Wednesday, April 24, 2024

प्रवासी मजदूरों की बाबत पंजाब में हांफ रहे हैं तमाम सरकारों के दावे

यह मंजर पंजाब के महानगर जालंधर के रेलवे स्टेशन के ऐन पास का है। मंगलवार यानी 26 मई को घर वापसी के इंतजार में बैठी प्रवासी मजदूर महिला सुनीता यादव बेहोश हो गईं। वजह आसमान से बरसती बेइंतहा लू भरी गर्मी और जमीन पर मिलती भूख! किन्हीं कारणों से सुनीता के पति योगेश्वर यादव नहीं चाहते कि उनकी तस्वीर छपे। सबसे बड़ी वजह यह समझ आती है कि तस्वीर आने के बाद कहीं उनका जाना स्थगित ही न हो जाए। वे किसी भी सूरत में घर लौट जाना चाहते हैं। सुनीता को होश में लाने की कोशिश की जा रही है क्योंकि गाड़ी चलने की घोषणा किसी वक्त भी हो सकती है। फौरी तौर पर उसका ‘फिट’ दिखना लाजमी है, वरना रेलवे और सेहत विभाग रेल में चढ़ने ही नहीं देगा।

गोरखपुर जिले का यह यादव परिवार बीते छह दिन से वापसी के लिए सड़कों पर धक्के खाता फिर रहा है। किराए के जिस दड़बेनुमा पोर्शन में वे रहते थे, उसे खाली करा लिया गया था। सड़क और उम्मीद ही सहारा थी। योगेश्वर के अनुसार उन्हें दो दिन से खाना नसीब नहीं हुआ और सुनीता पांच माह के गर्भ से है। पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह और उत्तर प्रदेश के उनके समकक्ष योगी आदित्यनाथ इस पर क्या कहेंगे? यह सवाल इसलिए भी कि दोनों की ओर से जगजाहिर किया जा रहा है कि प्रवासी मजदूरों से ज्यादा चिंता उन्हें फिलहाल किसी और बात की नहीं!        

खैर, गर्मी और भूख तथा अवसाद से बेहोशी तथा फैलती बीमारियां बीते एक हफ्ते से पंजाब में प्रवासी मजदूरों की नियति बन गईं हैं। सेहत महकमा कोरोना वायरस से जूझने में व्यस्त है। प्रशासन उसे दिशा-निर्देश देने में तथा पुलिस प्रवासी मजदूरों पर लाठियां भांजने में। स्थानीय लोगों को भी आम बीमारियों के लिए समुचित डॉक्टरी सहायता और सलाह हासिल नहीं हो पा रही तो लॉकडाउन के बाद एकाएक ‘हाशिए का समाज’ बना दिए गए प्रवासी मजदूरों कि तो अब हैसियत ही क्या है? खाना नहीं, पानी नहीं और ठिकाना नहीं, पल्ले फूटी कौड़ी नहीं-ऐसे में केमिस्ट से भी दवाई ले पाना उनके लिए नामुमकिन है। राज्य सरकार के मुखिया कैप्टन अमरिंदर सिंह ने ठीक दो दिन पहले कहा था कि प्रवासी मजदूरों को कतई दिक्कत नहीं आने दी जाएगी। उनका दावा था कि राज्य सरकार की पूरी मशीनरी उनका खास ख्याल रखेगी।

यह दावा अब जगह-जगह हांफ रहा है। जालंधर, लुधियाना, अमृतसर, पटियाला और बठिंडा में कई बड़े परिसरों में ‘(प्रवासी) मजदूर कैंप’ बने हुए हैं। इन मजदूर कैंपों में प्रतीक्षारत मजदूर हैं जो अपने-अपने गृह राज्य लौटने के लिए प्रतीक्षारत हैं। बेहिसाब अस्थायी मजदूर कैंप भी हैं। जालंधर के बल्ले-बल्ले फार्म हाउस को सरकार के निर्देशानुसार प्रवासी मजदूर कैंप में तब्दील किया गया है। ठीक इस फार्म हाउस के सामने फ्लाईओवर है। इसके नीचे इन दिनों हजारों प्रवासियों का पड़ाव है।

सरकारी दावों के विपरीत इनकी कोई सुध नहीं ली जा रही। यहां आज मुनादी हुई कि मजदूर घर न लौटें क्योंकि काम-धंधा शुरू हो गया है। भूखे-प्यासे श्रमिकों को उम्मीद थी कि ऐसी घोषणाओं से पहले फौरन उन्हें रोटी-पानी मुहैया कराया जाएगा। गया जिले के श्रमिक अजीत सिंह कहते हैं कि इसी जगह कल कई मजदूर लू-गर्मी और भूख-प्यास से बेहोश हो गए। बैठे लोगों ने ऊंचे सुर में नारे लगाए तो पुलिस आई। लाठियां बरसाईं और उन्हें दुबकने के लिए विवश कर दिया। यह रोजमर्रा की बात है।           

पंजाब से साढ़े दस लाख से ज्यादा मजदूरों ने घर वापसी के लिए पंजीकरण कराया है। चार लाख से ज्यादा जा चुके हैं। (लगभग 3 लाख के करीब प्रवासी मजदूर ‘अवैध’ तरीके से तथा पैदल अपने प्रदेशों को चले गए हैं)। शेष इंतजार में हैं और वैसी बदहाली काट रहे हैं, जिसका विवरण ऊपर दिया गया है। सब जगह आलम एक सरीखा है।                                   

ज्यादातर प्रवासी मजदूरों ने अपने रहने के मुकामी ठीए-ठिकाने या तो खुद खाली कर दिए हैं या उनसे जबरन छुड़वा लिए गए हैं। बहुतेरे मजदूरों ने मकान मालिकों के बंधन से मुक्त होने के लिए अपने घरों से पैसे मंगवाए। जो नहीं मंगवा पाए, उनका सामान रख लिया गया बल्कि छीन लिया गया, यहां तक कि सफर के दौरान की जरूरत सेलफोन भी। इस पत्रकार ने पंजाब में प्रवासी मजदूरों की इस व्यथा को करीब से देखा है। कइयों पर हिंसा भी हुई लेकिन कोई अपील- दलील नहीं। जालंधर में 15 प्रवासी मजदूरों के एक डेरे में जायदाद के मालिक ने उनकी रेजगारी तक छीन ली।                                       

हो यह भी रहा है कि जिन श्रमिकों ने किसी तरह अपनी रिहाइशगाहों के लिए किसी तरह अग्रिम किराए का भुगतान कर दिया और उन्हें सूचना मिली की फलां वक्त की ट्रेन में उनकी वापसी सुनिश्चित है। उन्होंने आनन-फानन में स्टेशन का रुख किया लेकिन पता चला कि अब कई दिन रवानगी नहीं होगी। उधर, एडवांस लेकर भी मकान-मालिक वापस रहने नहीं दे रहे। ज्यादातर मामलों में तो कमरों पर मालिकों के मोटे ताले लटके मिलते हैं और शेष में उन्हें फजीहत करके खदेड़ दिया जाता है। यह आलम सब जगह है।                     

25 मई को लोहा नगरी कहलाने वाले मंडी गोविंदगढ़ में लगभग 5 सौ मजदूर पुलिस से इन्हीं कुछ वजहों के चलते भिड़ गए। श्रमिकों ने पुलिस पर पथराव किया तो पुलिस ने जवाब में अपना हर हथकंडा अपनाया। कई मजदूर घायल हुए। पुलिस वाले भी। ऐसी घटनाएं लुधियाना और जालंधर में भी हो चुकी हैं लेकिन पुलिस-प्रशासन इन सब पर पर्देदारी की कवायद में रहता है। इससे न तो हालात बदलेंगे और न प्रवासी मजदूरों की मौजूदा दशा-दिशा! यकीनन हालात 1947 के विभाजन से भी बदतर हैं।

(पंजाब के वरिष्ठ पत्रकार अमरीक सिंह की रिपोर्ट।)

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