Thursday, March 28, 2024

व्यापारी रामदेव महामारी नहीं, स्वास्थ्य के लिए चुनौती

स्वयं को स्वामी कहलाने वाले रामदेव के अनुसार एलोपैथी बकवास है और देश में होने वाली लाखों कोरोना मौतों के लिए जिम्मेदार भी! उसकी मानें तो कोरोना से लड़ाई एलोपैथी दवाओं और ऑक्सीजन से नहीं, उसकी पतंजलि नामक कंपनी के इम्युनिटी फ़ॉर्मूले और प्राणायाम के दम पर लड़ी जानी चाहिए। इस क्रम में वह पेशेवर चिकित्सा समुदाय और महामारी कानून को रोज तिरस्कारपूर्ण चुनौती दे रहा है। अब एलोपैथी डॉक्टरों के संगठन ने प्रधान मंत्री से रामदेव के विरुद्ध राजद्रोह का मुक़दमा चलाने की मांग की है।

यकीन जानिए, पुलिस को सबसे बुरा तब लगना चाहिये और लगता भी है जब कोई डंके की चोट पर कानून व्यवस्था की खिल्ली उड़ानी शुरू कर दे। लेकिन अगर सामने एक राजनीतिक रूप से बेहद समर्थ भगवा वस्त्रधारी हो तो? योग गुरु के रूप में मशहूर और आयुर्वेद को ढाल बनाकर धंधा जमाने वाले व्यापारी रामदेव ने अपने खिलाफ आपराधिक कार्यवाही की आईएमए (इंडियन मेडिकल एसोसिएशन) की मांग पर ललकार दिया है कि किसी का बाप भी उसे गिरफ्तार नहीं कर सकता। इस बीच कोरोना लड़ाई के दुष्कर दूसरे दौर में एलोपैथी पद्धति में जान का जोखिम उठाकर कार्यरत लाखों डॉक्टर व अन्य स्वास्थ्यकर्मी उसके दुष्प्रचार के निशाने पर चल रहे हैं।

रामदेव एक निरर्थक विवाद को जान-बूझकर खतरनाक रास्तों पर ले जा रहा है। वह इसे आयुर्वेद बनाम एलोपैथी का रूप देना चाहता है, जबकि सभी जानते हैं कि उसकी रणनीति कोरोना सन्दर्भ में रामबाण दवा की तरह प्रचारित किये गए अपने उत्पाद ‘कोरोनिल’ की निर्बाध बिक्री और व्यापक महामारी मुनाफे में हिस्सेदारी को लेकर है। जड़ी-बूटियों की बात करने वाले छद्म-विज्ञानी रामदेव की पेशेवर हैसियत कहीं से भी आयुर्वेद के वैध पैरोकार होने की नहीं है लेकिन वह इस पारंपरिक चिकित्सा पद्धति का अरसे से स्वयंभू प्रवक्ता बना बैठा है। ठीक उसी तरह जैसे पतंजलि का नाम लेकर आसन/व्यायाम सिखाते-सिखाते वह योग गुरु बन गया था।

पतंजलि कंपनी की कोरोनिल का प्रचार एक तथाकथित रिसर्च बेस्ड कोरोना दवा के नाम पर किया जा रहा है। दावा है कि यह मरीजों पर ट्रायल से सिद्ध पायी गयी औषधि है। निरोधक, उपचारक और पोस्ट-केयर में खरी यानी तीन आयामी। यहाँ तक कि इस रिसर्च का पूरा डेटा भी है। लेकिन तथ्य यह है कि किसी भी मानक राष्ट्रीय या अंतर्राष्ट्रीय संस्थान से इस रिसर्च को कोरोना इलाज के लिए वैलिडेट नहीं कराया गया है। वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाईजेशन तो दूर रहा, किसी मान्य आयुर्वेदिक संस्थान से भी नहीं। यानी पतंजलि के तौर-तरीके विज्ञानी होने के दिखावे के बावजूद उसकी कोरोनिल एक छद्म-विज्ञान की उपज ही कही जायेगी।

भारत का संविधान लोगों में वैज्ञानिक मिजाज लाने के लिए काम करने का निर्देश देता है। खालिस क़ानूनी नजरिये से भी रामदेव और पतंजलि 2006 के महामारी अधिनियम के प्रावधानों के घोर उल्लंघन के ही नहीं, पुराने समय से चले आ रहे मैजिक रेमेडी एक्ट के अंतर्गत भी दोषी हैं। और परखा जाए तो रामदेव को अदालत की अवमानना का भी दोषी ठहराया जाना चाहिए। सर्वोच्च न्यायालय और कई उच्च न्यायालयों ने भी एलोपैथी उपचार उपलब्ध न होने और ऑक्सीजन आपूर्ति में कमी के लिए केंद्र सहित तमाम राज्य सरकारों को आड़े हाथ लिया है। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने तो ऑक्सीजन के लिए तड़पती मौतों को जनसंहार तक कहा डाला। रामदेव का एलोपैथी पर अनर्गल हमला इस न्यायिक विवेक पर भी हमला है।

लेकिन ‘रामदेव का झूठ’ सिक्के का एक पहलू भर हुआ। इसे बल देने वाला दूसरा पहलू भी कम चिंताजनक नहीं। और वह है ‘एलोपैथी की लूट’ का। देश की पुलिस यहाँ भी प्रभावी कदम नहीं ले सकी है। कोरोना इलाज के हर चरण पर सरकार ने अधिकतम कीमत तय की हुयी है लेकिन निजी अस्पतालों में धड़ल्ले से लाखों का बिल वसूला जा रहा है। यही नहीं हर जरूरी दवा, उपकरण, बेड, एम्बुलेंस, ऑक्सीजन, मरघट इत्यादि की जम कर कालाबाजारी हुयी है। ठीक है, महामारी में अमीर-गरीब सब शिकार बने हैं पर अपनी-अपनी पहुँच के हिसाब से इलाज की सुविधा का जुगाड़ करते हुए ही। इन आयामों पर रामदेव भी चुप है और आईएमए भी। दरअसल, आम आदमी के नजरिये से देखें तो बहस आयुर्वेद बनाम एलोपैथी न होकर ‘रामदेवी झूठ’ बनाम ‘एलोपैथी लूट’ होनी चाहिए।

रामदेव की सीनाजोरी की एक बड़ी वजह यह भी है कि वह एक वोट बैंक को अपील करता है और इसलिए सत्ता के दावेदारों को उसे छेड़ने से पहले कई बार सोचना होगा। काफी पहले से ही भाजपा, काँग्रेस समेत कई पार्टियों के मठाधीश उसे ढील ही नहीं बढ़ावा भी देते आ रहे हैं। उसके वोट बैंक के लिए कोरोनिल, बेशक छलावा सही, महंगे अस्पतालों के आर्थिक बोझ की तुलना में कहीं अधिक आकर्षक है। उसका छद्म-विज्ञान समाज के एक बड़े अन्धविश्वासी तबके, जो वैक्सीन के बरक्स गौमूत्र पर अधिक विश्वास करना चाहता है, के लिए ग्राह्य हो जाता है। इस वोट बैंक की खातिर ही सत्ताधारी फिलहाल उसी तरह चुप हैं जैसे कभी बलात्कारी राम रहीम और आसा राम के कारनामों पर रहता था।

क्या रामदेव एक व्यापक षड्यंत्र के तहत मोदी सरकार की कोरोना असफलता से ध्यान हटाने के लिए यह सब कर रहा है? इस बहस से स्वतंत्र भी मानना होगा कि कोरोना का वर्तमान काल कोई सामान्य समय नहीं है। दांव पर लाखों जान हैं। लिहाजा, देश में महामारी व्यवस्था की सफलता के लिए रामदेव के आयुर्वेदी झूठ से तुरंत निपटना भी उतना ही जरूरी हो गया है जितना एलोपैथी लूट से।

(विकास नारायण राय हैदराबाद पुलिस एकैडमी के निदेशक रह चुके हैं।)

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