कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज में एक डॉक्टर के रेप और मर्डर केस में पूरा देश गुस्से में था। मीडिया उस गुस्से का भागीदार था। प्रदर्शन हुए, राजनीति हुई और आरोपी को सजा भी हो गई, लेकिन अयोध्या में दलित युवती के साथ हुए बलात्कार और हत्या मामले में बीजेपी नेताओं ने खामोशी ओढ़ ली है और गोदी मीडिया को गुंग मार गया है।
यूपी सरकार के साथ ही गोदी मीडिया भी मजबूर है! अगर हम पिछले कुछ वर्षों का आकलन करें तो पाते हैं कि बीजेपी और उसकी गोदी मीडिया तय करती है कि किस रेप-मर्डर केस को बड़ा बनाना है और किस पर चुप्पी साध लेनी है। क्राइम को लेकर बीजेपी और गोदी मीडिया का ये सेलेक्टिव रवैया शर्मनाक है, जो अपने माइलेज के हिसाब से काम करती है।
घटना पर एक नजर
पहले पूरे मामले पर एक नजर डालते हैं। अयोध्या के शहनवा इलाके में तकरीबन 22 साल की एक युवती 30 जनवरी की रात में घर से कथा सुनने को कहकर निकली और फिर नहीं लौटी। घर वाले उसे तलाशते रहे और फिर अगले दिन पुलिस को इसकी सूचना दी गई।
घर वालों का आरोप है कि पुलिस ने तलाशी में उनकी कोई मदद नहीं की। वह लोग खुद ही उसकी खोज करते रहे। एक फरवरी को नग्न अवस्था में युवती का शव एक सूखे नाले में मिला। उसके हाथ-पैर बंधे हुए थे। बताते हैं कि एक स्कूल में उसकी हत्या करने के बाद लाश को सूखे नाले में फेंक दिया गया था।

उसकी आंखों को बुरी तरह से नोचा गया था और शरीर पर भी कई जख्म थे। एक टांग भी बुरी तरह से मुड़ी-तुड़ी थी। शव की खोज में गांव वालों की मदद से घर वालों ने ही की। उन्होंने ही पुलिस को घटना की सूचना दी। घर वालों का कहना है कि अगर पुलिस ने मुस्तैदी दिखाई होती तो उनकी बेटी आज जिंदा होती। उनका आरोप है कि पुलिस उनसे ही कहती रही कि आप लोग तलाश करें। मिल जाए तो हमें सूचित कर देना।
अवधेश के रोने से एक्टिव हुई बीजेपी
युवती की बहुत ही वीभत्स तरीके से हत्या की गई थी। लाश को देखते हुए युवती की छोटी बहन और गांव की कुछ महिलाएं बेहोश हो गईं। घटना के बाद फैजाबाद के सांसद अवधेश प्रसाद इस मामले में बात करते-करते फफक कर रो दिए थे। उन्होंने घटना का जिक्र करते हुए कहा कि दलित बेटी की जिस वीभत्स तरीके से हत्या हुई है वह उससे आहत हैं। अगर वह दोषियों को सजा नहीं दिला सके तो अपने पद से इस्तीफा दे देंगे। साथ ही उन्होंने इस मुद्दे को संसद में भी उठाने की बात कही।
अवधेश प्रसाद के यूं एक्शन में आने से बीजेपी को डर लगा कि कहीं मिल्कीपुर चुनाव में सपा फायदा न उठा ले, इसी वजह से बीजेपी सरकार तुरंत एक्शन में आ गई। अयोध्या की मिल्कीपुर विधानसभा सीट पर पांच फरवरी को उपचुनाव होना है। उत्तर प्रदेश की बीजेपी सरकार को इस रेप-मर्डर केस में सियासी माइलेज की उम्मीद जगी।
उत्साह में सीएम ने अपराधी को बताया सपाई
पुलिस को आनन-फानन में सक्रिय किया गया ताकि इस घटना में मुस्लिम या सपा एंगल निकल सके और चुनाव को पोलराइज किया जा सके। खुद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ इतने उत्साह में थे कि उन्होंने दो फरवरी को अयोध्या में एक चुनावी सभा में यह एलान तक कर दिया कि इस घटना के पीछे किसी सपाई का ही हाथ निकलेगा। पुलिस ने तेजी दिखाते हुए घटना के तीन आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया है। इनमें दिग्विजय सिंह, हरिराम कोरी और विजय साहू के नाम शामिल हैं।

यह नाम सामने आने के बाद बीजेपी नेताओं की मंशा पर पानी फिर गया। न तो इसमें मुस्लिम एंगल ही निकल पाया और फिलहाल सपा से रिश्तों का भी कुछ पता नहीं चल सका है। अयोध्या के एक वरिष्ठ पत्रकार टिप्पणी करते हुए कहते हैं कि पुलिस पर दबाव है कि वह किसी भी हाल में आरोपियों की किसी सपा नेता के साथ तस्वीर को ढूंढकर निकालें, लेकिन ऐसा होता दिख नहीं रहा है।
घटना के खुलासे के बाद बीजेपी नेताओं ने चुप्पी साध ली है। गोदी मीडिया को भी इस मामले में कोई एंगल नजर नहीं आ रहा है, इसलिए न तो उन्होंने मंच सजाया है और न ही उनके ऐंकर चीख-चिल्ला रहे हैं। उन्हें दलित बेटी में देश की बेटी भी नजर नहीं आ रही है। न वह इस घटना को मिल्कीपुर चुनाव से जोड़कर बीजेपी प्रत्याशी को फायदा ही दिला पा रहे हैं। यही वजह है कि हर तरफ सन्नाटा है।
यह कोई आश्चर्य की बात भी नहीं है। पिछले 10-12 वर्षों में मीडिया का रुख कुछ ऐसा ही है। क्राइम की घटनाओं को लेकर उसका रुख खुले तौर पर सेलेक्टिव है। अगर कोई घटना बीजेपी के राज्य में होती है तो उसे इससे कोई फर्क पड़ता नहीं दिखता। अगर वही घटना गैर-बीजेपी राज्य में होती है तो न सिर्फ लाइव कवरेज दिखाई जाती है, बल्कि डिबेट और स्पेशल प्रोग्राम तक दो-तीन दिन तक दिखाए जाते हैं। इसकी एक बानगी कोलकाता में देखी जा चुकी है।
कायदे की बात यह है कि देश की किसी भी बेटी के साथ होने वाली ऐसी घटनाएं न सिर्फ देश पर बल्कि समाज के लिए भी कलंक है। सभी घटनाओं पर सरकार और मीडिया का रुख समान होना चाहिए। दूसरी बात यह है कि मीडिया को किसी भी सियासी पार्टी के एजेंडे को आगे न बढ़ाते हुए तटस्थ रुख रखना चाहिए। फिलहाल ऐसा हो नहीं रहा है और मीडिया का यह पतन अवाम देख-समझ रही है। एक दिन मीडिया की हैसियत प्रोपगंडा एजेंसी जैसी होना तय है।
(जनचौक की रिपोर्ट।)
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