ढह गया पत्रकारिता का एक मजबूत स्तंभ, नहीं रहे ललित सुरजन

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नई दिल्ली। देशबंधु पत्र समूह के प्रधान संपादक ललित सुरजन का निधन हो गया है। कवि और पत्रकार के तौर पर ख्यातिप्राप्त सुरजन को ब्रेन हैमरेज के बाद दिल्ली के एक अस्पताल में भर्ती कराया गया था। इसके साथ ही बताया जा रहा है कि वह जानलेवा बीमारी कैंसर से भी पीड़ित थे। लेकिन ब्रेन हैमरेज उनके जीवन पर भारी पड़ा।

ललित सुरजन आधी सदी से हिंदी पत्रकारिता में सक्रिय थे। और आखिरी समय तक उनकी कलम चलती रही। देशबंधु के माध्यम से न केवल उन्होंने पत्रकारिता और समाज की सेवा की बल्कि देश में पत्रकारों की एक ऐसी उन्नत पौध तैयार की जो उनके जाने की बाद भी उनकी विरासत को आगे बढ़ाने का काम करेगी। उनके निधन के बाद खास कर पत्रकारिता जगत में शोक है। सरोकारी पत्रकारिता के इस बड़े स्तंभ के जाने से लोग भीतर से बेहद आहत हैं। बहुत सारे लोगों को उनके जाने में अपना निजी क्षति जैसा महसूस हो रहा है।

छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि दी है। ट्वीट के जरिये दी गयी अपनी श्रद्धांजलि में उन्होंने कहा कि “प्रगतिशील विचारक, लेखक, कवि और पत्रकार ललित सुरजन जी के निधन की सूचना ने स्तब्ध कर दिया है। आज छत्तीसगढ़ ने अपना एक सपूत खो दिया।

सांप्रदायिकता और कूपमंडूकता के ख़िलाफ़ देशबंधु के माध्यम से जो लौ मायाराम सुरजन जी ने जलाई थी, उसे ललित भैया ने बखूबी आगे बढ़ाया। पूरी ज़िंदगी उन्होंने मूल्यों को लेकर कोई समझौता नहीं किया। मैं ईश्वर से उनकी आत्मा की शांति और शोक संतप्त परिवार को संबल देने की प्रार्थना करता हूं।

ललित भैया को मैं छात्र जीवन से ही जानता था और राजनीति में आने के बाद समय-समय पर मार्गदर्शन लेता रहता था। वे राजनीति पर पैनी नज़र रखते थे और लोकतंत्र में उनकी गहरी आस्था थी। नेहरू जी के प्रति उनकी अगाध श्रद्धा मुझे बहुत प्रेरित करती थी। उनके नेतृत्व में देशबंधु ने दर्जनों ऐसे पत्रकार दिए हैं, जिन पर छत्तीसगढ़ और मप्र दोनों को गर्व हो सकता है”।

दरअसल ललित सुरजन का दायरा बेहद व्यापक था। पत्रकारिता के साथ ही साहित्य, संस्कृति और समाज में भी उनका अच्छा खासा दखल था। पत्रकार होने के साथ-साथ वह कवि के तौर पर भी जाने जाते थे।

जहां तक उनके जीवन परिचय का सवाल है तो अपने पिता मायाराम सुरजन द्वारा स्थापित समाचार पत्र देशबंधु का उनके जाने के बाद उन्होंने सफलतापूर्वक संचालन किया। बताया जाता है कि उसके काम में वह छात्र जीवन से ही लग गए थे। अपने पिता की तरह वह भी वामपंथी रुझान के थे। और वामपंथी विचारधारा वाले बहुत सारे राष्ट्रीय और अंतराष्ट्रीय संगठनों में भी सक्रिय रहते थे। इसके अलावा समाज के साथ अपने सरोकारी रिश्ते के चलते सभी जनआंदोलनों का वो अभिन्न हिस्सा हुआ करते थे। इतना ही नहीं अखबार मालिक होने के बावजूद पत्रकारों या फिर उनके पेशे से जुड़े किसी भी संकट के समय वह हमेशा उनके साथ खड़े पाए जाते थे।

परिवार में पत्नी माया सुरजन के अलावा उनके चार भाई और दो बहनें हैं। उनकी तीन बेटियां और दामाद भी आखिरी वक्त में बताया जाता है कि उनके साथ थे।

(कुछ इनपुट छत्तीसगढ़ पोर्टल से लिए गए हैं।)

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