उत्तर प्रदेश के सतर्कता अधिष्ठान ने लगभग छह साल के बाद मायावती सरकार के कार्यकाल में हुए 14 अरब, 10 करोड़, 83 लाख, 43 हजार के चर्चित स्मारक घोटाले में छह आरोपियों के खिलाफ एमपी-एमएलए कोर्ट में आरोप पत्र (चार्जशीट) दाखिल किया है, जबकि एफआईआर उन्नीस नामजद और अन्य अज्ञात के खिलाफ दर्ज की गई थी। बाकी का क्या हुआ यह अभी पता नहीं चला है।
सतर्कता अधिष्ठान ने चार्जशीट में भूतत्व एवं खनिकर्म विभाग के तत्कालीन संयुक्त निदेशक सुहेल अहमद फारूकी, यूपी राजकीय निर्माण निगम के तत्कालीन इकाई प्रभारी अजय कुमार, एसके त्यागी, होशियार सिंह तरकर, कंसोर्टियम प्रमुख पन्ना लाल यादव, अशोक सिंह के खिलाफ सरकारी सेवा में रहते हुए अमानत में खयानत, आपराधिक साजिश और भ्रष्टाचार निवारण की धाराओं में आरोपित किया है।
सतर्कता अधिष्ठान ने एक जनवरी साल 2014 को गोमती नगर थाने में नसीमुद्दीन सिद्दीकी और बाबू सिंह कुशवाहा समेत उन्नीस नामजद और अन्य अज्ञात के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर अपनी जांच शुरू की। क्राइम नंबर 1/2014 पर दर्ज हुई एफआईआर में आईपीसी की धारा 120 B और 409 के तहत केस दर्ज कर जांच शुरू की थी।
बसपा सरकार के दौरान स्मारकों के निर्माण में हुई वित्तीय अनियमितताओं की लोकायुक्त संगठन से जांच हुई थी। इसके बाद तत्कालीन सपा सरकार में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने इस मामले की जांच विजिलेंस को सौंपी थी। विजिलेंस ने पूर्व कैबिनेट मंत्री नसीमुद्दीन सिद्दीकी, बाबू सिंह कुशवाहा, उत्तर प्रदेश राजकीय निर्माण निगम, पीडब्ल्यूडी, खनन विभाग, कंसोर्टियम प्रमुखों, पट्टा धारकों, ठेकेदारों समेत 199 लोगों को आरोपी बनाते हुए जनवरी 2014 में लखनऊ के गोमतीनगर थाने में एफआईआर दर्ज कराई थी। विजिलेंस के अलावा ईडी भी इस मामले की जांच कर रही है।
मायावती ने 2007 से 2012 तक के अपने कार्यकाल में लखनऊ-नोएडा में अंबेडकर स्मारक परिवर्तन स्थल, मान्यवर कांशीराम स्मारक स्थल, गौतमबुद्ध उपवन, ईको पार्क, नोएडा का अंबेडकर पार्क, रमाबाई अंबेडकर मैदान और स्मृति उपवन समेत पत्थरों के कई स्मारक बनवाए थे। इन स्मारकों पर सरकारी खजाने से 41 अरब 48 करोड़ रुपये खर्च किए गए थे। आरोप लगा था कि इन स्मारकों के निर्माण में बड़े पैमाने पर घपला कर सरकारी रकम का दुरुपयोग किया गया है। प्रदेश में अखिलेश यादव के नेतृत्व में सपा सरकार आने के बाद इस मामले की जांच यूपी के तत्कालीन लोकायुक्त एनके मेहरोत्रा को सौंपी गई थी। लोकायुक्त ने 20 मई 2013 को सौंपी गई अपनी रिपोर्ट में 14 अरब, 10 करोड़, 83 लाख, 43 हजार का घोटाला होने की बात कही थी।
मायावती शासन के दौरान वर्ष 2007 से 2012 के दौरान लखनऊ और नोएडा में हुए स्मारकों के निर्माण में 1410 करोड़ रुपये से अधिक का घोटाला सामने आया था। इस मामले की शुरुआती जांच लोकायुक्त जस्टिस एनके मेहरोत्रा ने की थी। उन्होंने 20 मई 2013 को अपनी रिपोर्ट तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और मुख्य सचिव को भेजी थी। लोकायुक्त की रिपोर्ट में कहा गया था कि सबसे बड़ा घोटाला पत्थर ढोने और उन्हें तराशने के काम में हुआ है।
जांच में कई ट्रकों के नंबर, दो पहिया वाहनों के निकले थे। इसके अलावा फर्जी कंपनियों के नाम पर भी करोड़ों रुपये डकारे गए। लोकायुक्त ने 14 अरब 10 करोड़ रुपये से ज़्यादा की सरकारी रकम का दुरुपयोग पाए जाने की बात कहते हुए डिटेल्स जांच सीबीआई या एसआईटी से कराए जाने की सिफारिश की थी। सीबीआई या एसआईटी से जांच कराए जाने की सिफारिश के साथ ही बारह अन्य संस्तुतियां भी की गईं थीं।
लोकायुक्त की जांच रिपोर्ट में कुल 199 लोगों को आरोपी माना गया था। इनमें मायावती सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे नसीमुद्दीन सिद्दीकी और बाबू सिंह कुशवाहा के साथ ही कई विधायक और तमाम विभागों के बड़े अफसर शामिल थे। तत्कालीन अखिलेश सरकार ने लोकायुक्त द्वारा इस मामले में सीबीआई या एसआईटी जांच कराए जाने की सिफारिश को नजरअंदाज करते हुए जांच सूबे के सतर्कता अधिष्ठान को सौंप दी थी।
इसके पहले उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने मायावती सरकार के दौरान लखनऊ और नोएडा में हुए स्मारक घोटाले में संलिप्त पाए गए तत्कालीन आईएएस अफसर राम बोध मौर्य समेत 39 लोगों के खिलाफ भ्रष्टाचार का केस चलाने की अनुमति दे दी थी। सरकार ने जिन अफसरों के खिलाफ अभियोजन स्वीकृति दी थी, उनमें तत्कालीन निदेशक खनिज राम बोध मौर्य, राजकीय निर्माण निगम के तत्कालीन एमडी सीपी सिंह, संयुक्त निदेशक खनिज सुहेल अहमद फारूकी के अलावा 36 अन्य अधिकारी और इंजीनियर शामिल हैं। ये सभी लोकायुक्त जांच में भी दोषी पाए गए थे। इनमें राम बोध और सीपी सिंह सेवानिवृत्त हो चुके हैं।
स्मारक घोटाले में सतर्कता अधिष्ठान ने उक्त अधिकारियों और इंजीनियरों के खिलाफ दो वर्ष पूर्व अभियोजन स्वीकृति मांगी गई थी। अनुमति मिलने के बाद अब इन अधिकारियों के खिलाफ सतर्कता अधिष्ठान न्यायालय में चार्जशीट दाखिल करना था। लोकायुक्त ने सभी के खिलाफ विस्तृत जांच कराने की सिफारिश की थी। लोकायुक्त की रिपोर्ट के बाद सरकार ने शुरुआती जांच ईओडब्ल्यू से कराई थी और फिर मामले को सतर्कता अधिष्ठान के हवाले कर दिया गया। आरोपियों में एक विधायक, दो पूर्व विधायक, दो वकील, खनन विभाग के पांच अधिकारी, राजकीय निर्माण निगम के 57 इंजीनियर और 37 लेखाकार, एलडीए के पांच इंजीनियर, पत्थरों की आपूर्ति करने वाली 60 फर्में और 20 कंसोर्टियम प्रमुख तथा आठ बिचौलिए शामिल थे।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के जानकार हैं। वह इलाहाबाद में रहते हैं।)