प्रयागराज। 400 प्रतिशत फीस वृद्धि के ख़िलाफ़ इलाहबाद यूनिवर्सिटी में छात्रों का आंदोलन 15वें दिन में प्रवेश कर गया। कल वहीं छात्र आंदोलन के दौरान छात्रों ने भैंस के आगे बीन बजाकर यूनिवर्सिटी प्रशासन की संवेदनहीनता का मुज़ाहिरा किया। गौरतलब है कि तमाम न्यूज चैनलों के माध्यम से कुलपति संगीता श्रीवास्तव ने दो टूक कहा कि फ़ीस वृद्धि वापस नहीं होगी।
वहीं कल सोमवार को आंदोलन के दौरान एक छात्र आदर्श भदौरिया ने कैंपस के अंदर अपने ऊपर पेट्रोल डालकर आत्मदाह की कोशिश की। मौके पर मौजूद लोगों ने उसकी ये कोशिश नाकाम कर दी। आनंद भदौरिया ने इलाहाबाद के पुलिस प्रशासन पर गंभीर सवाल खड़े करते हुए पूछा है कि मैं छात्र हूँ या कि अपराधी हूं। आनंद ने आगे कहा कि जब मैं सबके सामने हूँ, धरने पर बैठा हूँ तो पुलिस प्रशासन की टीमें मेरे घर जा जाकर छापामारी क्यों कर रही हैं।
पुलिस मेरे बुजुर्ग पिता को क्यों परेशान कर रही है। आनंद भदौरिया ने आरोप लगाया है कि पुलिस उनके पिता को डरा धमका कर दबाव बना रही है। पुलिस उनके पिता से कह रही है कि यदि आप अपने बच्चे को इलाहाबाद से नहीं निकाल लेंगे तो आपके ख़िलाफ़ कार्रवाई की जाएगी। आनंद भदौरिया पूछते हैं कि क्या फ़ीस वृद्धि के ख़िलाफ़ लड़ना संघर्ष करना अपराध है। क्या यूनिवर्सिटी प्रशासन की निरंकुशता के ख़िलाफ़ लड़ना अपराध है। गौरतलब है कि फ़ीस वृद्धि के ख़िलाफ़ छात्र पिछले सप्ताह से आंदोलनरत हैं।
इसके बाद भारी मात्रा में पुलिस बल को यूनिवर्सिटी कैंपस और यूनिवर्सिटी के चारों तरफ उतार दिया गया और देखते ही देखते पूरी यूनिवर्सिटी छावनी में तब्दील हो गई है। एसपी सिटी संतोष कुमार मीणा ने बताया कि यूनिवर्सिटी प्रशासन द्वारा लगातार शांति भंग की सूचना दी जा रही थी। आज इन लोगों ने आत्मदाह की भी कोशिश किया जिसके बाद प्रदर्शनकारी छात्रों को बलपूर्वक कैंपस से हटा दिया गया।
पुलिस अधिकार राजेश कुमार यादव ने मीडिया को बताया है कि पांच दिन पहले आंदोलन के दौरान छात्रों ने छात्रसंघ भवन के द्वार को तोड़ दिया जिसके कारण असहज स्थिति पैदा हो गई। जिसके ख़िलाफ़ यूनिवर्सिटी प्रशासन ने 10-12 नामज़द और 10-15 अज्ञात लोगों के ख़िलाफ़ तहरीर देकर मुक़दमा दर्ज़ करवाया है। अब तक छात्रों के ख़िलाफ़ कुल तीन केस दर्ज़ किया गया है। बता दें कि इलाहाबाद विश्वविद्यालय में 15 सितंबर को छात्रों ने छात्र संघ भवन की ओर बने द्वार को तोड़ दिया था।
इस मामले में चीफ प्राक्टर की तहरीर के बाद 15 नामज़द और 100 अज्ञात छात्रों के ख़िलाफ़ पुलिस ने मुक़दमा दर्ज़ किया था। छात्रों की गिरफ्तारी के लिए पुलिस उनके घरों पर छापेमारी कर रही है। दरअसल इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के छात्रों ने गुरुवार-शुक्रवार की आधी रात को मशाल जुलूस निकाला था जिसमें हजारों की संख्या में छात्र शामिल हुए थे। छात्रसंघ भवन स्थित शहीद लाल पद्मधर की प्रतिमा से चंद्रशेखर आजाद पार्क तक निकाले गये मशाल जुलूस के दौरान प्रदर्शनकारी छात्रों ने विश्वविद्यालय प्रशासन के खिलाफ़ जमकर नारेबाजी की थी। छात्रों की बढ़ती शक्ति से विश्वविद्यालय प्रशासन बौखला गया है।
इक्का दुक्का ही सही पर छात्रों को अपने गुरुओं का समर्थन मिलना शुरू हो गया है। इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर डॉ विक्रम फीस वृद्धि का विरोध करते हैं और फ़ीस वृद्धि के फैसले को ग़लत बताते हैं। कहते हैं इलाहाबाद के आस पास का नेचर समझिये। यहां ज़्यादातर निम्न व निम्न मध्यम वर्गीय परिवारों से बच्चे आते हैं। ज़्यादातार ग़रीब तबके के, दलित पिछड़ी जातियों के बच्चे आते हैं। दूसरी बात कि यहाँ हाउस रेंट बहुत ज़्यादा है, प्राइवेट लॉजों और होस्टल हर जगह। डॉ विक्रम कहते हैं मेरे जमाने में जब कभी जेएनयू में फीस वृद्धि का मामला होता है तो छात्र के साथ अध्यापक व कर्मचारी तीनों मिलकर विरोध करते थे। लेकिन यहां इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर सोचते हैं कि ये मैटर हमारा नहीं है। वे डरे हुए हैं इसलिये खुलकर नहीं आ रहे कि कोई कार्रवाई न हो जाये उनके खिलाफ़।
डॉ विक्रम फीस भरने के मामले में अपने कुछ निजी अनुभव साझा करते हुये कहते हैं कि ऐसे कई वाकये हुये हैं जब बच्चों के पास फ़ीस भरने को पैसे नहीं थे और वो दुखी, उदास, हताश मेरे पास आये हैं, मैंने कई बच्चों की फीस भरे हैं। और ये तब है जब फ़ीस नहीं बढ़ी थी। अब तो 400 गुना फीस बढ़ा दी गई है।
एक शख्स अपनी बेटी का बीएससी में एडमिशन इलाहाबाद यूनिवर्सिटी या संबद्ध कॉलेज में महज फीस की वजह से नहीं करवा पाया। मुझे बाद में पता चला तो दुख हुआ। वो रूसो और अंबेडकर के हवाले से कहते हैं बच्चों को फीस की फ़िक्र ही क्यों करनी पड़े। उन्हें पढ़ने के बारे में सोचने दिया जाय न कि फीस के बारे में। शिक्षा और यूनिवर्सिटी को पब्लिक ही रहने दिया जाये उसे कार्पोरेटाइज न किया जाये। वो शिक्षा के अपने निजी संघर्ष के बारे में बताते हैं वो खुद जेएनयू में इसलिये पढ़ पाये क्योंकि वहां फीस महज 120 रुपये थी। महंगी होती तो वह नहीं पढ़ पाते।
इस बीच आज इलाहाबाद के आंदोलनरत छात्रों ने तमाम दफ्तरों में तालाबंदी करने का फैसला लिया है।
(प्रयागराज से जनचौक के विशेष संवाददाता सुशील मानव की रिपोर्ट।)