Friday, April 19, 2024

राजनीतिक बंदियों के साथ भेदभाव का आरोप, जेल में नहीं मिल रहीं किताबें और अखबार

भीमा कोरेगाँव मामले में मुंबई के तलोजा जेल में बंद राजनैतिक बंदियों के साथ जेल प्रशासन का व्यवहार सही न होने की शिकायतें लगातार आ रही हैं। इन सभी बंदियों की शिकायत है कि जेल प्रशासन उन्हें किताबें और अख़बार तक नहीं दे रहे हैं। एल्गार परिषद मामले नवी मुंबई के तलोजा जेल में बंद दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर हनी बाबू और कार्यकर्ता गौतम नवलखा ने कहा कि पिछले चार महीने में उनके लिए भेजी जा रहीं किताबों को जेल प्रशासन ने स्वीकार नहीं किया और उन्हें वापस कर दिया गया।

हनी बाबू व गौतम नवलखा ने जेल में किताबें व अखबार उपलब्ध कराने की मांग को लेकर राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) की विशेष अदालत में आवेदन दायर किया है। कोर्ट ने जेल अधिकारियों से इस बारे में जवाब मांगा है।

इस मामले में अगली सुनवाई 12 जनवरी को होगी। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, इसी मामले में मुंबई के बायकला जेल  में कैद कील सुधा भारद्वाज भी विशेष अदालत में इसी तरह का आवेदन दायर किया है।

खबर के मुताबिक सुधा भारद्वाज ने अपने अपने आवेदन में कहा है कि, वैसे तो उन्हें अख़बार मिल रहा है किंतु, जेल की लाइब्रेरी में पर्याप्त किताबें नहीं हैं और उनके लिए बाहर से जो किताबें आ रही हैं उसे जेल प्रशासन वापस कर दे रहा है।

प्रोफेसर हनी बाबू और पत्रकार गौतम नवलखा ने अपनी याचिका में कहा है कि, जेल प्रशासन उन्हें बीते छह महीने से अख़बार तक उपलब्ध नहीं करा रहे हैं।

अपनी याचिका में कहा है कि लेखक और शिक्षाविद के रूप में उन्होंने अपना जीवन पठन-पाठन के कार्य में व्यतीत किया है, इसलिए मनमाने तरीके से उनकी किताबें अस्वीकार नहीं की जा सकती हैं। राज्य की जेल नियमावली का हवाला देते हुए उन्होंने उनके परिवार और वकीलों द्वारा भेजी गईं पुस्तकों को स्वीकार करने के लिए जेल अधिकारियों को निर्देश देने के साथ महीने में पांच किताबें देने की मांग की है।

द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट में कहा है कि, जेल के अधिकारियों ने दावा किया है कि कैदियों को किताबें मुहैया कराने से रोका नहीं जा रहा है। तलोजा जेल ने बताया कि कोरोना  के कारण अखबारों की आपूर्ति बहाल करने पर सावधानी बरती जा रही है और जल्द ही इस संबंध में निर्णय लिया जाएगा।

इस पर गौतम नवलखा, प्रोफेसर हनी बाबू और सुधा भारद्वाज की ओर से दायर याचिका में इंडियन काउंसिल फॉर मेडिकल रिसर्च (आइआरएमसी) के दिशा निर्देशों एवं अन्य अध्ययनों का हवाला देते हुए कहा कि वायरस सतह पर जीवित नहीं रहता है, इसलिए किताबों के चलते कोविड-19 का संक्रमण नहीं फैल सकता है। जहां तक अखबार का सवाल है, तो ये बुनियादी मानवाधिकार है।

तलोजा जेल अधीक्षक कौस्तुभ कुरलेकर का कहना है कि, डाक द्वारा भेजी गईं पुस्तकों को अस्वीकार नहीं किया जा रहा है। उन्होंने कहा, ‘हम कैदियों के लिए पुस्तकों से इनकार नहीं कर रहे हैं। हम उन्हें सैनिटाइज करते हैं और कैदियों को देते हैं। हम जेल में समाचार पत्रों के वितरण पर निर्णय लेने की प्रक्रिया में हैं, क्योंकि जेल की वर्तमान आबादी 5,000 से अधिक है, जबकि इसकी क्षमता 2,124 कैदियों की है और वायरस की दूसरी लहर की आशंका भी है।’

भीमा कोरेगांव मामले में जेल में बंद इन कार्यकर्ताओं की जेल प्रशासन पर यह पहली शिकायत नहीं है। बीते 27 नवंबर को जेल में गौतम नवलखा का चश्मा चोरी हो गया था। जिनके बिना वे ठीक से देख नहीं पाते। इस घटना के तीन दिन बाद तक जेल अधिकारियों ने उन्हें अपने घर वालों से बात करने की अनुमति नहीं दी थी। गौतम की पत्नी सहबा हुसैन ने आरोप लगाया कि जब परिवार की ओर से उनके लिए नया चश्मा जेल भेजा गया तो नवी मुंबई के खारघर स्थित तलोजा जेल अधिकारियों ने उसे लेने से मना कर दिया था।

इस मामले में मुंबई हाईकोर्ट ने कहा था कि, ऐसा लगता है कि अब जेल अधिकारियों को मानवता सिखाने के लिए कार्यशाला चलानी पड़ेगी। इसी घटना पर टिप्पणी करते हुए कोर्ट ने कहा था- ‘’मानवता सबसे बड़ी चीज़ है।”

इस तरह की शिकायत तलोजा जेल तक सीमित नहीं है। नक्सलियों से संबंध रखने के आरोप में नागपुर सेंट्रल जेल में उम्र कैद की सज़ा काट रहे दिल्ली विश्वविद्यालय में अंग्रेजी के प्रोफेसर रहे जीएन साईबाबा के वकील आकाश सोर्डे ने 24 दिसंबर को जेल अधीक्षक अनूप कुमरे को एक शिकायत भरा पत्र लिख कर बताया था कि जेल प्रशासन की अनुमति मिलने के बाद वे जो सामान खुद देने के लिए गये थे उनमें से अधिकतर चीजें जेल के सुरक्षाकर्मियों ने लेने से मना कर दिया है।

एडवोकेट सोर्डे ने जेल अधीक्षक को लिखी चिठ्ठी में कहा था कि, 24 दिसंबर दिन में करीब 1 बजे अपने मुवक्किल प्रोफेसर जीएन साईबाबा- जो कि शारीरिक तौर पर विकलांग, व्हील चेयर पर हैं और कई गंभीर बीमारियों ग्रस्त हैं- के निर्देश पर जेल प्रशासन की अनुमति और जानकारी के बाद भेजी गई सूची के अंतर्गत मानवता के आधार पर खुद चल कर कुछ जरूरी समान देने गया था, सुरक्षा जांच के बाद वो सामान उन तक पहुँचाने के लिए सुरक्षा कर्मियों को दिया था किंतु जेल के सुरक्षा अधिकारियों ने सामानों की प्राप्ति का लिखित पर्चा देने से मना कर दिया और कहा कि वे केवल सूची में दर्ज उन वस्तुओं के आगे टिकमार्क लगायेंगे जो वे मेरे मुवक्किल को बाद में देंगे।

सुरक्षा अधिकारियों ने जो सामान लेने से इंकार किया है उनमें सबसे जरूरी मेडिकल किट, ठंड से बचने के लिए टोपी और पढ़ने लिखने की वस्तुएं हैं। एडवोकेट सोर्डे ने अपनी शिकायत में कहा था कि, मेरा मुवक्किल जो सिर की खुजली और खुश्की के कारण परेशान हैं, उन्हें बाल धोने के लिए दिए गये शैम्पू तक को जेल अधिकारियों ने लेने से इंकार कर दिया।

जेलों में बंद तमाम राजनैतिक कैदियों के साथ यह कोई पहली घटना नहीं है। इससे पहले महाराष्‍ट्र की तलोजा जेल में बंद स्टेन स्वामी को स्ट्रॉ और सिपर मामले को याद कीजिए।

बता दें कि, भीमा कोरेगांव केस में आरोपी सामाजिक कार्यकर्ता-वकील सुधा भारद्वाज ने एनआईए की विशेष अदालत में एक एक याचिका दायर कर मांग की है कि जांच एजेंसी एनआईए और सरकारी वकील प्रकाश शेट्टी को ये आदेश दिया जाए कि वो उनके खिलाफ लगाए गए ‘झूठे आरोपों’ को वापस लें।

(पत्रकार नित्यानंद गायेन की रिपोर्ट।)

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