सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब के मुख्यमंत्री रहे बेअंत सिंह की 1995 में हुई हत्या के मामले में दोषी ठहराए गए बलवंत सिंह राजोआना की मौत की सजा को बदलने से इनकार कर दिया। याचिका में मौत की सजा को आजीवन कारावास में बदलने की मांग की गई थी। हालांकि, कोर्ट ने राजोआना की दया याचिका पर सक्षम प्राधिकारियों को जरूरत के हिसाब से फैसला लेने का निर्देश दिया। बलवंत सिंह को 2007 में फांसी की सजा सुनाई गई थी।
अगस्त 1995 में पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री बेअंत सिंह की हत्या में उसकी भूमिका के लिए उसे दोषी ठहराया गया था। पंजाब पुलिस के पूर्व कांस्टेबल और आतंकी संगठन बब्बर खालसा से जुड़े बलवंत राजोआना की दया याचिका पर कोर्ट ने केंद्रीय गृह मंत्रालय से फैसला लेने को कहा है। सुप्रीम कोर्ट ने सक्षम अधिकारियों से कहा कि वे जब भी आवश्यक समझें निर्णय लें।
जस्टिस बीआर गवई, विक्रम नाथ और संजय करोल की तीन-न्यायाधीशों की पीठ दायर दया याचिका पर विचार करने में लंबी देरी के आधार पर अदालत द्वारा बलवंत राजोआना की मौत की सजा को कम करने की मांग वाली एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी। जस्टिस विक्रम नाथ ने फैसले के ऑपरेटिव भाग को पढ़ते हुए कहा, “हमने दया याचिका पर निर्णय टालने के लिए गृह मंत्रालय के रुख पर ध्यान दिया। यह वास्तव में वर्तमान के लिए इसे देने से इनकार करने के निर्णय के बराबर है। हमने सक्षम प्राधिकारी को निर्देश दिया कि जब भी वे आवश्यक समझे दया याचिका से निपटें और आगे का निर्णय लें।”
राजोआना को 1 अगस्त 2007 को चंडीगढ़ की एक विशेष सीबीआई अदालत ने मौत की सजा सुनाई थी, जिसे 2010 में हाईकोर्ट ने भी बरकरार रखा। इसके बाद साल 2012 में राजोआना की फांसी से पहले शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी ने राष्ट्रपति को दया याचिका भेज दी, जिसके बाद फांसी पर तो रोक लग गई, लेकिन दया याचिका पर फैसला नहीं हुआ।
31 अगस्त, 1995 को पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री बेअंत सिंह की हत्या हुई थी। हत्या का तरीका राजीव गांधी हत्याकांड से काफी मिलता था। बेअंत सिंह की हत्या का मास्टरमाइंड था खालिस्तान टाइगर फोर्स का कमांडर जगतार सिंह तारा। उसकी गिरफ़्तारी एक दूसरे केस के चलते 2005 में जाकर हो पाई। घटना के दिन बेअंत सिंह पंजाब-हरियाणा सचिवालय के बाहर अपनी कार में मौजूद थे। तभी एक खालिस्तानी सुसाइड बॉम्बर वहां पहुंचा और अपने आप को उड़ा लिया। इस घटना में मुख्यमंत्री समेत 18 लोगों की मौत हो गई। मानव बम बनकर धमाका करने वाले शख्स का नाम दिलावर सिंह था। वो पंजाब पुलिस का एक कर्मचारी था।
उस वक्त घटनास्थल के पास बलवंत सिंह राजोआना भी मौजूद था। उसे धमाके के तुरंत बाद गिरफ्तार किया गया था। बलवंत पर आरोप था कि उसे बैकअप के रूप में रखा गया था, कि अगर कहीं दिलावर से कोई चूक हुई या असली योजना में कोई दिक्कत आई तो भी बेअंत सिंह न बच पाएं। दिलावर सिंह की तरह बलवंत सिंह भी पंजाब पुलिस का सिपाही था। हत्या में संलिप्तता के लिए राजोआना को जुलाई 2007 में मौत की सजा सुनाई गई थी। वो पिछले 26 साल से जेल में है। 2012 से राजोआना की दया याचिका सरकार के पास लंबित है।
कांग्रेस नेता बेअंत सिंह 25 फ़रवरी, 1992 को पंजाब के मुख्यमंत्री बने थे। वो 23 वर्ष की उम्र में सेना में भर्ती हुए थे, जहां वो दो साल तक सेवाएं दीं। उसके बाद वो सामाजिक कार्य और राजनीति में आ गए और पांच बार पंजाब विधानसभा के लिए निर्वाचित हुए। 1986 से 1995 तक पंजाब प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष रहे। बेअंत सिंह को पंजाब में उग्रवाद खत्म करने की कोशिशों के चलते याद किया जाता है।
1980 के दशक से शुरू हुए हिंसक संघर्ष ने पंजाब के हालात बदतर कर दिए थे। ऐसे में बेअंत सिंह उग्रवाद का हिस्सा बने युवाओं को समझाने और उस हिंसक संघर्ष को कंट्रोल करने में काफी हद तक सफल रहे थे। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उनके सीएम बनने के बाद से अब तक पंजाब को एक बार भी राष्ट्रपति शासन की जरूरत नहीं पड़ी है, जबकि 1992 से पहले पंजाब में कई बार राष्ट्रपति शासन लगा था। उनकी हत्या खालिस्तानी मूवमेंट से जुड़ी आखिरी हाई प्रोफाइल हत्या मानी जाती है।
गौरतलब है कि राजोआना ने 26 साल की लंबी कैद के आधार पर अपनी मौत की सजा को उम्रकैद में बदलने की मांग की थी। शीर्ष कोर्ट ने पिछले साल दो मई को केंद्र से राजोआना की ओर से दायर कम्युटेशन याचिका पर दो महीने के भीतर फैसला करने को कहा था। हालांकि, केंद्र की तरफ से फैसला न होने पर पिछले साल 28 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने मामले को अपने हाथ में ले लिया था।
याचिकाकर्ता के वकील सीनियर एडवोकेट मुकुल रोहतगी ने श्रीहरण मुरुगन मामले में दिए गए फैसले पर भरोसा किया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दया याचिका की लंबी लंबितता मृत्युदंड को कम करने का आधार हो सकती है। पीठ ने इस साल की शुरुआत में मार्च में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
पुलिस से उग्रवादी बने राजोआना को मार्च 2012 में फांसी दी जानी थी, लेकिन उसकी फांसी पर तत्कालीन संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार ने रोक लगा दी थी। सिख धार्मिक निकाय शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक समिति ने उसकी ओर से क्षमादान अपील दायर की थी।
पटियाला की सेंट्रल जेल में बंद राजोआना पिछले 27 साल से जेल में बंद है। विशेष रूप से भारतीय न्यायिक प्रणाली के खुले उपहास के प्रदर्शन में मृत्युदंड के दोषी ने वकील लेने से इनकार कर दिया और राज्य द्वारा लगाए गए आरोपों के खिलाफ खुद का बचाव करने से इनकार कर दिया।
याचिकाकर्ता ने दावा किया कि केंद्र सरकार ने 2019 में घोषणा की कि वह राजोआना की मौत की सजा को उम्रकैद में बदल देगी। इसके अलावा गुरु नानक देव की 550 वीं जयंती को चिह्नित करने के लिए मानवीय इशारे के रूप में आठ सिख कैदियों की समय से पहले रिहाई और अन्य सजा को मंजूरी दे देगी। हालांकि, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने बाद में लोकसभा को सूचित किया कि राजोआना को मृत्युदंड से मुक्त नहीं किया गया है।
मौत की सजा को उम्रकैद में बदलने की वर्तमान रिट याचिका 2020 से सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। जस्टिस उदय उमेश ललित की अध्यक्षता वाली एक खंडपीठ ने पिछले साल मई में (जैसा कि वह तब थे) केंद्र से फैसला करने का आग्रह किया था।
अन्य दोषियों द्वारा दायर अपीलों के लंबित होने के बावजूद दो महीने के भीतर मौत की सजा पाने वाले दोषी की ओर से दया याचिका दायर की गई। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट द्वारा बार-बार खिंचाई किए जाने के बावजूद, केंद्र सरकार ने मौत की सजा को कम करने के लिए राजोआना की प्रार्थना का निस्तारण नहीं किया।
(जे.पी.सिंह वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के जानकार हैं)
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