नई दिल्ली। बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में एक पीआईएल दायर की गयी है, जिसमें गाजा युद्ध में भारतीय सार्वजनिक और निजी क्षेत्र की कंपनियों द्वारा इजरायल को होने वाले रक्षा सामानों के निर्यात पर तत्काल रोक लगाने की मांग की गयी है। दर्जन भर से ज्यादा एकैडमीशियन, रिटायर्ड ब्यूरोक्रैट और एक्टिविस्टों की ओर से दायर इस याचिका को वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने दायर किया है।
याचिका में कहा गया है कि चूंकि गाजा में एक नरसंहार किया जा रहा है, इसलिए उसको अंजाम देने वाले इजरायल को हथियार और दूसरे साजो-सामान मुहैया कराना पूरी मानवता के खिलाफ है। याचिका में भारतीय कंपनियों को दिए गए हथियारों के निर्यात के लाइसेंस पर रोक लगाने की मांग की गयी है।
याचिका में इस सप्लाई को अंतरराष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन बताया गया है। इसके साथ ही कहा गया है कि यह जीवन के मूल अधिकारों और समानता के अधिकार के भी खिलाफ है।
याचिकाकर्ताओं में रिटायर्ड राजनयिक अशोक कुमार शर्मा, पूर्व आईएएस अफसर मीना गुप्ता, पूर्व भारतीय विदेश सेवा के अधिकारी देब मुखर्जी, रिटायर्ड प्रोफेसर अचिन विनायक, डेवलपमेंटल इकोनामिस्ट ज्यां द्रेज, संगीतकार और गायक टीएम कृष्णा, मानवाधिकार कार्यकर्ता डॉ. हर्ष मंदर, मजदूर किसान शक्ति संगठन के संस्थापक सदस्य निखिल डे और दिल्ली आधारित रिसर्च स्कॉलर विजयन मल्लूथरा जोसेफ शामिल हैं।
याचिकाकर्ताओं ने याचिका में उन कंपनियों का नाम भी लिखा है, जो इन सामानों की सप्लाई कर रही हैं। इसमें पब्लिक सेक्टर की कंपनी म्यूनिशंस इंडिया लिमिटेड इसके साथ ही दो प्राइवेट कंपनियां प्रीमियर एक्स्प्लोसिव, अडानी डिफेंस एंड एयरोस्पेस लिमिटेड समेत कुछ और कंपनियां हैं।
याचिका में कहा गया है कि भारत विभिन्न अंतरराष्ट्रीय कानूनों और समझौतों के प्रति बाध्य है, जो भारत को युद्ध अपराध के दोषी किसी देश को हथियारों की सप्लाई करने से रोकते हैं। क्योंकि किसी भी तरह का निर्यात अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार कानून का गंभीर उल्लंघन कर सकता है।
इस कोर्ट के ढेर सारे निर्णयों ने इस बात को सुनिश्चित किया है कि कैसे घरेलू कानूनों को इस तरह से व्याख्यायित किया जाए कि वो अंतरराष्ट्रीय मान्यताओं और मौजूद समझौतों का उल्लंघन न कर सकें।
याचिकाकर्ताओं ने कहा कि भारत जेनोसाइड कन्वेंशन का पालन करने के लिए बाध्य है।
इसलिए भारत इजरायल को किसी भी तरह का सैन्य हथियार या फिर सामान निर्यात नहीं कर सकता है। और ऐसे समय तो कतई नहीं, जब इस बात का गंभीर जोखिम हो कि इसका इस्तेमाल युद्ध अपराध के लिए किया जा सकता है।
दिसंबर, 2023 में गाजा में तत्काल युद्ध रोकने के यूएन के प्रस्ताव पर हस्ताक्षर करने के बाद अप्रैल, 2024 में इजरायल को हथियार सप्लाई पर पाबंदी लगाने और युद्ध विराम करने के प्रस्तावों की वोटिंग पर अनुपस्थित रहने के सरकार के फैसले ने देश की युद्ध को समर्थन देने की स्थिति ने गंभीर सवाल खड़े कर दिए।
जबकि इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस ये कहता है कि फिलीस्तीन में घुसकर इजरायल द्वारा की गयी सभी तरह की हत्याओं और बर्बादी पर तत्काल सैन्य रोक लगायी जानी चाहिए।
याचिका में दावा किया गया है कि इस बात के पुख्ता सबूत और सार्वजनिक तौर पर उसके रिकॉर्ड भी उपलब्ध हैं, जिनके मुताबिक युद्ध शुरू होने के बाद आईसीजे की इजरायली नरसंहार पर रूलिंग के बावजूद भारतीय अधिकारियों ने पब्लिक सेक्टर कंपनी समेत ढेर सारी कंपनियों को इजरायल को हथियार निर्यात करने का लाइसेंस दिया है।