दिल्ली हाईकोर्ट में पीएमओ का हलफनामा, कहा-पीएम केयर्स फंड सरकारी नहीं

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पीएम केयर्स फंड को लेकर पीएमओ ने दिल्ली हाईकोर्ट में कहा कि केंद्र सरकार या राज्य सरकार का कोई नियंत्रण नहीं है। पीएमओ के हलफनामे में कहा गया है कि यह फंड भारत सरकार से नहीं, बल्कि चैरिटेबल ट्रस्ट से जुड़ा हुआ है। इस कोष में आने वाली राशि भारत सरकार की संचित निधि में नहीं जाती है। प्रधानमंत्री कार्यालय ने कहा है पीएम केयर्स फंड को न तो सूचना के अधिकार अधिनियम के दायरे में ‘पब्लिक अथॉरिटी’ के रूप में लाया जा सकता है, और न ही इसे “राज्य” के रूप में सूचीबद्ध किया जा सकता है।

हलफनामे में कहा गया है कि प्रधानमंत्री नागरिक सहायता और आपात राहत कोष ‘पीएम केयर्स’ भारत सरकार का फंड नहीं है और इसकी तरफ से इकट्ठा किया गया धन भारत की संचित निधि में नहीं जाता। पीएम केयर्स न्यास में मानद आधार पर काम कर रहे प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) में अवर सचिव ने कहा है कि ट्रस्ट पारदर्शिता के साथ काम करता है और लेखा परीक्षक उसकी निधि की लेखा परीक्षा करता है। यह लेखा परीक्षक भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की तरफ से तैयार किए गए पैनल का चार्टर्ड अकाउंटेंट होता है।

प्रधानमंत्री कार्यालय में अवर सचिव प्रदीप कुमार श्रीवास्तव की तरफ से दाखिल हलफनामे में कहा गया है कि पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए, न्यास की तरफ से मिले धन के इस्तेमाल के डिटेल के साथ ऑडिट रिपोर्ट उसकी आधिकारिक वेबसाइट पर डाल दी जाती है। अधिकारी ने कहा कि जब याचिकाकर्ता लोक कल्याण के लिए काम करने वाला व्यक्ति होने का दावा कर रहा है और केवल पारदर्शिता के लिए तमाम राहतों के लिए अनुरोध करना चाहता है, तो इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि पीएम केयर्स भारत के संविधान के अनुच्छेद 12 की परिभाषा के दायरे में राज्य है या नहीं।

इसमें कहा गया है कि भले ही ट्रस्ट संविधान के अनुच्छेद 12 में दी गई परिभाषा के तहत एक राज्य  हो या अन्य प्राधिकरण हो या सूचना का अधिकार अधिनियम (आरटीआई) के प्रावधानों की परिभाषा के तहत कोई सार्वजनिक प्राधिकरण  हो, तब भी तीसरे पक्ष की जानकारी का खुलासा करने की अनुमति नहीं है।ट्रस्ट (न्यास) की तरफ से प्राप्त सभी दान ऑनलाइन भुगतान, चेक या डिमांड ड्राफ्ट के माध्यम से प्राप्त किए जाते हैं और प्राप्त राशि की लेखा परीक्षा की जाती है और इसकी रिपोर्ट एवं न्यास के खर्च को वेबसाइट पर दिखाया जाता है।

 हलफनामे में कहा गया है कि न्यास किसी भी अन्य परमार्थ न्यास की तरह बड़े सार्वजनिक हित में पारदर्शिता और लोक भलाई के सिद्धांतों पर कार्य करता है और इसलिए उसे पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए अपने सभी प्रस्तावों को अपनी वेबसाइट पर अपलोड करने में कोई आपत्ति नहीं हो सकती। इसमें दोहराया गया है कि न्यास की निधि भारत सरकार का कोष नहीं है और यह राशि भारत की संचित निधि में नहीं जाती है।

अधिकारी ने बताया कि वह पीएम केयर्स कोष में अपने कार्यों का निर्वहन मानद आधार पर कर रहे हैं, जो एक परमार्थ न्यास है और जिसे संविधान द्वारा या उसके तहत या संसद या किसी राज्य विधानमंडल द्वारा बनाए गए किसी भी कानून के जरिए नहीं बनाया गया है। उन्होंने कहा, कि केंद्र सरकार का अधिकारी होने के बावजूद, मुझे मानद आधार पर पीएम केयर न्यास में अपने कार्यों का निर्वहन करने की अनुमति है।

यह याचिका सम्यक गंगवाल ने दायर की है। इसमें पीएम केयर्स कोष को संविधान के तहत राज्य घोषित करने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया है, ताकि इसके कामकाज में पारदर्शिता सुनिश्चित की जा सके। इस याचिका के जवाब में यह शपथ पत्र दाखिल किया गया है। दिल्ली हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस डीएन पटेल और जस्टिस अमित बंसल की बेंच ने इस मामले की आगे की सुनवाई के लिए 27 सितंबर की तारीख तय की है। याचिका में कहा गया है कि पीएम केयर्स कोष एक राज्य है, क्योंकि इसे 27 मार्च, 2020 में प्रधानमंत्री ने कोविड-19 के मद्देनगर भारत के नागरिकों को सहायता प्रदान करने के लिए बनाया गया था।

याची के वकील ने अदालत से कहा था कि अगर यह पाया जाता है कि पीएम केयर्स कोष संविधान के तहत राज्य नहीं है, तो डोमेन नाम gov.in gov का उपयोग, प्रधानमंत्री की तस्वीर, राज्य का प्रतीक आदि को रोकना होगा। याचिका में कहा गया है कि कोष के न्यासी प्रधानमंत्री, रक्षा मंत्री, गृह मंत्री और वित्त मंत्री हैं।

अब सवाल यह है कि अगर यह भारत सरकार का फंड नहीं है तो इसके साथ प्रधानमंत्री शब्द क्यों जुड़ा हुआ है? इसका नाम मोदी केयर फंड टाइप का कुछ होना चाहिए था। अगर यह भारत सरकार का फंड नहीं है तो सरकारी कर्मचारियों की सैलरी काट कर इस फंड में क्यों डाली गयी? अगर यह प्राइवेट फंड है तो सरकारी संस्थानों ने इसे चंदा क्यों दिया? क़ानूनन सरकारी संस्थान किसी प्राइवेट फ़ंड को चंदा नहीं दे सकते। अगर यह प्राइवेट फंड है तो इसकी वेबसाइट पर gov.in क्यों लिखा है ? क्या कोई भी प्राइवेट फंड अपनी वेबसाइट के लिए इस प्लेट्फ़ॉर्म का इस्तेमाल कर सकता है? तथा अगर यह प्राइवेट फंड है तो इसकी मॉनिटरिंग से लेकर अदालत के मामलों तक में पीएमओ के अधिकारी क्यों जा रहे हैं?

 (जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार हैं और आजकल इलाहाबाद में रहते हैं।)

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