Tuesday, April 16, 2024

छत्तीसगढ़: बीजापुर में पादरी यालम शंकर की निर्मम हत्या से उठे कई सवाल

रायपुर। विगत 17 मार्च को छत्तीसगढ़ के दक्षिणी जिले बीजापुर के मद्देड़ थाना क्षेत्र के अंगमपल्ली गांव के रहने वाले यालम शंकर की धारदार हथियार से हत्या कर दी गयी। 50 वर्ष के शंकर पूर्व में गांव के मुखिया और वर्तमान में एक ईसाई संस्था के पादरी के रूप में काम कर रहे थे। घटना को अंजाम उस समय दिया गया जब 17 मार्च की शाम लगभग 7 बजे सारा गांव होलिका दहन कर रहा था, तभी चेहरे पर नकाब पहने 6 व्यक्तियों के एक अज्ञात गिरोह ने उन्हें मार दिया। घटना बीजापुर जिला मुख्यालय से 40 किलोमीटर दूर मद्देड़ थाना क्षेत्र में घटी है।

प्रोग्रेसिव क्रिश्चियन अलायन्स (पीसीए) के बस्तर प्रतिनिधि साइमन दिगबाल तांडी ने घटना की भर्त्सना करते हुये प्रेस विज्ञप्ति में कहा कि शंकर गांव के मुखिया थे। इसी कारण कुछ साल पहले उनकी बहू पुष्पा यालम सरपंच के रूप में चुनी गई थीं। एक पादरी के रूप थे में वह गांव की भलाई और ईसाई समुदाय के हितैषी थे पादरी यालम शंकर अपने पीछे पत्नी, दो बेटे, बहू और तीन पोतियों को छोड़ गए हैं। उनकी हत्या गांव और आस पास के पूरे क्षेत्र में बड़ी क्षति के रूप में समझी जा रही है। हत्या के बाद गांव और आसपास के इलाके में भय और दहशत का माहौल बना हुआ है।

घटना की पृष्ठभूमि

पूरी घटना को विस्तार से समझने पर कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आते हैं। इस संस्था में शंकर, नागेन्द्र जेना के नेतृत्व में काम करने वाले पादरी थे। जेना के नेतृत्व में लगभग 30-35 पादरी इस अंचल में काम कर रहे हैं। शंकर गोंड जनजाति से थे तथा अपने समाज को बेहतर मानवीय दिशा देने के लिए हमेशा तत्पर रहते थे। वर्ष 2004 से वह उक्त संस्था से जुड़ गए थे।

यालम शंकर का शव औऱ बैठे लोग

बस्तर संभाग में ईसाई धर्म के अनुयायियों पर हिंसक हमलों की वारदातें विगत एक दशक में काफी बढ़ गयी हैं। सूत्रों के अनुसार बीजापुर जिले के भोपालपटनम् के आसपास के इलाके में हाल ही के वर्षों में इस तरह की ज्यादातर घटनाएं घटित हुई हैं।

अंगमपल्ली की घटना का विवरण देते हुए जेना कहते हैं कि यह गांव करीब 3-4 महीनों से ईसाई विरोध और सताव का केंद्र था। दिसंबर 8, 2021 से मद्देड़ अंचल में तनाव की स्थिति बनी रही। “हिंदू कट्टरपंथी हर दिन ईसाई विश्वासियों के ऊपर कुछ न कुछ अन्याय करते रहे। उदाहरण के लिये, कहीं धान कटाई में बाधा, तो कहीं खेती करने की मनाही, तो कहीं लोगों का अपने गांव घर से न निकलने देना, यह सब चलता रहा।” इन सब परिस्थितियों में यालम शंकर पीड़ित लोगों की सहायता करते, उन्हें पनाह देते एवं उनकी सहायता हेतु पुलिस प्रशासन से मदद दिलवाते रहे। उनके अंदर एक अद्भुत नेतृत्वकारी गुण था। इन सब वजहों से शंकर इन कट्टरपंथियों की नज़र में चुभ रहे थे। वे उनकी गतिविधियों पर बारीकी से नजर रखने लगे।

मृतक के पारिवारिक सूत्रों एवं अन्य मानवाधिकार कार्यकर्ताओं से इस बात की पुष्टि हुई है कि कुछ महीने पहले गांव में धर्म परिवर्तन को लेकर कट्टरपंथियों द्वारा ईसाई धर्म के अनुयायियों के साथ मारपीट की गयी। इस घटना की शिकायत शंकर ने मद्देड़ थाने में दर्ज करवायी थी। बातचीत के दौरान जेना ने दावा किया कि उन्हें भी असामाजिक कट्टरपंथियों द्वारा फ़ोन पर जान से मारने की धमकी मिली है। उन्हें आशंका है कि ऐसी घटना उनके या उनके अन्य कार्यकर्ताओं के साथ भी हो सकती है।

जेना आगे बताते हैं कि 14 मार्च सोमवार को शंकर ने उन्हें फ़ोन कर कहा कि “ऐसी खबर मिली है जिसमें दो बकरों की बलि चढ़ाने की बात हो रही है।” एक नाम स्वयं उनका था तो दूसरा एक अन्य सहकर्मी, वासम शंकर का। यानि जड़ को ही काट दिया जाए तो शेष धड़, तना, डाली और पत्ती खुद ब खुद नष्ट हो जाएगी।

मेरे ससुर को नकाबपोशों ने मार डाला: पुष्पा यालम

पूरी घटना की एकमात्र चश्मदीद गवाह यालम शंकर की बहू पुष्पा यालम के मुताबिक उनके ससुर को 5-6 नकाबपोशों ने मार डाला। पुष्पा 2013 से 2018 के बीच अंगमपल्ली पंचायत की सरपंच थीं। पूरी घटना की आपबीती को वह इस प्रकार बयान करती हैं,“17 मार्च को शाम के करीब 7 बजे थे। मेरे पति (गोपाल) भुवनेश्वर से लौटे नहीं थे। मेरे ससुर और सास खाना खा रहे थे। अचानक दरवाजे पर कुछ लोग आए और मेरे पति गोपाल को बुलाया। मैं बाहर गई और उनसे कहा कि वह घर पर नहीं हैं। वे चले गए। एक मिनट से भी कम समय में वे लौट आये और मेरे ससुर को बुलाने आए: शंकरभय्या… शंकरभय्या…।”

आगे उन्होंने बताया कि एक-दो को छोड़कर सभी पुरुष नकाबपोश थे। मेरे ससुर अपनी थाली लेकर खाते-खाते दरवाजे की ओर चले गए। उन्होंने कहा कि हम आप से कुछ बात करना चाहते हैं। मेरे ससुर ने सास को बुलाकर अपनी थाली दी। वह थाली मुझे थमाकर जल्दी से पड़ोस के घर की ओर दौड़ीं ताकि कुछ मदद ले सकें। मेरी सास को उन नकाबपोशों के हाव-भाव से कुछ गलत लगा।”

कथित पत्र जिसके जरिये घटना को माओवादियों से जोड़ने की हो रही है कोशिश

पुष्पा का कहना था किमैं थाली को रसोई में ले गयी और तभी पहली गोली की आवाज सुनी। मैं भागती हुई बाहर गयी तो पाया कि मेरे ससुर के हाथ बंधे हुए थे। वह अपने घुटनों पर थे। पहली गोली की पीड़ा में वे कराह रहे थे, पर शांत थे। उनके शरीर से खून निकल रहा था। उनमें से एक ने मेरे माथे पर दूसरी बंदूक तान दी और मुझे चुप रहने की चेतावनी दी, नहीं तो वे मुझे भी मार देंगे ऐसा बोला।”

पुष्पा यालम ने बताया कि तभी मेरे सामने एक ने पीछे से गोली मारी और वह गोली उनके पेट को चीर कर निकल गई। फिर नकाबपोशों में से एक ने उनके सीने के निचले हिस्से में चाकू मारा। वहीं दूसरे ने चाकू से उनका गला काट दिया। उसके बाद वह जमीन पर गिर पड़े और नकाबपोश लोग उनको लात मारकर चले गए।”

पोस्टमार्टम रिपोर्ट में इस बात की पुष्टि हुई कि उन्हें 2 गोली मारी गई और उन पर धारदार हथियार से तीन वार हुए।

क्या माओवादियों ने यालम शंकर को मारा?

कथित तौर पर माओवादियों ने जनवरी 2022 में एक पर्चा फेंका था, जिसमें धर्म परिवर्तन का विरोध किया गया था। हालांकि यह निश्चित नहीं है कि यह माओवादियों या हिंदू कट्टरपंथियों या किसी और की करतूत थी। आधिकारिक तौर पर अभी तक किसी भी माओवादी या अन्य किसी संगठन ने इसकी जिम्मेदारी नहीं ली है। जनवरी के पर्चों में 25-30 स्थानीय ईसाई पादरियों की सूची थी, जिनके बारे में दावा था कि वे जन-विरोधी और माओवादी-विरोधी हैं। यालम शंकर उस सूची में सबसे ऊपर थे।

इस घटना को अंजाम देने के बाद एक और तथाकथित माओवादी पर्चा घटनास्थल पर फेंका गया, जिसमें यालम शंकर पर कथित आरोप था कि वह पुलिस और सरकारी अधिकारियों के साथ संबंध बढ़ा रहे हैं और इस वजह से एक मुखबिर हैं। जिला एवं स्थानीय पुलिस अधिकारियों ने यालम शंकर के एक मुखबिर होने का खंडन किया है। पुलिस अधिकारियों का कहना है कि शंकर की हत्या माओवादियों ने की है। लेकिन इन दोनों बयानों में कोई अंतर संबंध नहीं दिखता।

गोंडवाना समाज का दबाव: गोपाल यालम

अपने पिता की हत्या के संदर्भ में उनके बड़े बेटे गोपाल यालम का कुछ और ही कहना है। घटना के समय वह ओडिशा में थे। मिली जानकारी का ब्यौरा देते हुए उसने बताया कि, उनके पिता उस वक्त खाना खा रहे थे। तभी वो लोग आये और पिता खाना खाते-खाते उठकर गए और पलक झपकते ही सब कुछ खत्म हो गया। वे लोग जान पहचान के नहीं थे। शायद दूसरे गांव के होंगे।

जब पूछा गया कि इस घटना को किसने अंजाम दिया होगा, तब वो बताने लगे कि गांव में ईसाई धर्म को मानने वालों के ऊपर कई प्रकार का सताव गोंडवाना समाज के नाम से चलता आ रहा है। वो लोग “घर वापसी” करवाने में लगे हुए हैं। बाहर से लोग आकर नाना प्रकार से नफरत की आंधी फैलाते रहते हैं। यह सब गोंडवाना समाज के नाम से चलाया जा रहा है। इनकी डर से 13-14 परिवार हिंदू धर्म में “घर वापसी” कर लिए। इस पूरे अभियान को कथित तौर पर गोंडवाना समाज के नाम से चलाया गया।

कई लोगों के साथ जब मार-पीट करते थे, तो उनको पिताजी पनाह देते थे, मदद करते थे। मद्देड़ वाले चर्च को यालम शंकर और अंगमपल्ली गांव के चर्च को गोपाल चलाते हैं। इस तरह के विरोध की वजह से कई आदिवासी परिवार वापस हिंदू बन गए। अभी वहां भयानक डर और आतंक का माहौल बना हुआ है।

क्या कभी माओवादियों की ओर से उनके पिता को कोई चेतावनी मिली या माओवादियों ने उन्हें बुलाया था? इसके जवाब में उन्होंने बताया कि ऐसा कभी कुछ नहीं हुआ। यह तो कट्टरपंथियों का ही काम है। दिसंबर के महीने में गांव में गोंडवाना समाज की घर वापसी के लिए बैठक हुई थी, जिसमें उनके पिता ने स्पष्ट शब्दों में मना कर दिया था, तब से माहौल और बिगड़ता गया। एक दूसरे के साथ कोई भी रिश्ता या जन्म, शादी, मृत्यु में नहीं आना जाना भी तय हुआ। यानी आपस में हुक्का पानी बंद।

यालम शंकर

इसके बाद खेती बाड़ी की मनाही भी हुई। स्वयं गोपाल को वनाधिकार क़ानून के तहत 2 एकड़ खेत मिला है। और दूसरी जगह अलग से 5 एकड़ में खेती कर रहे हैं। उस पर भी खेती करना वर्जित हो गया। इस तरह के अनेक दबाव की घटनाएं पाई गईं।

क्या कोई बड़ा षड्यंत्र है इस हत्या के पीछे?

प्रोग्रेसिव क्रिश्चियन अलायन्स के संयोजक अखिलेश एडगर का मानना है कि यदि पूरे घटनाक्रम को क्रमबद्ध तरीके से समझा जाए तो इसमें कई प्रकार की शंकायें और सवाल खड़े होते हैं। एडगर सवाल करते हैं कि “क्या यालम शंकर की हत्या माओवादियों ने की?” यदि हां तो कंधमाल दंगे के दौरान माओवादियों पर यह आरोप कैसे लगा कि ये लोग ईसाईयों की तरफ हैं और हिंदू फासीवाद के खिलाफ हैं? यदि माओवादी ईसाईयों के खिलाफ हैं

इस संदर्भ में आल इंडिया पीपुल्स फोरम (एआईपीएफ) के प्रदेश संयोजक ब्रिजेन्द्र तिवारी कहते हैं कि दक्षिणपंथी आदिवासी समाज को धर्म के नाम पर बांट रहे हैं और उसी का नतीजा है शंकर की हत्या।

इन परिस्थितियों में शक की सुई गोंडवाना समाज पर जाती है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या गोंडवाना समाज के लोगों ने इस घटना को अंजाम दिया? या फिर गोंडवाना समाज और माओवादियों के बीच कोई साठगांठ है? क्या गोंडवाना समाज संविधान विरोधी है और गोंड समाज के लोग किसी को भी मार सकते हैं?

पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल) के प्रदेश अध्यक्ष डिग्री प्रसाद चौहान ने इस वारदात की कड़े शब्दों में निंदा की और आरोपियों को गिरफ्तार करने की मांग की। वे कहते हैं, “यदि शंकर की हत्या की विभिन्न कड़ियों को जोड़कर समझें, तो ऐसा आभास होता है कि गोंडवाना समाज के नाम पर आरएसएस ने अपना एक अलग संगठन तैयार किया है और शांतिपूर्ण समाज को देवी-देवता के बहाने भड़काकर हिंदू राष्ट्र की रोटी सेक रहा है। ये ऐसे लोग हैं, जो संविधान को नहीं मानते और जाति आधारित धार्मिक व्यवस्था को ही अपना संविधान मानते हैं। बीजापुर जिले के घोर माओवादी इलाका होने के कारण सारे अपराधिक कृत्यों को माओवाद के नाम से करना भी आसान है। या फिर गोंडवाना समाज और माओवादियों के बीच कोई साठ गांठ है, तो उसे स्पष्ट करे। इन सभी बिन्दुओं पर पुलिस को जांच पड़ताल करनी चाहिए।”

स्थानीय पुलिस-प्रशासन ने मान लिया है कि यह करतूत माओवादियों की ही है। इस मान्यता से एक बात तो जरूर हुई है कि अब पुलिसकर्मियों को ज्यादा छानबीन नहीं करनी पड़ेगी। लेकिन इस प्रकरण से पुलिस ऐसे ही हाथ नहीं धो सकती है। संदेह के दायरे में कई लोग व संगठन हैं, जिसमें गांव वाले भी शामिल हैं।

पीसीए, एआईपीएफ और पीयूसीएल सहित कई धर्मनिरपेक्ष और जनवादी संगठनों ने छत्तीसगढ़ की बघेल सरकार और स्थानीय प्रशासन से अपील की है कि शंकर के हत्यारों को गिरफ्तार कर उनके खिलाफ कड़ी से कड़ी कार्रवाई की जाये। साथ ही अल्पसंख्यक ईसाई समुदाय विशेषकर उनके अगुआ लोगों की सुरक्षा की गारंटी की जाए। इसके साथ ही संविधान के मौलिक अधिकार में इंगित नागरिकों की धार्मिक स्वतंत्रता को सुनिश्चित किया जाये।

अब देखना यह है कि इस निर्मम हत्या की जांच पड़ताल कहां तक बढ़ेगी और शासन-प्रशासन किस नतीजे पर पहुँचता है। सवाल यह भी है कि छत्तीसगढ़ की बघेल सरकार किस तरह धार्मिक अल्पसंख्यकों को भयमुक्त और उनके मौलिक अधिकारों को सुरक्षित कर पाएगी।

(छत्तीसगढ़ से गोल्डी एम जॉर्ज की रिपोर्ट।)

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