Wednesday, April 24, 2024

झारखंड: स्कूलों में संथाल आदिवासियों के पर्वों के अवकाश में कटौती से संथाल समाज में रोष

झारखंड के विद्यालयों में वर्ष 2021 की अवकाश तालिका में संथाल आदिवासियों के पर्व के अवकाश में कटौती को लेकर संथाल परगना में व्यापक आक्रोश देखा जा रहा है। आज 17 जनवरी, 2021 को दुमका जिला में दो जगहों पर बैठक कर संथाल आदिवासियों ने अपने आक्रोश का इजहार किया। एक बैठक दुमका प्रखंड के गुजिसिमल गांव में ‘मारांग बुरु अखड़ा’ के बैनर तले ग्रामीणों की हुई, तो दूसरी बैठक ‘आदिवासी झारखंड प्राथमिक शिक्षक संघ’ के कार्यालय में दुमका, देवघर व जामताड़ा के संथाल आदिवासी शिक्षकों की हुई। संथाल आदिवासी शिक्षकों की बैठक में मुख्य तौर पर राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित शिक्षक सुनील कुमार बास्की भी उपस्थित थे।

मारांग बुरु अखड़ा और ग्रामीणों ने दुमका प्रखंड के गुजिसिमल गांव में झारखण्ड सरकार स्कूली शिक्षा एवं साक्षरता विभाग (प्राथमिक शिक्षा निदेशालय) के प्रारंभिक विद्यालयों के वर्ष 2021 की अवकाश तालिका को लेकर बैठक किया। अखड़ा और ग्रामीणों ने अवकाश तालिका पर विचार-विमर्श कर पाया कि संथाल आदिवासी के पर्व-त्यौहारों में या तो अवकाश कम कर दिए गए हैं या अवकाश ही ख़त्म कर दिया गया है, जो बहुत ही खेद की बात है। जहां एक ओर झारखण्ड सरकार ‘अबुवा दिसोम अबुवा राज (अपना देश अपना राज)’ का नारा लगा रही है, वहीं झारखण्ड राज्य में बहुसंख्यक संथाल आदिवासी के पर्व-त्यौहारों के अवकाश में कटौती करती है, जो नहीं चलेगा।

ग्रामीणों और अखड़ा ने कहा कि जब पूरे वर्ष का कुल अवकाश दिनों की संख्या पूर्व वर्ष की भांति 60 दिन ही है, तो फिर संथाल आदिवासियों के पर्व-त्यौहारों के अवकाश में कटौती क्यों? संथाल आदिवासियों का सोहराय जैसे महापर्व जिसमें पहले चार दिनों का अवकाश मिलता था, जिसे इस वर्ष घटा कर मात्र एक दिन कर दिया गया है। यह तय है कि आदिवासी ग्रामीण बच्चे सोहराय महापर्व में स्कूल नहीं जायेंगे, फिर सोहराय पर्व में स्कूल खोलकर क्या फायदा? ‘अबुवा दिसोम अबुवा राज’ वाली सरकार ने, संथाल आदिवासियों के पर्व-त्यौहार में जो पूर्व से ही अवकाश मिलते आये हैं, वह है माघ, बाहा, एरोक, दशाय, जानथाड़, हरियर का अवकाश, को ख़त्म कर दिया गया है, जो बहुत दुःख की बात है।

अखड़ा और ग्रामीणों का कहना है कि ‘अबुवा दिसोम अबुवा राज’ में कृषि का अवकाश नहीं देना बहुत दुःख की बात है, जबकि हम सभी जानते हैं कि भारत देश और झारखण्ड कृषि प्रधान है। अखड़ा और ग्रामीणों ने राजनीतिक पार्टियों द्वारा होर्डिंग/बैनर में संथाल आदिवासी के पर्व-त्यौहारों में शुभकामनायें नहीं दिए जाने पर भी नाराजगी व्यक्त किया है। अखड़ा और ग्रामीणों ने सरकार से मांग किया है कि सोहराय का अवकाश एक दिन की जगह चार दिनों का दिया जाए, संथाल आदिवासी के पर्व-त्यौहार माघ, बाहा, एरोक, दशाय, जानथाड़, हरियर में पुनः अवकाश शुरू किया जाए, कृषि अवकाश दिया जाए और सभी राजनीतिक पार्टियाँ अन्य समुदाय के साथ-साथ होर्डिंग/बैनर में संथाल आदिवासियों के पर्व-त्यौहारों में भी शुभकामनाये दें।

अखड़ा और ग्रामीणों का कहना है कि पर्व-त्यौहारों में अवकाश नहीं मिलने से संथाल समाज की सभ्यता, संस्कृति, रीति रिवाज खत्म होने के कगार में आ जायेगी। यह संथाल आदिवासी समाज के अस्तिव का सवाल है। अगर सरकार और राजनीतिक पार्टियां ऐसा नहीं करती हैं, तो संथाल समाज विवश होकर आन्दोलन करने के लिये मजबूर होगा। बैठक में कमली हेम्ब्रम, मलोती टुडु, सोना हेम्ब्रम, एलटिना हेम्ब्रम, होपोंटी हांसदा, अनिता किस्कु, ननी हांसदा, पारो मरांडी, बाहामुनि टुडु, बड़की टुडु, मंगल कोल, मंगल टुडु, मंगल मुर्मू, रसका मुर्मू, रसिक सोरेन, सिरिल सोरेन, सोम सोरेन, सुनिलाल सोरेन, सुरेंद्र सोरेन, सुरेश मुर्मू, मनोज मुर्मू, मनोज सोरेन, सागेन मुर्मू, बाबुधन मुर्मू, बाले हांसदा, चम्पा टुडु, जगदीश मुर्मू, सुरेन्द्र मुर्मू, होपना सोरेन के साथ काफी संख्या में ग्रामीण महिला और पुरुष उपस्थित थे।

‘आदिवासी झारखंड प्राथमिक शिक्षक संघ’ के आह्वान पर संघ भवन दुमका में नंदकिशोर बास्की की अध्यक्षता में बैठक आयोजित की गई, जिसमें निम्नलिखित मुख्य बिन्दुओं पर विचार-विमर्श कर निर्णय लिया गया:-

(1) प्राथमिक शिक्षा निदेशालय, रांची (झारखंड) द्वारा बनाई गई अवकाश तालिका में संथालों के पर्व त्यौहार जैसे माघ, बाहा, एरोह, हरियर, दशाय, जानथाड़ के उपलक्ष्य में अवकाश घोषित नहीं किया गया है और सोहराय पर्व में चार दिन की जगह मात्र 1 दिन का ही अवकाश दिया गया है, जो खेद का विषय है।

(2) घोषित अवकाश तालिका में शामिल करने हेतु इस सम्बन्ध में  मुख्यमंत्री, राज्यपाल, प्राथमिक शिक्षा निदेशालय, रांची को ज्ञापन दी जाएगी।

(3) इन बिंदु पर मुख्यमंत्री से दुमका में मिलने का निर्णय लिया गया है।

(4) भौगोलिक क्षेत्र के आधार पर झारखंड के लगभग 65% लोग कृषि पर आश्रित हैं एवं अधिकांश छात्र प्राथमिक / मध्य विद्यालयों में किसान के बच्चे ही अध्ययनरत हैं, जिसके कारण ग्रीष्म अवकाश के बदले कृषि अवकाश दिया जाए। वर्तमान में घोषित अवकाश तालिका का संशोधन किया जाए।

इस अवसर पर निम्नलिखित प्रमंडल के शिक्षकों ने भाग लिया। दुमका से रसिक बास्की, नंदकिशोर बास्की, नरेश मरांडी, सतेन्द्र मुर्मू, सनातन किस्कु, सुरेश चंद्र सोरेन, सुभाष चंद्र मुर्मू, मनोज किस्कु, सुखु हेम्ब्रम, जामताड़ा ज़िला से मुख्य रूप से राष्ट्रपति द्वारा सम्मनित शिक्षक सुनील कुमार बास्की, कृपा शंकर लाल टुडु, राजकिशोर मुर्मू एवं देवघर ज़िला से सुनील कुमार मुर्मू एवं सुजीत कुमार बास्की ने भाग लिया।

अंत मे उपस्थित सभी सदस्यों ने एक स्वर में कहा कि अबुवा राज में अबुवा छुट्टी को अवकाश तालिका में शामिल नहीं किया जाता है, तो आदिवासी झारखंड प्राथमिक शिक्षक संघ आंदोलन के लिये बाध्य होंगे।

(स्वतंत्र पत्रकार रूपेश कुमार सिंह की रिपोर्ट।)

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