Tuesday, April 16, 2024

भड़काऊ टीवी रिपोर्टिंग पर केंद्र सरकार को सुप्रीम कोर्ट की फटकार

उच्चतम न्यायालय ने केंद्र सरकार की इस बात को लेकर खिंचाई की है कि वह टीवी प्रोग्राम जो उकसाने वाले होते हैं उसे रोकने के लिए कुछ भी कदम नहीं उठाया है। चीफ जस्टिस एएस बोबडे, जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस एवी रामास्वामी की पीठ ने कहा कि इस तरह के न्यूज़ को कंट्रोल करना कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए ऐहतियाती कदम के तौर पर होगा। पीठ ने कहा कि ऐसा न हो कि फेक न्यूज की वजह से किसी की जान जाए।  

पीठ ने 26 जनवरी के मौके पर किसानों द्वारा तीनों कृषि कानूनों के विरोध के दौरान हुई हिंसा के बाद इंटरनेट सेवा को बंद किए जाने के मामले का उल्लेख करते हुए कहा कि निष्पक्ष और ईमानदारी पूर्ण रिपोर्टिंग करने की जरूरत है और समस्या तब पैदा होती है जब इसका इस्तेमाल उकसाने के लिए होता है। पीठ ने कहा कि वास्तविकता यह है कि कई प्रोग्राम के कारण उकसाने वाली हरकत होती है और बतौर सरकार आप कुछ नहीं करते हैं।

चीफ जस्टिस ने उक्त टिप्पणी की कि कई प्रोग्राम ऐसे हैं जो उकसाते हैं और एक समुदाय विशेष पर प्रभाव डालते हैं, लेकिन बतौर सरकार आप कुछ नहीं कर रहे हैं। 26 जनवरी को आपने इंटरनेट और मोबाइल शटडाउन किया, क्योंकि किसान दिल्ली आ रहे थे। आपने इंटरनेट बंद कर दिया। इस तरह की समस्या कहीं भी उत्पन्न हो सकती है। निष्पक्ष और ईमानदारी पूर्ण रिपोर्टिंग से समस्या नहीं है। समस्या तब उत्पन्न होती है जब उकसावे वाली बात होती है। ये उसी तरह से महत्वपूर्ण है जिस तरह से पुलिस वालों के हाथ में लाठी होती है। ये कानून व्यवस्था को बरकरार रखने के लिए प्रिवेंटिव यानी एहतियाती कदम है। हमारी चिंता टीवी प्रोग्राम के कारण उकसावे वाले असर से है।

पीठ ने कहा कि प्रिवेंटिव कदम के तौर पर कुछ न्यूज पर कंट्रोल जरूरी है और आपको कानून व्यवस्था की स्थिति देखनी है चेक करना है। हमें नहीं पता कि आपने आखें बंद क्यों की हुई है। हम आपको कहना चाहते हैं कि आप कुछ नहीं कर रहे हैं। लोग कुछ भी कह सकते हैं लेकिन हम प्रसारण की बात कर रहे हैं जो उकसा सकते हैं और इससे दंगे भड़क सकते हैं। जिंदगी का नुकसान हो सकता है। संपत्ति को नुकसान हो सकता है।

इस पर मेहता ने कहा कि सेल्फ रेग्युलेटरी बॉडी ब्रॉडकास्टर एसोसिएशन और न्यूज ब्रॉडकास्टर स्टैंडर्ड अथॉरिटी (एनबीएसए) है जो उनका अपना सिस्टम है। उच्चतम न्यायालय ने पक्षकारों को अपना हलफनामा तीन हफ्ते में दाखिल करने को कहा है।

केंद्र सरकार ने अपने हलफनामे में कहा कि न्यूज चैनल्स ने अपने लिए स्वायत्त नियमन यानी सेल्फ रेगुलेशन को अपनाया है। इनसे सरकार का सीधे तौर पर कोई लेना-देना नहीं है। इस पर चीफ जस्टिस ने कहा कि ब्राडकॉस्ट कार्यक्रम लोगों को प्रभावित करते हैं। लेकिन सरकार इसमें कुछ क्यों नहीं करती?

चीफ जस्टिस ने सरकार से पूछा कि आपने केबल टीवी नेटवर्क और टेलीविजन कार्यक्रम को अलग-अलग क्यों रखा है? सरकार ने अपने हलफनामे में कहा कि न्यूज चैनल्स ने अपने लिए स्वायत्त नियमन यानी सेल्फ रेगुलेशन को अपनाया है। इनसे सरकार का सीधे तौर पर कोई लेना-देना नहीं है। इस पर चीफ जस्टिस ने कहा कि ब्राडकॉस्ट कार्यक्रम लोगों को प्रभावित करते हैं। लेकिन सरकार इसमें कुछ क्यों नहीं करती? सीजेआई ने कहा कि आपने तब तो इंटरनेट बंद कर दिया जब किसान दिल्ली पहुंचे थे। मोबाइल इंटरनेट भी बंद कर दिया था।

पीठ ने कहा कि आपको विषयों की गंभीरता को समझना होगा। ऐसी खबरों को रोकना होगा जो कानून व्यवस्था पर सवाल बने। आपने आंखें क्यों बंद कर रखी हैं? कुछ करते क्यों नहीं। पीठ ने कहा कि ऐसे कई कार्यक्रम हैं जो किसी समुदाय को उत्पीड़ित करते हैं या उस पर प्रभाव डालते हैं। लेकिन सरकार इन पर कुछ नहीं करती है।

सवालों की इस झड़ी पर सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि केबल टीवी, डीटीएच और ओटीटी पर तकनीकी पहलू क्या हैं और इन्हें कैसे नियमित किया जाता है, इसका पूरा खाका सरकार कोर्ट के सामने पेश करेगी। इसके लिए अदालत समय दे। याचिकाकर्ता ने कहा कि सरकार के पास ऐसे कार्यक्रम पर रोक लगाने की शक्ति है। फिर पीठ ने सरकार को तीन सप्ताह का समय दिया कि टीवी यानी खबरिया चैनल्स की खबरें और कार्यक्रम को नियमित करने और तकनीक व्यवस्था के बारे में सरकार और सभी पक्षकार कोर्ट में जवाब दाखिल करें।

चीफ जस्टिस ने कहा कि मुझे नहीं पता कि कल टीवी में क्या हुआ था। निष्पक्ष और सच्ची रिपोर्टिंग आमतौर पर कोई समस्या नहीं है। समस्या तब है जब इसका उपयोग दूसरों को उत्तेजित करने के लिए किया जाता है। यह उतना ही महत्वपूर्ण है जितना पुलिसकर्मियों को लाठियां देना। यह कानून और व्यवस्था की स्थिति का महत्वपूर्ण हिस्सा है।

17 नवंबर, 2020 को उच्चतम न्यायालय ने तबलीगी जमात के मामले में कुछ मीडिया की गलत रिपोर्टिंग पर सवाल उठाने वाली जमीयत उलेमा ए हिंद की याचिका पर सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार के हलफनामे पर सवाल उठाया था और कहा था कि केंद्र सरकार ने टीवी के कंटेंट को रेग्युलेट करने के लिए मैकेनिज्म के बारे में कोई बात नहीं की। अदालत ने कहा था कि वह केंद्र सरकार के हलफनामे से संतुष्ट नहीं है।

उच्चतम न्यायालय ने केंद्र सरकार के हलफनामे पर नाराजगी जाहिर करते हुए कहा था कि पहले तो केंद्र सरकार ने सही तरह से हलफनामा दायर नहीं किया और जब किया तो उसमें रेग्युलेटरी मैकेनिज्म के बारे में बताया जाना चाहिए कि कैसे टीवी के कंटेंट को डील किया जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि सरकार को रेग्युलेटरी मैकेनिज्म बनाने पर विचार करना चाहिए ताकि टीवी के कंटेंट से संबंधित मामले को डील किया जा सके।

उच्चतम न्यायालय ने कहा था कि केंद्र सरकार रेग्युलेटरी मैकेनिज्म बनाने के बारे में विचार करे और कोर्ट को अवगत कराए। साथ ही कहा कि सरकार को इस बात से भी अवगत कराना चाहिए कि केबल टीवी नेटवर्क लिमिटेड के जरिये इस मुद्दे पर क्या कदम उठाए जा सकते हैं।

उच्चतम न्यायालय ने 27 मई 2020 को उस याचिका पर केंद्र व अन्य को नोटिस जारी कर जवाब दाखिल करने को कहा था जिसमें याचिकाकर्ता जमीयत उलेमा ए हिंद ने अर्जी दाखिल कर आरोप लगाया है कि कुछ टीवी चैनलों ने कोरोना के दौरान तबलीगी जमात के निजामुद्दीन मरकज की घटना से संबंधित फर्जी खबरें दिखाई। याचिकाकर्ता की ओर से सीनियर वकील दुष्यंत दवे ने कहा था कि मरकज मामले में फेक न्यूज दिखाने से देश की सेक्युलर छवि को ठेस पहुंचा है।

 (वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट।)

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