफेसर वसंत शिंदे और बीएचयू के प्रोफेसर रवींद्र एन सिंह ने भी अपना योगदान किया है। कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के कई लोग भी इस रिसर्च प्रोसेस का हिस्सा रहे।
सिंधु घाटी के बर्तनों पर अध्ययन के बाद आया ये नतीजा
https://www.sciencedirect.com/science/article/pii/S0305440320302120
अक्षयेता सूर्यनारायण ने अपनी पीएचडी थीसिस में सिंधु घाटी सभ्यता के बर्तनों पर चर्बी के अवशेषों पर शोध किया। इनमें सुअरों, मवेशियों, भैंसों, भेड़ों और बकरियों के मांस की अधिकता मिली। स्टडी के मुताबिक, बर्तनों में जिन जानवरों की हड्डियां मिली हैं, उनमें मवेशियों/भैंसों की संख्या 50% से 60% के बीच है। भेड़/बकरियों का हिस्सा 10% के आस पास रहा। मवेशियों की हड्डियों की प्रमुखता पर रिसर्चर्स ने अनुमान लगाया है कि सांस्कृतिक रूप से सभ्यता के लोग बीफ बड़े चाव से खाते थे। मटन भी खाया जाता था। स्टडी के अनुसार, 90% मवेशियों को तब तक जिंदा रखा जाता था जब तक वे तीन-साढ़े तीन साल के नहीं हो जाते थे। इनमें मादाओं का इस्तेमाल दूध के लिए होता था जबकि नरों से खेती-वाहन का काम लिया जाता था।
किन-किन इलाकों पर किया गया शोध
प्राचीन उत्तर-पश्चिमी भारत के शहरी और ग्रामीण इलाकों में मिले पुरातन बर्तनों में दूध से बनी कई चीजों के अवशेष भी पाए गए। वर्तमान में यह इलाका हरियाणा और उत्तर प्रदेश में पड़ता है।
रिसर्च में मुख्य फोकस पांच गांवों पर रहा। जिनमें हाल के दिनों में खुदाई और बरामद अस्थिपंजर के जीन में आर्य जीन्स न मिलने के चलते चर्चा में रहा हरियाणा के हिसार जिले का राखीगढ़ी के अलावा हिसार का मसूदपुर, लाहौरी राघो, भिवानी जिले का खनक, रोहतक जिले का फरमाना कस्ब और उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले का आलमगीरपुर गांव भी शामिल है। इन इलाकों से खुदाई में मिले 172 बर्तनों/बर्तन के टुकडों पर रिसर्च करके उपरोक्त नतीजे तक पहुंचा गया।
(जनचौक के विशेष संवाददाता सुशील मानव की रिपोर्ट।)