छत्तीसगढ़: काम के जोखिम और वेतन संबंधी परेशानियों से नाराज सुरक्षा बलों ने डाले हथियार

कांकेर। छत्तीसगढ़ में वामपंथी उग्रवाद से लोहा ले रहे सहायक आरक्षक परिवारों  और सरकार के बीच तनातनी की खबर के बीच बीजापुर जिले के मिरतुर थाने  में पदस्थ लगभग चालीस से अधिक जवानों ने नौकरी छोड़ने के लिए अपना हथियार थाने में जमा करा दिया था जिसके बाद पुलिस प्रशासन के हाथ पांव फूल गए थे। इसका नतीजा यह रहा कि सरकार को इनकी समस्याओं को हल करने के लिए कमेटी तक गठित करने का फैसला लेना पड़ा।

पूरा मामला रायपुर में सहायक आरक्षक परिवार के सदस्यों के साथ हुए दुर्व्यवहार से नाराजगी का है। करीब 1,200 सहायक आरक्षक बुधवार को अपने हथियार थानों में जमा कर पुलिस लाइन के सामने लोहा डोंगरी पार्क में धरने पर बैठ गए हैं। इनमें पुरुष-महिला दोनों शामिल हैं। उनका कहना है कि रायपुर में उनकी मांगों पर विचार करने की जगह स्वजन के साथ मारपीट की गई, जिसका वे विरोध करते हैं।

 राजधानी रायपुर में मंगलवार की देर शाम आंदोलन करने के लिए यहां बीजापुर से आए पुलिस के स्वजनों को पुलिस ने न केवल रायपुर के आउटर में ही रोका बल्कि उन्हें वहीं से लौटने पर विवश कर दिया और इस प्रक्रिया में उनके साथ दुर्व्यवहार भी किया। ऐसा आरोप पुलिस के रायपुर पहुंचे स्वजन लगा रहे हैं।

मामले की जानकारी मिलने पर एसपी कमलोचन कश्यप मौके पर पहुंचकर धरनारत सहायक आरक्षकों के साथ बातचीत की। उन्होंने कहा कि शासन स्तर पर इस विषय को लेकर जब कमेटी बनाई गई है तो निश्चित ही आपकी समस्याओं का समाधान होगा। धरने में शामिल सहायक आरक्षकों ने कहा कि वे कम वेतन में जान जोखिम में डालकर जंगलों में ड्यूटी करते हैं। शासन वेतन की बढ़ोत्तरी करे। समय पर पदोन्नति दे। समान वेतनमान दिया जाए। पुलिस लाइन के सामने जुटे नगर सैनिक, गोपनीय सैनिक व सहायक आरक्षकों ने कहा कि उनकी सभी मांगें पूरी की जाएं। बता दें कि सहायक आरक्षक 15,000, गोपनीय सैनिक 12,000 और नगर सैनिक 13,000 मासिक वेतन पर काम कर रहे हैं।

दरअसल, माओवादियों के खिलाफ आर-पार की लड़ाई लड़ने के लिए बस्तर के युवाओं को सर्वप्रथम तत्कालीन रमन सरकार में एसपीओ बनाया गया था। जिसमें माओवाद से तौबा करने वाले युवाओं को इससे जोड़ा गया था। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद एसपीओ अब सहायक आरक्षक बन गए हैं। साथ ही तत्कालीन सरकार में यही लोग आंदोलन कर सुर्खियों में भी आए थे, जिसमें सीधे तौर पर विपक्षी नेताओं को टारगेट किया गया था। इसमें रमन सरकार को भी कटघरे में खड़ा किया गया था। इस बीच रमन सरकार की छत्तीसगढ़ से विदाई हो गई, लेकिन अब भूपेश सरकार के लिए यह मामला एक बड़ी मुसीबत बनता जा रहा है।

(बस्तर से जनचौक संवाददाता तामेश्वर सिन्हा की रिपोर्ट।)

तामेश्वर सिन्हा
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