शाहीन बाग़- एक गांधीवादी अनशन, साजिशें जिसके पीछे पड़ी हैं

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शाहीन बाग (नई दिल्ली)। क्रूर और जनविरोधी सत्ता के विरुद्ध शाहीन बाग़ एक मिसाल बन गया है। शाहीन बाग़ की ही तर्ज पर अब पूर्वी दिल्ली के सीलमपुर, जाफ़राबाद, जनता कॉलोनी और वेलकम की स्त्रियों ने भी सीएए-एनआरसी के खिलाफ़ अनिश्चितकालीन धरने का ऐलान किया है।
वहीं दिल्ली पुलिस भी दमन पर उतर आई है और ईदगाह तक जाने वाले सभी रास्तों पर आवाजाही बंद कर दी है और वहां जुटनेवाली स्त्रियों को धमका रहे हैं। अतः स्त्रियों ने जगह बदलकर अब सीलमपुर के पुराने सेंट्रल पार्क में धरने पर बैठने का ऐलान किया है।
शाहीन बाग़ का जेएनयू कनेक्शन
शाहीन बाग़ में लगातार 25 दिन से भूख हड़ताल पर बैठे जैनुलअबीदीन बताते हैं कि जेएनयू पर हुआ हमला आवाम का ध्यान जेएनयू पर लगाकार शाहीन बाग के शांतिपूर्ण धरने पर हमला करने के लिए एक साजिश के तहत किया गया था। हमें इसका अंदेशा पहले से था और हम सब किसी भी तरह के हमले को लेकर सतर्क थे। बता दें कि कल शाम जेएनयू में दक्षिणपंथी छात्र संगठन एबीवीपी के गुड़ों ने दिल्ली पुलिस और जेएनयू के सुरक्षा गार्ड की मौजूदगी मुँह पर मास्क लगाकर लोहे की सरिया और लाठी डंडों से हमला करके कई छात्रों और शिक्षकों को लहूलुहान कर दिया था।
इससे पहले 2 जनवरी को दोपहर के वक़्त शाहीन बाग़ विरोध प्रदर्शन से जुड़े जेएनयू के छात्रों आसिफ़ और सलीम ने अचानक से मंच पर कब्जा करके शाहीन बाग़ विरोध प्रदर्शन को खत्म करने की घोषणा कर दी थी।
25 दिन से लगातार चल रहे शाहीन बाग़ धरने को लेकर लगातार अफवाह फैलाई जा रही है। रोज शाम होते ही तरह तरह की आशंकाएं फैलने लगती हैं कि आज पुलिस हमला करेगी।
सुरक्षा के लिहाज से नाम न उजागर करने की शर्त पर एक व्यक्ति ने बताया कि- “कमिश्नर ने कहा कि हम 1 जनवरी को खाली करवाने आएंगे। फिर कहा कि नहीं आज नहीं खाली करवाएंगे वर्ना लोकल लोग कब्जा कर लेंगे। फिर उसने 2 तारीख को बताया कि उसे गृह-मंत्रालय से आदेश मिला है कि यदि आप शांतिपूर्ण ढंग से खाली करवा रहे हो तो उसमें हमारा क्या फायदा है।”

उसने बताया कि – “हमारा धरना प्रदर्शन काफी हाईलाइट हो चुका था और लोकल पोलिटिशियन इसे हाईजैक करना चाहते थे। लेकिन हम इसे कोई चेहरा नहीं देना चाहते थे। ये शाहीन बाग़ के लोगो का धरना था। इसीलिए हमने कोई कमेटी तक नहीं गठित की थी। लेकिन कमेटी न होने के चलते इसमें कोई भी आ सकता था इसका फायदा उठाकर इसमें वो लोग भी आ जाते थे। फिर वो लोग लगातार कोई न कोई ड्रामा करके डबाव बना रहे थे, वो अफवाहे फैला रहे थे, हम चाहते थे कि हमारा धरना पूरे प्रतिष्ठा के साथ खत्म हो जाए। धरने को बदनाम होने के बजाय हमने किनारे होना बेहतर समझा और हम साइड हो गए। उसमें बीजेपी के लोग भी शामिल हैं दाढ़ी टोपी लगाकर। वो पहले भी प्रोटेस्ट के खिलाफ नकरात्मक अफवाहें फैला रहे थे।”

शाहीन बाग़ की स्त्रियों ने किया था प्रेस कान्फ्रेंस
इसके बाद शाहीन बाग़ की स्त्रियों ने प्रेस कान्फ्रेंस करके शाहीन बाग धरने की स्थिति को स्पष्ट करते हुए बताया कि 2 धरना हमारा है और हम धरना जारी रखेंगे, तब तक जब तक कि सीएए वापिस नहीं होता। हम 26 जनवरी भी यहीं मनाएंगे और ज़रूरत पड़ी तो जेल भी भरेंगे। हम शहीद होने के लिए भी तैयार हैं। हम यहाँ 25 दिन से हाईवे पर बैठी हैं अपने छोटे छोटे बच्चों को लेकर। अगर सरकार और प्रशासन हमारा बेमियादी धरना खत्म करवाना चाहता है तो आकर हमसे बात करे।


स्त्रियों ने मंच से बताया कि आसिफ और शकील हमारे साथ जुड़े हुए थे लेकिन उन्होंने 2 तारीख को अचानक से मंच पर चढ़े और उन्होंने प्रोटेस्ट खत्म करने की घोषणा करके भाग गए। उस वक्त यहां लोग कम थे उन्होंने उसी का फायदा उठाया अगर वो दोपहर का वक्त नहीं रहा होता वो लोग यहां से बचकर न भाग पाते। हमारा धरना किसी भी तरह से प्रयोजित नहीं है। न कोई कमेटी है ये जनता का प्रदर्शन है यहां खाना-पानी दवाई सब आपसी सहयोग से पर्याप्त मात्रा में मिल जाता है। अतः हमें किसी भी तरह के फंड की कोई ज़रूरत नहीं है। हम लगातार मंच से भी कहते आए हैं कि हमें किसी भी तरह का फंड नहीं चाहिए जिसको कुछ मदद करनी भी है वो खाने पीने का सामान लाकर अपने हाथों से बाँट दे।
स्त्रियों ने आगे कहा कि – “हर प्रदर्शन में कुछ गलत लोग आ जाते हैं ज़रूरत है कि सही समय पर उनकी पहचान करके उन्हें किनारे कर दिया जाए।”
अपने विरोध प्रदर्शन को हजारों स्त्रियों ने जुमे के दिन रखा रोज़ा

2 जनवरी को हुए उठा-पटक के बाद जुमे के दिन शाहीन बाग़ की हजारों स्त्रियों ने रोज़ा रखा। और अल्लाह से अपने धरना प्रदर्शन के दौरान हुई भूल-चूक के लिए मुआफी की दर्ख्वास्त लगाई। शाम ढलने के बाद स्त्रियों ने बच्चों के साथ वहीं धरना स्थल पर ही अपना रोज़ा खत्म किया। शाहीन बाग़ की स्त्रियों के गाँधी का अनुसरण करते हुए धरने के दौरान अपने आत्म को पवित्र करने और धरने के दौरान हुए भूल-चूक के लिए पश्चाताप करना उनका अपने विरोध प्रदर्शन को गांधी के विशुद्ध अहिंसक विरोध धरना में प्रबल आस्था को दर्शाता है।

साहित्यकार और रंगकर्मी पहुँचे समर्थन में
शाहीन बाग में सावित्रीबाई फुले की जयंती पर नागरिकता क़ानून के विरोध में शाहीन बाग़ की स्त्रियों के समर्थन में साहित्याकार और रंगकर्मी जुटे। अनिता भारती, नूर ज़हीर, हेमलता माहिश्वर, मेधा, पूनम तुसमड़, आरती रानी प्रजापति, पूजा प्रजापति, तहसीन मज़हर, सुनीता, जया निगम। हम बेटे, शम्भू गुप्त, जीतेंद्र कुमार, सरोज कुमार, अरुण कुमार, हिम्मत सिंह, फिलिप क्रिस्टी, गुलाब, संजीव माथुर, अनुरन ने अपनी कविताएं पढ़ी। कार्यक्रम में नूर ज़हीर, मेधा और नासिरा भी अपनी उपस्थिति दर्ज़ कराई।

इसके बाद अरविंद गौड़ के अस्मिता थिएटर के लोगों ने पहले शमां बांधा और फिर कविताएं हुईं। कुछ-कुछ कहना-सुनना भी। अरविंद गौड़ और उनके अस्मिता थिएटर ने इन्वॉल्व प्रस्तुति दी। राजेश चन्द्र और सुशील मानव भी शाहीन बाग़ अपनी उपस्थिति दर्ज़ करवाई। कार्यक्रम का संचालन कथाकार और स्त्रीवादी पत्रिका स्त्रीकाल के संपादक संजीव चंदन ने की।

25 दिन से भूख हड़ताल पर बैठे जैनुलअबीदीन की तबीयत बिगड़ी

25 दिन से भूख हड़ताल पर बैठे जैनुलअबीदीन की तबीयत बिगड़ रही है। 3-4 जनवरी को उनकी तबीयत अचानक बिगड़ गई। मेडिकल कैंम्प के चिकित्सकों ने उन्हें डिप लगाकार ज़रूरी ग्लूकोज उनके शरीर में पहुँचाई। जैनुलअबीदीन से मिलने प्रशासन की ओर से कोई नहीं आया। खुदा न करे अगर उन्हें कुछ होता है तो उसका जिम्मेदार कौन होगा? आखिर प्रशासन में संवेदनहीनता इस सरकार के समय ही क्यों है? ऐसा तो नहीं है कि प्रशासन को जैनुलअबीदीन के आमरण भूख हड़ताल की कोई जानकारी ही नहीं है।

शाहीन बाग़ के बच्चों के हाथ में चंद्रशेखर आजाद आजाद की तस्वीरें
20 दिसंबर को बाबा साहेब भीम राव अंबेडकर की तस्वीर लेकर जामा मस्जिद में लाखों लोगो के बीच खड़े चंद्रशेखर आजाद की आईकॉनिक तस्वीर भला कौन भूल सकता है। जिसकी चर्चा अमेरिका और यूरोप के अख़बारों तक में की हुई थी और फिर उन्हें दिल्ली गेट पर हिंसा के आरोप में 15 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया था।

इसके पीछे राजनीतिक उद्देश्य ये था कि चंद्रशेखर आजाद को जितना संभव हो उतना इस सीएए-एनआरसी विरोध आंदोलन से दूर रखा जाए। क्योंकि चंद्रशेखर आजाद के इस आंदोलन में ज़्यादा दिन रहने से दलित-मुस्लिम एक्य बनता जा रहा था जिससे आरएसएस भाजपा के मुस्लिम-विरोधी हिंदू राजनीति को बड़ा नुकसान होता। दूसरे मीडिया और सरकार जो लगातार एनआरसी-सीएए के विरोध को एक समुदाय (मुस्लिम) का विरोध बताकर इसका सांप्रदायीकरण कर रहे थे उसे भी झटका लगता। लेकिन शाहीन बाग़ में अंबेडकर के बाद सबसे ज़्यादा जो तस्वीरें दिख रही हैं वो चंद्रशेखर आज़ाद की तस्वीरें हैं। बच्चे बच्चे के हाथ में चंद्रशेखर आजाद की तस्वीरें हैं। इसके अलावा प्रदर्शन के दैरान लगातार चंद्रशेखर आजाद की रिहाई की माँगे भी उठती हैं। इसका बहुत सीधा सा अर्थ है कि मुस्लिम समुदाय चंद्रशेखर आजाद को अपना नेता मानती करती हैं।

सिख समुदाय आया शाहीन बाग़ के समर्थन में
सिख समुदाय भी एनआरसी-सीएए के खिलाफ़ विरोध में शाहीन बाग की महिलाओं का समर्थन करने दो दर्जन लोगों के साथ पहुंचा। मनमोहन जी ने कहा- “ये सरकार सिख विरोधी भी है। लेकिन अभी अपने को सिख हितैषी बता रही है।

हम जानते हैं 1984 के सिख जनसंहार में यही लोग सिखों का कत्ल-ए-आम मचाए हुए थे। जो लोग आज मुस्लिम समुदाय पर निशाना साध रहे हैं, उन्हें विभाजनकारी और आतंकी बता रहे हैं, उस समय ये सिखों को आतंकी और विभाजनवादी कहा कहते थे। इनका निशाना सिर्फ़ मुसलमानों पर ही नहीं है, एनआरसी सिखों और दलितों के भी खिलाफ़ है। हमें इनसे मिलकर मुकाबला करना होगा। आज हम 25 लोग आपसे मिलने आएं है ज़रूरत हुई तो 25 हजार भी आएंगे।”
जामिया यूनिवर्सिटी से शाहीन बाग़ तक कैंडिल मार्च

जामिया के छात्रों और नागरिक समाज के करीब 10 हजार लोगो ने जुमे के दिन जामिया से शाहीन बाग़ तक करीब 4 किलोमीटर की दूरी तय करके शांतिपूर्ण तरीके से कैंडिल मॉर्च निकाला। कैंडिल मार्च में हर वर्ग आयु के स्त्री-पुरुष-बच्चे शामिल थे।

जलती मोमबत्तियाँ लिए पैदल चलते छोटे छोटे बच्चे तो कैंडल मॉर्च की जान थे। वो लगातार सरकार से सीएए-एनआरपी वापिस लो की माँग कर रहे थे। कैंडिल मॉर्च अपने गंतव्य यानि शाहीन बाग़ के धरना स्थल पर पहुँचकर खत्म हुई। शाहीन बाग़ के लोगों ने आगे बढ़कर कैंडिल मार्च निकालने वालों का इस्तकबाल किया।
(सुशील मानव पत्रकार और लेखक हैं।)

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