Friday, April 19, 2024

भीमा-कोरेगांव की तर्ज पर खिरिया बाग आंदोलन से निपटने की तैयारी! 

“अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के रनवे के नाम पर 8 गांवों को उजाड़ने के खिलाफ 96 दिनों से चल रहा खिरिया बाग आंदोलन और उसको पूरे देश से मिल रहे समर्थन से मोदी-योगी की सरकार बौखला गई है, क्योंकि यह आंदोलन पूरे पूर्वांचल के किसानों, नौजवानों और छात्रों का आंदोलन बनने की ओर बढ़ रहा है, जो मोदी-योगी और अंबानी-अडानी के लिए चुनौती बन सकता है। मोदी-योगी की सरकार इस संवैधानिक और लोकतांत्रिक आंदोलन को अर्बन नक्सलियों का आंदोलन कहकर इसके नेताओं और समर्थकों को उसी तरह बदनाम करना चाहती है, और भविष्य में जेल में डालना चाहती है,जैसे उसने भीमा कोरेगांव के संदर्भ में किया।” यह बात खिरिया बाग आंदोलन के सहयोगी और मुखर समर्थक समाजवादी जनपरिषद के राष्ट्रीय संगठन मंत्री अफलातून ने कही।

जब उनसे जनचौक के संवाददाता ने यह पूछा कि बनारस के एक अखबार (अमर उजाला, दिनांक 15 जनवरी) में  सुरक्षा एजेंसियों के हवाले से यह खबर प्रकाशित हुई है कि खिरिया बाग आंदोलन अर्बन नक्सलियों के शह और सहयोग से  चल रहा है, जो बनारस में सक्रिय हैं। अखबार ने लिखा है  कि उसे सुरक्षा एजेंसियों से यह पता चला है कि ऐसे नक्सलियों की संख्या 130 है और उनकी पैठ बनारस विश्वविद्यालय में भी हो चुकी है। 

अखबार लिखता है, “विश्वविद्यालय व संबद्ध महाविद्यालयों में अपनी पैठ बनाने के बाद अर्बन नक्सली स्वयं सेवी संगठनों (एनजीओ) व अन्य छोटे संगठनों के माध्यम से पूर्वांचल के अन्य जिलों में अपना विस्तार कर रहे हैं। इस संबंध में ठोस इनपुट मिलने के बाद प्रदेश की शीर्ष सुरक्षा एजेंसियों ने वाराणसी व पूर्वांचल भर में सक्रिय 130 अर्बन नक्सलियों को चिह्नित किया है।” 

अखबार तथाकथित अर्बन नक्सलियों के संगठित होने को लोकसभा चुनावों से जोड़ते हुए लिखता है, “मकसद आगामी लोकसभा चुनाव से पहले वाराणसी व आसपास के जिलों का माहौल खराब करना है। इसे ध्यान में रखकर सुरक्षा एजेंसियां जांच कर रही हैं। एजेंसियों ने आगामी लोकसभा चुनाव से पहले ही ठोस कार्रवाई की तैयारी की है।”  

अखबार आगे लिखता है कि यही (बनारस के) अर्बन नक्सली आजमगढ़ हवाई अड्डे लिए ली जाने वाली जमीन के अधिग्रहण के खिलाफ संघर्ष को हवा दे रहे हैं, “ सुरक्षा एजेंसियों का कहना है कि एयरपोर्ट के लिए जमीन का अधिग्रहण नियमानुसार स्थानीय लोगों की सहमति से हुआ है। इसके बावजूद अर्बन नक्सल मामले को तूल दे रहे हैं। समूह से जुड़े लोग गुपचुप तरीके से मदद भी कर रहे हैं, लेकिन मंशा के अनुरूप सफलता नहीं मिल सकी है। उत्तर प्रदेश सरकार के सख्त रवैये व कड़ी कार्रवाई के डर से बहुत लोग अर्बन नक्सलियों से दूरी बनाए हुए हैं।” 

अखबार अंत में बनारस के नक्सली कनेक्शन को भीमा कोरेगांव और प्रधानमंत्री से जोड़ते हुए लिखता है, “महाराष्ट्र के भीमा कोरेगांव में हिंसा के बाद अर्बन नक्सल शब्द आम लोगों की जुबान पर आया। इसका जिक्र प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी किया था। प्रदेश की शीर्ष सुरक्षा एजेंसी से जुड़े एक अफसर ने बताया कि अर्बन नक्सली अब प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र वाराणसी और उससे सटे पूर्वांचल के अन्य जिलों में अपनी पैठ मजबूत कर रहे हैं। इसमें अहम भूमिका कुछ विश्वविद्यालयों के शिक्षाविदों, छात्रों और कुछ एनजीओ संचालकों की है। इनमें से सूचीबद्ध किए गए लोगों की गतिविधियों की लगातार निगरानी की जा रही है। संबंधित लोगों के खिलाफ जल्द ही साक्ष्यों के साथ पुख्ता कार्रवाई की जाएगी।”

खिरिया बाग (आजमगढ़) आंदोलन को नक्सली संबंध जोड़ने के सवाल पर  खिरिया बाग आंदोलन का नेतृत्व कर रहे संगठन ‘मकान-जमीन बचाओ संयुक्त मोर्चा’ के अध्यक्ष रामनयन यादव कहते हैं, “असल में योगी-मोदी सरकार हमारे लोकतांत्रिक-संवैधानिक आंदोलन का मुकाबला नहीं कर पा रही है। हमारे आंदोलन को किसी तरह से कमजोर नहीं बना पा रही है, किसी को भी मकान-जमीन देने के लिए तैयार नहीं कर पा रही है। ऐसे में हम सबके ऊपर नक्सली का ठप्पा लगाकर हमला बोलना चाहती है, हमारे आंदोलन को तोड़ना चाहती है। हमें और हमारे नेताओं को देशद्रोही ठहराना चाहती है। हमें बदनाम करना चाहती है। लेकिन हम ऐसे नहीं होने देंगे। हमारा आंदोलन शांतिपूर्ण और लोकतांत्रिक-संवैधानिक तरीके से चलता रहेगा। हम संविधान और लोकतंत्र में विश्वास करने वाले लोग हैं। हम जन गोलबंदी के आधार पर मोदी-योगी और अंबानी-अडानी के गठजोड़ को हराएंगे।”

खिरिया बाग आंदोलन का नक्सली कनेक्शन ढूंढने के सवाल पर इस आंदोलन के सबसे चर्चित चेहरे, राजीव यादव कहते हैं, “ यह कनेक्शन बहुत पहले से ही स्थापित करने की कोशिश हो रही है। यह कोशिश उस दिन पूरी तरह सामने आ गई थी, जबकि सुरक्षा एजेंसियों ने मेरा अपहरण (24 दिसंबर) किया और मेरे साथ मार-पीट की। इस दौरान मुझसे बार-बार या पूछा गया कि इस आंदोलन में कौन-कौन सक्रिय है, आपकी फंडिंग कहां से हो रही है, आप लखनऊ से यहां आंदोलन करने कैसे आ गए। माओवादी आंदोलन के लोगों ने यहां मीटिंग की थी, क्या आप उसमें शामिल थे। आपका इतिहास क्या है, आप इससे पहले किन-किन आंदोलन में सक्रिय थे। आपका किसान आंदोलन, सीएए विरोधी आंदोलन और आतंकियों के रिहाई के संदर्भ में चलने  वाली गतिविधियों से क्या रिश्ता था?”

 उन्होंने आगे बताया कि इस बार भी अमर उजाला में अर्बन नक्सल संबंधी खबर प्रकाशित होते ही, पुलिस अगले दिन मेरे घर आ गई। मेरे बारे में घर वालों से पूछताछ करने लगी, मेरे अतीत की पड़ताल करने लगी। 

वे यह भी कहते हैं कि यह पूरा आंदोलन पहले दिन से ही गांव वालों द्वारा शुरू किया आंदोलन हैं। आजमगढ़ का निवासी होने और जनहित में किए जा रहे जन आंदोलनों का समर्थक होने के नाते मैं भी इसमें सक्रिय हूं। इस आंदोलन में किसान नेता राकेश टिकैत, मेधा पाटकर, जगतार सिंह बाजवा, गुरुनाम सिंह चढूनी, मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित संदीप पाण्डेय, अखिल भारतीय किसान सभा के प्रदेश सचिव पूर्व विधायक राजेन्द्र यादव, पूर्व विधायक इम्तियाज अहमद, गिरीश शर्मा और विभिन्न संगठनों हिस्सेदारी कर चुके हैं। यह पूरी तरह लोकतांत्रिक ढंग  से चल रहा जनांदोलन है।  योगी-मोदी सरकार इस आंदोलन को तोड़ने के लिए अब इस पर अर्बन नक्सल का ठप्पा लगाने के लिए मीडिया में स्टोरी प्लांट करा रही है और गोदी मीडिया भी सरकार के इशारे इस आंदोलन के खिलाफ सक्रिय हो गई है।

आजमगढ़ में लंबे समय से सामाजिक-शैक्षिक गतिविधियां चलाने वाले और खिरिया बाग आंदोलन के समर्थक-सहयोगी गिरिजेश तिवारी खिरिया बाग आंदोलन के अर्बन नक्सल कनेक्शन के बारे में कहते है, “योगी-मोदी सरकार किसानों-मजदूरों पर मनगढ़ंत आरोप लगाकर आंदोलन को बदनाम करना चाहती है। अर्बन नक्सली कहकर खिरिया बाग में बैठी माताओं-बहनों की आवाज को कुचलना चाहती है। सरकार कितनी भी साजिश कर ले लोकतांत्रिक-संवैधानिक तरीके से आंदोलन जारी रहेगा। किसानों-मजदूरों के खिलाफ फैलाए जा रहे झूठ, अफवाह और दुष्प्रचार का मुंहतोड़ जवाब देंगें।”

इस संदर्भ में संयुक्त किसान मोर्चा आजमगढ़ के जिला संयोजक  राजेश आजाद कहते, “मोदी सरकार ने इसी तरह से ऐतिहासिक किसान आंदोलन को भी बदनाम करने के लिए उन्हें कभी अर्बन नक्सल, खालिस्तानी, आंदोलनजीवी कहकर बदनाम करने की कोशिश की थी और बाद में माफी मांगकर किसान विरोधी काले कानून को वापस लिया। सरकार और उसकी एजेंसियां चाहे जितना भी झूठा आरोप लगाएं पूरा देश के किसान-मजदूर साथ हैं। किसान-मजदूर जमीन-मकान नहीं देंगे और सरकार को अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट का मास्टर प्लान रदद् करना होगा। हमारी खेती-किसानी, गांव का विकल्प एयरपोर्ट विस्तार नहीं हो सकता।”

इस आंदोलन से शुरू से ही जुड़े मैग्सेसे पुरस्कार प्राप्त संदीप पांडेय कहते हैं, “ कार्पोरेट विरोधी हरआंदोलन को अर्बन नक्सल या माओवादी कहने की सरकारी की पुरानी आदत है। यह आंदोलन मोदी-योगी के प्रिय अंबानी-अडानी के जमीन की लूट की योजना के खिलाफ है। मैं कल ( 18 जनवरी ) को बनारस में चरखा कात कर यहां के प्रशासन से यह सवाल करूंगा कि वह बताए कि क्या मैं, मेधा पाटेकर और राजीव यादव नक्सल हैं? मैं कुछ एक दिनों के अंदर ही आजमगढ़ जाकर चरखा कात कर अपना विरोध दर्ज कराऊंगा,क्योंकि यह आंदोलन गांधीवादी तरीके से चल रहा है और चरखा गांधी के रास्ते का प्रतीक है। हम कार्पोरेट पूंजीवाद का मुकाबला चरखे से करेंगे। ”

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गिरिजेश तिवारी
गिरिजेश तिवारी
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1 year ago

धन्यवाद। यही सच्ची पत्रकारिता है।

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