Friday, March 29, 2024

अडानी के शेयरों की उथल-पुथल पर पहली बार सेबी ने तोड़ी चुप्पी

हिंडनबर्ग की रिपोर्ट के कारण अडानी ग्रुप के शेयरों में जो गिरावट का दौर शुरू हुआ है, वो शुक्रवार को बाजार बंद होने तक जारी रहा। अब सोमवार को पता चलेगा कि अडानी ग्रुप के शेयरों में स्थिरता आएगी या नहीं। रिपोर्ट का असर अडानी समूह में इन्वेस्ट करने वाली कंपनियों के शेयरों पर भी पड़ता दिखा, जिसको लेकर विवाद भी हो रहा है। इसी बीच, भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) ने शनिवार को बयान जारी किया है। सेबी ने अपने बयान में कहा कि वो मार्केट के साथ किसी भी तरह का खिलवाड़ नहीं होने देंगे और इस मामले में हर जरुरी कदम उठाया जा रहा है।

सेबी ने कहा है कि वह बाजार के एक व्यवस्थित और कुशल कामकाज को सुनिश्चित करने के लिए लगा हुआ है। सेबी ने कहा कि मार्केट के सुचारु, पारदर्शी और कुशल तरीके से काम करने के लिए किसी खास शेयरों में उतार-चढ़ाव से निपटने के लिए निगरानी व्यवस्था मौजूद है। बयान में कहा गया है कि अगर किसी खास मामले में ऐसी जानकारी सामने आती है तो उसके खिलाफ उचित कार्रवाई की जाएगी। हालांकि सेबी ने बयान देते हुए सीधे तौर पर अदानी ग्रुप का नाम नहीं लिया है। सेबी से पहले रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने भी अदानी ग्रुप के संकट पर बयान जारी करते हुए कहा था कि बैंकिंग सेक्टर मजबूत और स्थिर बना हुआ है।

सेबी के इस बयान के बाद राजनीतिक प्रतिक्रियाएं भी सामने आ रही हैं। तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा ने ट्वीट कर कहा है कि ऐसा लगता है कि सिर्फ सेबी को पता है कि जून 2021 से क्या कार्रवाई की गई है। महुआ मोइत्रा ने कहा कि भारत के गौरव का प्रतिनिधित्व किसी व्यक्ति की संपत्ति से नहीं होना चाहिए और सेबी जैसे अधिकारियों को यह स्पष्ट करना चाहिए कि वे आर्थिक क्षेत्र में किस तरह की भूमिका निभाते हैं।

दरअसल अमेरिका की शॉर्ट-सेलिंग फर्म हिंडनबर्ग रिसर्च ने 24 जनवरी को अडानी समूह को लेकर अपने रिपोर्ट में कहा था कि अडानी ग्रुप की लिस्टेड सात कंपनियां ओवरवैल्यूड हैं। रिपोर्ट में अडानी ग्रुप पर हेरफेर और धोखाधड़ी के भी आरोप लगाए गए हैं। हालांकि अडानी ग्रुप ने 413 पन्नों की सफाई में अपने ऊपर लगाए गए सभी आरोपों को गलत बताया है।

अडानी समूह पर हिंडनबर्ग की रिपोर्ट सामने आने और समूह की कंपनियों के शेयरों में भारी उथल-पुथल के बावजूद बाजार नियामक सेबी इस मामले पर खामोश रही है। अब सवाल उठ रहे हैं कि क्या सेबी की कमेटी के सदस्य से रिश्तों के कारण ऐसा है।

अडानी समूह की कंपनियों पर हिंडनबर्ग की रिपोर्ट के सामने आने और उसके बाद समूह की कंपनियों के शेयरों में भारी उथल-पुथल के बावजूद बाजार रेगुलेटर सेबी (सिक्यूरिटीज एंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया) की संदिग्ध खामोशी को लेकर लगातार सवाल उठ रहे हैं। अब बोर्ड के एक अहम अधिकारी का नाम लेकर भी सवाल उठाए जा रहे हैं क्योंकि इस अधिकारी का अडानी समूह के चेयरमैन गौतम अडानी से नजदीकी रिश्ता है।

तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा ने शुक्रवार को एक ट्वीट के जरिए इस बात का खुलासा किया कि जाने-माने वकील साइरिल श्रॉफ अडानी समूह के चेयरमैन गौतम अडानी के समधी हैं। साइरिल श्रॉफ सेबी की कॉर्पोरेट गवर्नेंस एंड इनसाइडर ट्रेडिंग कमेटी के सदस्य हैं। उनकी बेटी परिधि श्रॉफ की शादी गौतम परिवार के बेटे करन अडानी से हुई है।

महुआ मोइत्रा ने सुझाव दिया है कि इस रिश्ते के सामने आने के बाद साइरिल श्रॉफ को अपने पद से इस्तीफा दे देना चाहिए ताकि अडानी समूह के मामले में अगर सेबी जांच करे तो उस पर कोई दबाव न हो। करन अडानी और परिधि श्रॉफ की शादी 2013 में गोवा में धूमधाम से हुई थी।

इतना ही नहीं, साइरिल श्रॉफ की कानूनी फर्म सिरिल अमरचंद मंगलदास (सीएएम) भी अडानी समूह के मुख्य वकील है। यह सीएएम था जो उन्हें हाल ही में विफल एफपीओ पर सलाह दे रहा था, और हिंडनबर्ग के खिलाफ संभावित कार्रवाई करने के लिए भी काम पर रखा था।

पिछले कुछ सालों में अडानी के खिलाफ कई रिपोर्ट्स छपी थीं। सुचेता दलाल से लेकर द वायर के कई पत्रकारों ने रेखांकित किया कि कैसे मॉरीशस की संदिग्ध संस्थाएं अपारदर्शी स्वामित्व के साथ अडानी के शेयरों में हेरफेर कर रही थीं। सेबी ने कभी भी इन दावों की जांच करने की जहमत नहीं उठाई।

2016 में, प्रतिष्ठित पत्रिका ‘द इकोनॉमिस्ट’ ने एक ‘क्रोनी कैपिटलिज्म इंडेक्स’ प्रकाशित किया था। इस इंडेक्स में किसी देश के ऐसे कारोबारी अरबपतियों की संपत्ति उस देश की कुल जीडीपी से मापी गई थी, जो क्रोनी सेक्टर से आते हैं। (क्रोनी सेक्टर वह सेक्टर होता है जिसमें सरकारी संरक्षण से कारोबार को बढ़ावा दिया जाता है)।

इस इंडेक्स में भारत की स्थिति बेहद खराब 9वें नंबर पर थी और 2021 में भारत के ऐसे अरबपतियों की संख्या जीडीपी के करीब 3 फीसदी के बराबर थी। लेकिन अब भारत इस इंडेक्स में सातवें पायदान पर है और ऐसे अरबपतियों की संख्या जीडीपी के 3 फीसदी से तीन गुना बढ़कर करीब 9 फीसदी हो गई है।

क्रोनी सेक्टर एक्सट्रैक्टिव्स सेक्टर, खनन (खनिज, कोयला, तेल आदि) और बुनियादी ढांचे में काम करने वाला होता है। इन क्षेत्रों में सरकार ही तय करती है कि किस कंपनी को इन कामों का ठेका दिया जाएगा।

अडानी समूह के शेयर लगातार गर्त में जा रहे हैं और बीते एक सप्ताह से लगभग हर दिन उनकी कीमतों पर लोअर सर्किट लग रहा है। (लोअर सर्किट वह कीमत होती है जब किसी कंपनी के शेयरों की कीमत लगभग 20 फीसदी या सेबी द्वारा तय प्रतिशत से कम हो जाती है)। ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि भारतीय निवेशकों और विदेशी बैंक और अमेरिकी फर्म हिंडनबर्ग रिसर्च की रिपोर्ट के बाद समूह को लेकर बेहद सतर्क हो गए हैं।

हिंडनबर्ग रिसर्च ने पिछली 24 जनवरी को एक बेहद विस्तृत रिपोर्ट जारी की जिसमें अडानी समूह के कारोबार करने के तौर-तरीकों पर गंभीर सवाल उठाए गए हैं। हिंडनबर्ग ने अडानी समूह के शेयरों पर शार्ट पोजीशन ली है। इसका अर्थ है कि अगर अडानी समूह कंपनियों के शेयरों के दाम गिरते हैं और इसके बाजार मूल्य और कर्ज लेने की क्षमता घटती है तो हिंडनबर्ग को इससे मोटा मुनाफा होगा।

दूसरी बात यह है कि कुछ कारणों से भारतीय म्युचुअल फंड अडानी समूह की कंपनियों में आमतौर पर निवेश करने से बचते रहे हैं। हालांकि सरकारी कंपनी एलआईसी ने नागरिकों के हजारों करोड़ रुपए अडानी समूह में लगाए हुए हैं। इस पैसे पर काफी कुछ मुनाफा भी हुआ है क्योंकि बीते सालों में अडानी समूह की कंपनियों के शेयरों के दाम तेजी से बढ़े थे, लेकिन अधिकतर में इसे नुकसान हुआ है।

दरअसल विदेशी (ऑफशोर) कंपनियां, जोकि पर्दे के पीछे रहकर काम करने वाली कंपनियों का एक समूह है, उनके पास अडानी समूह की कंपनियों के अधिकांश नॉन-प्रोमोटर शेयर (ऐसे शेयर जो कंपनी के प्रोमोटर या मालिकों के अलावा होते हैं) हैं। अगर ऐसा होना साबित होता है, तो इसका अर्थ होगा कि भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड या सेबी द्वारा इन कंपनियों को डीलिस्ट यानी शेयर बाजार से बाहर कर दिया जाएगा। अगर प्रोमोटर्स के पास अपनी कंपनी के अधिकांश शेयर होते हैं, तो वे सप्लाई को सख्ती से नियंत्रित करके शेयरों की कीमत में हेरफेर कर सकते हैं।

पिछले साल ब्लूमबर्ग ने एक रिपोर्ट में बताया था कि अडानी समूह की कंपनियों का साझा मूल्य 255 अरब डॉलर है, जबकि इन सभी कंपनियों (शेयर बाजार में मौजूद सात कंपनियां) की कुल साझा कमाई 2 अरब डॉलर से भी कम है। यह भी बताया था कि “अडानी ग्रीन एनर्जी लिमिटेड के शेयरों में बीते तीन साल के दौरान 4500 फीसदी का उछाल देखने को मिला।” इस तरह अडानी जोकि हाल तक दुनिया के दूसरे सबसे अमीर व्यक्ति थे, की कुल संपत्ति या दौलत इन कंपनियों के बाजार मूल्य के आधार पर आंकी गई न कि इन कंपनियों की असली कमाई के आधार पर।

अडानी समूह का कुल रेवेन्यू यानी राजस्व 2019 में 15,500 करोड़ रुपए, 2020 में 16,200 करोड़ रुपए, 2021 में 13,358 करोड़ रुपए और फिर 2022 में 26,800 करोड़ रुपए रहा। इनका कुल मुनाफा 2020 में 698 करोड़, 2021 में गिरकर 368 करोड़ और 2022 में बढ़कर 720 करोड़ रुपए रहा।

बिजनेस स्टैंडर्ड में प्रकाशित एक लेख के मुताबिक, “यह वह मुनाफा नहीं है जो इससे 300 या 600 गुना अधिक बाजार मूल्य वाली कंपनियों से अपेक्षित होता है, ये ऐसे आंकड़े हैं जो किसी ग्रोथ की संभावना वाले छोटे स्टार्टअप के तो हो सकते हैं, न कि बड़ी पूंजी वाली इंफ्रास्ट्रक्चर कंपनियों के।”

हिंडनबर्ग ने अपनी रिपोर्ट में जिन कंपनियों का जिक्र किया है, ऐसा लगता है कि उनकी स्थापना सिर्फ और सिर्फ अडानी समूह के शेयर ही खरीदने के लिए की गई है। रिपोर्ट में एक कंपनी इलारा का नाम है, जिसके पास अडानी समूह के कुल 3 अरब डॉलर के शेयर हैं, इसके पास एक फंड भी है जिसके कुल निवेश का 99 फीसदी अडानी में हैं।

प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) और केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) का भी एक ऐसे घोटाले को लेकर अभी तक कुछ अता-पता नहीं है जिसकी गूंज पूरी दुनिया में सुनाई दे रही है। जबकि, इन एजेंसियों को तो विपक्षी दलों, नागरिक समाज संगठनों (सिविल सोसायटी) और आम लोगों के खिलाफ तो मामूली बात पर भी तेजी के साथ पीछे लगा दिया जाता है।

संसद को बताया गया था कि अडानी की कंपनियों या इस फंड की प्रवर्तक निदेशालय यानी ईडी द्वारा कोई जांच नहीं की जा रही है। ईडी ही मनी लॉन्ड्रिंग के मामलों की जांच करती है। सरकार ने 2021 में कहा कि सरकार अडानी समूह में कुछ प्रक्रिया संबंधी मामलों को देख रही है और डीआरआई (डायरेक्टोरेट ऑफ रेवेन्यू इंटेलीजेंस) अडानी समूह की कुछ कंपनियों की जांच कर रहा है। लेकिन इस जांच में अभी तक कुछ निकलकर नहीं आया है।

यहां तक कि जब ब्लूमबर्ग न्यूज ने खबर दी कि संसद में सरकार ने इस फंड को चलाने वालों के जो नाम दिए उनके पते उसे नहीं मिल सके। ये नाम थे मार्कस बीट डेंजेल, एना लूजिया वॉन सेंजर बर्गर और एलेस्टर गगेनबूशी ईवन और योंका ईवन गूगेनबूशी आदि। इसकी तुलना जरा सरकार के राजनीतिक विरोधियों और उससे असहमति रखने वालों पर हो रही कार्रवाई से करके देखिए जिनके मामले में छापे, खाते फ्रीज करना और यहां तक कि गिरफ्तारियां तक शामिल हैं।

इसी तरह कॉर्पोरेट गवर्नेंस के मामले में भी हिंडनबर्ग की रिपोर्ट में कुछ गंभीर बातें सामने आई हैं। कहा गया है कि अडानी एंटरप्राइज एक लिस्टेड कंपनी है और हाल ही में इसने बाजार से फिर 20,000 करोड़ जुटाने के लिए एफपीओ पेश किया है। इस कंपनी का एक स्वतंत्र ऑडिटर है जिसका नाम है शाह धंधारिया, जिसके चार साझीदार यानी पार्टनर हैं, लेकिन इस ऑडिट कंपनी में सिर्फ 11 कर्मचारी हैं। हिंडनबर्ग का कहना है कि यही फर्म अडानी टोटल गैस का भी ऑडिट करती है।

फाइनेंशियल टाइम्स ने नवंबर 2020 में एक रिपोर्ट प्रकाशित की जिसका शीर्षक था, ‘मोदीज रॉकफेलर’- गौतम अडानी और भारत में सत्ता का केंद्रीकरण… इस रिपोर्ट में बताया गया था कि अडानी समूह को एयरपोर्ट प्रबंधन के क्षेत्र में कोई अनुभव नहीं था फिर भी 2018 में जिन 6 एयरपोर्ट का निजीकरण किया गया वह सभी अडानी समूह को दे दिए गए और इसके लिए नियमों में बदलाव किया गया।

इसके बाद देखते-देखते अडानी देश के सबसे बड़े प्राइवेट एयरपोर्ट ऑपरेटर बन गए। इसी तरह वह देश के सबसे बड़े पोर्ट (बंदरगाह) ऑपरेटर और ताप बिजली कोयला उत्पादक भी बन गए। इसके अलावा अडानी समूह की हिस्सेदारी बिजली प्रसारण (पॉवर ट्रांसमिशन) और गैस वितरण (डिस्ट्रीब्यूशन) बाजार में भी बढ़ती जा रही है।

अडानी के खाद्य तेल टैंकों के ध्वस्तीकरण की पुष्टि

इस बीच सुप्रीम कोर्ट ने अडानी जेवी के खाद्य तेल टैंकों को गिराने के आदेश को बरकरार रखा है। बुधवार को अपने आदेश में जस्टिस केएम जोसेफ, बीवी नागरत्ना और जेबी पर्दीवाला की बेंच ने 12,825 किलो लीटर की कुल क्षमता वाले पांच भंडारण टैंकों को गिराने के लिए छह महीने की अनुमति दी।

चूंकि एन्नोर एक्सप्रेसवे पर केटीवी भंडारण और पारगमन सुविधा चेन्नई बंदरगाह से 4 किमी दूर एक तटीय विनियमन क्षेत्र में विकसित की गई थी, इसलिए 2020 में एनजीटी ने कहा कि इसे कार्योत्तर मंजूरी के लिए भी नहीं माना जा सकता है। 2019 में, सीआरजेड मंजूरी के बिना निर्माण कार्य शुरू होने के बाद तटीय विनियमन क्षेत्र (सीआरजेड) अधिसूचना, 2011 में संशोधन करके परियोजना को कार्योत्तर मंजूरी प्रदान की गई थी।

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) के 2020 के एक फैसले को बरकरार रखते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने अडानी विल्मर लिमिटेड और केटीवी समूह के संयुक्त उद्यम- चेन्नई में तटीय क्षेत्र के नियमों का उल्लंघन करने के लिए टोंडियारपेट तट पर स्थित केटीवी ऑयल मिल्स और केटीवी हेल्थ फूड्स द्वारा संचालित एक खाद्य तेल भंडारण और ट्रांजिट टर्मिनल को ध्वस्त करने का आदेश दिया है ।

(जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के जानकार हैं।)

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