अम्सतरदम।अम्सतरदम के नेल्सन मण्डेला पार्क में गत बुधवार (10 जून 2020) को हुए ब्लैक लाइव्स मैटर के विशाल विरोध-प्रदर्शन में लगभग 11000 लोग शामिल हुए। माना जा रहा है कि नीदरलैंड्स में नस्लवाद के ख़िलाफ़ होने वाला अब तक का सबसे बड़ा प्रदर्शन है। इस प्रदर्शन में शहर के हिन्दू, मुस्लिम और सिख सदस्य भी भारी संख्या में शामिल हुए। कालों के ख़िलाफ़ होने वाली हिंसा और नस्लवाद के ख़िलाफ़ वक्तव्य देने के लिए दक्षिण एशियाई पृष्ठभूमि और विभिन्न धर्मों के लोगों को एक साथ लाने की पहल शेहर ख़ान (पाकिस्तानी मूल के अम्सतरदम सिटी काउन्सिल के सदस्य) और शविंताला बनवारी (सूरीनामी-हिंदुस्तानी मूल की एक्टिविस्ट) ने की थी।
नस्लवाद एक समस्या के रूप में महज गोरों में ही नहीं बल्कि दक्षिण-एशियाई मूल के समुदायों में भी काफी हद तक मौजूद है।
हालांकि सोशल मीडिया पर ब्लैक लाइव्स मैटर का हैशटैग साझा करने वाले बहुत हैं, मगर अपने-अपने समुदायों में नस्लवाद और भेदभाव को लेकर होने वाली चर्चा अपर्याप्त है। लड़कियों को अब भी अक्सर इस विचार के साथ पाला जाता है कि काली त्वचा से गोरी त्वचा सुन्दर होती है। इसमें बॉलीवुड फ़िल्में एक अहम भूमिका निभाती हैं। चूंकि यह बात इतनी कम उम्र से सिखाई जाती है, यह मान लिया जाता है कि सांवली-काली त्वचा वाली महिलाएँ कम आकर्षक होती हैं और इसके कारण उनकी आत्म-छवि पर गहरा असर होता है। गोरों के आधिक्य वाले पश्चिमी समाज में नस्ली अल्पसंख्यक के तौर पर रहने वाली इन महिलाओं के लिए नस्लवाद का सामना करना और भी मुश्किल होता है।
मगर शेहर ख़ान और शविंताला के अनुसार विरोध-प्रदर्शन में हिस्सा लेने मात्र से कुछ नहीं होगा। समुदायों के अंतर्गत और आपस में भी जो नस्लवाद है उससे मुक़ाबला करने के लिए संवाद शुरू करने का और भेदभाव को चिन्हित करने का यही वक़्त है, चाहे बात कितनी ही संवेदनशील क्यों न हो। इसलिए अन्य एक्टिविस्टों द्वारा नियमित रूप से मिलकर रंग वाद के अलावा धार्मिक द्वेष और भारतीयों और पाकिस्तानियों के बीच के पूर्वग्रहों के बारे में चर्चा करते रहने की योजना है।
(अम्सतरदम से भारत भूषण तिवारी की रिपोर्ट।)