Thursday, April 25, 2024

राज्यों को केवल आर्थिक आधार पर ओबीसी क्रीमी लेयर बनाने का अधिकार नहीं: सुप्रीमकोर्ट

उच्चतम न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि राज्यों को ओबीसी में क्रीमीलेयर के लिए सब क्लासिफिकेशन का अधिकार नहीं है। जस्टिस एल नागेश्वर राव और जस्टिस अनिरुद्ध बोस की पीठ ने यह भी साफ किया है कि राज्य ओबीसी में क्रीमीलेयर सिर्फ आर्थिक आधार पर तय नहीं कर सकता। आर्थिक के साथ सामाजिक और अन्य आधार पर क्रीमीलेयर बनाया जा सकता है। पीठ ने निर्देश दिया है कि हरियाणा सरकार क्रीमीलेयर को फिर से परिभाषित करते हुए तीन महीने में नया नोटिफिकेशन जारी करे।

पीठ ने हरियाणा सरकार की ओर से 2016 में जारी नोटिफिकेशन को खारिज कर दिया जिसके तहत हरियाणा सरकार ने ओबीसी में नॉन क्रीमीलेयर में प्राथमिकता तय कर दी थी। पीठ ने हरियाणा राज्य की 17 अगस्त, 2016 को जारी अधिसूचना रद्द कर दी, जिसके तहत नॉन क्रीमीलेयर के भीतर तीन लाख रुपए से तक आय रखने वाली कैटेगरी के व्यक्तियों को प्रवेश और सेवाओं के मामले में वरियता दी गई थी। कोर्ट ने राज्य को 3 महीने में एक नई अधिसूचना जारी करने का निर्देश दिया है। हालांकि, पीठ ने 17 अगस्त, 2016 और 2018 की अधिसूचनाओं के आधार पर राज्य सेवाओं में प्रवेश और नियुक्तियों को बाधित नहीं करने का भी निर्देश दिया है।

पीठ ने कहा कि 17 अगस्त, 2016 के नोटिफिकेशन के तहत राज्य सरकार ने सिर्फ आर्थिक आधार पर क्रीमीलेयर तय किया था। सुप्रीम कोर्ट ने इस नोटिफिकेशन को खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि यह नोटिफिकेशन इंदिरा साहनी से संबंधित वाद में सुप्रीम कोर्ट के दिए फैसले के खिलाफ है। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि इंदिरा साहनी जजमेंट में कहा गया था कि आर्थिक, सामाजिक और अन्य आधार पर क्रीमीलेयर तय होगा। सुप्रीम कोर्ट ने हरियाणा सरकार से कहा है कि वह इंदिरा साहनी जजमेंट में तय किए गए सिद्धांतों के तहत क्रीमीलेयर परिभाषित करे।

हरियाणा सरकार ने जो नोटिफिकेशन जारी किया था, उसके तहत ओबीसी में छः लाख तक की सालाना आमदनी वाले शख्स को नॉन क्रीमीलेयर माना था। छः लाख से ज्यादा आमदनी वाले को क्रीमीलेयर करार देते हुए उन्हें रिजर्वेशन से वंचित किया गया था। साथ ही छः लाख तक की आमदनी में भी सब क्लासिफिकेशन किया गया था और तीन लाख तक की आमदनी वालों को प्राथमिकता देने की बात कही थी।

हरियाणा सरकार के नोटिफिकेशन में कहा गया था कि ओबीसी में नॉन क्रीमीलेयर का लाभ छः लाख रुपये सालाना की आमदनी वालों को मिलेगा। उससे ज्यादा इनकम वाले क्रीमीलेयर माने जाएंगे। उसमें 3 लाख रुपये सालाना आमदनी वालों को प्राथमिकता श्रेणी में रखा गया। यानी 3 लाख रुपये तक की आमदनी वालों को एडमिशन से लेकर नौकरी में प्राथमिकता देने की बात कही गई। पीठ ने अपने फैसले में राज्य सरकार के नोटिफिकेशन को रद्द कर दिया। कहा कि वह नए सिरे तीन महीने के भीतर नोटिफिकेशन जारी करे।

पीठ ने कहा कि इस फैसले से उन नौकरियों और दाखिले पर फर्क नहीं पड़ेगा जो नोटिफिकेशन के तहत किए गए हैं। उसे छेड़ा न जाए। हरियाणा सरकार ने 17 अगस्त, 2016 को नोटिफिकेशन जारी किया था और ओबीसी में नॉन क्रीमीलेयर के लिए प्राथमिकता तय कर दी थी। तीन लाख तक की आमदनी वालों को प्राथमिकता दी गई थी।

पीठ ने कहा है कि इंद्रा साहनी मामले में तय किए गए मापदंडों के बावजूद हरियाणा सरकार ने 2016 की अपनी अधिसूचना में सिर्फ आर्थिक आधार पर क्रीमी लेयर को परिभाषित किया। पीठ ने कहा है कि ऐसा कर हरियाणा राज्य ने भारी गलती की है। सिर्फ इस आधार पर ही हरियाणा सरकार की साल 2016 की अधिसूचना को खारिज किया जा सकता है।

हरियाणा सरकार के नोटिफिकेशन को हरियाणा के पिछड़ा वर्ग कल्याण महासभा व अन्य ने चुनौती दी थी। हालांकि, हरियाणा सरकार ने अपने नोटिफिकेशन को सही ठहराया था। कहा था कि सुप्रीम कोर्ट की ओर से इंदिरा साहनी जजमेंट में दिए फैसले के अनुसार ही क्रीमीलेयर तय किया गया था। इसके लिए ओबीसी के सामाजिक और आर्थिक स्थिति के बारे में हर जिले में ब्यौरा लिया गया था।

इसके पहले पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने 7 अगस्त, 2018 को दिए अपने फैसले में नॉन क्रीमीलेयर सेगमेंट के भीतर 3 लाख रुपये से कम की वार्षिक आय और 3 -6 लाख रुपए के भीतर वार्षिक आय के रूप में उप-वर्गीकरण करने वाली सरकारी अधिसूचना को असंवैधानिक करार दिया था। उच्च न्यायालय ने माना कि केवल आर्थिक मानदंडों पर नॉन क्रीमीलेयर के भीतर उप-वर्गीकरण को सही ठहराने के लिए कोई डेटा नहीं था।

हाईकोर्ट की जस्टिस महेश ग्रोवर और जस्टिस महाबीर सिंह सिंधु की खंडपीठ ने कहा था कि एक बार जब यह स्वीकार कर लिया जाता है कि कुछ श्रेणियों को हालांकि पिछड़े के रूप में पहचाना जाता है, तो उन्हें 6 लाख से अधिक आय वाले क्रीमी लेयर के रूप में माना जाएगा, बिना किसी इनपुट के पिछड़ों की सूची में किसी भी आगे के उप वर्गीकरण को मनमाना वर्गीकरण कहा जा सकता है, यह विपरीत भेदभाव सुनिश्चित करता है जो पिछड़े वर्गों के बीच समान वितरण के दरवाजे बंद कर देता है।

इससे स्पष्ट है कि किसी जाति या समूह की सामाजिक उन्नति को एक अनुभवजन्य डेटा पर पहचाना जाना चाहिए और यह सीधे नहीं माना जा सकता है कि जिन लोगों की आय 3 लाख के ऊपर है वो सामाजिक पिछड़ेपन से ऊपर उठ चुके हैं। चिन्हित पिछड़े वर्गों के भीतर से इस तरह का बहिष्कार संवैधानिक आवश्यकता की कसौटी पर खरा नहीं उतर सकता। अंतिम परिणाम यह है कि राज्य ने केवल एक हाथ से लाभ देने के लिए दूसरे से इसे दूर किया है।

(वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट।)

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

Related Articles