Tuesday, April 16, 2024

एसआईटी जांचः विकास दुबे को संरक्षण दे रहे थे 75 अधिकारी-कर्मचारी

कानपुर के जघन्य बिकरू कांड के पीछे कुख्यात अपराधी विकास दुबे का साथ न केवल पुलिस अधिकारी देते थे, बल्कि प्रशासन, राजस्व, खाद्य एवं रसद तथा अन्य विभागों के अधिकारियों के स्तर से भी विकास दुबे को संरक्षण मिलता था। यह खुलासा अपर मुख्य सचिव संजय आर भूसरेड्डी की अध्यक्षता में गठित एसआईटी की रिपोर्ट में हुआ है, जिसे एसआईटी ने बुधवार को उत्तर प्रदेश शासन को सौंप दिया है। बिकरू कांड की जांच रिपोर्ट सौंपे जाने के बाद शासन प्रशासन में हड़कंप मच गया है।

जांच रिपोर्ट में 75 अधिकारियों और कर्मचारियों के खिलाफ कार्रवाई की सिफारिश की गई है। जांच रिपोर्ट में पुलिस की गंभीर चूक उजागर की गई है। रिपोर्ट पर शासन में मंथन शुरू हो गया है। दोषी पाए गए अधिकारियों और कर्मचारियों में से कुछ पर पहले ही कार्रवाई हो चुकी है। शेष पर जल्द कार्रवाई होने की संभावना है। जांच रिपोर्ट के करीब 700 पन्ने मुख्य हैं, जिनमें दोषी पाए गए अधिकारियों और कर्मियों की भूमिका के अलावा करीब 36 संस्तुतियां शामिल हैं।

एसआईटी ने काफी विस्तृत रिपोर्ट तैयार की है, जो लगभग 3200 पृष्ठों की है। एसआईटी को कुल नौ बिंदुओं पर जांच करके अपनी रिपोर्ट देने को कहा गया था। जिन 75 अधिकारियों और कर्मचारियों के खिलाफ कार्रवाई की सिफारिश की गई है, उनमें से 60 फीसदी पुलिस विभाग के ही हैं। शेष 40 फीसदी प्रशासन, राजस्व, खाद्य एवं रसद तथा अन्य विभागों के हैं।

रिपोर्ट में प्रशासन और राजस्व विभाग के अधिकारियों के स्तर से भी कुख्यात विकास दुबे को संरक्षण दिए जाने की बात कही गई है। दागियों को शस्त्र लाइसेंस, जमीनों की खरीद-फरोख्त और आपराधिक गतिविधियों पर प्रभावी अंकुश न लगाए जाने के कई मामलों को रिपोर्ट में शामिल किया गया है।

गत दो जुलाई को बिकरू कांड में आठ पुलिसकर्मियों के मारे जाने और 10 जुलाई को मुख्य अभियुक्त गैंगस्टर विकास दुबे के पुलिस एनकाउंटर में मारे जाने के बाद 11 जुलाई को एसआईटी का गठन किया गया था। इसमें एडीजी एचआर शर्मा और डीआईजी जे रवींद्र गौड़ सदस्य बनाए गए थे। एसआईटी को पहले 31 जुलाई तक अपनी रिपोर्ट देने को कहा गया था, जिसे बाद में बढ़ाकर 30 अगस्त कर दिया गया।

हालांकि जांच का दायरा व्यापक होने के कारण एसआईटी के अनुरोध पर फिर समयसीमा बढ़ाई गई। अंतत: लगभग तीन महीने से भी ज्यादा समय लेने के बाद एसआईटी ने अपनी रिपोर्ट पेश की। इस बीच एसआईटी ने विकास दुबे और उसके गैंग के सहयोगियों की संपत्तियों और उसके सहयोगी रहे सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों के बारे भी दस्तावेजी साक्ष्य जुटाए गए, साथ ही घटना से जुड़े विभिन्न बिन्दुओं के साथ ही गहन अभिलेखीय एवं स्थलीय जांच भी की गई।

विकास दुबे और उसके गुर्गों को लेकर उठने वाले सभी सवालों का जवाब भी एसआईटी जांच में देने की कोशिश की गई है, जिनमें विकास दुबे पर जो भी मामले चल रहे हैं, उनमें अब तक क्या कार्रवाई हुई? विकास के साथियों को सजा दिलाने के लिए जरूरी कार्रवाई की गई या नहीं? जमानत रद्द कराने के लिए क्या कार्रवाई की गई? विकास दुबे के खिलाफ कितनी शिकायतें आईं? क्या चौबेपुर थाना अध्यक्ष और जिले के अन्य अधिकारियों ने उनकी जांच की? विकास दुबे और उसके साथियों पर गैंगस्टर एक्ट, गुंडा एक्ट, एनएसए के तहत क्या कार्रवाई की गई? कार्रवाई करने में की गई लापरवाही की भी जांच की है?

इन सबके अलावा विकास दुबे और उसके साथियों के पिछले एक साल में कॉल डिटेल रिपोर्ट (सीडीआर) की जांच करना, विकास दुबे के संपर्क में आने वाले पुलिसकर्मियों की मिलीभगत के सबूत मिलने पर उन पर कड़ी कार्रवाई, घटना के दिन पुलिस को आरोपियों के पास हथियारों की जानकारी न होना, इसमें हुई लापरवाही की जांच करना, थाने को भी इसकी जानकारी नहीं थी, इसकी भी जांच करना आदि बिंदुओं को भी शामिल किया गया है।

एसआईटी जांच रिपोर्ट में कई बड़े अफसरों पर कार्रवाई की सिफारिश की गई है। इसमें कानपुर में रह चुके चार आईपीएस (दो एसएसपी) और पीपीएस अफसर के अलावा जिला पूर्ति अधिकारी, तहसीलदार से लेकर पुलिस प्रशासन के कई अफसर शामिल हैं। जय बाजपेई जिन-जिन अफसरों का खास रहा, उनको भी एसआईटी ने दोषी माना है। चार आईपीएस में वो आईपीएस भी शामिल हैं जो यहां एसपी पश्चिम रहे हैं और वर्तमान में एक जिले के एसएसपी हैं।

एसआईटी ने सवाल उठाया है कि आखिर जब विकास पर पांच दर्जन से अधिक संगीन मामले दर्ज थे, तो उसको टॉप- 10 में शामिल क्यों नहीं किया गया था। जमानत खारिज कराने के लिए पुलिस ने कार्रवाई क्यों नहीं की। इसमें दो पूर्व एसएसपी को जिम्मेदार बनाया गया है। तत्कालीन क्षेत्राधिकारी और थानेदारों के भी इसमें नाम हैं। इसके अलावा एएसपी औरैया की जांच रिपोर्ट पर जय बाजपेई पर कार्रवाई न करने पर एक अन्य पूर्व एसएसपी की संलिप्तता मानी गई है।

एसआईटी ने शहीद सीओ देवेंद्र मिश्र का एक पत्र को भी जांच में शामिल किया है। साथ ही ये भी तथ्य है कि आठ बार सीओ की सिफारिश को नजरअंदाज कर एसओ को बचाया गया। इसमें पूर्व एसएसपी को दोषी बनाया गया है, जिनकी वर्तमान में मुरादबाद पीएसी में तैनाती है। विकास पर दर्ज मुकदमे में से रंगदारी की धारा हटाने में भी इन्हीं एसएसपी को दोषी बताया गया है। दबिश में लापरवाही बरतने में तत्कालीन एसएसपी और वर्तमान में झांसी एसएसपी की भूमिका मानी गई है।

विकास दुबे, जय बाजपेई समेत उसके कई गुर्गों पर केस दर्ज होने के बावजूद लाइसेंसी असलहे थे। इसको एसआईटी ने बेहद गंभीरता से लिया है। इसमें थानेदार, एलआईयू और राजस्व के अफसरों को दोषी बनाया गया है, जिन्होंने इसमें सत्यापन की रिपोर्ट अपराधियों के पक्ष में लगाई।

इसके अलावा जिला पूर्ति अधिकारी की बड़ी भूमिका जांच में सामने आई है। उसकी मिलीभगत से ही विकास दुबे मनमाफिक राशन कोटे चलाता था। जमीनों पर कब्जे के मामले में तहसीलदार और लेखपाल दोषी पाए गए हैं। पिछले पांच से सात साल के भीतर जो तहसीलदार, लेखपाल और जिला पूर्ति अधिकारी रहे हैं वो सभी जांच के दायरे में आए हैं और उनकी भूमिका मिली है।

विकास दुबे कानपुर का एक हिस्ट्रीशीटर था, जिसे पकड़ने के लिए कानपुर पुलिस की एक टीम उसके गांव पहुंची थी, लेकिन उसे पहले से ही इस बात की जानकारी थी और उसने अपने साथियों के साथ घात लगाकर पुलिस टीम पर गोलियां बरसा दीं, जिसमें आठ पुलिसकर्मियों की मौत हो गई। इसके बाद विकास दुबे और उसके साथी फरार हो गए, लेकिन यूपी पुलिस ने पहले उसके साथियों का एनकाउंटर किया और उसके बाद विकास दुबे का भी मध्य प्रदेश से कानपुर लाते हुए रास्ते में एनकाउंटर हो गया। पुलिस का कहना था कि गाड़ी पलटने के बाद दुबे पिस्तौल लेकर भाग गया और उसने पुलिस पर हमला किया। इन सभी एनकाउंटर को फर्जी बताया गया, फिलहाल मामला कोर्ट में है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के जानकार हैं। वह इलाहाबाद में रहते हैं।)

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