एससी ने कहा, जानबूझ कर नहीं टाली जा रही कश्मीर मामले में सुनवाई

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उच्चतम न्यायालय भी कहीं न कहीं रक्षात्मक मोड में है। कश्मीर में धारा 370 हटाये जाने के बाद उच्चतम न्यायालय में जिस तरह विवादित मुद्दों, संचार सेवा ठप होने, मोबाइल और इंटरनेट सेवा बंद होने, मानवाधिकार हनन, बड़े विपक्षी नेताओं की नजरबंदी और घाटी में अघोषित कर्फ्यू की सुनवाई मामले में अब तक टाल मटोल किया जाता रहा है। उसकी अंग्रेजी मीडिया और अंतर्राष्ट्रीय मीडिया में तीखी आलोचना हुई है। अब इसका संज्ञान न्यायाधीशों ने लिया है।

सुनवाई के दौरान जजों की निजी जिंदगी को लेकर जस्टिस एनवी रमना ने प्रकारांतर से सफाई दी कि कोर्ट जानबूझ कर कश्मीर मुद्दे की सुनवाई को नहीं टाल रहा है। जस्टिस रमना ने कहा कि उनके साथी जज आज छुट्टी लेना चाहते थे, क्योंकि उन्हें निजी कार्य था, लेकिन मामले को देखते हुए मैंने आने को कहा। नहीं तो लोग कहेंगे कि कोर्ट सुनवाई करना नहीं चाहता। हम जजों की कोई निजी जिंदगी नहीं होती।

उच्चतम न्यायालय ने जम्मू-कश्मीर में लगे प्रतिबंध को लेकर केंद्र को फटकार लगाते हुए पूछा है कि यह प्रतिबंध कब तक जारी रहेगा? न्यायालय ने सरकार से पूछा कि अनुच्छेद 370 के अधिकांश प्राविधान खत्म करने के बाद घाटी में इंटरनेट सेवा अवरूद्ध करने समेत लगाए प्रतिबंधों को कब तक प्रभावी रखने की उसकी मंशा है? उच्चतम न्यायालय ने कहा कि प्राधिकारी राष्ट्रहित में पाबंदियां लगा सकते हैं, लेकिन समय-समय पर इनकी समीक्षा भी करनी होगी। न्यायालय घाटी में आवागमन और संचार व्यवस्था पर लगाई गई पाबंदियों के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा था।

जस्टिस एनवी रमना, जस्टिस आर सुभाष रेड्डी और जस्टिस बीआर गवई की तीन सदस्यीय खंडपीठ ने केंद्र और जम्मू कश्मीर प्रशासन की ओर से पेश अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल और सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता से कहा कि स्पष्ट जवाब के साथ आएं और इस मुद्दे से निबटने के दूसरे तरीके खोजें। मेहता ने पीठ से कहा कि पाबंदियों की रोजाना समीक्षा की जा रही है। करीब 99 प्रतिशत क्षेत्रों में कोई प्रतिबंध नहीं हैं। 

कश्मीर टाइम्स की कार्यकारी संपादक अनुराधा भसीन की ओर से अधिवक्ता वृन्दा ग्रोवर ने मेहता के कथन का प्रतिवाद किया और कहा कि घाटी में दो महीने से अधिक समय बीत जाने के बावजूद आज भी इंटरनेट सेवा ठप है। पीठ ने इस पर मेहता से कहा कि आपको स्पष्ट जवाब के साथ आना होगा। आपको इससे निबटने के दूसरे तरीके खोजने होंगे। आप कब तक इस तरह के प्रतिबंध चाहते हैं। मेहता ने कहा कि कोर्ट को कोई प्रतिकूल टिप्पणी नहीं करनी चाहिए।

पीठ ने कहा कि हो सकता है आपने राष्ट्र हित में प्रतिबंध लगाये हों, लेकिन समय-समय पर इनकी समीक्षा करनी होगी। सॉलिसिटर जनरल ने इंटरनेट सेवा पर प्रतिबंध के बारे में कहा कि इंटरनेट पर प्रतिबंध अब भी इसलिए जारी हैं क्योंकि सीमा-पार से इसके दुरुपयोग की आशंका है और घाटी में आतंकी हिंसा फैलाने में इसकी मदद ली जा सकती है। उन्होंने कहा कि हमें शुतुरमुर्ग जैसा रवैया नहीं अपनाना चाहिए। साथ ही उन्होंने 2016 में एक मुठभेड़ में खूंखार आंकवादी बुरहान वानी के मारे जाने के बाद घाटी में हुए विरोध की ओर पीठ का ध्यान आकर्षित किया।

मेहता ने कहा कि हालांकि जब कश्मीर में वानी नाम का आतंकवादी मारा गया और इंटरनेट सेवा करीब तीन महीने ठप रही तो पाबंदियों के खिलाफ कोई याचिका न्यायालय में दायर नहीं की गई थी। हालांकि ग्रोवर ने इस मामले में जम्मू-कश्मीर प्रशासन के हलफनामे का जिक्र किया और कहा कि उसने खुद कहा है कि 2008 से घाटी में आतंकी हिंसा में कमी आई है। पीठ ने कहा कि वह इस मामले में अब पांच नवंबर को आगे सुनवाई करेगा।

पीठ ने 16 अक्टूबर को जम्मू कश्मीर प्रशासन से कहा था कि वह उसके समक्ष उन आदेशों को रखे जिनके आधार पर राज्य में संचार प्रतिबंध लगाए गए थे। न्यायालय ने संचार प्रतिबंध लगाने के आदेश और अधिसूचना को लेकर प्रशासन से सवाल किए थे। पीठ  ने जम्मू और कश्मीर उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के मद्देनजर जम्मू और कश्मीर में लोगों द्वारा न्यायपालिका की पहुंच पर अतिरिक्त रिपोर्ट दायर करने की अनुमति भी दी है।

वरिष्ठ कांग्रेस नेता गुलाम नबी आज़ाद द्वारा दायर याचिका, जिसमें उन्होंने अदालत से अपने परिवार के सदस्यों और रिश्तेदारों से मिलने की अनुमति की मांग की थी, पर भी सुप्रीम कोर्ट में पांच नवंबर को सुनवाई की जाएगी। कश्मीर टाइम्स की कार्यकारी संपादक अनुराधा भसीन की दलील की भी सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में पांच नवंबर को की जाएगी। अपनी दलील में भसीन ने कहा था कि अनुच्छेद 370 हटने के बाद घाटी में पत्रकारों को कामकाज में बाधा आ रही है।

पीठ ने कहा कि कश्मीर में नाबालिग बच्चों को कथित रूप से हिरासत में रखने समेत विभिन्न मुद्दों को लेकर दायर याचिकाओं पर भी पांच नवंबर को सुनवाई की जाएगी। न्यायालय ने 16 अक्तूबर को जम्मू-कश्मीर प्रशासन से कहा था कि वह उसके समक्ष उन आदेशों को रखे, जिनके आधार पर राज्य में संचार प्रतिबंध लगाए गए थे। न्यायालय ने संचार प्रतिबंध लगाने के आदेश और अधिसूचना को लेकर प्रशासन से सवाल किए थे।

पीठ ने 2012 से 2018 के बीच अनुच्छेद 370 और 35 ए को चुनौती देने वाली सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिकाओं को भी पांच जजों की संविधान पीठ के समक्ष भेज दिया है, जो 14 नवंबर को अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को निरस्त करने और जम्मू- कश्मीर को दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित करने के राष्ट्रपति के आदेश को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करेगी।

दरअसल 16 अक्टूबर को श्रीनगर पुलिस द्वारा पूर्व मुख्यमंत्री फारूख अब्दुल्ला की बहन और बेटी समेत महिला कार्यकर्ताओं को हिरासत में लेने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने घाटी में अनुच्छेद 370 के तहत विशेष दर्जा हटाने के बाद कश्मीर में बंद और प्रतिबंध से संबंधित सभी आदेशों को दाखिल करने में केंद्र की विफलता पर सवाल उठाए थे। पीठ ने जम्मू-कश्मीर पर लगाए गए प्रतिबंधों के आदेशों को सुप्रीम कोर्ट में दाखिल न करने पर नाराज़गी जाहिर की थी।

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