Saturday, April 20, 2024

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू: भारतीय न्यायपालिका आम आदमी को नहीं दे पा रही है न्याय 

गत 24 मई को झारखंड हाई कोर्ट के नए भवन का राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा उद्घाटन रिमोट का बटन दबाकर किया गया। अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) डीवाई चंद्रचूड़, झारखंड के राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन, मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल सहित अन्य वरीय अधिवक्ता मौजूद थे। 

उद्घाटन समारोह के दौरान राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने कहा कि कई वर्षों तक समय, पैसा और रातों की नींद बर्बाद करने बाद जब किसी को न्यायालय का आदेश मिलता है, तो उसे कुछ पल के लिए खुशी मिलती है।

उसे लगता है कि चलो, भले ही कई वर्ष देर हुई है, लेकिन अंधेर नहीं है। इस सकारात्मक सोच के कुछ ही दिनों बाद उसकी खुशी गायब हो जाती है। क्योंकि उसे सही मायने में न्याय नहीं मिलता है। उसको फिर से अवमानना के दौर से गुजरना होता है। उसे फिर से अपने मामले में मिले आदेश का पालन कराने के लिए कोर्ट का सहारा लेना पड़ता है।

महामहिम मुर्मू ने कहा कि हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद आम आदमी अब कहां जाए। इसका समाधान निकलना होगा। इसके लिए नियम भी बनाने पड़े तो बनाना चाहिए।

राष्ट्रपति ने अपने अनुभव को साझा करते हुए कहा कि मैं गांव में एक ऐसी समिति से जुड़ी थी जो यह देखती थी कि कोर्ट के फैसले के बाद परिवार किस हाल में है। उस वक्त पता चला कि जमीनी हकीकत कुछ और ही है। कोर्ट में फैसला आने के बाद भी लोगों को न्याय नहीं मिला था। फैसले पर अमल नहीं किया गया था। उन्होंने कहा कि ऐसे कई लोगों की सूची आज भी मेरे पास है, जिसे मैं भारत के मुख्य न्यायाधीश को भेजूंगी। कोर्ट न्याय का मंदिर है, लोग इसे विश्वास के साथ देखते हैं। कोर्ट के पास यह ताकत है कि वह न्याय दे सके। लोगों को उनके अधिकार दे सकें।

राष्ट्रपति ने कहा कि सभी को मिलकर इस समस्या का समाधान निकालना होगा। उन्होंने बताया कि वे छोटे से गांव से आती हैं। वे फैमिली काउंसिलिंग सेंटर में सदस्य रह चुकी हैं।

उन्होंने बताया कि कई लोग इस समस्या को लेकर मेरे पास आते हैं, कहते हैं कि केस जीत लिया है, लेकिन उन्हें न्याय नहीं मिला है। हमें पता नहीं कि आखिर इसका रास्ता क्या है?

उम्मीद है कि इस समस्या का रास्ता जरूर होगा। सही मायने में किसी को न्याय मिले यह न्यायपालिका का दायित्व है। आखिर वह जाए तो जाए कहां? सुप्रीम कोर्ट के बाद और कोई कोर्ट भी तो नहीं है। 

राष्ट्रपति ने कहा कि देश के हर नागरिक तक न्याय की पहुंच हो। इसके लिए न्याय प्रक्रिया में लगातार सुधार का प्रयास करना चाहिए। कोर्ट में प्राथमिकी तौर पर अंग्रेजी भाषा का इस्तेमाल होता है, इसलिए अधिकतर नागरिक इससे जुड़ नहीं पाते हैं।

झारखंड में कई भाषा बोली जाती हैं। यहां पर कोर्ट का आदेश स्थानीय भाषा में होना जरूरी है, ताकि यहां के नागरिक कोर्ट के आदेश को सहजता से समझ सकें।

देश की न्याय व्यवस्था पर भारी बोझ है। जेल में विचाराधीन बंदियों की संख्या ज्यादा है। इस पर विचार करने की जरूरत है।

राष्ट्रपति ने कहा कि झारखंड हाई कोर्ट का नया भवन पूरे देश के लिए एक लैंडमार्क साबित होगा। जिन लोगों ने भी हाई कोर्ट के निर्माण में अपना योगदान दिया उसे बधाई देती हूं। एक बहुत ही दिव्य अनुभव मेरे लिए है।

मुझे आशा है कि इस हाई कोर्ट भवन से अन्य राज्य भी प्रेरित होकर आधुनिक सुविधाओं से लैस न्यायिक भवन का निर्माण करेंगे। यह न्याय का मंदिर है।

यह विकास की तरफ एक नया कदम है। तकनीकी की वजह से भी न्यायिक व्यवस्था में तेजी आई है। अच्छी बात यह है कि नए हाई कोर्ट भवन भी आधुनिक सुविधाओं से लैस है।

अवसर पर उपस्थित भारत के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ द्वारा हिन्दी में दिए गए भाषण की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने सराहना करते हुए कहा कि अब से सुप्रीम कोर्ट व हाई कोर्ट के अन्य जज भी इसका पालन करेंगे।

राष्ट्रपति मुर्मू ने सीजेआई की तारीफ करते हुए कहा, मैं भाषा की बात करती हूं, लेकिन इंग्लिश में ये बोल रही हूं। मैं सीजेआई को धन्यवाद देना चाहती हूं क्योंकि उन्होंने आज हिंदी में स्पीच दी। 

उल्लेखनीय है कि राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने इस दौरान मुख्य न्यायाधीश को धन्यवाद दिया और न्याय के दरबार में विभिन्न भाषाओं को लेकर बात की। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने कई भाषाओं में काम करने की शुरुआत की है। यह जरूरी भी है। झारखंड के लोग अंग्रेजी के अलावा दूसरी भाषाओं में सहज हैं।

इसके बाद सीजेआई ने ऐसे तमाम मुद्दे पर बात की जिनकी न्याय प्रणाली को जरूरत है। उन्होंने कहा, सुनवाई समय पर होनी चाहिए, फैसला तुरंत सुनाया जाना चाहिए। अदालतों में स्वच्छता और साफ-सफाई की सुविधा होनी चाहिए। आज कितनी अदालतें हैं, जहां महिलाओं के लिए कोई शौचालय नहीं है।

सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि न्याय प्रणाली का लक्ष्य सामान्य व्यक्ति को न्याय दिलाना है। न्याय व्यवस्था को समाज के हर नागरिक तक पहुंचना होगा। तकनीक के माध्यम से हम अपने कार्य को सामान्य लोगों को जोड़ सकेंगे। 

उन्होंने कहा कि सर्वाेच्च न्यायालय के सात साल के मेरे निजी अनुभव में सजा होने से पहले गरीब लोग कई दिनों तक जेल में बंद रहते हैं। अगर न्याय जल्दी नहीं मिले तो उनकी आस्था कैसे बनी रहेगी। जमानत के मामलों में प्रत्यक्ष रूप में हमें इस मामले में हमें ध्यान रखना चाहिए। उन्होंने आगे कहा कि जिला न्यायालय को बराबरी देने की जरूरत है। जिला न्यायालय की गरिमा नागरिकों की गरिमा से जुड़ी है। सर्वाेच्च न्यायालय ने हिंदी भाषा में निर्णयों का अनुवाद किया है। यही उम्मीद उच्च न्यायालय से भी करता हूं। लाइव स्ट्रीम से कोर्ट रूम को हर घर में ले जाना बेहतर है।

सीजेआई ने कहा, सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट अपना काम इंग्लिश में करते हैं। हम 6.4 लाख गांवों में रहने वाले लोगों तक पहुंच सकते हैं। अगर हम अपने इंग्लिश में दिए गए फैसले को उनकी आधिकारिक भाषाओं में ट्रांसलेट करके दें। सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया ने एआई (Artificial Intelligence) के इस्तेमाल के साथ फैसलों के अनुवाद की इस कवायद को शुरू कर दिया है। आज हमने 6,000 से ज्यादा फैसलों को हिंदी में ट्रांसलेट किया है।

अवसर पर कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल, झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन और झारखंड उच्च न्यायालय के चीफ जस्टिस संजय कुमार मिश्र ने भी समारोह को संबोधित किया। 

राष्ट्रपति ने झारखंड उच्च न्यायालय की जिस बिल्डिंग का उद्घाटन किया, वह पूरे देश में अब तक का सबसे बड़ा न्यायिक परिसर है। 165 एकड़ क्षेत्र में फैले इस परिसर के 72 एकड़ क्षेत्र में उच्च न्यायालय बिल्डिंग सहित वकीलों के लिए आधारभूत संरचना तैयार की गई है। 550 करोड़ रुपये की लागत से बना यह भवन कई मायने में खास इसलिए है कि इसका परिसर सुप्रीम कोर्ट के परिसर से भी कई गुना बड़ा है।

हाई कोर्ट के परिसर में 276 एचडी सीसीटीवी कैमरे लगाए गए हैं। वहीं दो बड़े हाल में 1,200 अधिवक्ताओं के बैठने की जगह बनाई गई है, जबकि 540 चैंबर भी अधिवक्ताओं के लिए अलग से बनाए गए हैं। मामलों की सुनवाई के लिए 25 भव्य वातानुकूलित कोर्ट रूम बनाए गए हैं। 30 हजार वर्गफीट में लाइब्रेरी बनाई गई है। वहीं परिसर में 2,000 वाहनों के पार्किंग की भी व्यवस्था की गई है।

( विशद कुमार वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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