इम्फाल में सीआरपीएफ के वाहन पर छात्रों का हमला, हिंसा की आग में जलता मणिपुर

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मणिपुर में कुकी-मैतेई समुदाय के बीच हिंसा में 1 सितंबर से एक बार फिर से तेज हो गई है। पिछले एक सप्ताह से मणिपुर में हालात फिर से बेकाबू हो चुके हैं। इस बार के हमलों में ड्रोन और राकेट लांचर से हमले ने पूरे देश को सकते की स्थिति में ला दिया है। शनिवार को जिरिबाम जिले में हिंसा की घटना और मुठभेड़ में पांच लोगों के मारे जाने की खबर थी। इसे ध्यान में रखते हुए सोमवार और मंगलवार के दिन राज्य में स्कूल और कालेज को बंद रखने की घोषणा की गई थी।

सोमवार को पीटीआई के लाइव वीडियो में देखने को मिल रहा है कि आल मणिपुर स्टूडेंट्स यूनियन (AMSU) के नेतृत्व में प्रदर्शनकारियों द्वारा इम्फाल में सीआरपीएफ के वाहन पर हमला किया गया। इसमें भाग लेने वाले छात्र स्कूली ड्रेस में थे, जिनकी उम्र 18 वर्ष या उससे कम थी। जिरिबाम में फिलहाल सुरक्षा बलों की तैनाती को बढ़ा दिया गया है, और लोगों को अपने घरों के भीतर बने रहने के निर्देश जारी किये गये हैं। लेकिन इम्फाल में विरोध प्रदर्शनों की बाढ़ आ चुकी है, और माहौल एक बार फिर से पूरी तरह से तनावपूर्ण बन गया है।

उधर कल रात इम्फाल में मैतेई समुदाय के लोगों ने विशाल मशाल जुलूस निकाला, जिसमें सैकड़ों की संख्या में महिलाओं ने भी हिस्सेदारी की। भीड़ को काबू में करने के लिए सशस्त्र बलों को आंसू गैस और गोलीबारी का सहारा लेना पड़ा। बड़े पैमाने पर तलाशी अभियान चलाया जा रहा है और कई जगहों से हथियारों को जब्त किया गया है। उधर, मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह इस बीच दो बार राज्यपाल से मिल चुके हैं। शनिवार को उन्होंने विधायकों के साथ बैठक करने के बाद राज्यपाल से मुलाक़ात की थी, और कल रविवार, मुख्यमंत्री विधानसभा अध्यक्ष सहित करीब 20 विधायकों के साथ राज्यपाल, लक्षमण प्रसाद आचार्य से मिलने पहुंच गये। 

राज्य में कानून और व्यवस्था की बिगड़ती स्थिति में अपने लिए मौका ढूंढते एन. बीरेन सिंह ने राज्यपाल को जो ज्ञापन सौंपा है, उससे संकेत मिलता है कि एन बीरेन सिंह के लिए मौजूदा संकट एक अवसर बनकर आया है। इससे पहले दिल्ली के राजनीतिक गलियारों में यह खबर जोर पकड़ रही थी कि शायद इस बार केंद्र सरकार, बीरेन सिंह को पद त्यागने के लिए कह सकती है।

लेकिन अब खुलासा हो रहा है कि राज्यपाल के साथ अपनी मुलाक़ात में बीरेन सिंह ने असल में केंद्र सरकार को ही आड़े हाथों लेने का काम किया है। मणिपुर के मुख्यमंत्री ने केंद्र से राज्य सरकार को एकीकृत कमान सौंपने का आग्रह किया है, जिसका मतलब है कि मणिपुर के मैतेई समुदाय के बड़े हिस्से में यह बात घर कर चुकी है कि कुकी बहुल क्षेत्रों को केंद्र सरकार के द्वारा यूनिफाइड आर्म्ड फाॅर्स के नियंत्रण में देने से हालात बेकाबू हुए हैं। 

असल में बीरेन सिंह हाल की हिंसात्मक वारदातों से यह साबित करना चाहते हैं कि पिछले वर्ष राज्य में भारी हिंसा के बाद केंद्रीय गृह मंत्रालय ने राज्य में सीआरपीएफ के पूर्व डीजी, कुलदीप सिंह के नेतृत्व में यूनिफाइड कमांड के तहत केंद्रीय सशस्त्र बल और सीएपीएफ की कमान सौंप दी थी, जो इन घटनाओं को रोक पाने में विफल साबित हुई है।

आज के दिन, पूरे मणिपुर में शांति व्यवस्था को बहाल रखने की जिम्मेदारी राज्य सरकार की न होने के कारण, एन बीरेन सिंह इसे अपने पक्ष में भुनाने में जुट गये हैं, और उनकी बर्खास्तगी को लेकर जो माहौल बन रहा था, उसे धक्का लगना स्वाभाविक है। इस स्थिति में, यदि राज्य में हालात नियंत्रण से बाहर होते हैं तो मुख्यमंत्री के बजाय यह इल्जाम केंद्र पर आने वाला है। 

बता दें कि 3 मई 2023 से जो आग मणिपुर में लगी है, उसमें पानी डालने का काम न तो केंद्र की मोदी सरकार ने किया और मुख्यमंत्री की भूमिका तो पहले ही सवालों के घेरे में थी। 30 लाख की छोटी सी आबादी में आज भी 50,000 से अधिक संख्या में लोग विस्थापितों का जीवन जीने के लिए मजबूर हैं। अब तक 225 लोगों की जान जा चुकी है, और सारे देश और दुनिया से मणिपुर में शांति बहाली की अपील के बावजूद पीएम नरेंद्र मोदी क्यों आज तक मणिपुर के दौरे के लिए समय नहीं निकाल सके हैं, इसका जवाब किसी के पास नहीं है।

केंद्र और राज्य में डबल इंजन की भाजपा सरकार होने के बावजूद मणिपुर में जातीय विभाजन इस कदर गहरा गया है कि अब दोनों समुदाय में यह बात घर कर चुकी है कि अब वे कभी भी एक साथ शांतिपूर्ण ढंग से जीवन निर्वाह नहीं कर सकते हैं। इस अविश्वास की भावना को तूल देने और मैतेई समुदाय को धरती पुत्र और हिंदुत्ववादी विचारधारा के तहत लाकर कुकी समुदाय के खिलाफ अभियान चलाने और अनुसूचित जनजाति कोटे में हिस्सेदारी के लिए उकसाकर जो विभाजन पैदा करने का काम किया गया था, उसने न सिर्फ राज्य में स्थायी गृह युद्ध के हालात पैदा कर दिए बल्कि पूर्वोत्तर राज्यों में भाजपा को इसका नुकसान तक उठाना पड़ रहा है।   

इस हिंसा का सूत्रधार हिंदुत्व की विभाजनकारी राजनीति रही, जिसमें अरम्बाई टैन्गोल और मैपेई लूपिन जैसे उग्रवादी संगठनों को मुख्यमंत्री बीरेन सिंह का वरदहस्त प्रमुख वजह रही है। भाजपा नेतृत्व चाहता तो पिछले वर्ष की हिंसा के लिए बीरेन सिंह को जिम्मेदार बताकर वह हालात को बेकाबू होने से टाल सकती थी, लेकिन तब भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को पूरा यकीन था कि 2024 और बाद के चुनावों में भी केंद्र में उसका पूर्व बहुमत रहने वाला है।

आज भाजपा केंद्र में न सिर्फ एनडीए के विभिन्न घटक दलों के सहारे सरकार चला रही है, बल्कि मैतेई बहुल एवं कुकी बहुल क्षेत्रों की दोनों लोकसभा क्षेत्रों में भी उसे हार का मुंह देखना पड़ा है। चूँकि हाल की हिंसा का आरोप पर्वतीय क्षेत्रों में बसे कुकी समुदाय पर लगाया जा रहा है, और पूर्व मुख्यमंत्री के आवास के नजदीक ही राकेट लांचर से हमले में एक व्यक्ति की मौत ने मैतेई समुदाय को सड़कों पर ला दिया है, उसे देखते हुए कल तक पूरी तरह से बदनाम बीरेन सिंह उनकी रहनुमाई करने का दावा पेश करने से बाज नहीं आ रहे। यह राजनीति भी उन्होंने जिनसे सीखी है, अब कमजोर केंद्र सरकार के खिलाफ काम आ रही है।   

मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह चाहते हैं कि केंद्रीय सशस्त्र बल और सीएएसएफ की संयुक्त कमांड के बजाय पूरे राज्य को उनके नियंत्रण में दे दिया जाये, वर्ना राज्य के हालात की जिम्मेदारी केंद्र के जिम्मे होगी। सभी जानते हैं कि इंडिया गठबंधन ही नहीं आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत तक कई बार मणिपुर संकट के समाधान के लिए भाजपा नेतृत्व को पहल करने के लिए दबाव डाल चुके हैं।

पिछले दिनों यह खबर भी चल रही थी कि केंद्रीय नेतृत्व राज्य में नेतृत्व परिवर्तन के बारे में विचार कर रहा है। इस बारे में कुछ संकेत भाजपा के उत्तर पूर्व समन्वय समिति के प्रभारी और राष्ट्रीय प्रवक्ता संबित पात्रा की 4 सितंबर को मणिपुर यात्रा से भी मिल रहे थे। इस दौरे के बाद कहा जा रहा था कि मोदी सरकार के 100 दिन पूरे होने के अवसर पर, जो कि 15 सितंबर को पूरा होने जा रहा है, भाजपा की ओर से मणिपुर में नेतृत्व परिवर्तन के माध्यम से देश को संदेश दिया जाना तय हुआ था।

गृह मंत्री अमित शाह के निर्देश पर संबित पात्रा की इस यात्रा में मुख्यमंत्री के अलावा पात्रा ने व्यक्तिगत तौर पर राज्य के मंत्रियों और विधायकों से की। इतना ही नहीं, पात्रा की मुलाकात विधानसभा स्पीकर, बुद्धिजीवियों और उच्च स्तरीय सुरक्षा अधिकारियों से भी हुई थी, ताकि जमीनी हालात का मूल्यांकन कर केंद्र को अंतिम फैसला लेने में सक्षम बनाया जा सके। 

लेकिन 1 सितंबर के बाद से जिस प्रकार से राज्य में राकेट लांचर से हमले की खबरें और हिंसा का सिलसिला शुरू हुआ है, उसके बाद एन बीरेन सिंह ने बड़ी तेजी से मैतेई समुदाय को अपने पीछे गोलबंद करना शुरू कर दिया है। 

मणिपुर सांसद बिमोल अकोइजम ने 7 सितंबर को अपने बयान में मणिपुर में जारी हिंसा और तबाही के लिए केंद्र सरकार को पूरी तरह से जिम्मेदार बताते हुए सरकार की विभाजनकारी सांप्रदायिक राजनीति को खारिज करने की अपील की थी। उनका साफ़ कहना था कि 16 माह से राज्य में 60,000 सशस्त्र बलों की तैनाती के बावजूद हालात नियंत्रण से बाहर हैं, जो बताता है कि पूर्वोत्तर के राज्यों में संकट को बनाये रखने के पीछे सरकार का राजनीतिक एजेंडा काम कर रहा है।

कुछ इसी प्रकार की बात, बाहरी इंफाल सांसद अल्फ्रेड कन्नगम ने संसद में बजट सत्र के दौरान मणिपुर की स्थिति के बारे में अपनी बात रखते हुए कही थी। अपने भाषण में उनका कहना था कि राज्य में इस समय करीब 60,000 पैरामिलिट्री फोर्सेस को तैनात किया गया है, लेकिन इसके बावजूद हालात नियंत्रण से बाहर हैं। यह स्पष्ट दिखाता है कि भारत सरकार पूरी तरह से हालात को अस्थिर बनाये रखना चाहती है। मोदी जी मणिपुर में 16 महीने से जारी हिंसा को खत्म करने में कोई रूचि नहीं लेते, लेकिन उन्हें रूस-यूक्रेन युद्ध में शांति की पहल में बढ़चढ़कर पहलकदमी ले रहे हैं।  

आपकी सरकार स्थिर है, पीएम मोदी को युक्रेन में शांति की फ़िक्र है। ये साथ हजार सुरक्षा बल किसके अधीन काम कर रही है? 15 महीने से अधिक समय से जारी हिंसा का कोई अंत नजर नहीं आ रहा है। कुछ लोग मणिपुर को विभाजित करना चाहते हैं। लोगों के भीतर गहराई से यह विचार धंस चुका है कि हम एक साथ नहीं रह सकते।   

लेकिन विडंबना यह है कि कल तक मणिपुर हिंसा के मुख्य आरोपी मुख्यमंत्री बीरेन सिंह न सिर्फ राज्यपाल के माध्यम से केंद्र सरकार से राज्य में कानून-व्यवस्था को अपने नियंत्रण में किये जाने की मांग कर रहे हैं, बल्कि सरकार और कुकी-ज़ो उग्रवादियों के बीच हस्ताक्षरित ऑपरेशन निलंबन समझौते को निरस्त करने से लेकर भारत-म्यांमार सीमा को सील करने, अवैध प्रवासियों को निर्वासित करने एवं नागरिकों के लिए 1961 से एनआरसी को लागू करने की मांग कर रहे हैं।

निष्कर्ष के तौर पर कहा जा सकता है कि मणिपुर संकट को हल करने के लिए केंद्र सरकार जो थोड़ा-बहुत पहल कर सकती थी, वह भी अब उसके हाथ में नहीं रहा। एक दूसरा निष्कर्ष यह हो सकता है कि मौजूदा मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह और मैतेई बहुसंख्यकों की मांग को मानकर मणिपुर में जातीय हिंसा और एक विशेष समुदाय के नरसंहार की खुली छूट दे दी जाये, जो पूरे पूर्वोत्तर राज्यों को अपनी चपेट में ले सकता है, जो देश की एकता और अखंडता के लिए ही भारी खतरा उत्पन्न कर सकता है। प्रधानमंत्री को यूक्रेन की समस्या से पहले अपने घर को दुरुस्त करने का यह आखिरी मौका है, पता नहीं उनकी प्राथमिकता में मणिपुर का नम्बर कब आएगा?  

(रविंद्र पटवाल जनचौक संपादकीय टीम के सदस्य हैं)

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