Friday, March 29, 2024

ईडब्ल्यूएस आरक्षण के फैसले पर पुनर्विचार की मांग पर 9 मई को विचार करेगी संविधान पीठ

सामान्य वर्ग के आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) को शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश और नौकरियों में दस फीसदी आरक्षण को सही ठहराने वाले फैसले पर पुनर्विचार की मांग पर सुप्रीम कोर्ट 9 मई को विचार करेगा। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ मामले पर विचार करेगी। पीठ में अन्य न्यायाधीश दिनेश महेश्वरी, एस. रविंद्र भट, बेला एम. त्रिवेदी और जेबी पारदीवाला होंगे।

सुप्रीम कोर्ट में कई पुनर्विचार याचिकाएं लंबित हैं, जिनमें कोर्ट के सात नवंबर 2022 के फैसले पर पुनर्विचार की मांग की गई है। सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने सात नवंबर 2022 को तीन-दो के बहुमत से फैसला देते हुए आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को दस फीसदी आरक्षण देने का प्राविधान करने वाले संविधान के 103वें संशोधन को सही ठहराया था।

फैसला देने वाली पांच सदस्यीय पीठ में जस्टिस दिनेश महेश्वरी, जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी और जेबी पारदीवाला ने आर्थिक आधार पर आरक्षण को सही ठहराया था, जबकि तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश यूयू ललित और जस्टिस एस. रविंद्र भट ने बहुमत के फैसले से असहमति जताई थी।

सुप्रीम कोर्ट का नियम है कि पुनर्विचार याचिका पर वही पीठ चैंबर में सर्कुलेशन के जरिये मामले पर विचार करती है जिसने फैसला सुनाया होता है। इस मामले में चीफ जस्टिस ललित सेवानिवृत हो चुके हैं, इसलिए पुनर्विचार याचिका पर जस्टिस ललित की जगह चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ पीठ में शामिल होंगे।

सामान्य तौर पर पक्षकार पुनर्विचार याचिका के साथ एक अर्जी दाखिल कर पुनर्विचार याचिका पर खुली अदालत में सुनवाई करने और पक्ष रखने का मौका दिये जाने की मांग करते हैं। इस मामले में भी ये अर्जियां दाखिल की गई हैं। अगर कोर्ट को लगता है कि मामले पर खुली अदालत में सुनवाई करने की जरूरत है तो कोर्ट इसका आदेश दे सकता है।

7 नवंबर 2022 को बहुमत का फैसला देने वालों में जस्टिस महेश्वरी ने ईडब्लूएस आरक्षण को संविधान सम्मत घोषित करते हुए आर्थिक आरक्षण को चुनौती देने वाली सभी याचिकाएं खारिज कर दीं थीं। उन्होंने कहा था क‍ि आर्थिक आधार पर ईडब्लूएस को आरक्षण देना और उस आरक्षण से एससी एसटी और ओबीसी को बाहर रखने से संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन नहीं होता। आरक्षण सकारात्मक कार्रवाई का एक साधन है जिसके जरिए गैर बराबरी के लोगों को बराबरी पर लाने का लक्ष्य प्राप्त करना होता है।

उन्होंने कहा था कि ये एक उपकरण है जिसके जरिए न सिर्फ सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ों को समाज की मुख्य धारा में शामिल किया जा सकता है बल्कि अन्य किसी भी वर्ग को शामिल किया जा सकता है जिसे कमजोर वर्ग कहा जा सकता है। इस लिहाज से सिर्फ आर्थिक आधार पर आरक्षण दिया जाना न तो संविधान के महत्वपूर्ण तथ्यों के खिलाफ है और न ही ये संविधान के मूल ढांचे को नुकसान पहुंचाता है।

जस्टिस मेहेश्वरी ने यह भी कहा था कि आरक्षण की 50 फीसदी की अधिकतम सीमा का उल्लंघन होने के आधार पर भी इस आरक्षण को संविधान के मूल ढांचे के खिलाफ नहीं कहा जा सकता, क्योंकि 50 फीसदी की सीमा गैर-लचीली नहीं है और यह सीमा सिर्फ संविधान के अनुच्छेद 15(4), 15(5) और 16(4) के लिए है।

जस्टिस बेला एम त्रिवेदी ने जस्टिस महेश्वरी के फैसले से सहमति जताते हुए कहा था कि विधायिका लोगों की आवश्यकताओं को समझती है और वह लोगों के आर्थिक बहिष्करण से अवगत है। उन्होंने कहा था कि इस संविधान संशोधन के जरिए राज्य सरकारों को एससी-एसटी और ओबीसी से अलग अन्य के लिए विशेष प्रविधान कर सकारात्मक कार्रवाई का अधिकार दिया गया है।

उन्होंने कहा कि संविधान संशोधन में ईडब्ल्यूएस का एक अलग वर्ग के रूप में वर्गीकरण किया जाना एक उचित वर्गीकरण है। इसे बराबरी के सिद्धांत का उल्लंधन नहीं कहा जा सकता। उन्होंने फैसले में व्यापक जनहित को देखते हुए आरक्षण की अवधारणा पर फिर से विचार करने का भी सुझाव दिया था।

जस्टिस जेबी पारदीवाला ने भी ईडब्लूएस आरक्षण को संवैधानिक ठहराते हुए जस्टिस महेश्वरी और जस्टिस त्रिवेदी के फैसले से सहमति जताई थी। जस्टिस पारदीवाला ने यह भी कहा था कि निहित हितों के लिए आरक्षण अनंतकाल तक जारी नहीं रहना चाहिए। जस्टिस ललित और जस्टिस भट ने ईडब्ल्यूएस आरक्षण से एससी-एसटी और ओबीसी को बाहर रखे जाने को भेदभाव वाला माना था। तत्कालीन चीफ जस्टिस यूयू ललित ने कहा था कि वह जस्टिस भट से पूरी तरह सहमत हैं।

संविधान पीठ ने इस बात पर विचार किया कि क्या 50% की सीमा का उल्लंघन हुआ है। बाद में, न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी ने यह कहते हुए निष्कर्ष निकाला कि यह समानता संहिता और बुनियादी ढांचे का उल्लंघन नहीं करता है।

ईडब्ल्यूएस को नौकरियों और उच्च शिक्षा में आरक्षण प्रदान करने के लिए सरकार 2019 में ईडब्ल्यूएस कोटा लेकर आई। 10% आरक्षण उन लोगों पर लागू होता है जो अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए 50 प्रतिशत आरक्षण की मौजूदा योजना के तहत शामिल नहीं हैं।

संसद द्वारा पारित संविधान (103वां संशोधन) अधिनियम 2019 ईडब्ल्यूएस को आरक्षण प्रदान करने के लिए केंद्र और राज्य दोनों सरकारों को सक्षम बनाता है।

(जे.पी.सिंह वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के जानकार हैं।)

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

Related Articles