Sunday, June 4, 2023

गांधी विद्या संस्थान मामले में रामबहादुर राय करना चाहते थे ‘डील’, पत्र के जरिए रामधीरज ने किया खुलासा

नई दिल्ली/वाराणसी। उत्तर प्रदेश सर्वोदय मंडल के अध्यक्ष एवं लोकतंत्र सेनानी रामधीरज ने इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के अध्यक्ष एवं वरिष्ठ पत्रकार रामबहादुर राय को पत्र लिखकर गांधी विद्या संस्थान की जमीन से कब्जा छोड़ने की मांग की है। पत्र में रामधीरज ने रामबहादुर राय का जयप्रकाश नारायण से संबंधों का हवाला देते हुए लिखा है कि “आप जयप्रकाश नारायण के प्रशंसकों और समर्थकों में रहे हैं। आपका जयप्रकाश जी से गहरा लगाव और जुड़ाव था। आप जानते हैं कि 1962 में जयप्रकाश जी ने वाराणसी में सर्व सेवा संघ परिसर में गांधी विद्या संस्थान नामक यह शोध संस्थान बनाया था। जिसका उद्देश्य था, देशभर में गांधी विचार पर आधारित चल रहे आंदोलनों एवं कार्यों का अध्ययन करना और यह देखना कि उसका समाज पर क्या प्रभाव हो रहा है। आप स्वयं भी संस्थान से जुड़े रहे हैं और इसके सारे उतार-चढ़ाव के बारे में जानते ही हैं।”

उन्होंने पत्र में गांधी विद्या संस्थान पर कब्जे की घटना का उल्लेख किया कि “विगत 15 मई को राजघाट सर्व सेवा संघ परिसर में इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के क्षेत्रीय निदेशक मय पुलिस फोर्स और मजिस्ट्रेट के साथ आए और उन्होंने गांधी विद्या संस्थान का ताला तोड़कर कब्जा कर लिया और यह कहा कि हम लाइब्रेरी का संचालन करेंगे लेकिन अगले ही दिन संस्थान के सभी कमरों के ताले तोड़ दिए गए, यहां तक कि डायरेक्टर आवास का ताला भी तोड़ दिया गया और यह कहा गया कि कमिश्नर वाराणसी ने इसे हमें आवंटित किया है।”

LETTER 1
रामधीरज का रामबहादुर राय के नाम पत्र

आपकी जानकारी में यह भी होगा कि करीब ढाई महीने पहले 28 फरवरी को कमिश्नर वाराणसी ने एक बैठक बुलाई थी जिसमें सर्व सेवा संघ को बुलाया था। प्रतिनिधि के नाते मैं वहां मौजूद था। चर्चा के दौरान उन्होंने कहा कि यह संस्थान इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र को देना है। यह राष्ट्रीय संस्था है,अच्छी तरह चलाएगी। तब मैंने कहा था, कला केंद्र देश में भारतीय संस्कृति और कला के विकास के लिए सरकारी संस्था है और गांधी विद्या संस्थान गांधी विचार पर आधारित समाज का अध्ययन करने के लिए समर्पित संस्था है। दोनों के काम करने के तरीके और मानक अलग-अलग है। आईसीएसआर के डायरेक्टर ने भी इस बात का विरोध किया था और कमिश्नर को लिखित प्रस्ताव मंगवाने के लिए कहा था। लेकिन 3 महीने बीत जाने के बावजूद भी कमिश्नर या कला केंद्र की तरफ से कोई लिखित प्रस्ताव नहीं आया।

पत्र में लिखा “अचानक 15 मई को पूरी फोर्स के साथ कब्जा लेने के लिए राष्ट्रीय कला केंद्र के लोग आ गए। यह सब देखकर आश्चर्य भी हुआ और दुख भी। सहसा विश्वास न हुआ। आपसे बात करने की कोशिश की, फोन नहीं उठा। मैंने मैसेज किया। लेकिन मैसेज का भी कोई जवाब नहीं आया। आपके एक संदेश वाहक जरूर आए थे। उन्होंने कहा कि आप इसका विरोध न करें। आप जैसा कहेंगे, वैसा ही होगा और आपके सम्मान का पूरा ख्याल रखा जाएगा।”

पत्र में उन्होंने लिखा है कि “आप राष्ट्रीय ख्याति के पत्रकार हैं, आपका पूरे देश में मान सम्मान है। मुझसे भी और देश के अनेक समाजकर्मियों से आप भलीभांति परिचित हैं। संस्थागत काम के तौर तरीके भी आप जानते ही हैं। सर्व सेवा संघ को लिखित प्रस्ताव भेजने की बजाय कमिश्नर वाराणसी और संदेशवाहक के माध्यम से कार्य कर रहे हैं, जो उचित रास्ता नहीं है। आपके पास सत्ता है, सरकार है तो अकूत धन भी है। बनारस में कहीं भी 100-200 एकड़ जमीन लेकर राष्ट्रीय कला केंद्र का एक विश्वस्तरीय संस्थान खड़ा कर सकते हैं। इस ढाई एकड़ जमीन में क्या रखा है?”

अंत में उन्होंने लिखा “गांधी विद्या संस्थान इतिहास की बात हो गई है। यह जेपी की निशानी है, स्मारक है, विरासत है। यहां तो आंदोलन की पाठशाला या जेपी का संग्रहालय बनाना चाहिए ताकि लोग यहां आकर अन्याय के खिलाफ लड़ने के तौर तरीके सीख सकें और जयप्रकाश जी के जीवन से प्रेरित हो सकें। मुझे पूरा विश्वास है कि आप राष्ट्रीय कला केंद्र के लिए विशाल कैंपस वाराणसी में कहीं अन्यत्र बनाएंगे और इस जगह को आंदोलन की पाठशाला और संग्रहालय के लिए छोड़ देंगे।”

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8 days ago

बाकी सब बात समझा… ये डील वाला मसला क्या है.. कहाँ है… विस्तार दें

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