Thursday, April 18, 2024

अडानी-अंबानी को बैंक लोन न मिलने से चिंतित सरकार आरबीआई पर एक और चोट देने की तैयारी में

मोदी सरकार का मन रिजर्व बैंक के एक लाख 76 हजार करोड़ रुपये हड़पने से भी नहीं भरा है। अब वह चाह रही है कि रिजर्व बैंक एक स्ट्रेस एसेट फंड (Stress Asset Fund) स्कीम लेकर आए। इसके जरिए बैंकों पर बढ़ते फंसे कर्ज यानी नॉन-परफॉर्मिंग एसेट का भार कम हो जाए। इसी के चलते वित्त मंत्रालय देश के 25 बैंकों के NPA को खरीदने के लिए आरबीआई पर दबाव बना रहा है। आरबीआई अभी तक इस बात से सहमत नहीं है।

मोदी सरकार के पांच साल में सरकारी बैंकों ने करीब 5.5 लाख करोड़ रुपये के बैड लोन को राइट ऑफ कर दिया है। यह बहुत बड़ी रकम है। आरबीआई जानता है कि अब उसने यदि इस स्ट्रेस एसेट फंड की स्कीम पर हामी भर दी तो पैंडोरा बॉक्स खुल जाएगा।

स्ट्रेस एसेट फंड वही पुराना विचार है, जिसे बैड लोन बैंक कहा जाता था। अब इसे नए कलेवर में प्रस्तुत किया जा रहा है। इसमें खास समझने की बात यह है कि यह क्यों किया जा रहा है? दरअसल आरबीआई पर बैंकिंग सिस्टम के कारण भारी दबाव है।

कई विश्लेषकों का कहना है कि आरबीआई क़र्ज़ देने में काफ़ी सख़्ती दिखा रहा है। पिछले साल आरबीआई ने ऐसे 11 बैंकों को चिह्नित किया था जिनका एनपीए बेशुमार बढ़ गया है। इन बैंकों को आरबीआई ने बड़े क़र्ज देने पर भी पाबंदी लगा दी थी। इस पाबंदी से अडानी-अंबानी जैसे देश के बड़े कर्जदार घबराए हुए हैं।

इंडिया टुडे ने एक धमाकेदार रिपोर्ट पेश की है। उसका कहना है कि सूचना के अधिकार के तहत मिली जानकारी के मुताबिक केवल 20 कर्जदारों को बैंकों ने 13 लाख करोड़ से ज्यादा के कर्ज बांटे हैं। यानी देश भर में कुल 100 रुपये के लोन में से 16 रुपये टॉप 20 कर्जदारों को दिया गया है।

रिजर्व बैंक ने कहा है कि वित्तीय साल 2019 में टॉप 20 कर्जदारों पर कुल 13.55 लाख करोड़ रुपये बकाया है। अब यह टॉप 20 कर्जदार कौन हैं? इस पर मेरे देश की संसद मौन है।

इंडिया टुडे की रिपोर्ट यह भी बताती है कि देश के टॉप 20 कर्जदारों पर न केवल भारी-भरकम बकाया लोन बाकी कर्जदारों के कर्ज के मुकाबले दोगुने स्पीड से बढ़ा है। वित्तीय साल 2018 में बैंकों का कुल बकाया कर्ज 76.88 लाख करोड़ रुपये था, जो 2019 में करीब 12 फीसदी बढ़ोतरी के साथ 86.33 लाख करोड़ रुपये हो गया।

इस दौरान इन बड़े 20 कर्जदारों के लोन में करीब 24 फीसदी बढ़ोतरी हुई और वह 10.94 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर 13.55 लाख करोड़ रुपये पहुंच गई। रिजर्व बैंक इन बड़े कर्जदारों के डिफॉल्ट पर सख्त एक्शन चाहता है। जब उर्जित पटेल रिजर्व बैंक के गवर्नर थे तब उन्होंने बड़े कर्जदार इंडस्ट्री ग्रुप को साफ कह दिया था कि या तो लोन चुकाएं या आपका मामला एनसीएलटी में जाएगा।

एक और दिलचस्प तुलना पेश है। यह रिपोर्ट यह भी बताती है कि भारत में करीब 10 करोड़ छोटे और मध्यम लघु उद्योग हैं। यह 30 करोड़ लोगों को रोजगार देते हैं, जबकि बड़े उद्योग करीब एक करोड़ नौकरियां पैदा करते हैं। इस MSME सेक्टर पर वित्तीय साल 2019 में 4.74 लाख करोड़ रुपये का कर्ज बकाया है। यानी मात्र 20 कर्जदारों पर 13 लाख करोड़ ओर 10 करोड़ MSME पर मात्र 4.74 लाख करोड़। है न कमाल? अब इन 20 बड़े कर्जदारों के लोन के NPA होने का खतरा मंडरा रहा है, इसलिए इन कर्जदारों को और कर्ज चाहिए, जो बैंक अब दे नहीं पा रहे हैं, इसलिए सांप-छछुंदर की स्थिति बनी हुई है।

इस संदर्भ में मुझे एक अमरीकी पूंजीवादी द्वारा लगभग एक सदी पहले दिया गया बयान याद आ रहा है, ‘अगर आप बैंक से 100 डॉलर कर्ज लेते हैं और चुका नहीं सकते हैं तो यह आपके लिए एक समस्या है, लेकिन अगर आप 10 करोड़ डॉलर कर्ज लेते हैं और चुका नहीं सकते हैं, तो यह आपके बैंक की समस्या है।’

और अब तो पूंजीपतियों की मित्र सरकार ही सत्ता पर काबिज है, इसलिए यह समस्या अब बैंक की नहीं है बल्कि यह सरकार की समस्या है। यह मोदी सरकार की समस्या है। इसके लिए रिजर्व बैंक भी लूटना पड़ जाए तो गुरेज़ नहीं है!

जनता का क्या है! उसे तो गोदी मीडिया दिन भर पाकिस्तान को पापिस्तान बता कर, राम मंदिर बनवा कर बहला ही रहा है। उसे यह जानने-समझने की जरूरत ही कहां है!

(गिरीश मालवीय स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं और आजकल इंदौर में रहते हैं।)

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