Thursday, April 25, 2024

मानहानि केस: राहुल गांधी को गुजरात हाईकोर्ट से नहीं मिली अंतरिम राहत, फैसला सुरक्षित

गुजरात हाईकोर्ट ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी की ओर से आपराधिक मानहानि मामले में दायर पुनरीक्षण याचिका पर मंगलवार को आदेश सुरक्षित रख लिया। जस्टिस हेमंत एम प्रच्छक की खंडपीठ ने राहुल गांधी को किसी भी तरह की अंतरिम सुरक्षा देने से भी इनकार कर दिया। दोषसिद्धि पर रोक लगाई जाएगी या नहीं, इस संबंध में ‌निर्णय छुट्टियों के बाद होगा। मामले में शिकायतकर्ता पूर्णेश मोदी की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट निरुपम नानवती की सुनवाई के बाद दलीलें सुरक्षित रख ली गयीं।

राहुल गांधी की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट अभिषेक मनु सिंघवी ने जस्टिस हेमंत एम प्रच्छक की पीठ के समक्ष दृढ़ता से तर्क दिया कि कथित अपराध में नैतिक अधमता का तत्व शामिल नहीं है, यह एक गैर संज्ञेय, जमानती और अगंभीर अपराध था, इसलिए सजा निलंबित की जानी चाहिए। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि बहुत अधिक गंभीर अपराधों से संबंधित कई मामलों में, न्यायालयों ने दोषसिद्धि पर रोक लगा दी है।

सीनियर एडवोकेट नानावटी ने तर्क दिया कि गांधी को अदालत या शिकायतकर्ता ने अयोग्य नहीं ठहराया है बल्कि संसद द्वारा बनाए गए कानून के संचालन से वह अयोग्य हुए हैं और इसलिए, वह यह तर्क नहीं दे सकते कि उन्हें असाध्य नुकसान हो रहा है।

सीनियर एडवोकेट नानवती ने आगे कहा कि यदि गांधी माफी नहीं मांगना चाहते हैं, तो उन्हें माफी नहीं मांगनी चाहिए क्योंकि यह उनका अधिकार है, लेकिन फिर उन्हें शोर-शराबा नहीं करना चाहिए? उन्होंने कहा कि अगर यह आपका स्टैंड है (कि आप माफी नहीं मांगेंगे), तो अपनी प्रार्थनाओं के साथ यहां कोर्ट में न आएं। उन्हें क्राई-बेबी नहीं होना चाहिए या तो सार्वजनिक रूप से किए गए अपने स्टैंड पर टिके रहें या कहें कि आपका इरादा कुछ और था।

नानावटी ने कहा कि राहुल गांधी को कोर्ट ने अयोग्य नहीं ठहराया है। अयोग्यता संसद की ओर से ही बनाए गए कानून के संचालन के कारण हुई। उनका (गांधी का) मुख्य निवेदन यह है कि वह 8 साल के लिए राजनीतिक करियर से बाहर हो जाएंगे। उन्होंने राहुल गांधी की एक प्रेस कॉन्फ्रेंस से संबंधित एक समाचार रिपोर्ट पढ़ी जिसमें राहुल गांधी वे कथित तौर पर कहा कि मैं गांधी हूं, सावरकर नहीं और माफी नहीं मांगूंगा।

नानावटी ने कहा कि उनके खिलाफ कुल 12 मामले मानहानि के हैं। पुणे कोर्ट में सावरकर को लेकर की गई टिप्पणी के संबंध में उनके खिलाफ अन्य शिकायतें हैं। वह एक राष्ट्रीय राजनीतिक पार्टी के नेता हैं, जिसने देश पर 40 साल तक शासन किया है। लेकिन अगर वह इस तरह के बयान दे रहे हैं, तो उन्हें सबक सिखाया जाना चाहिए। उन्होंने सॉरी भी नहीं कहा। उनकी ओर से कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया गया।

उन्होंने कहा कि माफी नहीं मांगनी है तो ना मांगे, ये आपका हक है, लेकिन फिर ये हल्ला क्यों? मैं (पूर्णेश मोदी) इस मामले में पीड़ित व्यक्ति हूं। अपराध गंभीर है, संसद भी यही कहती है। दोषसिद्धि पर स्थगन के उनके आवेदन की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। आवेदन को खारिज किया जाना चाहिए।

सीनियर एडवोकेट अभिषेक मनु सिंघवी ने जस्टिस हेमंत एम प्रच्छक की पीठ के समक्ष जोरदार तर्क दिया कि उन्होंने कहा कि न्यायालय को यह देखना चाहिए कि गांधी के मामले में, निर्वाचित सांसद होने के नाते स्थिति की अपरिवर्तनीयता का कारक शामिल है, उन्होंने दोषसिद्धि के कारण लोगों के प्रतिनिधि होने का अपना अधिकार खो दिया है, एक ऐसी स्थिति जो अपरिवर्तनीय है।

सिंघवी ने राहुल गांधी की ओर से कहा कि सीआरपीसी की धारा 389 (1) के तहत सजा पर रोक लगाने की परीक्षा असाधारण परिस्थितियां हैं। धारा 389 सीआरपीसी किसी व्यक्ति के दोषी होने या न होने से संबंधित नहीं है, लेकिन यह सुविधा के संतुलन के बारे में है। यहां मानहानि को अक्षम्य अपराध माना जा रहा है। स्थिति की अपरिवर्तनीयता को देखना होगा। एक निर्वाचित व्यक्ति लोगों का प्रतिनिधि होने का अधिकार खो देता है, जो अपरिवर्तनीय है। वह अगला सत्र, बैठकें आदि किसी में भी हिस्सा नहीं ले पाएंगे।

सिंघवी ने यह भी तर्क दिया कि चुनाव प्रचार के दौरान दिया गया भाषण पूर्ण शक्तियों के साथ संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (ए) को आकर्षित करेगा। दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया।

इस मामले में सूरत की एक अदालत ने उन्हें दोषी ठहराते हुए दो साल जेल की सजा सुनाई थी, जिसके परिणामस्वरूप उन्हें लोकसभा की सदस्यता के अयोग्य ठहरा दिया गया था। जस्टिस हेमंत प्रच्छक ने शिकायतकर्ता पूर्णेश मोदी के वकील को सूरत की सत्र अदालत के आदेश के खिलाफ गांधी की आपराधिक पुनरीक्षण याचिका पर अतिरिक्त दस्तावेज जमा करने की अनुमति दी थी और मामले की सुनवाई के लिए दो मई की तारीख मुकर्रर की थी।

गौरतलब है कि सत्र अदालत ने भी दोषसिद्धि पर रोक लगाने की उनकी याचिका खारिज कर दी थी, जिसके खिलाफ गांधी ने उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है। बीते 26 अप्रैल को न्यायमूर्ति गीता गोपी के समक्ष मामले का विशेष उल्लेख किया गया था और त्वरित सुनवाई की मांग की गई थी, लेकिन उन्होंने सुनवाई से खुद को अलग कर लिया था। इसके बाद मामला न्यायमूर्ति प्रच्छक को सौंपा गया है।

गुजरात में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के विधायक पूर्णेश मोदी द्वारा दायर 2019 के मामले में सूरत की मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट अदालत ने 23 मार्च को कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धाराओं 499 और 500 (आपराधिक मानहानि) के तहत दोषी ठहराते हुए दो साल जेल की सजा सुनाई थी।

फैसले के बाद गांधी को जनप्रतिनिधित्व अधिनियम के प्रावधानों के तहत संसद की सदस्यता से अयोग्य घोषित कर दिया गया था। राहुल गांधी 2019 में केरल के वायनाड से लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए थे।सूरत की सत्र अदालत ने कांग्रेस नेता को दोषी ठहराये जाने के फैसले पर रोक लगाने की उनकी अर्जी 20 अप्रैल को खारिज कर दी थी। राहुल गांधी इस मामले में फिलहाल जमानत पर हैं।

(जे.पी.सिंह वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के जानकार हैं)

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