नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को देश की निचली अदालतों को पूजा स्थलों के मालिकाने को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर कोई भी कार्यवाही नहीं करने का निर्देश दिया है।
कोर्ट ने कहा कि हमें यह निर्देशित करना बिल्कुल फिट लगता है कि कोई भी नया मुकदमा दर्ज करने या फिर कार्यवाही का आदेश नहीं दिया जाना चाहिए। पेंडिंग मुकदमों में भी कोई भी प्रभावी अंतरिम आदेश या फिर आखिरी आदेश जिसमें सिविल कोर्टों द्वारा सर्वे का आदेश भी शामिल है, अगली सुनवाई तक नहीं दिया जाना चाहिए।
इसमें वाराणसी में ज्ञानवापी विवाद, मथुरा में कृष्ण जन्मभूमि मंदिर और ढेर सारे दूसरे विवाद शामिल हैं। कोर्ट को इस बात की सूचना दी गयी कि इस तरह के मुकदमे 10 स्थानों पर लंबित हैं।
चीफ जस्टिस संजीव खन्ना के नेतृत्व में तीन जजों की बेंच पूजा स्थल अधिनियम 1991 को चुनौती देने वाली याचिकाओं के एक समूह की सुनवाई कर रही है। इसके साथ ही कोर्ट ने केंद्र को इस मसले पर चार सप्ताह के भीतर अपना उत्तर देने के लिए कहा है।
पूजा स्थल अधिनियम, 1991 इस बात का अधिकार देता है कि अयोध्या को छोड़कर जो उस समय कोर्ट में विचाराधीन था, सभी पूजा स्थलों की प्रकृति उसी तरह से बनाए रखनी है जैसा कि वह 15 अगस्त, 1947 को था।
यह कानून राम मंदिर आंदोलन के अपने चरम पर रहने के दौरान पीवी नरसिंहराव के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार द्वारा लाया गया था। यह वाराणसी के ज्ञानवापी मस्जिद औऱ मथुरा के कृष्णजन्मभूमि पर भी लागू होना था।
बहुत सारी याचिकाओं के जरिये कानून को चुनौती दी गयी है।
यह न्यायिक समीक्षा पर रोक लगाता है जिसके बारे में सुप्रीम कोर्ट ने 1980 के मिनेरवा मिल लिमिटेड एंड अदर्स बनाम यूनियन ऑफ इंडिया एंड अदर्स के मामले में दिए गए अपने फैसले में कहा था कि यह संविधान की बुनियादी विशेषता है और इसलिए संसद की विधायी परिधि से बाहर है।
याचिकाकर्ताओं का कहना है कि कानून सेकुलरिज्म के सिद्धांतों का भी उल्लंघन करता है।
हिंदू समूह कानून को खत्म करने की मांग कर रहे हैं। सरकार को अभी इस पर कोर्ट के सामने अपना रुख तय करना है। जबकि इस मामले में कोर्ट द्वारा उसे तीन साल पहले नोटिस जारी किया जा चुका है।
इस संदर्भ में जून, 2020 में लखनऊ आधारित ट्रस्ट विश्व भद्र पुजारी पुरोहित महासंघ ने सु्प्रीम कोर्ट में कानून को चुनौती दी थी। कुछ दिन बाद जमात-उलेमा-ए-हिंद ने भी कोर्ट का रुख किया और खुद को पार्टी बनाए जाने की अनुमति मांगी।
जमात ने कोर्ट को बताया कि यहां तक कि इस मामले में नोटिस का जारी किया जाना भी मुस्लिम समुदाय के दिमाग में भय पैदा कर देगा। खासकर अयोध्या विवाद के बाद और इसके साथ ही देश के सेकुलर फैब्रिक को बर्बाद कर देगा। और उसी के बाद कुछ और याचिकाएं भी दायर की गयीं।
जिसमें काशी के राजपरिवार की ओर से भी एक याचिका शामिल थी। कोर्ट ने कहा कि वह इसी मुद्दे पर याचिकाओं को बढ़ाना नहीं चाहता है। और पक्षों को हस्तक्षेप करने के लिए आवेदन देने की बात कही।
इन याचिकाओं का विरोध करते हुए वाराणसी के ज्ञानवापी मस्जिद की मैनेजमेंट कमेटी ने एक हस्तक्षेप याचिका दायर की है। इसके साथ ही उसने कहा है कि इस तरह की याचिकाओं की इजाजत देने का नतीजा निश्चित तौर पर घातक होगा।
मस्जिद समिति ने संभल में हुई हिंसा को चिन्हित किया। जहां कोर्ट ने शाही जामा मस्जिद का सर्वे करने की अनुमति दी थी और जिस दिन याचिका दायर की गयी उसी दिन उसने सर्वे के लिए सर्वे कमिश्नर नियुक्त कर दिया था।
(जनचौक की रिपोर्ट।)
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