Thursday, March 28, 2024

सुप्रीम कोर्ट ने एलजी से पूछा कि आखिर किस अथॉरिटी के तहत की गई एल्डरमैन की नियुक्ति?

दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) में एल्डरमैन की नियुक्ति को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को दिल्ली के उपराज्यपाल (एलजी) से पूछा कि आखिर किस अथॉरिटी के तहत एल्डरमैन की नियुक्ति की गई? क्या ऐसा करने के लिए मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह जरूरी नहीं थी?

एमसीडी में उपराज्यपाल की ओर से की गई एल्डरमैन की नियुक्ति को दिल्ली सरकार से मिली चुनौती वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने एलजी सचिवालय को नोटिस भेजकर जवाब मांगा है। दिल्ली सरकार का कहना है कि यह लोकतंत्र का अपमान है।

मामले पर सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने उपराज्यपाल ऑफिस को नोटिस देकर सोमवार तक जवाब देने को कहा है। अब इस मुद्दे पर 17 अप्रैल को सुनवाई होगी।

एल्डरमैन शब्द का मतलब है किसी एक क्षेत्र में विशेषज्ञ व्यक्ति। ये माना जाता है कि इन लोगों के पास नगरपालिका प्रशासन में विशेष विशेषज्ञता या अनुभव होता है। हालांकि इनके पास वोटिंग का अधिकार नहीं होता। इन्हीं लोगों की नियुक्तियों को लेकर दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल में ठनी हुई है।

कोर्ट में दिल्ली सरकार के वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि यह लोकतंत्र का अपमान है। एक पार्टी बहुमत से जीत कर आती है और उसे पलटने की कोशिश हो रही है। दिल्ली नगर निगम में उपराज्यपाल की तरफ से पार्षद मनोनीत किए जाने को मनमाना और असंवैधानिक बताते हुए दिल्ली सरकार की दलील थी कि पार्षद मनोनीत करना उसका अधिकार है। बावजूद इसके लोकतंत्र और जनभावना का लगातार अपमान किया जा रहा है।

दिल्ली सरकार ने आरोप लगाया है कि  पहली बार एलजी  ने एमसीडी में एल्डरमैन अपनी मर्जी से नियुक्त किए हैं। खास बात ये है कि इससे पहले अब तक दिल्ली सरकार एल्डरमैन का चयन करती थी। 1991 में अनुच्छेद 239AA के प्रभाव में आने के बाद से यह पहली बार है कि उपराज्यपाल द्वारा निर्वाचित सरकार को पूरी तरह से दरकिनार करते हुए इस तरह का नामांकन किया गया है।

इस मामले पर एलजी कार्यालय का कहना था कि एक्ट में 2019 में हुए बदलाव के बाद कानूनी स्थिति बदल चुकी है। लिहाजा दिल्ली की चुनी हुई सरकार की दलील अब बेमानी हो चुकी है। सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस चंद्रचूड़, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस जेबी पारदीवाला की पीठ ने पूछा कि उपराज्यपाल बिना कैबिनेट की सलाह के कोई फैसला कैसे कर सकते हैं?

इस पर सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि एल्डरमैन की नियुक्ति एक्ट में 2019 में हुए बदलाव के आधार पर की गई है। पीठ ने एलजी की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) संजय जैन से पूछा कि एलजी एमसीडी में 10 सदस्यों को नामित करने में मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह के बिना कैसे कार्य कर सकते हैं?

कोर्ट में सुनवाई के दौरान संजय जैन ने कहा कि हम इस मामले में एक हलफनामा दाखिल करना चाहते हैं। हमारे पास 2018 के सुप्रीमकोर्ट के फैसले द्वारा दी गई शक्ति है। उन्होंने कहा कि इस प्रभाव के लिए जीएनसीटीडी अधिनियम में एक संशोधन भी किया गया था। वह संशोधन भी इस न्यायालय के समक्ष चुनौती के अधीन है।

सुप्रीम कोर्ट की एक संविधान पीठ के 2018 के फैसले के बाद जीएनसीटीडी अधिनियम (राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र अधिनियम की सरकार) की धारा 44 में संशोधन किया गया था। इस पर सिंघवी ने कहा कि वे स्पष्ट रूप से गलत थे और सुप्रीम कोर्ट द्वारा अनुच्छेद 239AA (जो दिल्ली से संबंधित है) की संवैधानिक व्याख्या को एक क़ानून में संशोधन करके नकारा नहीं जा सकता है।

उन्होंने कहा कि दिल्ली सरकार के अधिकारी फाइलों को दिल्ली सरकार के साथ साझा किए बिना सीधे एलजी के कार्यालय में भेज रहे थे। आम आदमी पार्टी (आप) के नगरपालिका चुनाव जीतने के बाद एलजी ने 10 ‘एलडरमैन’ नियुक्त किए जिनका दिल्ली सरकार ने विरोध किया।

दिल्ली सरकार की याचिका में 3 और 4 जनवरी के आदेशों को रद्द करने की मांग की गई थी जिसमें एलजी ने 10 लोगों को एमसीडी के मनोनीत सदस्य के रूप में नामित किया था। याचिका में कहा गया है कि उपराज्यपाल ने दिल्ली नगर निगम में 10 मनोनीत सदस्यों को अपनी पहल पर “अवैध रूप से” नियुक्त किया है, न कि मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह पर।

(जे पी सिंह वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामले के जानकार हैं।)

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