नई दिल्ली। दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग के चेयरमैन डॉ. जफरुल इस्लाम खान के आवास पर आज दिल्ली पुलिस ने छापा मारा। बताया जा रहा है कि पुलिस उन्हें पूछताछ के लिए अपने साथ ले जाना चाहती थी लेकिन उसके पास उससे संबंधित जरूरी काग़ज़ नहीं थे। इस पर जफरुल समेत उनके साथियों ने एतराज़ जताया। उन्होंने पुलिसकर्मियों से पूछा कि आख़िर किस क़ानून और आदेश के तहत वह उन्हें ले जाना चाहते हैं। और अगर कुछ है तो उसको पुलिस को उन्हें दिखाना चाहिए। इस पर मौक़े पर मौजूद पुलिस के आला अधिकारियों ने एक काग़ज़ पर कुछ लिखना शुरू कर दिया।
उसका कहना था कि लीजिए अभी आदेश बना देते हैं। इसका जफरुल समेत तब तक मौक़े पर पहुँच चुके कई वकीलों ने विरोध किया। उनका कहना था कि ऐसे थोड़े ही होता है कि पुलिस खड़े-खड़े काग़ज़ात बना दे। इस बीच, बताया जा रहा है कि जफरूल इस्लाम के घर काफ़ी तादाद में लोग इकट्ठा हो गए और पुलिस के लिए भी उनको बग़ैर काग़ज़ात के लिए ले जाना मुश्किल हो गया। हालाँकि पुलिस उनके घर पर तक़रीबन दो घंटे रही और इस बीच वह कोशिश करती रही कि कैसे जफरुल इस्लाम को ले जाया जाए। लेकिन स्थानीय लोगों के दबाव और वकीलों की क़ानूनी दलील के आगे उनकी एक चली। और अंत में उन सभी को वहाँ से जाना पड़ा।
आपको बता दें कि जफरुल इस्लाम के ख़िलाफ़ दिल्ली पुलिस ने एक ट्वीट पर एफआईआर दर्ज किया है। जफरुल बहुत पहले से ही दिल्ली पुलिस के निशाने पर हैं। उत्तर-पूर्वी दिल्ली में दंगे के दौरान दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग के चेयरमैन की हैसियत से उन्होंने दिल्ली पुलिस को कुछ कार्यकारी आदेश जारी किए थे। जिसके बाद से ही दिल्ली पुलिस उनसे नाराज़ है। बताया तो यहाँ तक जा रहा है कि गृहमंत्रालय की नज़र भी इस्लाम पर टेढ़ी है। और आज जो कुछ हुआ उसमें ऊपर बैठे लोगों का भी इशारा शामिल हो तो किसी को अचरज नहीं होना चाहिए।
सामाजिक कार्यकर्ता और इलाहाबाद विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र नेता अजीत यादव ने दिल्ली पुलिस की इस रवैये की निंदा की है। उन्होंने इसे खाकीधारियों का फ़ासिस्ट कदम करार दिया है। उन्होंने कहा कि डॉ. खान ने जो कहा है वह किसी भी स्वस्थ लोकतंत्र के लिए सामान्य बात है और भारत के संविधान में नागरिकों को प्रदत्त अभिव्यक्ति की आजादी के अधिकार के अंतर्गत आता है। लेकिन फासिस्टों की सरकार ने भारत के लोकतंत्र और लोकतांत्रिक संस्थाओं की धज्जियां उड़ा दी है और संवैधानिक अधिकारों पर संगठित हमला बोल कर मुल्क में तानाशाही का खतरा पैदा कर दिया है। इसलिए जो भी फासिस्ट सरकार का विरोध कर रहे हैं उनका दमन किया जा रहा है। आंदोलनकारियों पर आतंकवाद निरोधक कानून जैसे काले कानून के तहत मुकदमें दर्ज किये जा रहे हैं। और डॉ जफरुल इस्लाम खान पर देशद्रोह के तहत मुकदमा लगा दिया गया है ।