उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में यूपी लोक सेवा आयोग के खिलाफ प्रतियोगी छात्रों के विरोध प्रदर्शन से जुड़ी बड़ी खबर सामने आई है। प्रतियोगी छात्रों को उग्र और हिंसक बनाने के आरोप में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म टेलीग्राम के चार चैनलों के खिलाफ एफआईआर दर्ज हुई है। इन चैनलों पर भ्रामक सूचनाएं अपलोड करने और प्रचारित करने का आरोप है। इन चैनलों के संचालकों की गिरफ्तारी के लिए पुलिस दबिश दे रही है, जिसके चलते उनका पक्ष अभी तक सामने नहीं आया है।
प्रयागराज में हाल ही में हुए छात्र आंदोलन ने न केवल प्रदेश की कानून व्यवस्था को चुनौती दी, बल्कि यह सवाल भी खड़ा कर दिया कि सोशल मीडिया का दुरुपयोग किस हद तक हो सकता है। चार दिन तक चले इस आंदोलन में छात्रों को उग्र और हिंसक बनाने वाले टेलीग्राम चैनलों पर उत्तर प्रदेश पुलिस ने सख्त कार्रवाई की है। उत्तर प्रदेश पुलिस ने प्रदर्शन के दौरान भड़काऊ पोस्ट प्रसारित करने वाले चार टेलीग्राम चैनलों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की है। इन चैनलों के नाम हैं:
1-PCM Abhyaas
2-सामान्य अध्ययन Edushala
3-Make IAS Official
4-PCS Manthan
पुलिस ने इन चैनलों पर आरोप लगाया है कि उन्होंने न केवल छात्रों को भड़काया, बल्कि प्रदर्शन को हिंसक बनाने में अहम भूमिका निभाई। इन चैनलों के जरिए छात्रों को उत्तेजक संदेश भेजे गए, जिससे माहौल और तनावपूर्ण हो गया। पीसीएस और आरओ-एआरओ प्रारंभिक परीक्षा को एक दिन में कराने की मांग को लेकर यूपी लोक सेवा आयोग के बाहर छात्रों ने लगातार पांच दिन प्रदर्शन किया था। धरना सोमवार से शुरू हुआ था जो शुक्रवार को सारी मांगे पूरी किए जाने के बाद खत्म किया गया। प्रदर्शन के दौरान कई चैनलों पर भ्रामक सूचनाएं प्रसारित करने का आरोप लगाया गया है। इस मामले में मुकदमा पंजीकृत करने के बाद पुलिस छानबीन में जुट गई है।
कानूनी धाराएं और कार्रवाई
लोक सेवा आयोग चौकी के सब-इंस्पेक्टर कृष्ण मुरारी चौरसिया की शिकायत पर सिविल लाइन्स थाने में एफआईआर दर्ज की गई। एफआईआर में भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 318(4) और सूचना प्रौद्योगिकी संशोधन अधिनियम 2008 की धारा 66 का हवाला दिया गया है। साथ ही पुलिस ने टेलीग्राम चैनलों पर की गई पोस्ट के स्क्रीनशॉट भी एफआईआर में संलग्न किए हैं। इनके संचालकों के बारे में जानकारी जुटाई जा रही है। जानकारी जुटाए जाने के बाद इन पर शिकंजा कसा जाएगा. इनकी फंडिंग की भी जांच की जाएगी।
कैसे शुरू हुआ आंदोलन?
प्रयागराज में उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग (UPPSC) के गेट पर पीसीएस (प्री) और आरओ/एआरओ परीक्षा को एक दिन में कराने की मांग को लेकर हजारों छात्रों ने प्रदर्शन किया। छात्रों की संख्या धीरे-धीरे बढ़कर करीब 20,000 हो गई।
प्रदर्शन के दौरान हालात बिगड़ गए और छात्रों ने बैरिकेडिंग तोड़ दी। इसके बाद पुलिस ने स्थिति को नियंत्रित करने के लिए हल्का बल प्रयोग किया। आंदोलन की गंभीरता को देखते हुए यूपी पीएससी ने परीक्षा स्थगित करने का फैसला किया। हालांकि, परीक्षा की नई तारीख अभी घोषित नहीं की गई है।

यूपी लोक सेवा आयोग ने पांच नवंबर को दोनों भर्तियों की प्रारंभिक परीक्षाओं की तारीखों का ऐलान किया। इसके तहत पीसीएस की परीक्षा 7 और 8 दिसंबर और आरओ व एआरओ की परीक्षा 22 व 23 दिसंबर को कराई जानी थी.यह पहली बार था कि परीक्षाओं को दो कार्य दिवस में आयोजित किया जाना था। दो दिन और कई शिफ्ट में परीक्षा होने से इसमें नॉर्मलाइजेशन और परसेंटाइल का फार्मूला लागू होता। प्रतियोगी छात्र पिछले दो महीने से लगातार इसके खिलाफ आवाज उठा रहे थे।
उत्तर प्रदेश लोका सेवा आयोग द्वारा लागू की गई नॉर्मलाइजेशन प्रक्रिया के खिलाफ छात्र पिछले एक हफ्ते से आंदोलन कर रहे हैं। प्रदर्शनकारी छात्रों का कहना है कि यूपीपीएससी ने पर्सेंटाइल स्कोर का फॉर्मूला लागू कर दिया है, लेकिन स्पष्ट नहीं किया कि नॉर्मलाइजेशन का फॉर्मूला वैज्ञानिक तौर पर कितना कारगार है और इसे कैसे करेंगे? नॉर्मलाइजेशन वाली परीक्षाएं हमेशा विवादों में रहीं हैं। यूपीपीएससी का यह निर्णय छात्र हित में नहीं है। छात्र एक पाली में परीक्षा कराने की मांग कर रहे हैं।
भड़काऊ पोस्ट का असर
सोशल मीडिया, खासकर टेलीग्राम चैनलों ने इस आंदोलन को और भड़काने का काम किया। विशेषज्ञों का मानना है कि इन चैनलों पर प्रसारित संदेशों में न केवल प्रशासन के खिलाफ उत्तेजना फैलाई गई, बल्कि छात्रों को हिंसा के लिए उकसाया गया।
छात्र पीसीएस और आरओ/एआरओ परीक्षा को एक ही दिन में कराने की मांग कर रहे थे। उनका तर्क था कि अलग-अलग दिनों में परीक्षा होने से न केवल समय और संसाधन बर्बाद होते हैं, बल्कि परीक्षार्थियों पर मानसिक दबाव भी बढ़ता है। आंदोलन के परिणामस्वरूप आयोग ने परीक्षा को स्थगित कर दिया और इसे एक ही पाली में कराने का निर्णय लिया।
यह घटना एक बार फिर इस तथ्य को रेखांकित करती है कि सोशल मीडिया का उपयोग जितना सकारात्मक हो सकता है, उसका दुरुपयोग उतना ही घातक साबित हो सकता है। टेलीग्राम चैनलों पर की गई भड़काऊ पोस्ट न केवल कानून व्यवस्था को नुकसान पहुंचाती हैं, बल्कि समाज में हिंसा को बढ़ावा देती हैं। यूपी पुलिस ने टेलीग्राम चैनलों पर शिकंजा कसना शुरू कर दिया है और इन पर प्रतिबंध लगाने की प्रक्रिया शुरू हो गई है। साथ ही, यह सुनिश्चित करने के प्रयास हो रहे हैं कि भविष्य में ऐसी घटनाएं दोबारा न हों।
पुलिस अब टेलीग्राम चैनलों के एडमिन और अन्य जिम्मेदार लोगों की पहचान और गिरफ्तारी की प्रक्रिया में जुटी है। भविष्य में इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स की निगरानी और कड़ी सुरक्षा व्यवस्था सुनिश्चित की जा रही है। प्रयागराज की यह घटना इस बात को रेखांकित करती है कि सोशल मीडिया के दुरुपयोग से कानून व्यवस्था पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है। प्रशासन का यह कदम भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने की दिशा में एक सख्त संदेश देने के रूप में देखा जा रहा है।
छात्रों की मांग एकदम सही: प्रमोद तिवारी
प्रयागराज में उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग (यूपीपीएससी) के सामने प्रदर्शन कर रहे छात्रों का आरोप है कि सरकार ने उनकी सभी मांगों पर सकारात्मक कदम नहीं उठाए। इसके चलते प्रदर्शन जारी है। कांग्रेस नेता प्रमोद तिवारी ने आंदोलनकारी छात्रों के समर्थन में भाजपा सरकार पर तीखा हमला बोला। उन्होंने कहा, “छात्रों की मांगें पूरी तरह से न्यायसंगत हैं। वे बिना किसी राजनीतिक एजेंडे के अपनी आवाज उठा रहे हैं। लेकिन सवाल यह है कि जब सरकार ने उनकी मांगें मान लीं, तो उन्हें 6 दिनों तक लाठियां क्यों खानी पड़ीं? अगर उनकी मांगें जायज थीं, तो सरकार पांच दिनों तक अड़ी क्यों रही?”
प्रमोद तिवारी ने विशेष रूप से आरओ (रिजर्वेशन ऑफ ऑफिसर्स) की मांग पर जोर दिया और कहा कि यह पूरी तरह से छात्रों का उचित अधिकार है। उन्होंने कहा, “छात्रों की दूसरी मांग भी न्यायोचित है। आरओ से संबंधित उनकी मांगों को तुरंत स्वीकार किया जाना चाहिए। मैं शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे छात्रों के साथ पूरी तरह खड़ा हूं।”
इस पूरे मामले में आंदोलनरत छात्रों का कहना है कि सरकार उनकी पूरी बात सुनने और मानने में विफल रही है। वे आरओ से जुड़े मुद्दों और अन्य प्रशासनिक खामियों को लेकर गंभीर हैं। छात्रों का दावा है कि वे शांतिपूर्ण तरीके से अपने हक के लिए प्रदर्शन कर रहे हैं, लेकिन सरकार ने उन्हें दबाने की कोशिश की।
प्रयागराज का यह आंदोलन अब न केवल छात्रों के मुद्दों तक सीमित रह गया है, बल्कि इसमें राजनीतिक पार्टियों की सक्रियता ने इसे और बड़ा बना दिया है। जहां कांग्रेस पूरी तरह से छात्रों के साथ खड़ी नजर आ रही है, वहीं भाजपा के लिए यह आंदोलन चुनौती बन गया है। क्या सरकार छात्रों की सभी मांगों को मानकर इस आंदोलन को खत्म कर पाएगी, या यह राजनीतिक घमासान का नया मोर्चा बन जाएगा? यह देखना बाकी है?
(आराधना पांडेय स्वतंत्र पत्रकार हैं)
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