वाराणसी, उत्तर प्रदेश। बैरवन गांव में सन्नाटा है। गांव के मोड़ पर एक अधेड़ और दो किशोर दिखे। जानकारी करने पर उन्होंने कहा- चलिए गांव में, और पीछे-पीछे आने लगे। गांव में बमुश्किल 150 मीटर अंदर आने पर नीम के पेड़ के नीचे थोड़ी छाया दिखी। गाड़ी से उतरते ही गांव की महिलाएं, पुरुष, किशोरियां, किशोर और नौजवानों ने घेर लिया। सबके चेहरे पर उदासी पसरी हुई है। होंठ पर पपड़ी जमी हुई है।
बकरी और मवेशी उदास खूंट से बंधे चंचल शून्य हैं। वहीं ग्रामीणों की बात करें तो किसी का हाथ तो किसी के पैर का घुटना सूजा हुआ है। पीठ पर काली गहरी रेखा उभरी हुई है। कुछ दरवाजों के पल्ले टूटे, जमीन पर बिखरे धराशाई पड़े हैं। गलियों में बालक-बालिकाओं के खेलने की आवाज गुम है। तीखी धूप और सन्नाटा पसरा हुआ है। गांव के पूर्वी सीमा पर जेसीबी के गुर्राने की आवाज आ रही है। ग्रामीणों ने बताया कि बगैर उनकी मर्जी के प्रशासन जबरन उनकी खेती वाली जमीनों को समतल कर रहा है।
बहरहाल, प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र वाराणसी के रोहनिया विधानसभा के बैरवन गांव में पुलिस ने मंगलवार की दुपहरी और मंगल-बुधवार की आधी रात को जमकर तांडव किया। नागरिकों की सुरक्षा के लिए कसमें खाने वाले यूपी पुलिस के सैकड़ों पुलिसकर्मियों ने सैकड़ों किसानों और महिलाओं को दौड़ा-दौड़ा कर बेरहमी से पीटा।
पुलिस के लाठीचार्ज में तकरीबन दो दर्जन से अधिक महिला, पुरुष, किशोरियां और नौजवान घायल हुए हैं। इसके साथ ही पुलिस कम से कम 15 ग्रामीणों को अपने साथ थाने ले गई। जिसमें कई महिलाएं भी शामिल थीं। पुलिसिया दमन यहीं नहीं रुका। ग्रामीणों ने बताया कि “जब गांव वाले आधी रात में सो रहे थे, तो 300 से अधिक पुलिसकर्मियों ने बैरवन गांव की चौहद्दी को घेरकर 15-15 की संख्या में लाठी और हथियार लिए गांव में दाखिल हुए।
जो मिला, जहां मिला। सोते-जागते। सभी को लाठी-डंडे से पीटने लगे। महिलाओं और जवान लड़कियों के साथ छेड़छाड़, अभद्रता करने के साथ गाली-गलौज और मारपीट की गई। घर के दरवाजे राइफल की बट मारकर और बूटों से तोड़ दिये। घर में रखे सामानों को उठाकर पटकने लगे, बर्तन, संदूक को लात मारकर क्षतिग्रस्त कर दिया। महिलाओं के चूल्हे-चौके को भी नहीं बख्शा गया।”
सदमे में पूरा गांव
पुलिसिया बर्बरता सबसे अधिक बैरवन गांव के ग्रामीणों के साथ हुई है। निर्दयी पुलिस की मार झेल चुके गांव में सन्नाटा पसरा है और लोग सदमे में हैं। बुधवार को किसी के भी घर चूल्हा नहीं जला। सभी जहां-तहां दर्द से कराह और सिसक रहे हैं। गेंदा फूल की खेती करने वाले ग्रामीणों के चेहरे मुरझाये हुए हैं। पुलिस के लाठीचार्ज में घायल सुनीता देवी (44) का चेहरा व आंखें सूजी हुई हैं। उनके जख्म पर बैंडेज चिपका हुआ है।
जान दे देंगे, लेकिन खेत नहीं
सुनीता “जनचौक” से कहती हैं कि “दस बिस्वा ही हम लोग की जमीन है। परिवार में बच्चे और लड़कियां हैं। मैं जमीन नहीं देना चाहती। यही जमीन ही हम लोगों की पूंजी है। वीडीए ने बैगर हमारी अनुमति के हमारे खेत में जेसीबी चला दिया। मना करने पर हम पर पुलिस ने जानलेवा हमला किया। लाठी मारकर सिर फोड़ दिया। इसके बाद भी तब तक पीटते रहे, जब तक मैं बेहोश नहीं हो गई। सरकार चाहे अब हमारी जान ही क्यों न ले ले, मैं अपनी जमीन नहीं देने वाली।”
दिन में लाठीचार्ज, रात में डाला आबरू पर हाथ
सुनीता आगे बताती हैं कि “पुलिसया गुंडई यहीं नहीं रुकी। शाम ढलने के बाद ग्रामीण अपने घरों में पहुंचे। रात साढे़ बारह बजे पुलिस ने दुबारा गांव में हमला बोल दिया और महिलाओं और किशोरियों से छेड़छाड़ भी की। सूबे के मुखिया योगी आदित्यनाथ दावा करते हैं कि एक चौराहे पर छेड़छाड़ और दुर्व्यवहार करने वाला अपराधी शहर/जिले के दूसरी छोर पर धर लिया जाएगा। महिला अपराधों में कमी लाने के लिए यूपी पुलिस बेहतरीन काम कर रही है।”
ऐसे में बड़ा सवाल यह उठता है कि, बैरवन गांव में पुलिस को महिलाओं और किशोरियों की आबरू पर हाथ डालने की अनुमति किसने दी? क्या पुलिस ड्यूटी करने के दौरान यह भूल गई कि उसे भी कानून के दायरे में रहकर ही काम करना है? आधी रात में गांव में क्या करने पहुंचे थे?, वो भी बैगर महिला पुलिस के साथ। खाट पर सोई औरतों को जागकर कहां ले जाने वाले थे? कच्चे मकान के दरवाजे क्यों तोड़ दिए? चूल्हे-चौके क्यों बूट मारकर बिखेर दिए? सवाल तो कई हैं, जिनका जवाब बैरवन की पीड़ित महिलाएं मांग रही हैं। इन सवालों का पुलिस के पास क्या जवाब है?
‘तीन पुलिस वाले मुझे खेत में ले जा रहे थे’
रात में अपने घर में खाट पर सो रही अड़तीस वर्षीय रीमा (बदला हुआ नाम) को तीन पुलिसकर्मी बुरी नीयत से जगाकर खेतों की ओर चलने को कह रहे थे। उस वाकये को यादकर रीमा सिहर उठती हैं। वह कहती हैं कि “दिन में जो मारपीट हुई तो हुई। रात में 12.30 बजे मेरे घर में तीन पुलिस वाले आये। मैं खाट पर सोई हुई थी। मुझे लाठी पटक-पटक कर डराने लगे और कहने लगे कि चलो जहां मारपीट हुई थी, वहां चलो। पुलिस वालों को यह ख्याल नहीं आया कि इतनी रात हो गई है।”
रीमा बताती हैं कि “मैं गांव की बहू हूं, रात में दूर खेत में कैसे जाऊंगी? काफी देर तक तीनों पुलिस वाले मुझे घेरकर खेतों में ले जाने के लिए डराते रहे। जब मैंने कहा कि मैं कहीं नहीं जाउंगी? अधिक परेशान होने पर मैंने कहा कि मैं शोर मचाऊंगी तो सभी चुपके से दूसरी गली में चले गए। मेरी आठ बिस्वा जमीन ‘वाराणसी डेवलपमेंट अथॉरिटी’ (वीडीए) जबरदस्ती ले रहा है। हमें पैसा नहीं चाहिए। हम अपनी जमीन में खेती करेंगे। किसी भी कीमत पर जमीन नहीं देंगे।”
हमारी कोई सुनने वाला नहीं
मंशा देवी (45) बताती हैं कि “मेरे कच्चे घर का दरवाजा पुलिस ने तोड़ दिया। इसके बाद घर में घुसकर पुलिस ने बड़ी बेरहमी से महिलाओं के साथ लड़के और लड़कियों को पीटा। इतने से मन नहीं भरा तो कपड़े और बांह से पकड़कर घर से बाहर खींचकर ले गए और जमकर लाठियां भांजी। गांव में आधी रात को हर तरफ चीख-पुकार मची हुई थी। एक आदमी को दस से बारह की संख्या में पुलिस वाले लाठी-डंडों और बूटों से मार रहे थे। गांव के लोग बचने के लिए इधर-उधर भाग रहे थे।’
मंशा देवी कहती हैं कि “मेरी दस बिस्वा जमीन है, हमारी जमीन को जबरदस्ती घेरा जा रहा था। बस इतनी सी बात पर हम लोगों को इतना मारा गया, जैसे हम लोग इंसान ही नहीं हैं। हमारी कोई सुनने वाला ही नहीं है। कोई कानून-प्रशासन नाम की चीज ही नहीं है। ऐसे देश और राज चलेगा?”
पुलिसवालों ने की छेड़खानी
पंद्रह साल की हर्षा (बदला हुआ नाम) ने रोते हुए बताया कि “हम लोग अपने घर में सो रहे थे। दरवाजे पर अफरा-तफरी की आवाज सुनाई दी। तभी दरवाजे पर किसी बड़ी से चीज से धक्का मारने की आवाज सुनाई दी। हम लोग डर गए। इसके बाद एक के बाद एक चोट कर दरवाजा और चूल्हा-चौका तोड़ दिया गया। मैं पांच साल के बच्चे को लिये थी। पुलिस वालों ने बच्चे को भी नहीं छोड़ा, उसे भी धक्का दे दिया। मेरे छाती पर हाथ लगाते हुए जोर का धक्का मारा। मैं लड़खड़ा गई, मौका पाकर पुलिस वाले ने मेरे साथ छेड़खानी शुरू कर दी।”
हर्षा आगे बताती हैं कि “गहरी चोट और छेड़खानी से मैं सहम गई। कई मिनट तक मुझे कुछ समझ में ही नहीं आ रहा था कि ये सब क्या हो रहा है? पापा ने विरोध किया तो पिता और मां को पुलिस घर से खींचकर जमीन पर रेंगा-रेंगा कर लाठियों से पीटने लगी। बेहोश हो जाने के बाद भी हत्या पर उतारू पुलिस डंडों से बेहताशा पीटती रही। इसके बाद मम्मी-पापा को पुलिस अपने साथ उठाकर थाने ले गई। पुलिस वाले फोन कर एक जने को छोड़ने के लिए दस हजार रुपये मांग रहे हैं। हम लोग गरीब हैं। कहां जाएंगे? कहां से इतना पैसा लाकर देंगे?”
बहू-बेटियों को रिश्तेदारी में भेजा
बैरवन गांव में पुलिसिया तांडव के डर से ग्रामीणों ने अपने जवान बेटियों-बहुओं को अपनी रिश्तेदारियों में भिजवा दिया है। पुलिस के हमले में कम से कम 25 महिलाएं, 5 लड़कियां, 5 किशोर और एक दर्जन पुरुष घायल हुए हैं। ग्रामीणों की मांग है कि उनकी जमीन को सरकारी दस्तावेजों में भी उनके नाम किया जाए। ये किसी भी कीमत पर ट्रांसपोर्ट नगर के लिए अपने खेत नहीं देना चाहते हैं।
गौरतलब है कि वाराणसी में मंगलवार को वाराणसी विकास प्राधिकरण (वीडीए) और प्रशासन की टीम ट्रांसपोर्ट नगर रोहनिया में निशानदेही और जमीन समतल करने पहुंची थी। सरकारी जमीन पर अतिक्रमण हटाने को लेकर वीडीए की टीम और किसानों में भिड़ंत हो गई। इसमें महिलाएं और बच्चे भी थे। जवाब में पुलिस ने लाठीचार्ज किया। घटना में 25 महिलाओं समेत कुल 40 से अधिक ग्रामीण घायल हो गए, जबकि दरोगा कुलदीप कुमार को भी चोटें आईं। कंट्रोल रूम की सूचना पर आस-पास से 6 थानों की फोर्स पहुंची। इसके बाद का मंजर ग्रामीण जिंदगी भर नहीं भूलेंगे।
अखिलेश यादव ने जताया विरोध
ट्रांसपोर्ट नगर योजना को लेकर यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री व समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कहा कि “चुनाव ख़त्म होते ही वाराणसी के मोहनसराय की कृषि योग्य भूमि को ग़ैरक़ानूनी तरीके से ट्रांसपोर्ट नगर व आवासीय योजना के नाम पर किसानों से हड़प कर भू-माफ़ियाओं को देने का भाजपाई नाटक शुरू हो गया है। अब गरीबों के ऊपर बुलडोज़र भी चलेगा और उन्हें घर-खेत से भाजपा सरकार बेदख़ल भी करेगी।”
गरीबों की जमीन पूंजीपतियों को देना चाह रही सरकार
पिंडरा के पूर्व विधायक व कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अजय राय ने “जनचौक” से कहा कि “प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी के रोहानिया ट्रांसपोर्ट नगर में ग्रामीणों को पीटा गया है। जिसमें कई महिलाएं और ग्रामीण घायल हो गए हैं। सरकार मनमानी पर उतारू है। सरकार के इशारे पर पूंजीपति मित्रों के लिये ज़मीन ख़ाली कराई जा रही है और ग़रीब किसानों को खदेड़ा जा रहा है। किसानों व महिलाओं के साथ पुलिस बर्बरता से पेश आ रही है।”
अजय राय ने कहा कि “भाजपा के राज में नियम-कानून हाशिये पर जा पहुंचे हैं। बैरवन गांव की महिलाओं और बच्चियों से छेड़छाड़ और उनके कपड़े फाड़े गए हैं। मोदी जी ऐसे ‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ’ योजना को सफल बनाएंगे। किसानों के साथ मिलकर हम लोग हाईकोर्ट से स्टे आर्डर लेकर आये हैं। किसी भी कीमत पर किसानों की खेती योग्य जमीन पूंजीपतियों को नहीं दी जाएगी। इसके लिए जो लड़ाई लड़नी होगी, लड़ेंगे।”
क्या है ट्रांसपोर्ट नगर?
मोहनसराय ट्रांसपोर्ट नगर योजना को लेकर 4 गांवों के किसान 21 साल से आंदोलन कर रहे हैं। धरना-प्रदर्शन, महापंचायतों के जरिए किसान अपनी जमीन बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं। किसानों और वीडीए के अफसरों के बीच कई राउंड की वार्ता हुई। लेकिन दोनों पक्ष अपनी-अपनी बातों पर अड़े रहे और आज तक सहमति नहीं बन पाई। इस मामले को लेकर हाईकोर्ट में मामला लंबित है। किसानों को कहना है कि प्रशासन ने हाईकोर्ट के आदेश का इंतजार नहीं किया और मनमाने ढंग से जमीन पर कब्जे के लिए बुलडोजर चलाना शुरू कर दिया।
किसानों के साथ छल
किसान संघर्ष समिति के अधिवक्ता अश्विनी कुमार सचान ने “जनचौक” को बताया कि “बुधवार इलाहाबाद हाईकोर्ट में हुई सुनवाई में मंगलवार को हुए बवाल और पुलिसिया बर्बरता के फोटो-वीडियो उपलब्ध करवाए गए थे।” सुनवाई के दौरान जज को मंंगलवार को हुई घटना की CCTC फुटेज और फाेटो दिखाए गए। सुनवाई के दौरान वीडीए के वकील ने कहा कि प्रशासन जिन किसानों को मुआवजा दे चुका है, उन जमीनों पर कब्जा ले रहा है।
इस पर किसानों की ओर से कहा गया कि 337 किसानों का 2012 में अवार्ड किया गया। जबकि 857 किसानों ने कोई मुआवजा ही नहीं लिया है। जबकि इससे पहले साल 2003 में ही वीडीए ने बिना सबको मुआवजा दिए किसानों का खतौनी से नाम काटकर अपना नाम चढ़वा लिया।
हाईकोर्ट ने दिया स्टे
हाईकोर्ट में बहस के दौरान न्यायाधीश ने कहा कि धारा 5 के तहत भूमि अधिग्रहण के लिए किसानों की सहमति नहीं ली गई। अदालत ने स्थगन (स्टे) आदेश दे दिया। इस दौरान वीडीए के वकील अपनी बात कहने की कोशिश कर रहे थे तो अदालत ने कहा कि अगली डेट पर बात रखना। फिलहाल वाराणसी के मोहन सराय में चल रही ट्रांसपोर्ट नगर योजना पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने रोक लगा दी है। ट्रांसपोर्ट नगर परियोजना में लगे सभी बुलडोजर, पुलिस फोर्स और वीडीए की टीम वापस लौट गई है।
(वाराणसी के रोहनिया ट्रांसपोर्ट नगर से पवन कुमार मौर्य की ग्राउंड रिपोर्ट।)