Friday, April 19, 2024

छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के प्रतिनिधिनियों ने की मुख्यमंत्री और राज्यपाल से मुलाकात, कहा-आदिवासियों पर दमन बंद हो

रायपुर(छ.ग.)। छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के एक प्रतिनिधिमंडल ने दिनांक 08 जून 2021 को प्रदेश के राज्यपाल और मुख्यमंत्री से मुलाकात की और उन्हें ज्ञापन सौंपकर आदिवासियों पर हो रहे दमन को रोकने की मांग की। आंदोलन के नेताओं ने कल उन्हें बीजापुर जाने से रोकने की जिला प्रशासन की हरकत पर भी अपना तीखा विरोध दर्ज कराया है और कहा है कि बस्तर में सरकार नियंत्रित प्रशासन नाम की कोई चीज नहीं है और बस्तर पूरी तरह पुलिस राज्य में बदल गया है। प्रतिनिधिमंडल ने राज्यपाल से आग्रह किया है कि संविधान की संरक्षक होने के नाते वह इस स्थिति में हस्तक्षेप करें तथा पांचवीं अनुसूची के प्रावधानों और पेसा कानून का लागू होना सुनिश्चित करवाये। प्रतिनिधिमंडल में बेला भाटिया, आलोक शुक्ला, संजय पराते, बृजेन्द्र तिवारी और सुदेश टीकम शामिल थे।

उल्लेखनीय है कि विभिन्न जन संगठनों के उक्त नेताओं के नेतृत्व में 12 सदस्यीय एक दल को कल बीजापुर जिले में प्रवेश करने से रोक दिया गया था। यह दल सिलगेर में आंदोलनरत आदिवासियों के साथ एकजुटता व्यक्त करने के लिए जा रहा था। सीबीए का आरोप है कि दल के सदस्यों को कोरोना नेगेटिव पाए जाने के बावजूद गैर-कानूनी तरीके से बीजापुर कलेक्टर के मौखिक आदेश पर उन्हें सिलगेर से 150 किमी. दूर नेलसनार थाने में रोका गया और पैदल आगे बढ़ने पर उनको गिरफ्तार करने के बजाए अर्धसैनिक बलों की बंदूक की नोंक पर उन्हें वापस रायपुर लौटने के लिए बाध्य किया गया।

प्रतिनिधिमंडल ने अपने ज्ञापन में पूर्ववर्ती भाजपा राज में आदिवासियों के साथ हुए पुष्ट अन्यायों और वर्तमान कांग्रेस शासन में कथित मुठभेड़ों के नाम पर हो रही हत्याओं को राज्य प्रायोजित हत्याएं करार देते हुए इन सभी घटनाओं की उच्चस्तरीय न्यायिक जांच की और दोषी अधिकारियों को उदाहरणीय दंड देने की मांग की है। उन्होंने कहा है कि एक लोकतांत्रिक सरकार और प्रशासन से आम जनता के शांतिपूर्ण जनवादी आंदोलनों से लोकतांत्रिक व्यवहार की अपेक्षा की जाती है, जिसका बस्तर में अभाव है और वह हर आदिवासी को नक्सली और हर आंदोलन को नक्सल प्रेरित मानता है। यह दृष्टिकोण लोकतंत्र के लिए खतरनाक है।

छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन ने सरकार से आग्रह किया है कि आदिवासियों का उनकी भूमि से विस्थापन रोका जाए तथा सरकार सिलगेर के आदिवासियों से बातचीत कर समस्या को सुलझाने की पहलकदमी करें। छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन ने बिना किसी अवरोध के अपने प्रतिनिधिमंडल को सिलगेर जाने की इजाजत देने का आग्रह भी मुख्यमंत्री से किया है। प्रतिनिधिमंडल ने राज्यपाल से भी आग्रह किया है कि आदिवासियों के अधिकारों की रक्षा के लिए वह संविधान प्रदत्त अपनी शक्तियों का उपयोग करें, ताकि निर्दोष आदिवासियों के मानवाधिकारों की रक्षा की जा सके और शासन-प्रशासन को आदिवासियों की समस्याओं के प्रति संवेदनशील बनाया जा सके। 

सीबीए प्रतिनिधिमंडल द्वारा मुख्यमंत्री को सौंपे गए ज्ञापन का प्रारूप निम्न है:

छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन

ज्ञापन : दिनांक 08.06.2021

प्रति, 

श्री भूपेश बघेल जी

मुख्यमंत्री,

छत्तीसगढ़ शासन, रायपुर

विषय : छत्तीसगढ़ सरकार की बस्तर के आदिवासियों के प्रति नीतियों के संबंध में छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के सुझाव

माननीय महोदय, 

छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन की ओर से हम आपका ध्यान निम्न तथ्यों की ओर आकर्षित करना चाहते हैं :

1. पूर्ववर्ती भाजपा राज के 15 सालों के कुशासन और उसकी आदिवासी विरोधी नीतियों के खिलाफ जनादेश के रूप में वर्तमान कांग्रेस सरकार अस्तित्व में आई है। भाजपा राज की नीतियों से अलगाव और सकारात्मक बदलाव कांग्रेस का चुनावी वादा था। बस्तर में टाटा के लिए अधिग्रहित भूमि की वापसी ने इस सरकार के प्रति गरीब आदिवासियों में विश्वास का संचार किया था और उसे आशा बंधी थी कि अब आगे आदिवासी समुदाय के हितों की रक्षा और प्राकृतिक संसाधनों पर उनके नैसर्गिक अधिकारों की रक्षा के उपाय के रूप में वनाधिकार कानून, 5वीं अनुसूची के प्रावधानों, पेसा कानून और अन्य संवैधानिक प्रावधानों को सख्ती से लागू किया जाएगा।

2. लेकिन पिछले डेढ़ साल के घटनाक्रमों से और इन घटनाओं के प्रति सरकार के रवैये और कार्य शैली से आदिवासी समुदाय और हमें भी निराशा हुई है और ऐसा लगता है कि कांग्रेस के राज में भी आदिवासियों के उत्पीड़न, दमन और उनके कानूनी और संवैधानिक अधिकारों के हनन की नीतियों को ही आगे बढ़ाया जा रहा है। इससे आदिवासी समुदायों में और उनके बीच लोकतांत्रिक ढंग से काम कर रहे संगठनों में भी सरकार के प्रति असंतोष पैदा हुआ है।

3. हाल ही में में कई फर्जी मुठभेड़ों की घटनाएं हुई हैं। अगर मई महीने का ही उदाहरण देखें तो 22 मई को जगरगुंडा थाना अन्तर्गत तौलेवर्ती गांव के एक व्यक्ति को नजदीक केम्प स्थापना के कुछ महीने बाद ही गांव में ही आम तोड़ते हुए व्यक्ति को गस्त में आई फोर्स ने दौड़ाकर गांव में ही गोली से मार दिया। इस घटना को किरन्दुल थाना दंतेवाड़ा जिले में हुई माओवादी से हुई मुठभेड़ बताया गया। दिनांक 30 मई नेलसनार थाना अंतर्गत नीलम गांव से में एक लगभग 18 वर्ष की सोती ही महिला को DRG फोर्स ने आकर अगुवा कर लिया। दूसरे दिन गीदम थाना अंतर्गत गुम्मलवार गांव में हुआ तथाकथित मुठभेड़ में मारी गई नक्सली महिला बताया गया। दुःखद रूप से ऐसी घटनाओं की निष्पक्ष जांच तो दूर थाने में  प्राथमिक शिकायत दर्ज करवाने के लिए भी संघर्ष करना पड़ता है।

एफआईआर या काउंटर एफआईआर (सुप्रीम कोर्ट के 2014 आदेशानुसार) तो होती ही नहीं है।

ऐसी अनेक जहां आदिवासियों को सरकार से न्याय की अपेक्षा थी, लेकिन उन्हें अन्याय ही मिला और आपके अधीन प्रशासन का रवैया बेहद उत्पीड़नकारी रहा है।

4. वर्ष 2011 में सुप्रीम कोर्ट ने SPO विशेष पुलिस अधिकारी की भर्ती को प्रतिबंधित किया था। जिसमें अनके कारणों में एक कारण यह भी था कि इन ग्रामीण युवाओं का दुरुपयोग किया जा रहा था। वर्तमान में DRG का भी कुछ इसी तरह का चरित्र है जिसमें उनके द्वारा की गई हत्याओं के अनेक उदाहरण है जिससे आदिवासी समाज के अंदर तनाव स्थिति है।

5. हमारे लिए ये घटनाएं और इसके प्रति सरकार का रूख बेहद चिंता का विषय है। इन घटनाओं के मूल सार में यही है कि वनाधिकारों की स्थापना किये बगैर आदिवासियों से उनकी भूमि छीनी जा रही है, ग्राम सभा की सर्वोच्चता को मान्यता नहीं दी जा रही है और किसी भी परियोजना को लागू करने से पहले ग्राम सभा की सहमति नहीं लेकर उनकी सहभागिता को सुनिश्चित नहीं किया जा रहा है या ग्राम सभा की सहमति के फर्जी दस्तावेजों को तैयार किया जा रहा है। इसके खिलाफ लोकतांत्रिक और शांतिपूर्ण आंदोलनों को बेरहमी से कुचला जा रहा है, गोलियां तक चलाई जा रही है और आंदोलनरत आदिवासियों पर झूठे मुकदमे लादे जा रहे हैं। सलवा जुडूम के समय की तरह उनकी राज्य प्रायोजित हत्याएं हो रही हैं।

6. इन घटनाओं से स्पष्ट है कि बस्तर में सरकार नियंत्रित प्रशासन नाम की कोई चीज नहीं रह गई है और बस्तर पूरी तरह एक पुलिस राज्य में बदल गया है। नागरिक प्रशासन भी पुलिस और अर्द्धसैनिक बलों के अधिकारियों के इशारे पर ही काम कर रहा है, जहां उनकी सोच और मौखिक आदेशों ने ही कानून की जगह ले ली है। यह स्थिति लोकतंत्र के लिए घातक है। छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन का यह मानना है कि आम जनता के वोटों और प्रचंड बहुमत से चुनी हुई सरकार को जनता के प्रति और लोकतांत्रिक आंदोलनों के प्रति संवेदनशील और उत्तरदायी होना चाहिए और प्रशासन का व्यवहार और उसकी कार्यशैली में सरकार का यह रूख झलके, इस बात को सुनिश्चित किया जाना चाहिए।

7. हम सिलगेर की घटनाओं से निपटने में प्रशासन की भूमिका की ओर आपका ध्यान आकर्षित करना चाहते है। आम जनता के बीच काम कर रहे तमाम संगठनों के जांच-पड़तालों की तथ्यपरक रिपोर्ट यही बताती है कि कोरोना काल में सिलगेर में आदिवासियों को उनकी भूमि से विस्थापित करके अर्ध सैनिक कैम्प को स्थापित नहीं किया जाता और इसकी स्थापना के लिए संवैधानिक प्रावधानों का पालन किया जाता, तो गोलीबारी की दुर्भाग्यपूर्ण घटना की नौबत ही नहीं आती। सैनिक कैम्प की स्थापना के संबंध में आदिवासी समुदाय की राय को महत्व दिया जाना चाहिए। सिलगेर के आदिवासी लोकतांत्रिक ढंग से शांतिपूर्ण आंदोलन कर रहे हैं। उन तक तमाम जन संगठनों के लोगों को पहुंचने से रोकने के लिए प्रशासन जो हथकंडे अपना रहा है, वह गैर-कानूनी है और इससे सरकार के प्रति लोगों का विश्वास कमजोर होता है।

8. 7 जून 2021 को छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के एक प्रतिनिधिमंडल को सिलगेर तक पहुंचने से रोकने के लिए बीजापुर जिले की सीमा स्थित नेलसनार पुलिस थाने से आगे बढ़ने नहीं दिया गया। इसके लिए पहले तहसीलदार भैरमगढ़ द्वारा कलेक्टर बीजापुर के मौखिक आदेश का हवाला दिया गया, जबकि लिखित आदेश दिए जाने से इंकार कर दिया गया। फिर कोरोना टेस्ट करने पर जोर दिया गया, जबकि प्रतिनिधिमंडल के सभी सदस्यों का 06 जून की रात को ही गीदम नाके पर एंटीजन टेस्ट प्रशासन करवा चुकी थी, सभी नेगेटिव थे और यह रिपोर्ट 72 घंटे तक वैध थी। लेकिन यह सरकारी रिपोर्ट पेश किए जाने के बावजूद बीजापुर प्रशासन ने इसे मानने से इंकार कर दिया। (आपके अवलोकन के लिए यह रिपोर्ट संलग्न है।) मकसद साफ था कि हमें बीजापुर तक भी नहीं जाने देना है। सामाजिक कार्यकर्ताओं के प्रति प्रशासन के इस गैर-कानूनी आचरण को स्वीकार करने के लिए हम तैयार नहीं हैं।

9. यह सामान्य प्रेक्षण की बात है कि पूरे बस्तर में लगभग सभी पुलिस थाने अर्ध सैनिक कैम्पों के अंदर आ गए हैं। इन कैम्पों से गुजर कर किसी भी नागरिक का पुलिस थानों तक पहुंचना और अपनी शिकायतें दर्ज कराना लगभग असंभव हो गया है। नागरिक प्रशासन के एक हिस्से के रूप में इन पुलिस थानों का अर्ध सैनिक बलों के कैम्पों का एक हिस्सा बन जाना लोकतंत्र को कमजोर करता है। जो लोग किसी भी तरह इन थानों तक पहुंच भी जाते हैं, उनकी लोगों की भी लिखित शिकायतें तक इन थानों में नहीं ली जाती और न ही कोई पावती दी जाती है, इन शिकायतों पर कोई न्यायसम्मत कार्यवाही होना तो दूर की बात है।

10. कांग्रेस पूर्ववर्ती भाजपा राज के समय आदिवासियों पर हुए दमन, उत्पीड़न, अत्याचार और जन संहार के खिलाफ खुलकर आगे आई थी। इससे आदिवासियों में यह आशा बंधी थी कि उन पर अत्याचार करने वाले जिम्मेदार अधिकारियों पर अब यह सरकार कार्यवाही करेगी। दुर्भाग्य की बात है कि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, राष्ट्रीय जनजाति आयोग और सीबीआई की रिपोर्टों में जिन अत्याचारों की पुष्टि की गई है, उसके लिए जिम्मेदार पुलिस अधिकारियों के खिलाफ भी इस सरकार ने आज तक कोई कार्यवाही नहीं की है। 

11. इन तथ्यों की रोशनी में छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन आपसे विनम्र आग्रह करता है कि:

(1) आंदोलन के प्रतिनिधिमंडल को 14 जून के बाद सिलगेर जाने की इजाजत दी जाए और सरकार यह सुनिश्चित करे कि प्रशासन हमारी यात्रा पर कोई रुकावट खड़ी न करे।

(2) प्रदेश में लोकतांत्रिक प्रक्रिया को बढ़ावा देने के लिए वनाधिकार कानून, पेसा कानून और 5वीं अनुसूची के प्रावधानों का पूर्ण पालन सुनिश्चित किया जाए और जन संगठनों व जन आंदोलनों के साथ एक लोकतांत्रिक सरकार और आम जनता के अधिकारों की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध एक नागरिक प्रशासन के रूप में व्यवहार सुनिश्चित किया जाए।

(3) पिछली भाजपा राज सहित कांग्रेस राज में आदिवासियों पर अत्याचार, दमन व जनसंहार की तमाम घटनाओं की उच्चस्तरीय न्यायिक जांच कराई जाए व दोषी अधिकारियों पर उदाहरणीय कार्यवाही की जाए।

(4) हर हालत में आदिवासियों का उनकी भूमि से विस्थापन रोका जाये तथा ऐसा किये जाने से पूर्व वनाधिकारों की मान्यता की प्रक्रिया और ग्रामसभा की अनिवार्य सहमति ली जाए।

(5) कोरोना की वास्तविक गंभीर बीमारी को नागरिक अधिकारों तथा शांतिपूर्ण लोकतांत्रिक आंदोलनों के दमन का हथियार न बनाया जाए।

(6) सभी पुलिस थानों को अर्ध सैनिक बलों के कैम्पों के बाहर लाकर आदिवासियों तक उनकी पहुंच, उनकी शिकायतों को दर्ज कर उन पर उचित कार्यवाही होना सुनिश्चित किया जाए।

(7) बढ़ते कोविड संकट के मद्देनजर आंदोलित आदिवासी अपने-अपने वापिस गांव लौट पाए इसके लिए जरूरी है कि सिलेगर केम्प जो कुछ ही दूरी पर तररेम में ही स्थित दो सीआरपीएफ कंपनी का एक्सटेंसन है उसे वापिस लिया जाए। केम्प के नाम पर आदिवासियों से छीनी गई जमीनों को उन्हें वापिस लौटाया जाए।

(8) इस मामले पर एक सर्वदलीय बैठक का भी आयोजन किया जाना चाहिए।

(छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति पर आधारित)

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