Saturday, April 20, 2024

जनता और डॉक्टरों की जान की कौड़ियों बराबर भी कीमत नहीं

नई दिल्ली। इस बात में कोई शक नहीं कि विश्व स्तर पर मानवता के सामने आए इस संकट में सभी को एक दूसरे का साथ देना है। और इस दिशा में कहीं भी किसी भी तरह की पहल का स्वागत किया जाना चाहिए। लेकिन इसमें यह बात अंतर्निहित है कि यह सब कुछ अपनी जनता की क़ीमत पर नहीं किया जा सकता है। और ज्यादा स्पष्ट रूप से कहें तो अपनी जनता की जान की क़ीमत पर नहीं होना चाहिए।

लेकिन मौजूदा मोदी सरकार शायद इन बुनियादी नियमों और नैतिक मानदंडों का उल्लंघन कर रही है। अगर मलेरिया के इलाज में काम आने वाली हाइड्रोक्लोरोक्विन, जिसे कोरोना में कारगर दवा के तौर पर देखा जा रहा है, हमारी आवश्यकता से ज़्यादा है तो निश्चित तौर पर अमेरिका क्या किसी भी देश को उसे भेजा जाना चाहिए। 

मोदी सरकार शायद इस बात को भूल गयी है कि उसकी पहली ज़िम्मेदारी अपनी जनता है। बताया जा रहा है कि क्लोरोक्विन के निर्यात पर लगे प्रतिबंध को हटाने के साथ देश के भीतर मलेरिया वाली दवाओं के वितरण पर भी रोक लगा दी गयी है। ऐसे में उन इलाक़ों में जहां मच्छरों का क़हर रहता है। ख़ासकर आदिवासी इलाक़े बेहद नाज़ुक दौर में पहुँच गए हैं। यहाँ मच्छरों के काटने से अक्सर मलेरिया की बीमारी हो जाती है। ऐसे में यह दवा उस मरीज़ की बुनियादी ज़रूरत है। लेकिन सरकार की हाईड्रोक्लोरोक्विन इस्तेमाल का नया नियम सामने आने के बाद कोरोना बीमारी से पहले मलेरिया से लोगों के मरने की आशंका पैदा हो गयी है। 

यूपी के सोनभद्र इलाक़े में इस संकट की गंभीरता को महसूस किया जाने लगा है। इस सिलसिले में वर्कर्स फ़्रंट के अध्यक्ष दिनकर कपूर ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को एक पत्र लिखा है। जिसमें उन्होंने इस प्रतिबंध को तत्काल हटाने की मांग की है। आपको बता दें कि कल ही स्वास्थ्य मंत्रालय के संयुक्त सचिव लव अग्रवाल ने कहा था कि मलेरियारोधी दवा हाइड्रोक्लोरोक्विन का इस्तेमाल केवल संक्रमितों और उनका इलाज कर रहे स्वास्थ्यकर्मियों तक के लिए ही सीमित कर दिया जाएगा।

सोनभद्र इलाक़े में कार्यरत दिनकर कपूर ने अपने पत्र में कहा है कि “यहां लोगों को बड़े पैमाने पर मलेरिया होता है। विशेषकर सोनभद्र जनपद की दुद्धी तहसील में तो ग्रामीण व नागरिक सर्वाधिक मलेरिया से पीड़ित होते हैं और मलेरिया के कारण उनकी मौतें भी होती हैं। इस क्षेत्र में राजनीतिक-सामाजिक कार्य करने के कारण मैं खुद लम्बे समय तक मलेरिया से पीड़ित रहा हूं। 

यहां के हर सरकारी अस्पताल व स्वास्थ्य केन्द्रों पर मलेरिया पीड़ित व्यक्ति को सरकार की तरफ से मलेरियारोधी दवा हाइड्रोक्लोरोक्विन मुफ्त में मिलती है, जिससे लोगों के जीवन की रक्षा होती है। लेकिन स्वास्थ्य मंत्रालय के नये आदेश से इलाके के लोगों के सामने जीवन का संकट खड़ा हो जाएगा”।

मोदी की इस दरियादिली का जो सिला राष्ट्रपति ट्रंप से मिला है उसको देखकर कोई दूसरा देश किसी अन्य देश को मदद देने से पहले सौ बार सोचेगा। ट्रंप के द्वारा इस्तेमाल की गयी भाषा न केवल अशोभनीय और असभ्यता के हद तक जाती है बल्कि एक आधुनिक और सभ्य राष्ट्र के तौर पर अमेरिका के अस्तित्व पर प्रश्न चिन्ह खड़ा कर देती है। यह उस अमेरिका का अहंकार है जिसका सिराजा बिखर रहा है। महाशक्ति की जगह आज उसकी पहचान एक याचक की हो गयी है। जिसे चीन मेडिकल किट और वेंटिलेटर दान कर रहा है। तो कहीं भारत से वह दवाओं की अपील करता दिख रहा है।

ये बातें यहीं तक सीमित नहीं हैं बताया तो यहाँ तक जा रहा है कि जर्मनी बंदरगाह पर मौजूद मेडिकल इक्विपमेंट से भरा एक जहाज़ साजिशाना तरीक़े से अमेरिका रवाना कर दिया गया। इसे शुद्ध रूप से एक समुद्री डकैती माना जा रहा है। इस घटना से समझा जा सकता है कि अमेरिका डकैती और चोरी से लेकर हर अनैतिक रास्ते को अब अपनाने के लिए तैयार है। कोरोना महामारी से निपटने की अक्षमता ने इस महाशक्ति की नैतिक आभा पहले ही छीन ली थी। अब इस तरह की कारगुज़ारियों के ज़रिये वह अपनी रही-सही साख भी खोने के कगार पर है।

बहरहाल भारत में लापरवाही केवल दवाओं के मोर्चे पर नहीं है। बल्कि स्वास्थ्य से जुड़ी हर उस जगह पर ये कोताहियाँ बरती जा रही हैं जहां इस समय किसी भी तरह की रत्ती भर चूक की इजाज़त नहीं दी जा सकती है। चिकित्सक लगातार अपनी सुरक्षा से जुड़े उपकरणों को मुहैया कराए जाने की गुहार लगा रहे हैं लेकिन उसको अनसुना कर उन्हें एक जानलेवा बीमारी के सामने ज़िंदा मरने के लिए छोड़ दिया गया है। इस ट्वीट के ज़रिये चिकित्सकों का सामने आया बयान इस बात की पुष्टि करता है।

कोरोना के इलाज के मोर्चे पर तैनात एक डॉक्टर ने बताया है कि पिछले पंद्रह दिनों में  डाक्टरों को केवल एक बार मास्क मुहैया कराया गया है। जबकि कोरोना का इलाज कर रहे डाक्टरों से जुड़े सुरक्षा उपकरणों के बारे में बताया गया है कि एक चीज का केवल एक बार इस्तेमाल किया जा कता है। दुबारा उनका इस्तेमाल किए जाने पर डॉक्टरों के संक्रमण का ख़तरा बढ़ जाता है। बावजूद इसके तमाम डॉक्टर अपनी जान का जोखिम लेकर लगातार कोरोना मरीज़ों का इलाज कर रहे हैं।

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