Friday, March 29, 2024

आस्ट्रेलिया से भी मिला किसान आंदोलन को समर्थन, ‘स्टॉप अडानी’ आंदोलन आया हिमायत में

मोदी सरकार के तीन नये कृषि कानूनों के खिलाफ भारत के लाखों किसानों के आंदोलन को न सिर्फ देश में बल्कि विदेशों से विशेषकर सिख बाहुल्य कनाडा के अलावा अमेरिका और ब्रिटेन से भी समर्थन मिल रहा है। कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने तो भारत सरकार की तमाम आपत्तियों के बाद भी किसानों के इस ऐतिहासिक आंदोलन को खुला समर्थन दिया है। वहीं, ऑस्ट्रेलिया में भी इस किसान आंदोलन को भारी समर्थन मिल रहा है। ऑस्ट्रेलिया में अडानी के खिलाफ गठित ‘स्टॉप अडानी’ आंदोलन ने भारतीय किसान आंदोलन के प्रति एकजुटता जाहिर करते हुए इस आंदोलन को समर्थन दिया है।

‘स्टॉप अडानी’ आंदोलन ने बीते 10 दिसंबर को एक वक्तव्य जारी कर भारत के किसान आंदोलन को समर्थन दिया है। ‘स्टॉप अडानी’ आंदोलन और ‘ऑस्ट्रेलियाई भारतीय’ के प्रवक्ता मनजोत कौर ने कहा, “पंजाब में मेरा परिवार किसानों की पीढ़ियों से आता है, वही किसान जो वर्तमान में मोदी और अडानी के कृषि कानूनों का विरोध कर रहे हैं।”

उन्होंने कहा कि मुझसे पहले कई पीढ़ियों से मेरे दादा, पिता उसी जमीन पर गेहूं की खेती करते आ रहे हैं और मेरा परिवार चाहता है कि आने वाली पीढ़ी भी किसानी जारी रखें, किंतु इन नये कानूनों और जलवायु परिवर्तन हमारे जीवन के लिए खतरा बन चुका है। मनजोत कौर ने कहा कि मेरे दादा ने जलवायु परिवर्तन देखा है। उन्होंने देखा है जिस नदी में वे खेला करते थे वह किस कदर प्रदूषित हो चुकी है।

उन्होंने कहा कि एक तरफ सरकार नवपूंजीवाद को बढ़ावा देते हुए अडानी जैसे पूंजीपतियों के हित में कृषि कानूनों में बदलाव कर किसानों को बर्बादी के मुहाने पर लाना चाहती हैं, वहीं, किसानों के हित को दरकिनार कर अडानी जैसे उद्योगपति के खतरनाक कोयला खदान के लिए स्टेट बैंक से पांच हजार करोड़ रुपये (एक बिलियन ऑस्ट्रेलियन डॉलर) दिया गया जो जलाने के लिए कोयला निकलेगा और भारतीय किसानों के लिए पर्यावरण का नाश करेगा। 

वहीं, सेंट्रल क्वींसलैंड के किसान साइमन गेड्डा ने कहा कि एक किसान होने के नाते वह उन भारतीय किसानों के साथ खड़े हैं जो अडानी और भारत सरकार के नये कृषि कानूनों का विरोध कर रहे हैं।

बता दें कि ‘स्टॉप अडानी’ ऑस्ट्रेलिया का कृषि और पर्यावरण आंदोलन है, जिसने ऑस्ट्रेलिया में अडानी की खनन परियोजना को दस साल से काम शुरू करने नहीं दिया है। भारत में किसानों ने 8 दिसंबर को ‘भारत बंद’ किया था और अंबानी और अडानी उत्पादों के वहिष्कार का भी एलान किया था। किसानों ने कहा था कि वे अंबानी-अडानी के किसी भी उत्पाद का उपयोग नहीं करेंगे और देश के लोगों से भी इनके उत्पादों के बहिष्कार करने का आग्रह किया था।

गौरतलब है कि साल 2014 में मोदी की ऑस्ट्रेलिया यात्रा के समय ही एसबीआई ने अडानी समूह को ऑस्ट्रेलिया में कोयला खदानें संचालित करने के लिए एक अरब डॉलर कर्ज़ देने का समझौता किया था, लेकिन तब सिर्फ़ सहमति पत्र पर दस्तख़त हुए थे। अब लोन देने की सारी औपचारिकताएं पूरी हो चुकी हैं। गौतम अडानी भी नरेंद्र मोदी के साथ ऑस्ट्रेलिया यात्रा पर गए थे। अब यह सबको पता है कि देश का सबसे बड़ा सरकारी बैंक, स्टेट बैंक ऑफ इंडिया अडानी इंटरप्राइजेज को ऑस्ट्रेलिया की करमाइल खान प्रोजेक्ट के लिए एक बिलियन ऑस्ट्रेलियन डॉलर (करीब 5450 करोड़ रुपये) की रकम लोन देने की कार्रवाई कागजों पर कर चुका है।

इधर एसबीआई ने भी गौतम अडानी को दिए जा रहे पांच करोड़ रुपये कर्ज के बारे में खुलासा करने से इनकार कर दिया है। अडानी इतना ताकतवर है कि संवैधानिक संस्था केंद्रीय सूचना आयोग को भी कहना पड़ा कि उद्योगपति गौतम अडानी द्वारा प्रवर्तित कंपनियों को दिए गए कर्ज से जुड़े रिकॉर्ड का खुलासा नहीं किया जा सकता है, क्योंकि भारतीय स्टेट बैंक ने संबंधित सूचनाओं को अमानत के तौर पर रखा है और इसमें वाणिज्यिक भरोसा जुड़ा है।

https://www.adaniwatch.org/stopadani_solidarity_with_huge

अडानी की यह परियोजना पर्यावरण के लिए बहुत ही खतरनाक है और यह सारे वित्तीय संस्थान ग्रीन वित्तीय सहायता के लिए प्रतिबद्ध हैं। दुनिया के सभी बड़े बैंक सिटी बैंक, डॉयशे बैंक, रॉयल बैंक ऑफ स्कॉटलैंड, एचएसबीसी  और बार्कलेज इस प्रोजेक्ट पर अडानी ग्रुप को लोन देने से इनकार कर चुके हैं। दो चीनी बैंक अडानी की इस योजना के लिए लोन देने से मना कर चुके हैं। ऑस्ट्रेलिया में लोग लगातार इस परियोजना का विरोध करते आ रहे हैं। लोगों के विरोध के आगे वहां की सरकार भी दबाव में है।

दुनिया भर में जलवायु परिवर्तन के कारण लगातार सूखा, बाढ़, तूफ़ान आने की संख्या बहुत बढ़ गई है और अडानी की इस परियोजना के कारण भी ऑस्ट्रेलिया और भारत के जलवायु पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। जलवायु परिवर्तन के कारण ही भारत में 2050 तक गेहूं की पैदावार 23 फीसदी कम हो जाएगी।

(वरिष्ठ पत्रकार नित्यानंद गायेन की रिपोर्ट।)

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