प्रो. साईंबाबा को पैरोल पर रिहा करने व जेल में 2 केयरटेकर मुहैया कराने को लेकर पत्नी व भाई ने महाराष्ट्र के गृहमंत्री को लिखा पत्र

लोवर कोर्ट से आजीवन कारावास की सजा काट रहे प्रोफेसर जीएन साईबाबा की जीवन संगिनी एएस वसंता कुमारी और भाई गोकर्कोंडा रामदेवुडु ने महाराष्ट्र गृहमंत्रालय को पत्र लिखकर जीएन साईंबाबा को पैरोल पर रिहा करने और उन्हें रोजमर्रा के कामों में मदद के लिए जेल में दो केयरटेकर मुहैया करवाने की गुहार लगायी है। 

पत्र में जीएन साईबाबा की संगिनी व भाई ने गृहमंत्रालय को संबोधित करके कहा है कि- “हम आपके ध्यान में लाना चाहते हैं कि प्रो. जीएन साईबाबा 90% शारीरिक रूप से अक्षम और पूरी तरह से व्हीलचेयर पर आश्रित हैं। और बचपन में पोलियो के साथ पोस्ट-पोलियो-रेजिडुअल पैरालिसिस के चलते लकवाग्रस्त व्यक्ति हैं। वह अपना रोजमर्रा का काम खुद से नहीं कर सकते हैं। उन्हें रोजमर्रा के ज़रूरी कार्यों और गतिविधियों के लिये एक या दो केयरटेकर के मदद की ज़रूरत पड़ती है। हम परिवार के लोग उन्हें उनकी रोजमर्रा के कामों और गतिविधियों में घर पर उनकी मदद किया करते थे।

प्रो जीएन साईंबाबा की बीमारियों और विकलांगता को संदर्भित करते हुये उनके संगिनी व बाई ने महाराष्ट्र के गृहमंत्री को भेजे में पत्र में लिखा है कि 07 मई 2017 को उन्हें गढ़चिरौली सत्र न्यायालय ने आजीवन कारावास और फाँसी की सजा दी। तब से प्रो. जीएन साईंबाबा नागपुर सेंट्रल जेल में बंद हैं। सत्र न्यायालय के फैसले को बॉम्बे हाई कोर्ट, नागपुर बेंच के समक्ष चुनौती दी गई है और लंबित है। उनकी चिकित्सा स्थितियों में हृदय संबंधी समस्याएं यानी हाइपरट्रॉफिक कार्डियोमायोपैथी, एक्यूट शामिल हैं। इसके साथ ही अग्नाशयशोथ, कोलेलिथियसिस, लेफ्ट ब्राचियल प्लेक्सोपैथी आदि की भी समस्या है। नागपुर सेंट्रल जेल में कैदी के रूप में कारावास के दौरान जटिलताओं और मौजूदा स्वास्थ्य समस्याएं अधिक गंभीर हो गईं। उनका बायां हाथ दर्दनाक ब्रोक्सियल प्लेक्सोपैथी के कारण काम नहीं कर रहा है और उनका दाहिना हाथ भी धीरे-धीरे काम करना बंद कर रहा है। देखभाल करने वालों की सहायता के बिना बिस्तर और पीछे व्हीलचेयर पर प्रो. साईबाबा के लिए खुद को शिफ्ट करना बहुत मुश्किल है। वह दिन के समय और साथ ही रात के समय कई कई बार बेहोश हो जाते हैं।

पत्र में आगे कहा गया है कि उन्हें रोजाना के कामों के लिए जैसे कि शौचालय जाने, ब्रश करने, स्नान करने, भोजन करने, व्हीलचेयर पर जाने के लिए कम से कम दो केयरटेकर की आवश्यकता होती है।

पत्र में जीएन साईंबाबा की संगिनी और भाई ने आगे कहा है कि सह-आरोपियों में से दो पहले उसकी मदद करते थे, लेकिन अब उसकी मदद करने में हिचकते हैं क्योंकि जीएन साईंबाबा हाल ही में सेंट्रल जेल के भीतर कोविड-19 संक्रमित हुये थे। किसी भी प्रकार की सहायता के अभाव में प्रो. जीएन साईबाबा केवल असहनीय दर्द और परेशानी के साथ दैनिक कार्य जैसे तैसे निपटा रहे हैं।

सेंट्रल जेल के अधिकारियों के झूठे दावे को उझागर करते हुए पत्र में महाराष्ट्र के गृह मंत्रालय को बताया गया है कि जेल अधिकारियों ने मुंबई के माननीय मुंबई उच्च न्यायालय खंडपीठ को जमानत याचिका पर सुनवाई के दौरान सूचित किया है कि ज़रूरी केयरटेकर प्रो. जीएन साईबाबा को मुहैया करवाया गया है। जबकि जीएन साईंबाबा की सहायता के लिये स्थानीय जेल अधिकारियों द्वारा किसी भी केयरटेकर को नहीं लगाया गया है।

प्रो. जीएन साईंबाबा ने हाल ही में नागपुर सेंट्रल जेल, नागपुर में COVID-19  संक्रमित हुये थे, और बहुत कमजोर होने के नाते वह कोरोना के दुष्परिणामों से गुज़र रहे हैं। गौरतलब है कि कोरोना वायरस की दूसरी लहर पूरे भारत में फैल रही है और सामान्य जन जीवन को पंगु बना रही है। जेल के कई कैदी विचाराधीन और सजायाफ्ता दोनों और जेल कर्मी बड़े पैमाने पर कोरोना से प्रभावित हैं। पूरे भारत में COVID -19 से हजारों कैदी COVID-19 से पीड़ित हैं- जाहिर है महाराष्ट्र के जेलों में भी हैं। पिछले वर्ष महाराष्ट्र सरकार ने जेलों से पैरोल पर कैदियों को छोड़ा था।

पत्र के आखिर में जीएन साईबाबा के भाई व जीवनसाथी ने महाराष्ट्र के गृहमंत्री से गुजारिश करते हुये कहा है कि हम आपसे निवेदजन करते हैं कि 90 प्रतिशत विकलांग और पूरी तरह से व्हीलचेयर पर आश्रित और चलने फिरने से अपाहिज जीएन साईंबाबा को कम से कम पैरोल पर छोड़ा जाये।

इस गंभीर स्थिति के तहत, माननीय हम आपसे इस मामले को मानवीय आधार पर सहानुभूतिपूर्वक देखने और और जेल में उनके दैनिक कार्यों को अंजाम देने में मदद के लिए कम से कम दो केयरटेकर प्रदान करने के लिए संबंधित अधिकारियों को निर्देश देंने का अनुरोध करते हैं। हम आपके प्रति आभारी होंगे। आपके सकारात्मक उत्तर की प्रतीक्षा है।

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