किसी की न सुनने का नाम अगर लोकतंत्र है तो सत्ता का बहरापन उसे तानाशाही की ओर ले जाता है जहां वो किसी की न सुनकर अपने मन की बात कहकर केवल अपने मन की करता है। उसकी ये निर्ममता लोगों के सपनों का कत्ल करती है। लोगों से उनका अधिकार छीन लिया जाता है।
यहां बनारस में पिछले 16 दिनों से शिक्षा के अधिकार से वंचित दृष्टिबाधित छात्र सड़क पर अपने हौसले की लड़ाई लड़ रहे हैं। देखना है ज़ोर कितना बाजुए कातिल है कि तर्ज पर सड़क पर अपना बंद स्कूल खोले जाने की पहली और अंतिम मांग के साथ उनकी आजमाईश जारी है। आंखों की रोशनी खोकर इल्म की रोशनी से अपना भविष्य गढ़ने चले इन छात्रों को अंधी गली में छोड़ दिया गया है। स्कूल बंद यानी शिक्षा नहीं! स्कूल बंद यानी भविष्य नहीं ! स्कूल बंद यानी भविष्य की नर्सरी को अनुर्वर कर देना।
दुर्गाकुंड स्थित हनुमान प्रसाद पोद्दार अंध विद्यालय को बंद करने की पीछे की कहानी धंधे से मुनाफे की ओर जाता है। इस मुनाफे के रास्ते स्कूल आ रहा है इसलिए स्कूल को बंद कर दिया गया। छात्रों का कहना है कि बीते 7-8 वर्षों से विद्यालय में अनियमितता होती चली आ रही है जिसकी शिकायत भी हम करते चले आ रहे हैं। कक्षाओं को कभी कपड़ों का गोदाम बनाया जाता रहा तो कभी स्कूल में वाहन स्टैंड देखने को मिला। यहां तक सरकार को अनुदान से संबंधित कागज भी नहीं भेजा गया। छात्रों का कहना है कि व्यापारी कृष्ण कुमार जालान के ट्रस्टी बनने के बाद से ही गड़बड़ियों का सिलसिला चल पड़ा जिसका परिणाम पिछले साल जून में कोरोना काल के दौरान स्कूल को बंद कर दिया गया। स्कूल खोलने के लिए धरने पर बैठे छात्रों का एक स्वर में कहना है हमें हमारा स्कूल चाहिए ताकि हम पढ़ सकें। सरकार को चाहिए कि वो इस स्कूल को अपने हाथों में लेकर इसका संचालन करें।
सूत्रों का कहना है कि यहां के सारे ट्रस्टी भाजपा से कनेक्टेड हैं इसलिए दिल्ली-लखनऊ मौन है।
इस स्कूल में पढ़ने वाले छात्र अति साधारण घरों से आते हैं नोट के बदले शिक्षा वो खरीद नहीं सकते लेकिन बजरिए शिक्षा ही मुस्तकबिल रौशन होगा इस बात को वो जानते हैं सो पढ़ाई के लिए वो बरसात और धूप के बीच सड़क पर बैठे हैं। शहर के मौजूदा जनप्रतिनिधियों का अब तक छात्रों से मिलकर बात न करना इस मामले के हल का कोई प्रशासनिक हल न निकालने पर आंदोलनरत छात्रों का कहना है कि हमारे मामले में इतनी असंवेदनशीलता क्यों?
हमें हमारा स्कूल चाहिए ताकि हम पढ़ सकें हमारी लड़ाई इसी बात के लिए है उनकी मांग है कि ट्रस्टियों को विदा कर सरकार खुद इस स्कूल को चलाए।
कहा जा रहा है कि स्कूल को बंद करने के पीछे ट्रस्टियों की सोची-समझी रणनीति है सरकार इस पर इसलिए चुप है क्योंकि सारे उद्योगपति ट्रस्टी भाजपाई हैं।
इस स्कूल में पढ़ने वाले छात्र अति साधारण घरों से आते हैं नोट के बदले शिक्षा वो खरीद नहीं सकते। लेकिन जिंदगी में बजरिए शिक्षा ही रौशनी हासिल होगी इस बात को वो जानते हैं सो पढ़ने के लिए वो लड़ाई के मोर्चे पर डटे हुए हैं। शहर के मौजूदा जनप्रतिनिधियों में से अब तक किसी के न पहुंचने और सत्ता-प्रशासन के नकारात्मक रवैये से नाराज़ छात्रों का कहना है कि हमारे मामले में इतनी असंवेदनशीलता क्यों?
फिलहाल छात्रों को अपनी सुरक्षा का डर है। डर है आंदोलन को खत्म करने के लिए उन्हें निशाना बनाया जा सकता है इसलिए जिला प्रशासन से धरना स्थल पर सुरक्षा मुहैया करवाने की मांग की है।
(वाराणसी से पत्रकार भास्कर गुहा नियोगी की रिपोर्ट।)
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