अडानी समूह एक बार फिर से चर्चा में आ रहा है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित कमेटी की रिपोर्ट में ठोस निष्कर्ष पर पहुंचने के बजाय सेबी की विस्तृत जांच जिसकी अंतिम रिपोर्ट अगस्त 23 तक सामने आनी है, पर सारा दारोमदार टिका हुआ है। लेकिन एक साथ अडानी समूह पर कुछ समाचार-पत्रों की पैनी नजर इस बात का सबूत है कि भले ही बाजार में सबकुछ हरा-हर नजर आ रहा हो, लेकिन वित्तीय मामलों के विशेषज्ञ अभी भी अडानी समूह के कारोबार के भविष्य को लेकर आशंकित हैं।
इस सिलसिले में द हिंदू अखबार में प्रसेनजित बोस ने सर्वोच्च न्यायालय द्वारा गठित 6 सदस्यीय कमेटी की रिपोर्ट में से कुछ अहम बिंदुओं को खोज निकाला है, जो साफ़ इशारा करते हैं कि कमेटी को अडानी समूह की कारगुजारियों को लेकर गहरा संदेह था, सेबी की भूमिका भी संदेह के घेरे में बनी हुई है, लेकिन अपने निष्कर्ष में उसने गोल-गोल टिप्पणी कर गेंद सेबी के पाल में डालकर अपनी सीमित दायरे की जांच को पूरा किया है।
इसी प्रकार ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट जिसे भारत में डेक्कन हेराल्ड ने प्रकाशित किया है, में एंडी मुखर्जी ने अडानी द्वारा विरोधाभासी हितों को न उजागर करने पर नए सवाल खड़े किये हैं, जिसपर सोशल मीडिया में नए सिरे से चर्चा चल निकली है, और हिंडनबर्ग की ओर से नेट एंडरसन द्वारा भी एक लॉ फर्म सायरिल अमरचंद मंगलदास (सीएएम) और इसकी पार्टनर को लेकर अडानी समूह से पूछे गये सवाल पर ट्वीट कर कुछ सवाल दागे हैं।
तीसरा समाचार, जिसके बारे में आम भारतीय को जानना सबसे जरुरी है, लेकिन इस पर अभी जानकारी का अभाव बड़ी बहस को जन्म देने से रोके हुए है। वह है अडानी समूह द्वारा आईआरटीसी की टिकट बेचने वाली सहायक कंपनी ‘ट्रेनमैन’ का अधिग्रहण। इसका अर्थ हुआ कि इन्फ्रास्ट्रक्चर के बेताज बादशाह और एक समय दुनिया के सबसे दौलतमंद गौतम अडानी अब आपको ट्रेन की टिकट भी बेचेंगे। यह खबर छोटी भले ही हो, लेकिन यह कितनी दूर तक असर करेगा इसका पता आने वाले समय में ही आम लोगों को चल पायेगा।
लेकिन फिलहाल यहां पर हम द हिन्दू में छपे लेख के उन प्रमुख बिंदुओं का उल्लेख करेंगे, जिसमें सुप्रीमकोर्ट द्वारा गठित एक्सपर्ट कमेटी की रिपोर्ट के अनछुए पहलुओं और सेबी की जांच के बारे में आवश्यक रोशनी डाली गई है, और जिन्हें देश को जानना बेहद जरुरी है। एक्सपर्ट कमेटी ने अडानी समूह में चल रही अनियमितताओं का जिक्र अपनी रिपोर्ट में तो किया है, लेकिन उसे जिस ढंग से पेश किया गया उससे पहली नजर में वह नजर में नहीं चढ़ पाता है।
यही कारण है कि रिपोर्ट के सार्वजनिक होने से पहले ही गोदी मीडिया ने क्लीन चिट की ऐसी खबर चलाई कि देश को लगा कि सुप्रीमकोर्ट ने अडानी समूह की जांच में कोई गड़बड़ी से इंकार कर दिया है, और राहुल गांधी समेत विपक्ष प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बदनाम करने के लिए एक अमेरिकी शार्ट-सेलर के झूठे आरोपों को एक ईमानदार भारतीय उद्यमी के खिलाफ मढ़कर अपना राजनीतिक स्वार्थ सिद्धि में जुट गया है।
हिंडनबर्ग के सनसनीखेज खुलासे के बाद सुप्रीमकोर्ट ने 2 मार्च, 2023 को अडानी समूह से जुड़े विवादों की जांच के लिए दो समानांतर जांच बिठाई थी। अमेरिकी फर्म ने जनवरी माह में अडानी समूह पर स्टॉक में हेराफेरी और मनी-लांड्रिंग का आरोप लगाया था। सेबी को सिक्योरिटीज कॉन्ट्रैक्ट रेगुलेशन के रूल 19ए के तहत किसी उल्लंघन का पता लगाने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। दो माह की अवधि समाप्त हो जाने पर सेबी ने अपनी जांच पूरी करने के लिए 6 माह का अतिरिक्त समय मांगा, जिसे अदालत ने 3 महीने का समय देकर 14 अगस्त तक पूरा करने के निर्देश दिए हैं। इसी के साथ शीर्ष अदालत ने अडानी ग्रुप द्वारा किसी प्रकार के रेगुलेशन का उल्लंघन तो नहीं किया के बारे में अलग से एक एक्सपर्ट कमेटी को भी जांच के लिए नियुक्त किया था।
कोर्ट ने सेबी को इस बात का पता लगाने की जिम्मेदारी दी थी कि वह देखे कि क्या स्टॉक मार्केट में सूचीबद्ध अडानी समूह की सभी कंपनियों ने नियम के अनुसार कम से कम 25% शेयर पब्लिक शेयर होल्डिंग के लिए बाजार में फ्लोट किये हैं या नहीं। इसके अलावा सेबी के जिम्मे यह पता लगाना था कि क्या लेनदेन या संबंधित पार्टियों से जुड़ी अन्य जरुरी सूचनाएं नियम के तहत कंपनी ने खुलासा की हैं या नहीं। इसके अलावा मौजूदा कानूनों के विरुद्ध किसी प्रकार की स्टॉक की कीमतों में हेराफेरी तो नहीं की गई है। सेबी ने 2 महीने की मियाद को बढ़ाने की मांग की, जिसे कोर्ट ने मान लिया।
इसी बीच कोर्ट गठित 6 सदस्यीय एक्सपर्ट कमेटी ने 6 मई को अपनी 173 पेज की रिपोर्ट पेश की, जिसके बारे में जोर-शोर से प्रचारित किया गया कि जांच में सेबी के हिस्से में किसी प्रकार की “रेगुलेटरी विफलता नहीं” देखने को मिली है। लेकिन रिपोर्ट की तह में जाने पर कई तथ्य और घटनाओं की कड़ी देखने को मिलती हैं, जो न सिर्फ रेगुलेटरी विफलता बल्कि नियमों की धज्जियां बिखेरती नजर आती हैं।
रिपोर्ट के चौथे अध्याय में सेबी की रेगुलेटरी प्रदर्शन पर कमेटी की जांच भारी घोटाले का संकेत देती है, जिसमें अडानी समूह के गंभीर आर्थिक अपराधों में लिप्तता का सुराग मिलता है। एक्सपर्ट कमेटी के अनुसार सेबी ने जून-जुलाई 2020 में अडानी ग्रुप के खिलाफ मिली शिकायतों पर अक्टूबर 2020 से अपनी जांच शुरू कर दी थी। लेकिन प्रथमदृष्टया मामला स्थापित न कर पाने के चलते सेबी अडानी समूह को कारण बताओं नोटिस जारी कर पाने में असमर्थ थी। सेबी के द्वारा 13 संदेहास्पद विदेशी संस्थाओं की जांच की जा रही थी, जिनमें से अधिकांश फोरेन पोर्टफोलियो इन्वेस्टर्स के रूप में मारीशस जैसे सुरक्षित ठिकानों से अपना व्यवसाय चला रही थीं। इनके बारे में संदेह था कि ये सभी अडानी ग्रुप के प्रमोटर्स की फ्रंट कंपनियां हैं।
एलारा इंडिया, वेस्पेरा फण्ड, मार्शल ग्लोबल कैपिटल, इमर्जिंग इंडिया फोकस फण्ड, क्रेस्ता फंड, अल्बुला फण्ड, एपीएमएस फण्ड, एलटीएस इन्वेस्टमेंट फंड, एशिया इन्वेस्टमेंट, पोलुस ग्लोबल और ओपल इन्वेस्टमेंट मारीशस स्थित हैं, और न्यू लैना इन्वेस्टमेंट का संबंध सायप्रस से है। इन ऍफ़पीआई का अडानी ग्रुप की 5 लिस्टेड कंपनियों में महत्वपूर्ण हिस्सेदारी पाई गई है। सेबी के आंकड़ों के अनुसार मार्च 2020 तक अडानी इंटरप्राइजेज लिमिटेड में यह भागीदारी 15.5%, अडानी ट्रांसमिशन में 18%, अडानी टोटल गैस में 17.9%, अडानी ग्रीन एनर्जी में 20.3% और अडानी पॉवर में 14.1% की हिस्सेदारी थी।
जबकि मार्च 2020 तक प्रोमोटर ग्रुप की अडानी समूह पांचों स्टॉक मार्केट में सूचीबद्ध कंपनियों में हिस्सेदारी 74% से अधिक की बनी हुई थी। यह खुलासा उनके स्वंय के द्वारा किया गया है। ऐसे में यदि इन 13 ऍफ़पीआई कंपनियों के अडानी ग्रुप के प्रमोटर्स की फ्रंटल कंपनी होने के तथ्य उजागर होते हैं, तो यह साफ़-साफ़ एससीआरआर, 1857 के नियम 19ए का उल्लंघन है। लेकिन सेबी संदेह के बावजूद अभी तक इन विदेशों में स्थापित कंपनियों के “वास्तविक लाभ पाने वाले मालिकान” का पता लगा पाने में असमर्थ साबित हुई है।
आज सेबी यदि ऍफ़पीआईज के वास्तविक लाभार्थी मालिक का पता लगा पाने में असमर्थ है तो इसके पीछे उसी का हाथ है। वर्ष 2018 और 2019 में सेबी के नियमों में क्रमशः बदलाव लाकर एफपीआईज एवं लिस्टिंग ऑब्लिगेशन एंड डिस्क्लोजर रिक्वायरमेंट्स (एलओडीआर) नियमों में ढील दी गई। इन संशोधनों ने कानून में वे सुराख़ बना दिए, जिसका अडानी ग्रुप और विशेषकर विनोद शांतिलाल अडानी ने संदेहास्पद एफपीआईज के वास्तविक मालिकान की पहचान छिपाने में सफलता हासिल की है, और सभी नियमों में खरे उतरने का दावा भी कर सकने की स्थिति में हैं।
इन संदिग्ध एफपीआईज के वास्तविक मालिक का पता लगाने के लिए सेबी ने ईडी और सीबीआई का भी सहारा लेने की कोशिश की ताकि प्रथमदृष्टया मामला बनाया जा सके, लेकिन दोनों संस्थाओं ने यह कहते हुए साफ़ हाथ झाड़ दिए कि जब तक सेबी पीएमएलए एवं टैक्स कानून के उल्लंघन के तहत मामला दर्ज नहीं करती, वे कुछ नहीं कर सकते हैं। एक्सपर्ट कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में सेबी की जांच को “मुर्गी और अंडे” वाली किंकर्तव्यविमूढ़ता के रूप में चित्रित किया है। सेबी के द्वारा 2018 और फिर 2019 में एफपीआई और एलओडीआर में किये गये संशोधनों के बाद 2021 में एक बार फिर से संशोधन के पीछे बदनीयती की आशंका ज्यादा नजर आती है।
एक तरफ सेबी की ओर से जांच चल रही थी, दूसरी तरफ उसके नियमों में संशोधन कर विदेशों में मौजूद कंपनियों के वास्तविक अंतिम लाभार्थी तक भारतीय प्रशासन की पहुंच को नामुमकिन बनाया जा रहा था। सबसे आश्चर्यजनक तथ्य तो यह है कि राजस्व विभाग द्वारा 7 मार्च को पीएमएलए (मेंटेनेंस ऑफ़ रिकार्ड्स) नियम, 2005 तक में संशोधन कर एफपीआईज के लाभार्थी मालिकाने की परिभाषा में बदलाव किया गया। इससे पांच दिन पहले ही 2 मार्च को देश की सर्वोच्च अदालत ने इस मामले की पड़ताल के लिए जांच कमेटियां बनाने का निर्देश दिया था।
ये संशोधन सेबी अधिनियम, 1992 के अनुच्छेद 12 ए के संपूर्ण खात्मे के संकेत थे, जो स्पष्ट रूप से उन युक्तियों एवं साधनों को प्रतिबंधित कर देते हैं जिनके सहारे प्रतिभूति घोटालों सहित इनसाइडर ट्रेडिंग की तह तक जाया जा सकता था। एक्सपर्ट कमेटी की यह टिप्पणी काबिलेगौर है: “सेबी की जांच इस आधार पर लक्षित है कि वह ‘कानून सम्मत’ अपने काम को करना जारी रखेगी। लेकिन दूसरी तरफ सेबी खुद अपने क़ानूनी पक्ष में सुधारों के माध्यम से अपने ही अधिकार क्षेत्र को सीमित कर, अपने घोषित लक्ष्य का मजाक बना रही थी।”
जहां तक अडानी के शेयरों की कीमतों में हेराफेरी का प्रश्न है, तो हम पाते हैं कि इसकी 5 सूचीबद्ध कंपनियों की कीमतों में सबसे ज्यादा उछाल तब देखने को मिला था, जब ग्रुप की गतिविधियों पर सेबी की निगाहें पहले से ही अक्टूबर 2020 से गड़ी हुई थीं। 1 जनवरी, 2021 तक अडानी इंटरप्राइजेज लिमिटेड के शेयर 491 रूपये का था, जो 21 दिसंबर 2022 में 4,190 रूपये की उछाल के साथ 753% बढ़ गया था। अडानी ट्रांसमिशन में यह उछाल 435 रूपये से 4,238 (874%) रूपये तक पहुंच गया था।
इसी प्रकार अडानी ग्रीन के शेयर 1,066 रूपये से बढ़कर 19 अप्रैल 2022 में 3,048 रूपये, अडानी टोटल गैस 377 रूपये से बढ़कर 23 जनवरी 2023 तक 3,998 रूपये (960%) और अडानी पॉवर के शेयर 50 रूपये से बढ़कर 22 अगस्त 2022 में 433 रूपये में बाजार भाव दिखा रहे थे। जहां तक बीएसई सेंसेक्स का सवाल है तो 1 जनवरी 2021 में इसका सूचकांक जहां 47868 था, वह 1 दिसंबर 2022 को अपने सर्वकालिक सूचकांक के साथ 63583 पर था। 23 महीनों में यह बढ़त करीब 32% बनती है, जो अडानी समूह के सूचीबद्ध कंपनियों की तुलना में बेहद मामूली है।
एक्सपर्ट कमेटी की रिपोर्ट से खुलासा होता है कि 1 अप्रैल 2018 से 31 दिसंबर 2022 के बीच सेबी के ऑटोमेटेड सर्वेलांस सिस्टम (एएसएम) के जरिये अडानी ग्रुप की कंपनियों के शेयर में असाधारण उछाल को लेकर 849 अलर्टस प्राप्त हुए थे। इनमें से 603 अलर्ट कीमतों में असामान्य उछाल से संबंधित थे, जबकि 246 अलर्ट संदेहास्पद इनसाइडर ट्रेडिंग से जुड़े हुए थे। सेबी की ओर से बताया गया है कि 603 अलर्ट को सामान्य एसओपी के तहत बंद कर दिया गया है, जबकि संदेहास्पद इनसाइडर ट्रेडिंग से जुड़े 246 अलर्ट पर काम किया जा रहा है।
यहां पर ध्यान देने वाली बात यह है कि जब तक शेयर के दामों में उछाल देखने को मिल रहा था, तब तक सेबी को इसमें कुछ भी असाधारण घटना नहीं लग रही थी, लेकिन हिंडनबर्ग रिपोर्ट के बाद जैसे ही अडानी के शेयर एक के बाद एक तेजी से धड़ाम होने लगे सेबी ने फौरन 4 फरवरी 2023 को एक सार्वजनिक बयान जारी करते हुए इसे असाधारण मूल्य में हलचल करार दिया था। जबकि अडानी ग्रुप के प्रमोटर का नियमों के उल्लंघन का इतिहास रहा है। सेबी ने अडानी ग्रुप को अपराध सिद्ध/शेयर बाजार से हटाये जा चुके केतन पारीख के साथ मिलकर अडानी इंटरप्राइजेज लिमिटेड के शेयरों में हेराफेरी का दोषी पाया था। अप्रैल 2008 में एक निश्चित रकम जमा कराने के बाद जाकर यह मामला सुलझा लिया गया था।
अडानी समूह के इतिहास से सेबी के पूर्व परिचय के साथ अक्टूबर 2020 के बाद से अडानी के शेयरों में अभूतपूर्व उछाल के बावजूद सेबी की सार्वजनिक तौर पर चुप्पी; वो भी तब जबकि सेबी स्वंय कई शिकायतों पर जांच कर रही थी, बड़े सवालों को खड़ा करती है। इसके साथ ही साथ अडानी समूह के खिलाफ रेगुलेटरी नॉन-कम्प्लायन्स का मामला दर्ज करने में अभी तक सेबी ने अनिच्छा दिखाना सेबी का इन नियमों की उल्लंघनों में सह-अपराधी बना देता है।
एक्सपर्ट कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में एक खास तथ्य का भी खुलासा किया है, जिसपर विशेष ध्यान दिए जाने की जरूरत है। 1 अप्रैल 2021 को अडानी इंटरप्राइजेज के शेयर बाजार में 1,031 रूपये पर थे, जो 31 दिसंबर 2022 में असाधारण उछाल के साथ 3,859 रूपये पर पहुंच गये थे। इस दौरान अडानी इंटरप्राइजेज के शेयरों का सबसे बड़ा खरीदार और कोई नहीं बल्कि जीवन बीमा निगम था, जिसने करीब 4.8 करोड़ शेयर की खरीद की थी।
ठीक इसी दौर में 13 संदेहास्पद एफपीआईज ने अपने पास रखे शेयरों की भारी बिकवाली की थी, और करीब 8.6 करोड़ शेयर बेच डाले। इस प्रकार कहा जा सकता है कि अडानी के शेयरों में जो भारी बदलाव इस दौर में देखा गया, उसके पीछे एलआईसी और 13 संदेहास्पद एफपीआईज का था। लेकिन हैरानी की बात है कि सेबी को इसमें अभी तक कोई गड़बड़ी नजर नहीं आई। संभवतः सेबी अभी भी शुद्ध खरीद को ही स्टॉक की कीमतों में बदलाव के लिए जिम्मेदार मानकर चल रही है, लेकिन एफपीआईज के द्वारा भारी बिकवाली एवं एलआईसी द्वारा बड़े पैमाने पर अडानी के शेयरों की खरीद की पड़ताल बेहद जरुरी है।
इतने महत्वपूर्ण तथ्यों और रेगुलेटरी विफलता के बावजूद एक्सपर्ट कमेटी ने अपने निष्कर्ष में मिला-जुला संकेत दिया, और बताया कि सेबी के द्वारा जो सफाई दी गई है, वे आंकड़ों के हिसाब से सही हैं, और प्रथमदृष्टया कमेटी के लिए यह कह पाना संभव नहीं है कि कीमत में हेराफेरी के आरोपों में किसी प्रकार की क़ानूनी विफलता है।
लेकिन वहीं जब एक्सपर्ट कमेटी के निष्कर्षों के बजाय, पेश किये गये विभिन्न तथ्यों पर नजर डालते हैं तो तस्वीर उलटी नजर आती है। अब यह शीर्ष अदालत की खंडपीठ पर निर्भर करता है कि वह इस भारीभरकम रिपोर्ट का अध्ययन कर अपने निष्कर्ष पर पहुंचे। एक्सपर्ट कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में नियमों से छेड़छाड़ सहित अवहेलना के इतने सारे सबूत पेश किये हैं, उन्हें देखते हुए शीर्ष अदालत को सेबी के कार्यकलापों पर अपने ध्यान को केंद्रित करना चाहिए।
( रविंद्र पटवाल जनचौक की संपादकीय टीम के सदस्य हैं।)