सुप्रीम कोर्ट ने सीएम रावत के खिलाफ सीबीआई जांच के आदेश पर रोक लगाई

Estimated read time 1 min read

जैसी की उम्मीद थी उच्चतम न्यायालय मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के लिए संकट मोचक बन कर सामने आया है और उत्तराखंड हाईकोर्ट के सीबीआई जांच के आदेश  पर रोक लगा दिया है और पक्षकारों को नोटिस जारी कर चार सप्ताह में जवाब मांगा है। आम तौर पर उच्च न्यायालय या उच्चतम न्यायालय भ्रष्टाचार के मामले में दांडिक कार्रवाई पर रोक लगता रहा है और जाँच जारी रखने का आदेश पारित करता रहा है। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों की सीबीआई जाँच के आदेश उच्चतम न्यायालय को बहुत कठोर प्रतीत हो रहा है। 

जस्टिस अशोक भूषण, जस्टिस आर सुभाष रेड्डी और जस्टिस एमआर शाह की पीठ ने कहा कि इस मुद्दे पर विचार किया जाएगा और नोटिस जारी कर प्रतिवादियों से जवाब मांगा गया है। उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने स्वत:संज्ञान लेते हुए सीबीआई को एक खोजी पत्रकार उमेश शर्मा द्वारा उत्तराखंड के वर्तमान मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के खिलाफ लगाए गए भ्रष्टाचार के आरोपों की प्राथमिकी दर्ज करने और जांच करने का निर्देश दिया था। मुख्यमंत्री पर भाजपा के झारखंड प्रभारी होने पर गौ सेवा अयोग में उम्मीदवार का समर्थन करने के लिए उनके रिश्तेदारों के बैंक खाते में धन हस्तांतरित करने का आरोप लगाया गया है। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने उच्चतम न्यायालय में फैसले को चुनौती दी थी।

पीठ ने कहा कि मुख्यमंत्री को सुने बगैर ही हाईकोर्ट द्वारा इस तरह का सख्त आदेश देने से सब चकित रह गए क्योंकि पत्रकारों की याचिका में रावत के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने का अनुरोध भी नहीं किया गया था। रावत की ओर से अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने सुनवाई के दौरान कहा कि मुख्यमंत्री का पक्ष सुने बगैर प्राथमिकी दर्ज नहीं की जा सकती और इस तरह का आदेश निर्वाचित सरकार को अस्थिर करेगा। वेणुगोपाल ने पीठ से कहा, एक निर्वाचित सरकार को इस तरह से अस्थिर नहीं जा सकता। सवाल यह है कि पक्षकार को सुने बगैर ही क्या स्वत: ही इस तरह का आदेश दिया जा सकता है।

नैनीताल हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के खिलाफ आरोपों की प्रकृति पर विचार करते हुए सच को सामने लाना उचित होगा। यह राज्य के हित में होगा कि संदेह दूर हो। इसलिए मामले की जांच सीबीआई करे।हाईकोर्ट ने यह फैसला दो पत्रकारों-उमेश शर्मा और शिव प्रसाद सेमवाल की दो अलग-अलग याचिकाओं पर सुनाया था। इन याचिकाओं में पत्रकारों ने इस साल जुलाई में अपने खिलाफ भारतीय दंड संहिता की विभिन्न धाराओं के तहत दर्ज की गई प्राथमिकी को रद्द करने का आग्रह किया था।

पत्रकार उमेश शर्मा के लिए वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल उपस्थित हुए। उन्होंने कहा कि मामला गंभीर है और व्हाट्सएप संदेश मुख्यमंत्री के लिंक का संकेत है। यह मामला रावत के मुख्यमंत्री बनने से पहले का है। पत्रकार का आरोप है कि 2016 में जब रावत भाजपा के झारखंड प्रभारी थे, तब उन्होंने एक व्यक्ति को गोसेवा आयोग का अध्यक्ष बनाए जाने को लेकर धनराशि अपने रिश्तेदारों के खाते में ट्रांसफर कराई थी।

उत्तराखंड हाईकोर्ट के जस्टिस रवींद्र मैथानी की एकल पीठ ने उस मामले में यह फैसला दिया जिसमें एक उमेश शर्मा ने रावत से संबंधित एक वीडियो (जुलाई 2020 में) बनाया था जो वर्ष 2016 में गौ सेवा आयोग का नेतृत्व करने के लिए झारखंड में एक व्यक्ति (एएस चौहान) की नियुक्ति के लिए उनके रिश्तेदारों के खातों में रुपये ट्रांसफर करने में रावत (भाजपा के झारखंड प्रभारी के रूप में) की कथित भूमिका के लिए था।

इसके लिए, डॉ हरेंद्र सिंह रावत ने उमेश शर्मा  के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की। एफआईआर 265/ 2020 उस मामले से संबंधित था जिसमें उमेश शर्मा ने त्रिवेंद्र सिंह रावत के खिलाफ लगाए गए भ्रष्टाचार के आरोपों को साझा किया था। इसमें हरेंद्र सिंह रावत और उनकी पत्नी सविता रावत से संबंधित कुछ बैंक खातों के साथ एक कंप्यूटर स्क्रीन पर दस्तावेज दिखाए गये । उमेश शर्मा ने दावा किया कि वर्ष 2016 में नोटबंदी के बाद, डॉ हरेंद्र सिंह रावत और उनकी पत्नी के खातों में पैसा जमा किया गया था, जो त्रिवेंद्र सिंह रावत के लिए रिश्वत के रूप में था। वीडियो में, उमेश शर्मा  ने यह भी दावा किया था कि सविता रावत त्रिवेंद्र सिंह रावत की पत्नी की असली बहन हैं और त्रिवेंद्र सिंह रावत को शिकायतकर्ता और उसकी पत्नी के बैंक खातों में जमा राशि के माध्यम से रिश्वत के पैसे का भुगतान हुआ।

(वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट।)

please wait...

You May Also Like

More From Author

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments